ज्ञानोदय में छपी कहानी “‘चिन्दी चिन्दी कथा” पर वरिष्ठ साहित्यकार प्रताप सहगल की प्रतिक्रिया
ज्ञानोदय के जून अंक में छपी कहानी चिन्दी चिन्दी कथा पर पाठकों की इतनी अच्छी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी।...
ज्ञानोदय के जून अंक में छपी कहानी चिन्दी चिन्दी कथा पर पाठकों की इतनी अच्छी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी।...
जानने वाले जानते हैं कि इन दिनों मेरा लिखना-पढ़ना लगभग बंद ही रहा। कुणाल, निशांत, प्रफुल्ल कोलख्यान, नीलकमल जैसे मित्रों...
लोहा और आदमीवह पिघलता है और ढलता है चाकू मेंतलवार में बंदूक में सुई मेंऔर छेनी-हथौड़े में भीउसी के सहारे...
सपना गाँव से चिट्ठी आई है और सपने में गिरवी पड़े खेतों कीफिरौती लौटा रहा हूँपथराये कंधे पर हल लादे...
कुछ अरसा पहले वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंह ने अपने संपादकीय में एक बहुत ही अच्छी कविता लिखी थी।...
उनसे हमारा परिचय बस एक पाठक साहित्यकार का था। हमारी नजर में वे हमेशा एक बड़े कथाकार रहे। तमाम साहित्यिक...
रविन्द्र, सच सिर्फ वही नहीं होता जो दिखता है, उसके आगे भी सच के कई छोर होते हैं। मुझे इस...
दोस्तों की शिकायतें बाजिब हैं, लेकिन क्या करूं कि कोई एक कहानी पूरी हो जाय। आपको जानकर शायद ही विश्वास...
कहते हैं दुनिया जा रही नाउम्मिंदी की ओरसमय की पीठ पर रह गए हैं महजहमारी अच्छाईयों के निशानआज जो दिखतावह...
तेरी ज़ुल्फों के आर पार कहीं इक दिल अजनबी सा रहता हैलम्हा लम्हा जो मिला था कि हादिसों जैसावो वक्त...
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