समाज की
दशा और दिशा – पाँचवी
दिशा
सुषमा मुनीन्द्र
सुषमा मुनीन्द्र |
करने वाले रचनाकार सुशांत सुप्रिय के 160 पृष्ठों में विस्तारित इस नवीन कथा संग्रह ‘पाँचवी दिशा’ में इकतीस कहानियाँ
हैं। कहानियों का कलेवर छोटा, उद्देश्य बड़ा है। मुझे इनके चार कथा संग्रहों को पढ़ने
का अवसर मिला है। पूर्व के कथा संग्रहों की तरह समीक्ष्य कथा संग्रह में स्थानियता
(पंजाब), प्रकृति, मिथक, फंतासी, चौगिर्द फैली-छितरायी छोटी-बड़ी स्थिति-परिस्थिति-मन:स्थिति
समाहित है। अधिकतर कहानियाँ एक ट्विस्ट, लेकर जिस अंत पर पहुँचती हैं वहाँ कहानी की मंशा सफल हो जाती है। सुशांत
सुप्रिय की अपने मौलिक लेखन और अनुवाद कार्य दोनों में गहरी पकड़ है। मौलिक
कहानियों में कोई ऐसा बिंदु, टटकापन, पृथक आयाम होता है जो जिज्ञासा को बढ़ा देता है। इसी तरह
अनुवाद में मूल रचना की सांद्रता और भाव कायम रहता है। ‘’देखा जाये तो आदर्श और सम्पूर्ण हममें से कोई नहीं होता। हम
सबके प्लास और माइनस प्वॉकइन्ट्स होते
हैं। (पृष्ठर संख्या 46)।‘’ का अनुसरण करते हुये कहानियों के पात्र अपनी खूबियों-खामियों, अनुकूलन-प्रतिकूलन, सत्य-असत्य और, उदारीकरण-कुत्सातकरण, मर्म-तर्क, स्वेद-रक्तम के
साथ अभाव और शून्यता को भरने का प्रयास करते हुये विेवेकपूर्ण विश्लेषण से राह
निकाल लेते हैं।
इंसाफ, घाव, दाग, ये दाग-दाग उजाला आदि कहानियों में 2002 के गुजरात दंगे व 1984 के पंजाब दंगे वाले अराजक और जनविरोधी दौर का ह्दय विदीर्ण करने वाला
विवरण दर्ज है। पाक प्रशिक्षित खलिस्तानी आतंकवादी, खलिस्तारन मूवमेन्ट , ऑंपरेशन ब्लू्
स्टार, हिंदुओं का पंजाब से पलायन, सुरक्षा की दृष्टि से सिखों की पंजाब वापसी, हिंदू-मुस्लिम वैमनस्यद और भ्रम ने आमजन के जहन पर ऐसा असर और
सघन दबाव डाला है कि यह वैमनस्य पुख्ता, विचार बनता जा रहा है। इसीलिये ‘घाव’ की जाट युवती सिमरन का विवाह हिंदू
युवक किसलय से नहीं हो पाता। ‘दाग’ का सरदार मानसिक अस्थिरता और नाइट मेयर्स से त्रस्त हो जाता
है।
अधिकांश कहानियों में लोक कथा, कहावत, मुहावरे, तद्भव और देशज
भाव, मिथक, फंतासी असाधारण पारलौकिक और नकारात्मकक ताकत, हॉन्टेड प्लेस, नियर डेथ एक्स पीरियंस जैसे प्रसंग हैं जिन्हें लेखक ने अपनी चिंतन प्रणाली, बिम्बों, प्रतीकों, संकेत के प्रयोग से ऐसा पुष्ट -प्रभावी बना दिया है कि कहानियॉं
गढ़ी हुई नहीं बल्कि गम्भीर लगती हैं। विज्ञान के मंथन, टच स्क्रीन वाले दौर के बावजूद ऐसी शक्तियों के अस्तित्वाद को
सिरे से खारिज नहीं किया जा सका है। इन स्थितियों को अकल्पित नहीं बल्कि रेयरेस्ट
ऑफ द रेयर माना जाना चाहिये। ब्रम्हाण्ड
चमत्कार और रहस्यों से आज भी भरपूर है। पाँचवीं दिशा, लौटना, इंसाफ, तितली, चाचा जी का अधूरा
उपन्यास, दुनिया की सबसे खूबसूरत खराब हो गई
पेंटिंग, अचानक एक दिन, बलिदान, ये दाग-दाग उजाला, टू इन वन, कहानी कभी नहीं
मरती आदि कहानियाँ रोजमर्रा की, स्थितियों से
पृथक आभासी दुनिया का पता देती हैं। ‘चाचा जी की उपन्यास का अंतिम अध्याय लिखने से पूर्व ह्दयाघात से मृत्यु हो
जाती है। वे मरणोपरांत चमत्कारिक रूप से अंतिम अध्याय लिखते हैं। ‘इंसाफ’ के दुर्जन सिंह
ने 1984 के दंगों में सिखों की हत्या की थी। 2019 में कोलकाता से
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सम्मेंलन
में भाग लेने दिल्ली आया छोटे कद का सुमंतो घोष अपने भीतर प्रविष्ट हुई अज्ञान
ताकत के वशीभूत दुर्जन सिंह का वध करता है। ‘दुनिया की सबसे खूबसूरत खराब हो गई पेंटिंग’ की पर्दे, फूल, नल, पानी, द्वार के जीवंत चित्रण के कारण असाधारण लगने वाली पेंटिंग जल में विसर्जित
करते हुये दैवीय आभास देती है। ‘ये दाग-दाग उजाला’ के गुजरात दंगे में मारे गये वृद्ध मुसलमान का प्रेत जिस
हॉन्टेड होटेल में वास करता है वह होटेल दंगे में जला दी गई मुस्लिम बस्ती के स्थान
पर निर्मित था। ‘तितली’ के अचानक अदृश्य हो जाने वाले कुतुबुद्दीन नाम के लड़के को ‘’बच्चों के अक्स गायब हो जाने वाले इस देश में केवल एक और
बच्चा ही तो गायब हो गया था (116)।‘’जैसे लापरवाह भाव से देखा जाता है।
पड़ी युवा नेहा चिकित्सकों की बात को समझ रही है साथ ही मृतक माता-पिता, दादा-दादी, अल्पायु पुत्र के
आस-पास होने का बोध कर रही है। ‘अचानक एक दिन’ का कार दुर्घटना में गम्भीर रूप से चोटिल हुआ केन्द्रीय
पात्र चेतना और मूर्छना के बीच असाधारण स्थिति से गुजरता है। ‘टू-इन-वन’ के मलयालम भाषी
सुकुमारन के मस्तिष्क के भाषा वाले केन्द्र
की तंत्रिकाओं में गम्भीर हेड इन्जुरी के कारण ऐसा कुछ गड्ड-मड्ड हो जाता
है कि कोमा से बाहर आने पर वह धारा प्रवाह पंजाबी बोलने लगता है। दुबारा
दुर्घटनाग्रस्त होकर कोमा से बाहर आने पर पंजाबी भूल कर बंगाली बोलने लगता है।
लेखक ने कथानक के उद्गम का उल्लेख किया है – एश्यिन एज 26.10.2016 एटलांटा अमेरिका
का सोलह वर्षीय किशोर सिर में लगी चोट के कारण कोमा में गया। जागने पर फ्रेंच
बोलने लगा।‘
इन पृथक
स्थितियों के पीछे ‘’समय और काल में कोई गुप्त पोर्टल खुल गया था जिसमें से होकर किसी
वैकल्पिक समानान्तर ब्रम्हाण्ड की शैतानी
छवियाँ मुझ तक पहुँच रही थीं (दसवाँ आदमी)।‘’जैसा तथ्य हो न हो पर ये कहानियॉं
ऐसी किसी दुनिया का रोमाँच और स्तब्धता देती हैं जिसके रहस्य को हम जानना चाहते
हैं।
सुशांत
सुप्रिय की पारिवारिक – सामाजिक संरचना, नैतिकता, ईमानदारी जैसे
गुण धर्म, प्रकृति के उदात्त भाव पर आस्था है।
इनकी कहानियों में दादा, परदादा, पिता अपने बड़प्पन और उदारता के साथ दृश्य या स्मृति में
मौजूद रहते हैं। ये पिता मशवरा नहीं देते वरन शांत चित्त से अपने अभिमत समझाते
हैं। पिता के नाम, स्पर्श, कलम आदि कहानियों के पिता जानते हैं स्पर्श, स्नेह का असर संतान में आत्मबल बनकर आजीवन रहता है। ‘कलम’ के मृत्यु शैय्या
पर पड़े पिता रचनाकार युवा बेटे को अपनी कलम सौंपते हैं ‘’जब मैं नहीं रहूँगा तब भी हूँगा तेरी कलम में, कविता कहानी बनकर। जैसे मुझमें बचे हुये हैं मेरे पिता। अपने
बच्चों’ में बचा रहेगा तू वैसे ही बचा रहूँगा
मैं तुममें, जाने के बाद भी (74)।‘’ वे कलम का तात्पर्य
और प्रयोजन समझाते हैं कि कलम आगे बढ़ने वाली वह सतत प्रक्रिया है जिससे भावना, रिश्ते, जीवन, पीढि़याँ, कर्तव्य संचालित
होते हैं।
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जीवन को
संचालित करने वाली प्रकृति पर लेखक की आस्था है। वे मानव मन के भावों की तुलना
तितली, इन्द्रधनुष, जल तरंग, सूर्योदय, भँवरें, ओस, मखमली घास से करते हुये भाषा में ऐसा अदब और करीना ले आते हैं
कि जिन कहानियों में घटना या चरित्र की प्रधानता नहीं होती बल्कि सूचनाओं का
विस्तार होता है वे भी भाषायी अनुशासन, अनुकूल शब्द चयन से पठनीय बन जाती हैं। घर-बाहर, भ्रमण, अखबार, न्यूज चैनल आदि माध्यमों से मिलती सूचनाओं पर सुशांत सुप्रिय
पूरे मन से सोचते हैं इसलिये इन्हें कथानक अनायास मिल जाते हैं। पात्र अतीत और
वर्तमान के बीच आवाजाही बनाये रखते हैं तथापि तारतम्य नहीं टूटता। पात्र कहानी ‘छटपटाहट’ के श्रीकांत की
तरह भटकन, उधेड़बुन, अनिश्चितता के चलते तिलमिलाते – छटपटाते हैं पर सही नतीजे पर पहुँचते हैं। यद्यपि ‘’इस इंसानी जंगल की सड़कों पर नरभक्षी घूम रहे हैं। वे मुस्कुराकर
आपस में हाथ मिलाते हैं, आप उनकी मुस्कान
में छिपे खंजरों और छुरों को नहीं देख पाते हैं। वे आपकी पीठ थपथपाकर आपको रीढ़हीन
बनाते हैं (154)। ‘’जैसी सामाजिक – नैतिक गिरावट
समाज और परिवार में निरंतर दर्ज हो रही है तथापि कहानी ‘बौड़मदास’ के बौड़मदास
जैसे पात्र सत्यनिष्ठ आचरण नहीं छोड़ते।
एक उदास
सिम्फ़नी, बयान, भूकम्प आदि कहानियाँ भी बहुत अच्छी हैं। अच्छे कहानी संग्रह के लिये
सुशांत सुप्रिय को साधुवाद।
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पुस्तक – पॉंचवीं दिशा (कहानी संग्रह)
लेखक – सुशांत सुप्रिय
प्रकाशक – भावना प्रकाशन
109-ए, पटपड़गंज गॉंव दिल्लीक – 110091
मूल्य – 395/-
प्रकाशन वर्ष – 2020
सुषमा मुनीन्द्र
द्वारा श्री एम. के. मिश्र
एडवोकेट
जीवन विहार अपार्टमेन्ट्स
फ्लैट नं0 7, द्वितीय
तल
महेश्वरी स्वीट्स के पीछे
रीवा रोड, सतना
(म.प्र.)-485001
मोबाइल
– 8269895950
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad