जंगल जल रहा है
मैं बुखार में हूं
और विचारों का ताप बढ़ता ही जा रहा है
मुझ पर जुर्माना लद गया है
और घाव से भर गए हैं खाली हाथ।
किसी ने ललकारा है
एक किलोमीटर पर नौकरी
उसके आगे ही बैंक
मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा है
सतत भ्रमित हूं मैं
पछतावे पर पछतावा ढंकती जा रही हूं
हारती जा रही हूं
अभी अभी मैंने एक नौकरी हारी है
एक घर
एक सफ़र
देखते देखते कई रिश्ते हार गई हूं।
मृत्यु एक संदेश है
ये दुनियां नहीं रहेगी फिर भी
बचे रहेंगे पुष्प
प्रेमी के कानों में गूंजने की अभिलाषा लिए
बच्चे की किलकारी की आस लिए
वर्षा की ओट में आंख मिचौली करते ओस के लिए
रिश्ते फरिश्ते सब छूट जाते हैं
लेकिन दूर देश से एक चिड़िया फड़फड़ाती है फुर्र
पृथ्वी सांस भरती है
एक आशा बची रहती है
मृत्यु अंत नहीं
सुगंधित फूल है
जो चारों ओर बिखरता
जीवन की चिट्ठी लिए भ्रमणशील है
मृत्यु एक संदेश है!
दादी
क्या किसी ने सुनी है
दादी के पोपलों से ठनकती हंसी
सदाबिरिछ और सारंगा की कहानी
मैंने सुनी है
दादी अभिभूत हो उठती हैं
किस्सा सुनाते सुनाते
एक पल को गाती हैं तो दूसरे ही पल रोती भी हैं
जैसे एक चलचित्र चल रहा आंखों के सामने
दादी कितनी हसीन और लाजवाब नायिका-सी लगती हैं
किस्सों के बीच ऐसे डूबती उतराती हैं
जैसे नाव बीच मंझधार में हो
दादी मेरे स्वप्नों को चूमती हैं गले लगाती हैं मेरे मन को
और कहती हैं
मेरी आंखें तुम्हे आकाश होता देखना चाहती हैं
एक विश्वास है उनकी आंखों में
आज पाती हूँ ख़ुद को उन्हीं स्वप्नों को साकार करते
जिन्हें दादी चूमती थीं
और मैं आकाश गंगा में बदल जाती थी
दादी चुप हैं अब
गायब हो गई है हवा में ठनकती उनकी हंसी
और उनके किस्से
पर दादी बेजान-सी बैठी दूर कहीं
मेरे सपनों की धड़कनें गिन रही हैं।
होना होगा
आंसू को आग
क्षमा को विद्रोह
शब्द को तीखी मिर्च
विचार को मनुष्य होना होगा
ख़ारिज एक शब्द नहीं हथौड़ा है
मादा की जगह लिखना होगा
सृष्टि, मोहब्बत,
जीने की कला
शीशे की नोक पर जिजीविषा
मनुष्य लिखना नहीं
मनुष्य होना होगा।
मृत्यु अचानक नहीं आती
वक़्त की मार अंतर्मन को निचोड़ लेती है
कुछ बातें खौलती ही नहीं हौलती हैं
और जीना मुहाल कर देती हैं
कितना जरूरी हो जाता है कभी कभी जीना
बचपन को छुपते देखना
सबकुछ बदलते देखना
कितना कुछ हो जाता है
और कुछ भी नहीं होता
अभिनय सटीक हो जाता है
सपाटबयानी विपरीत
दिशाएँ बदल जाती हैं
रात से सुबह
सुबह से रात हो जाती है
पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती तटस्थ सी हो जाती है!
समय सिखाता है गले की नसों को आंसुओं से भरना
और एकांत में घूँट घूँटकर पीना
कितना कुछ पीना होता है
कितना कुछ सीना होता है
जीवन में तुरपाई करते गाँठ पड़ जाती है
ये सीवन उधड़ने पर ही पता चलता है
जीवन दिखता है
और जीना नहीं हो पाता है.
कितना कुछ घट जाता है
शोर बढ़ता ही जाता है.
बुढ़ापे की लकीर और गहरी होती जाती है।
युद्ध के
बाद की शांति
पृथ्वी सुबक रही थी
खून के धब्बे पछीटे जा रहे थे
न्याय व्यवस्था की चाल डगमग थी
युद्ध के बीच शांति खोजते हुए हम घर से घाट उतार दिए गए थे
वह वसंत जिसमें सपने रंगीन दिखाई दिए थे
बचा था सिर्फ स्याह रंग में
खून के धब्बे मिटाए जा चुके थे
पता नहीं क्या था
जिसकी कीमत चुकानी पड़ रही थी
चुकाना महंगा पड़ा था
हर किसी की बोली लग रही थी
हर चीज की क़ीमत आंक दी गई थी
हम कुछ भी चुका नहीं पा रहे थे
सपने में रोज़ एक बच्चा
दिखता था
जो समुद्र के किनारे औंधे मुंह पड़ा था
एक बच्चा खाने को कुछ मांग रहा था
तमाम बच्चे अपनों से मिलने के लिए मिन्नतें कर रहे थे
उसे युद्ध के बाद की शांति कहा जाता था
दो खरगोश थे जिनकी आंखें फूट गई थीं
एक नौजवान अपनी बच्ची से कह रहा था
मुझ जैसी मत बनना मज़बूत बनना मेरी बच्ची
यह वह वक्त था
जब प्रेमियों ने धोखा देना सीख लिया था
खाप पंचायतें बढ़ती जा रही थीं
उस दिन मेरी फोटोग्राफी को पुरस्कार मिला था
मेरी गिरफ़्तारी सुनिश्चित हो चुकी थी
मैंने कहा यह कोई सपना नहीं
मेरे होने की क़ीमत है जिसे मुझे चुकाना है।
मनोरोग
गोली चलाता हत्यारा
कहता है उसे शोर पसंद नहीं
‘रघुपति राघव राजा राम‘ गाते हुए वह बताता है
गोली और बंदूक शांति कायम करने के लिए हैं
‘पुरुष की शारीरिक ज़रूरत नियंत्रित नहीं हो पाती‘
कहता हुआ वह
स्त्रियों का रक्षक बनना चाहता है
एक विक्षिप्त मनोरोगी
अपने को ईश्वर का शांतिदूत बताता हुआ
बाहें पसारकर कहता है
आओ गले मिलें ईद मनाएं, होली खेलें
और सुदूर खून के फव्वारे छूटने लगते हैं।
***
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
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