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Home विविध

खाली और उदास दिनों की डायरी

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in विविध, विविध
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8
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21 मार्च, 2010
• इसका आना शुभ रहा। अब तक यही सोचता हूँ। एक साध पूरी हुई वर्षों की। वैसे ऑफिस में तो यह पहले से ही था लेकिन ऑफिस के कम्प्युटर को विंदास लेखन के लिए इस्तेमाल करना अजीब तो लगता ही है, ये और बात है कि मेरी अब तक कि तीन छपी और कई अधूरी कहानियाँ ऑफिस में बैटकर उसी पर लिखी गई। तीस पर दोस्तों का इतना दबाव, कुछ ऐसे दोस्त जो सचमुच चाहते रहे कि लेखन में ये नाचीज कन्टिन्यु रहे। तो अब आ गया ये मशीन भी। अब आगे- आगे देखिए होता है क्या….

• पूरे एक हफ्ते के बाद आरोही का फोन आया। मिलना चाहते थे। मैंने हामी भर दी। सोचा शायद किसी कहानी को लेकर अटका होगा बन्दा, वरना अपन की याद भला किसे आएगी। यही कुछ लोग भूले-भटके याद कर लेते हैं, तो लगता है कि मैं भी कभी आदमी काम का था। अपने लिए तो निकम्मा रहा आज तक की जिन्दगी में, वह समय सबसे त्रासद होगा जब अपने ही साथ दूसरों के लिए भी निकम्मा हो जाऊंगा जिस दिन……..।

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• और देखिए अब तक नहीं आए। जब कोई आने के लिए कह देता है तो कितनी भी कोशिश कर लिजिए, अंतर की कुछ तंतुएँ उसके आने का इंतजार जरूर करती हैं..और यदि कह के न आए कोई तो अंदर कुछ भुरभुरा कर टूटता तो है..विल्कुल धीमे…बेआवाज….

• पत्नी चाय देकर गई है। पी लिया जाय इसे…फिर अगर बैठ पाया तो……..मिलते है…..

• और वो आ गए हैं।

__________________

24 मार्च, 2010
• एक रग है जिसे छुपाना चाहता हूँ सबसे। पता नहीं दुखती हुई रग का मुहावरा किस मनुष्य ने किस परिस्थिति में गढ़ा होगा। लेकिन यहाँ इसका इस्तेमाल करते हुए उस अजनबी मनुष्य के प्रति कृतज्ञता से भर गया हूँ। छुपाना चाहता हूँ सबसे और सबसे ज्यादा अपने आप से। यहाँ भी उसे कैसे कहुँ। जाओ खोज लो मेरी कविताओं में…. मेरी रचना के बीच के खाली जगहों में, किसी अधूरी कविता की अधूरी पंक्तियों के आस-पास कहीं। तेरी जूल्फों के आर-पार कहीं….. एक दुखती हुई रग…..

• दुखों के पार चला गया है यह जीवन। एक ऐसे गह्वर में जहाँ कोई कामना नहीं, कोई एष्णा नहीं। न जीवन का उत्साह और न मृत्यु का भय। विरान शाम, दोपहर विरान, रातें वियाबान….और एक गहरे अंधेरे की भारी चादर….कभी सोच उभर के आती है कहीं दूर से चलकर आती हुई….आती हुई…हसरत भरी अवाज से पूछती हुई….कहाँ है वह…कौन है यह………..मेरे भेष में कोई और है………..????

• मैंने कहा – तुम पागल हो..’सायकिक । उसने कहा – तुम कूपमंडूक …। और मोबाईल पर बजता हुआ गीत कि ‘आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे…..बन्द हो गया। और इसके बाद का मौन ऐसा कि दो सांसों का एक कमरे में उठना-गिरना बिलकुल असंभव हो जाए।….क्या स्त्री-पुरूष के बीच के संबंध अंतत: ऐसी ही परिणतियों तक पहुँचकर शेष होते हैं..या होकर भी नहीं होते है…?? कहाँ समझता है वह लड़का इस बात को जिसका नाम रविन्द्र है। कुछ चीजें हम न समझें तो बेहतर….वह कविता याद आ जाती है बेतरह जिसे एक लड़की ने पढ़ाया था नादानियों की उम्र में कि ‘ कुछ भी ठीक से जान लेना अपने आप से दुश्मनी ठान लेना है’…कि कितना अच्छा होता है एक दूसरे को बिना जाने पास-पास होना….
_______________________

मार्च 25, 2010, वृहस्पतिवार
• किस वजह से रात के 2.15 बजे तक जाग रहा हूँ। क्या इसलिए कि यह जागना किसी इतिहास में दर्ज होगा। जिस तरह लिखना इतिहास में दर्ज होने के लिए नहीं, उस तरह यह जागना भी नहीं।

• काश कि मैं लिखे बिना चैन से रह पाता। सो पाता उन लोगों की तरह जो मेरे आस-पास हैं। लेकिन चाहकर भी मैं उनके जैसा नहीं हो पाता। क्या कभी पूछने का मन हुआ कि हे प्रकृति तूने हमें एसा क्यों बनाया ??? सोचते हैं कि कभी पूछेंगे। यह जानते हुए कि वह वक्त हमारे हिस्से में शामिल नहीं………

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

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Comments 8

  1. Udan Tashtari says:
    13 years ago

    डायरी के पन्ने बांच को डूबा सा मन…जाने कहाँ विचरने लगा.

    Reply
  2. स्वप्न मञ्जूषा says:
    13 years ago

    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    Reply
  3. मनोज कुमार says:
    13 years ago

    काश कि मैं लिखे बिना चैन से रह पाता।
    यही तो ….!

    Reply
  4. विमलेश त्रिपाठी says:
    13 years ago

    thanks

    Reply
  5. vandan gupta says:
    13 years ago

    डायरी के पन्ने नही यादो के पन्ने होते हैं जो अपने साथ उस सफ़र पर ले चलते हैं जहाँ कभी कदमो के निशाँ छोड आये थे जो अब तक मिटे नही होते …………और इन यादों के सफ़र मे कुछ बीते लम्हे कुलबुलाते मिल जाते हैं और हर ज़ख्म हरा कर जाते हैं।

    Reply
  6. बोधिसत्व says:
    13 years ago

    achha hai bhayi, likhte rahen

    Reply
  7. Ashok Kumar pandey says:
    13 years ago

    पढ़कर आनन्द भर नहीं आया…बल्कि डूबता-उतराता रहा…

    Reply
  8. सुन्दर सृजक says:
    12 years ago

    साधारण से असाधारण बनने की प्रक्रिया !!!

    Reply

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