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Home कविता

अमित आनंद की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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16
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अमित आनंद

अमित आनंद का परिचय इसलिए भी देना जरूरी है क्योंकि वे पहली बार किसी ब्लॉग पर अपनी कविताओं के साथ उपस्थित हैं। उनकी कविताएं पढ़ते हुए हम एक ऐसी दुनिया में जाते हैं, जो आज के शोर भरे समय में हमारी आंखों से ओझल है। 
उनकी कविताओं में एक तरह की पीड़ा और एक तरह का शोक है जिसे हम आज के समय की पीड़ा और शोक कह सकते हैं। बावजूद इसके इनकी कविताएं उम्मीद की लौ की तरह हैं जो एक कवि और कविता दोनों के लिए आश्वस्ति की बात है।

अमित की कविताओं पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।


उम्मीद
नुक्कड़ की
उजाड़ सी टंकी के नीचे
भूरी कुतिया ने
आज जने हैं –
नन्हे नन्हे से गोल मटोल
छै पिल्लै
कोई चितकबरा कोई झक्क सफ़ेद
एक भूरा
कुछ काले से
“भूरी”
बेहतर जानती है
बेरहम सडकों का दर्द
कई सालों से
वो खोती आई है
यूँ ही
मासूम नन्ही जानें
सड़क के किनारे
कभी ट्रक /कभी बस
साइकिल /रिक्सा
कभी कभी तो किसी नसेड़ी की लात,
हर बार
“भूरी” की ममता सड़क पर मसल उठती है,
पर
“भूरी” हर बार की तरह
पालती है-
एक भरम
और
टूटी हुयी टंकी के नीचे
पसर जाती है –
अपनी ममता
और
छै मासूम पिल्लों के साथ!
इस बार शायद दो से ज्यादा बच जाएँ!

मेरा आखिरी मंचन करो

तुम्हारा -रंगमंच
तुम्हारे पात्र
तुम्हारा कथानक
तुम्हारी ध्वनियाँ
प्रकाश तुम्हारा,
तुम्हारा निर्देशन
तुम्हारा अनावरण
पटाक्षेप तुम्हारा,
सुनो-
बहुत त्रासद है
तुम्हारी एकांकी
झरती आँखें
भीड़ की सिसकियाँ
मैं नहीं सह सकता अब
मेरा आखिरी मंचन करो
या फिर
अब मुझे
नेपत्थ्य दे दो!

मासूम
शहर के पिछवाड़े…
बीराने से
आया वो
मोटरों पर
ईंट फेंकता
अपने घावों की मक्खियाँ उडाता
ख़ुशी के गीत रोता
अधनंगा पागल
बन जाता है
मासूम बच्चा
रोटियां देखकर!

मैं आदमी

मैं दंगाई नहीं
मैं आज तक
नहीं गया
किसी मस्जिद तक
किसी मंदिर के अन्दर क्या है
मैंने नहीं देखा
सुनो
रुको
मुझे गोली न मारो
भाई
तुम्हे तुम्हारे मजहब का वास्ता
मत तराशो अपने चाक़ू
मेरे सीने पर
जाने दो मुझे
मुझे
तरकारियाँ ले जानी हैं
माँ
रोटिया बेल रही होंगी!

आखिर में प्यार

उफनते दूध सी
तुम्हारी नेह…
ढलकती ही रही बार बार
और
सारे गिले शिकवे
प्यार मनुहार
बहते रहे…
बहती रहीं सुधियाँ
स्नेह
आलिंगन
स्पर्श ….
सब कुछ
और
आखिर मे
परिस्थिति के चूल्हे पर
देह का खाली बर्तन
सूना पड़ा था!!
—————————————————–
नाम- अमित आनंद पाण्डेय 
जन्म- २७ नवम्बर १९७७
शिक्षा- स्नातकोत्तर 

सम्प्रति- कंप्यूटर व्यवसाय 

संपर्क- 
ई-वर्ल्ड 
पीली कोठी, रोडवेज तिराहा 
गांधीनगर , बस्ती
उत्तर प्रदेश -२७२००१  

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

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Comments 16

  1. shayak alok says:
    13 years ago

    अमित पाण्डेय फेसबुक पर मेरे आत्मीय कवि रहे हैं.. इनकी आम कविताओं में मिट्टी की गंध पूरे सोंधेपने से टेर लगाती है तो इनकी प्रेम कविताओं में मौजूद हरसिंगार की खुशबू सच में बासी अहसास पर नरम स्पर्श की मरमरी परत चढाने में सक्षम. उनकी कविताओं में मौजूद सुगनी जैसी किरदार अपनी उपस्थिति मात्र से दृश्य को जिंदा कर देती हैं . आने वाले समय में मुझे इस युवा कवि से सबसे ज्यादा उम्मीद है.. नीम हकीम समय की पहरुआ हैं अमित की कवितायेँ.. शुभकामनयें प्रिय कवि को.. शुक्रिया अनहद..

    Reply
  2. Aharnishsagar says:
    13 years ago

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया अमित जैसे देसज कवि को प्रोत्साहित करने के लिए .. आपने बिलकुल ठीक कहा की "उनकी कविताएं पढ़ते हुए हम एक ऐसी दुनिया में जाते हैं, जो आज के शोर भरे समय में हमारी आंखों से ओझल है " अमित जो अपनी कविताओं में कभी बुद्ध के बुद्धत्व के ऊपर यशोधरा के दुःख रख देता हैं .तो कभी राम को कहता हैं "हम कुछ और नहीं तुम्हारी ही तली के अँधेरे हैं" यह अपनी कविताओं से कभी टंकी के निचे जने पिल्लों में भी मातृत्व की पवित्र गूंज उठा देता हैं, .. सराहनीय कार्य किया आपने .. आपका आभार और अमित को बधाई ..!

    -Aharnishagar

    Reply
  3. kanu..... says:
    13 years ago

    vimlesh bahut alag dhang ki kavitaein padhwane ke lie dhanyawad

    Reply
  4. Anju (Anu) Chaudhary says:
    13 years ago

    ''कस्तूरी'' के बाद ….एक बार फिर अमित को यहाँ पढ़ना सुखद रहा …ऐसे खूब खूब लिखो अमित :))))

    Reply
  5. asmurari says:
    13 years ago

    achchi lagin,,,

    Reply
  6. asmurari says:
    13 years ago

    प्रभावी कवितायेँ | सभी कवितायें मर्म को छूने वाली हैं…

    Reply
  7. Anonymous says:
    13 years ago

    अमित की कविता पर तुम्हारी टिप्पणी गाली की तरह है लकडसुंघा हो तुम

    Reply
  8. Arun sharma says:
    13 years ago

    True poetry!!

    Reply
  9. Amrendra Nath Tripathi says:
    13 years ago

    अमित भाई से कविता के पाठकों को उम्मीदें है। इनमें संभावनाएं है एक सशक्त कवि की उपस्थिति दर्ज करने की। ‘और भी फलित होगी यह छवि!’

    आपने कहा कि ‘….वे पहली बार किसी ब्लॉग पर अपनी कविताओं के साथ उपस्थित हैं।’ यह तथ्यात्मक रूप से दुरुस्त नहीं है। इनकी ये कविताएं इसका प्रमाण हैं, पोस्ट है http://wp.me/p1CJf5-g9

    Reply
  10. sakhi with feelings says:
    13 years ago

    shukriya jo in kavitao se parichay karaya

    Reply
  11. Brother of Anonymous says:
    13 years ago

    क्यों भाई अनामदास (anonymous) जी, आपको क्या समस्या है शायक जी की टीप से? लगता है न तो आपको अमित की कविता ही समझ में आयी और न ही शायक की टीप…भगवान् भला करे आपकी कविता की समझ को !!

    Reply
  12. मुकेश कुमार सिन्हा says:
    13 years ago

    Amit ka jabab nahi…

    Reply
  13. shayak alok says:
    13 years ago

    ha ha 🙂

    Reply
  14. Chandra Gurung says:
    13 years ago

    मित्र अमित को पिछल्ले छ–सात महिनों से पढ रहा हुँ । अमित की कविताएँ पृथ्वी के हर चरअचर प्राणी के दर्दको बयान करने की क्षमता रखते हैं । कभी हमारे अपने आपसी रिस्तेनातों के महीन धागे सी सम्बन्ध को गजब बुनती हैं ये कविताएँ । कभी हमारे समाज को गजब उतारती हैं ये कविताएँ ।

    ये कविताएँ हमें जीवन में आशावान बनाती हैं कभी हमें रुलाती हैं । कभी जीवन में हारते हारते जिताते हैं ये सुन्दर कविताएँ । ये कविताएँ आँसु के बारे मे हैं । ये कविताएँ हम में अभी भी बाँकी ईन्सानियत के बारे में हैं और इस तरह हम ईन्सानों का अच्छा परिचय बताती हैं ये कविताएँ । सरल शब्दों में गम्भीर, गहिरी और सुन्दर कविताएँ ।

    Reply
  15. Cloud says:
    10 years ago

    शब्दों के जादूगर

    Reply
  16. निधि जैन says:
    10 years ago

    कविता से मेरा पहला परिचय

    जो सुखद रहा

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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