राकेश जी की यह कविता जब मुझे पढ़ने को मिली तो सचमुच मैं विस्मित रह गया। इस कविता ने मुझे...
लोहा और आदमीवह पिघलता है और ढलता है चाकू मेंतलवार में बंदूक में सुई मेंऔर छेनी-हथौड़े में भीउसी के सहारे...
सपना गाँव से चिट्ठी आई है और सपने में गिरवी पड़े खेतों कीफिरौती लौटा रहा हूँपथराये कंधे पर हल लादे...
कुछ अरसा पहले वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंह ने अपने संपादकीय में एक बहुत ही अच्छी कविता लिखी थी।...
कहते हैं दुनिया जा रही नाउम्मिंदी की ओरसमय की पीठ पर रह गए हैं महजहमारी अच्छाईयों के निशानआज जो दिखतावह...
तेरी ज़ुल्फों के आर पार कहीं इक दिल अजनबी सा रहता हैलम्हा लम्हा जो मिला था कि हादिसों जैसावो वक्त...
कविता से लंबी उदासीकविताओं से बहुत लंबी है उदासीयह समय की सबसे बड़ी उदासी हैजो मेरे चेहरे पर कहीं से...
एकइतिहास के जौहर से बच गई स्त्रियांमहानगर की अवारा गलियों में भटक रही थींउदास खुशबू की गठरी लिएउनकी अधेड़ आँखों...
जब हम प्यार कर रहे होते हैंतो ऐसा नहीं कि दुनिया बदल जाती हैबस यहीकि हमें जन्म देने वाली मां...
जैसे एक लाल-पीलीतितलीबैठ गई होकोरे कागज पर नीर्भिकयाद दिला गई होबचपन के दिन....
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