• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

सौमित्र की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
in कविता, साहित्य
A A

Related articles

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ



सौमित्र

सौमित्र की कविताएँ घर आँगन से होती हुई प्रकृति के विशाल फलक तक तो जाती ही हैं वे उम्मीद और प्रेम सहेजे रखना भी जानती हैं। स्नोतकोत्तर की पढ़ाई के बाद सौमित्र प्राय़ः देश से बाहर ही रहे लेकिन उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति और परम्परा की गहरी अनुगूँज देखने को मिलती है। सौमित्र व्यक्तित्व के जितने सरल और सहज हैं उनकी कविताएँ भी उतनी ही सहज-सरल हैं। वे धीरे से उंगली पकड़ कर एक ऐसे लोक में लेकर जाती हैं जहाँ परदादी की संदुकची है और है ढेर सारी स्मृतियाँ जिससे जीवन सुंदर बनता है। 


अनहद पर हम सौमित्र की कविताएँ पहली बार पढ़ रहे हैं- हमें यकीन है कि हम आगे भी इन्हें पढ़ते रहेंगे। आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारी पूँजी है अतएव अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवगत जरूर कराएँ।



बेला
दूसरी सुहागिनों के साथ
घर की वृद्धाएँ भी
पूजने चली गयी हैं पेड़।

लौटने पर
वो ले लेंगी
दूध की थैली
इंगुर की नई डिबिया
और कफ़ सिरप भी।

घर आके
कुछ फुलौरियाँ तल के
वो भी
आँगन में दे आएँगी अर्घ्य।

आज उनके आदमी भी
नहा-धोके बैठे हैं-

वो विसूख  गए  थे
उनकी अनुपस्थिति में

अब फिर बोलने लगे हैं।

उन्हें जब अपनी पत्नियों की आवाज़ आती है तो वो
तसल्ली से खाँसने लगते हैं
उनकी खाँसी सुनकर
वृद्धाएँ-

बहुत तेजी से
हड़बड़ी में

व्रत-कथाएँ बोल जाती हैं।


गठबंधन
कल विवाह था
आज गठबंधन है।

तुम ले लो अपने
मन की निरंतरता
जो सम्हाली हुई हो

उस पल से
जब
गढ़ी गयी थीं तुम

दिए से प्रज्ज्वलित दिए सी

मेरे साथ ही पर
भूली हुईं मुझे-

मैं ले लेता हूँ
अपनेप्रेमकासातत्य !

आओ मिल जाते हैं फिर
एक बार और
नईं स्मृतियों का निर्माण करने को !

कल पर्व था
आज
धुली वंदन है।


व्रत-संध्या
एक पत्ता फिर
निवेदित हुआ है-

इस घड़ी भी

वो उड़ चला है दूर

हवा की काँख में दबी
नमी छूकर
ठहर गया वहीं

और फिर

खो गया है गिर कर
मिट्टी में मिला सा लुप्त !

आज फिर किसी
व्रत की संध्या है

चन्द्रमा के बहुत से छीटें
इस ओर भी गिरे हैं

और उसकी ओर बह निकले हैं।


जन्मांतर
एक बार और
आना चाहता हूँ तुम्हारे पास

चेतन की निरंतरता हो जाती है अवरुद्ध
तुम्हारे ओझल होते ही-

पिछला पल
लगता है पूर्व-जन्म सा

मैं उपनिषदों में ढूँढ़ने लगता हूँ
उसका हिसाब-किताब

विश्वास हो भी जाता है
फिर भी

नहीं होता विश्वास

कि क्या तुम
सचमुच थीं यहाँ।

उत्तरदायित्व
मैं हो आया हूँ घर-

बस
भीतर जाके बात करनी शेष है !

कल सुरक्षित है –

तुम्हारे गर्भ की कन्दराओं में
विश्राम कर रहे
स्त्री-बीजों सा-

वो ठीक है-

क्योंकि
सकुशल हो तुम !

उमड़ना चाहता हूँ मैं
अपने धर्म के अतिरेक में

आख़िर

उत्तरदायित्व के दस्तावेज़ों में तुमसे
प्रेम करना
रेखांकित जो हुआ है।


ज़रूरी चीज़ 
सींकें
जड़ पकड़ गयी हैं
मिट्टी के करवे में-

ऐपन
आटे और रोली के छींटों में सनी

वो उग आई हैं
फिर से-

उनके पास
किनारों पे हरी घास भी जन्मी है

वो त्योहारों के दिनों में
मिट्टी में ही छिपी थी

अब निकल आई है

अर्घ्य दिए पानी में भीगी
रात के चन्द्रमा में
वो हिल रही है

सृष्टि की कोई
जरूरी चीज़ सी।


शिल्पकार
उन मूर्तियों को उसने
छैनी-हथौड़े से
तराशा नहीं था

चोटें नहीं दी थीं उसने
जन्म लेते आराध्य को।

ना ही
बारीक नक्काशी से
शक्ल दी थी
किसी भव्य रूप में
कि जो बाद में फिर
ऊँचे परकोटों वाले मंदिरों में 
या सँकरे गर्भगृहों में रखी जातीं 
और पूजी जाती सदियों तक –

वो तो
हथेलियों से थपथपा के
ढाल लाया था
मिट्टी  के लोंदे को-

उसमें कंकड़ थे
बालियों की फांसें थीं
गोबर की चित्तियाँ भी थीं
कुछ कुछ !

अपनी उँगलियों से
मनचाहा आकार देकर
उसने आले में रख लिया था घरके
एक दिए की बाती और
एक रोली का टीका
निवेदित करके
उसने
मॉंग ली थी
सुरक्षा और
द्वार  की किवाड़।


परदादी
पहली परदादी को
बनाया होगा ख़ुद
उनकी माँ ने-

दे दी होंगी

कंठी माला
बिछिया, गिन्नी
सिन्दूर की डिबिया

सूत की धोती और बाँचने को कुछ
पोथियाँ

स्नेह भी भर दिया होगा बहुत-बहुत
और घुटनों का दर्द भी

किसी परदादी की

पर-पर
पर-पर
परपोती

मेरी परदादी की

सहेजी हुई एक संदूकची
मिली मुझे उस दिन

और उसमें जगह-जगह
कत्थे-सा जमा हुआ
उन्नीस सौ उनतीस का
सिन्दूर

मैंने छूकर उसे
जी लिया एक पल
उनके सुहाग का-

और फिर शायद
ख़ुद को उसी कारण
हुआ पाया।


साड़ियाँ
बक्से में रखी हैं सब साड़ियाँ वो
तुम्हारी देह से
भरी हुई थीं जो-

एक दिन
सबकी याद में
चित्रित एक दिन !

वे मानी नहीं थीं
इतनी जल्दी
पसरी थीं अकड़ी
बंधने को न थीं तैयार
फिर डाह हुआ था उनमें
जब जगी थी ललक
जी में भर लेने को तुम्हें।

सब सकुचा के
तुम्हारी
दृष्टि की उमंग को
मोहित करने
झलमला गई  थीं अतिरिक्त
रंगीन भी हुई थीं  बहुत।

फिर तुमने चुना उस पीली वाली को
ज़री के काम वाले फूल थे जिसमें
और फेरे लिए थे तुमने
मेरे साथ-

फिर चुना तुमने
उस लाल वाली साड़ी को
गोटे के सितारों वाली
और लिवा लाया था मैं
तुम्हें
अपने घर।

सब तस्वीरों में सजी तुम पे
ये दोनों
आज भी बक्से में
इतराई बैठी हैं
बाक़ी सब रूठियों के साथ।

मैं फिर-फिर
ले आता हूँ
साड़ियाँ
तुम्हारी तस्वीर के नयेपन
और उनकी किस्मत को-

जो भरेंगी तुमको
अपने भीतर
और फिर
मेरे मानिंद लिपटी हुई सी
प्यार देंगी।

           ****


सौमित्र (1976)
सौमित्र पिछले ढाई दशकों से कविताएँ लिख रहे हैं। सौमित्र का जन्म उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर मेरठ में हुआ था। भारत से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, सौमित्र केमिकल इंजीनियरिंग में पीएच-डी करने के लिए शिकागो चले गए। 
उनके कई कामों के बीच, सौमित्र का पहला कविता संग्रह, ‘मित्र’ प्रकाशित हुआ। यह संग्रह समीक्षकों द्वारा प्रशंसित किया गया था, और उन्हें 2008 में, भारत की अग्रणी साहित्यिक फाउंडेशन,  भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रतिष्ठित भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार मिला। ‘मित्र’ का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रसिद्ध  मीडियाकर्मी और लेखक धीरज सिंह ने किया और जो ‘I like to wash my face with seawater’ शीर्षक से 2020 में प्रकाशित हुआ है। एक लंबी कविता, ‘एक स्वप्नद्रष्टा का रोमांटिसिज़्म’ रचना समय पत्रिका में 2011 में प्रकाशित हुई थी। प्रकाशन पथ पर कई पुस्तकों में एक कविता संग्रह “कहीं दूर जाकर दम तोड़ने का मन होता है” शामिल हैं।
स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद सौमित्र ने अपना अधिकांश जीवन भारत से बाहर गुजारा। वर्तमान में, वे मध्य-पूर्व एशिया के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक के रूप में काम करते हुए कार्बन फुटप्रिंट में कमी और जलवायु परिवर्तन शमन के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं ।

Email: saumitra.saxena@gmail.com









हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

Related Posts

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
3

अर्चना लार्क की कविताएँ यत्र-तत्र देखता आया हूँ और उनके अंदर कवित्व की संभावनाओं को भी महसूस किया है लेकिन इधर की उनकी कुछ कविताओं को पढ़कर लगा...

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
3

नेहा नरूका समकालीन हिन्दी कविता को लेकर मेरे मन में कभी निराशा का भाव नहीं आय़ा। यह इसलिए है कि तमाम जुमलेबाज और पहेलीबाज कविताओं के...

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

                           आधा डूबा आधा उठा हुआ विश्वविद्यालय                                                                                भरत प्रसाद ‘चुनाव’ शब्द तानाशाही और अन्याय की दुर्गंध देता है। जबकि मजा यह कि...

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि  पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

by Anhadkolkata
June 25, 2022
0

सत्ता के बहुभुज का आख्यान ( उदय प्रकाश की कथा सृष्टि से गुजरते हुए ) विनय कुमार मिश्र   उदय प्रकाश ‘जिनके मुख देखत दुख उपजत’...

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
1

सुबोध सरकार सुबोध सरकार बांग्ला भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कविता-संग्रह द्वैपायन ह्रदेर धारे के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार...

Next Post
सुशांत सुप्रिय के कहानी संग्रह पर सुषमा मुनीन्द्र

सुशांत सुप्रिय के कहानी संग्रह पर सुषमा मुनीन्द्र

मदन पाल सिंह के उपन्यास ‘हरामी’ का एक दिलचस्प अंश

मदन पाल सिंह के उपन्यास 'हरामी' का एक दिलचस्प अंश

हिन्दी का साहित्यिक इतिहास लेखनः डॉ. अजय तिवारी

हिन्दी का साहित्यिक इतिहास लेखनः डॉ. अजय तिवारी

Comments 2

  1. Saumitra Saxena says:
    9 months ago

    मेरी कविताओं को साझा करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद, विमलेश भाई। आभार और प्यार।

    Reply
  2. अनिला राखेचा says:
    9 months ago

    सही कहा आपने विमलेश जी सौमित्र जी की कविताएं सहज सरल और सीधे हृदय में अंकित होने की काबिलियत रखती है। साड़ियाँ, परदादी, शिल्पकार, जन्मांतर कविताएँ बेहतरीन हैं। यूँ तो सभी कविताएं अच्छी है।
    – अनिला राखेचा

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.