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Home समीक्षा

समीक्षा-समीक्षा – हरे प्रकाश के नए कविता संग्रह पर राहुल देव

by Anhadkolkata
June 20, 2022
in समीक्षा, साहित्य
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नया रास्ता खोजती कविताएं

–    राहुल देव

 

हरे प्रकाश उपाध्याय समकालीन कविता का एक प्रमुख युवा स्वर हैं। सन 2009 में ‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएं’ शीर्षक से आपका पहला कविता संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ था और खासा चर्चित हुआ था। ठीक 12 साल बाद ‘नया रास्ता’ शीर्षक से उनका दूसरा कविता संग्रह उनके खुद के प्रकाशन संस्थान रश्मि प्रकाशन से अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है और धीरे-धीरे चर्चा में आ रहा है। 
हरे प्रकाश कम लेकिन सार्थक लेखन में विश्वास रखने वाले रचनाकारों में से हैं। वर्तमान दौर में जब कविता अतिविमर्श से कराह रही हो, कहीं उस पर लोकवाद का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा हो तो कहीं उस पर कलावादी आग्रह लादे जा रहे हो; ऐसे में इस तरह के कुछ संग्रह पाठक को राहत देने का काम करते हैं और उम्मीद जगाते हैं कि साहित्य जगत के इस तमाम घटाटोप के बीच भी कुछ अच्छी कविताएं लिखी जा रही हैं। 
 

एक कवि के रूप में हरे प्रकाश अपने इस संग्रह में बहुत प्रभावित करते हैं। उनके पिछले संग्रह से तुलना करने पर हम पाते हैं कि इस बीच समय के लम्बे अन्तराल ने कवि को विकसित करने का ही काम किया है। इस संग्रह में उनकी छोटी-बड़ी सभी कविताएं बेहद घनीभूत संवेदना के साथ, बड़े ठोस विचारों के साथ अपनी बात कहती हैं। इस कठिन समय में कवि को देश एक अंधे कुएं जैसा लगता है जिसकी जगत पर लोकतंत्र की घास उगी हुई है और जिसे कुछ गधे बड़े मजे से चर रहे हैं- ‘अब यह देश’ शीर्षक कविता। इस देश में नागरिकों की भी तमाम अघोषित श्रेणियां बना दी गई हैं। हर कोई अपनी सही पहचान पाने के लिए संघर्षरत है। ‘नागरिक’ शीर्षक कविता में वह कहता है- ‘कहने को मगर है उसका भी एक देश/ जहां कुछ भी नहीं है उसका’। संग्रह की ‘विमर्श’ शीर्षक कविता समाज के खाए-पिए-अघाए झूठे चेहरों को बेनकाब करती कविता है। कवि की पक्षधरता समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के साथ हमेशा बनी रही है। उन्होंने रिक्शेवाले, ठेले वाले, गरीब किसान, मजदूर, बेरोजगार युवा, कुपोषित बच्चे यानि लगभग समस्त आमजन के दुख-दर्द को उन्होंने अपने काव्य में पूरी सहानुभूति के साथ जगह दी है। ‘क्या आप बता सकते हैं’ शीर्षक कविता मैं वह पूछता है- ‘ये  किससे करें ‘मन की बात’/ क्या आप बता सकते हैं…?’ इसी कविता की यह एक पंक्ति कि ‘भारत इस भाई का भी तो है’ पाठक के मन मस्तिष्क पर हांट करती है। हरेप्रकाश का कवि बगैर नारेबाजी के, बगैर किसी अतिरिक्त शोर-शराबे के समकालीन राजनीति के पेंच कसता है।

संग्रह की ‘खंडहर’ सीरीज की 7 कविताओं पर मुक्तिबोध की बीहड़ शैली का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। यह सीरीज अपने प्रारूप में मिलकर एक लंबी कविता सी बनाती है जिसमें वह नई सदी के पूरे समकालीन समय की, पूरे सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की खबर लेते नजर आते हैं। यह कविता कवि की ‘ज्ञानात्मक संवेदना’ और ‘संवेदनात्मक ज्ञान’ को भलीभांति दर्शाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो नए रास्ते की तलाश में यह युवा कवि अपनी परंपरा में अलहदा और बार-बार प्रासंगिक हो उठने वाले मुक्तिबोध की उंगली पकड़कर ‘खंडहर’ के बिम्ब को लेकर वर्तमान के आलोक में उसके इतिहास और भविष्य की खोज करता है। इस सीरीज की पहली कविता जहां जातिवाद पर प्रहार करती हैं जिसे वह हमारे समाज का बहुत गहरा भाव कहता है, जिसमें मवाद भरा हुआ है वहीँ दूसरी कविता राजनीति में धर्म के बेजा इस्तेमाल पर गहरा ऐतराज व्यक्त करती है। कवि लिखता है- ‘अड़ गये अकड़ गये/ जरा सी बात में लड़ गये/  भयानक पागलपन में पड़ गये’ अगली कविता भी उससे जुड़ती है और व्यवस्था की विसंगतियों पर शिकायत करती है। इसी तरह सीरीज की अगली कविता जाली कामरेडो और सुविधाभोगी बुद्धिजीवियों की दिशाहीनता पर तंज करती हुई उन्हें सावधान करती है। इस सीरीज की अगली कविता ‘लहूलुहान आदमी लग रहा देश का सरल भावार्थ है’ कहकर आमजन की पीड़ा को स्वर देती है। इसी क्रम में अगली कविता आंकड़ों में होने वाले विकास की असलियत बताती है।  पूंजीवादी व्यवस्था की मुखालफत और सत्ताधीशों के जनविरोधी चरित्र का मुखर विरोध इन कविताओं में देखने को मिलता है। संग्रह की कविताओं में कवि का आक्रोश कहीं-कहीं व्यंग्य की शक्ल लेता भी प्रतीत होता है।

हरे प्रकाश उपाध्याय
‘जिन चीजों का मतलब नहीं होगा’ शीर्षक कविता में कवि पूछता है- ‘भारत क्या सिर्फ एक भूगोल का नाम है?….. ‘मैं अपने घर में रहता हूं और कई बार/ मुझे लगता है कि मैं बेघर रहता हूं’ । समस्या का मूल यह है कि- ‘घर गिने जाएंगे/ जब चुनाव आएंगे/ दरअसल जब घर गिने जाएंगे तो लोग गिने जाएंगे/ उनमें रहने वाली परेशानियों को नहीं गिना जाएगा।’ संग्रह की ‘दफ्तर’ शीर्षक कविता का कथ्य भी बड़ा सशक्त है। इस कविता में कवि लिखता है, ‘यह साजिशों, चालाक समझौतों,/ कनखियों और सामाजिक होने के आवरण में/ अकेला पड़ जाने की हाहा…हीही…हूहू… में व्यक्त समय है।’ इस कविता में वह आगे कहता है, ‘बस सलामत रहे नौकरी/ बॉस थोड़ा बदतमीज है/ कलीग साले धूर्त हैं/ कोई नहीं,/ कहां जाइएगा, सब जगह यही है/ अपन ही कौन कम हैं’। स्पष्ट है कि अपनी मनःस्थिति में सब जगह एक ही से तो आदमी उपस्थित हैं और सभी एक दूसरे को कोस रहे हैं। ऐसे में बदलाव की बात करना बेमानी सा  लगने लगता है। कविता संग्रह की ‘बॉस और बीवी’ शीर्षक कविता मध्यवर्ग की दुश्वारियों से भरे चेहरे का सच बयान करती है। वहीँ ‘फैसला’ शीर्षक छोटी सी कविता भूत और भविष्य के बीच लटके हुए फैसले जैसी है जिसका सही-सही हल वर्तमान में रहकर ही संभव है।

अपनी ‘गर्म हवाएं’ शीर्षक कविता की शुरुआत में कवि अपनी कविताओं के बारे में कहता है-  ‘अब अपनी डायरी में/ जब भी लिखना चाहता हूं कविताएं/ कविता नहीं लिखी जाती/ बस आंसू गिरते हैं आंखों से’। तो वहीँ ‘नया रास्ता’ नामक छोटी सी कविता में कवि बड़ी उम्मीदों के साथ कह उठता है कि, ‘एक नई ताकत वाला आदमी बिल्कुल एक नया आदमी होता है/ एक नया आदमी एक नया रास्ता खोज लेता है।’ अपनी ‘कविता क्या है’ नामक कविता में कवि बताता है, ‘वह किसी के हाथों की सफाई है/ तो वह किसी के पांव की फटी हुई बिवाई है।’ कविदृष्टि की पहचान कराती ‘हाशिया’ शीर्षक कविता की निम्न पंक्तियां देखें- ‘पूरे पृष्ठ में कोरा/ अलग से दिखता है हाशिया/ मगर हाशिये को कोई नहीं देखता/ कोई नहीं पढ़ता हाशिये का मौन।’ संग्रह में ‘वर्तनी’, ‘अमित्रता’, ‘फेसबुक’, ‘रंग’, ‘आईना’,  ‘माघ में गिरना’ और ‘चाहना’ जैसी कई उल्लेखनीय कविताएं हैं जिन पर काफी लंबी बात की जा सकती हैं। 

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इस संग्रह की कविताएं समकालीन कविता में मची भसड़ से एकदम अलग एकदम ताजा कविताएं हैं जोकि पाठक के अंतर्मन को झकझोरने में समर्थ साबित होती हैं। बहुत सरल-सहज भाषा में कवि मानो अपने लोगों से संवाद करता है। इन कविताओं में कोई उलझाव नहीं है। इनका सशक्त कहन ही उसकी ताकत है। समकालीन कविता में भाव और विचारों का इतना बेहतरीन संयोजन कम ही देखने को मिलता है। निश्चित ही इस प्रक्रिया में कवि आपके सुख-दुख का साझी बनता है। अपने इस संग्रह में कवि ने पूरी प्रतिबद्धता के साथ जन-गण-मन की काव्यभिव्यक्ति की है। इस संग्रह की कविताओं को पढ़ने के बाद वास्तव में यह लगता है मानो हम किसी भयानक दुःस्वप्नसे गुजरे हों, मौजूदा दौर उससे ज्यादा अलग नहीं है। इसे पढ़कर हम क्या हैं, क्या हो गए हैं और क्या होना बाकी रह गया है जैसे प्रश्नों पर विचार करने पर विवश हो जाते हैं। एक सार्थक और सच्ची कविता यही काम करती हैं। यह संग्रह हिंदी युवा कविता की एक उपलब्ध की तरह से है जिसे पढ़ा और सराहा जाना चाहिए।

 

नया रास्ता/ कविता संग्रह/ हरे प्रकाश उपाध्याय/ रश्मि प्रकाशन, लखनऊ/ 2021/ पृष्ठ 101/ मूल्य 200/-

 

 

राहुल देव


 

rahuldev.bly@gmail.com

 

 

 

 

 

 

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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