• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home समीक्षा

एक देश और मरे हुए लोग पर पूनम शुक्ला

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in समीक्षा, साहित्य
A A
1
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

Related articles

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

समाज के दर्द को दर्शाती कविताएँ 

एक देश और मरे हुए लोग विमलेश त्रिपाठी का दूसरा कविता संग्रह है जो शीघ्र ही बोधि प्रकाशन की ओर से आया है । यह संग्रह पाँच भागों में विभाजित है – इस तरह मैं , बिना नाम की नदियाँ , सुख- दुख का संगीत , कविता नहीं और एक देश और मरे हुए लोग । पुस्तक के शरुआत में ही गजानन माधव मुक्तिबोध जी द्वारा लिखित पंक्तियाँ विमलेश त्रिपाठी पर अपना प्रभाव प्रदर्शित करती हैं –

अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया
ज्यादा लिया और दिया बहुत- बहुत कम
मर गया देश,अरे, जीवित रह गए तुम

कवि द्वारा इन पंक्तियों का चुनाव स्वत: ही उनकी आंतरिक इच्छा को उजागर कर देता है । आज हम सभी छीना झपटी में लगे हुए हैं । सभी को बस चाहिए देना सभी भूल चुके हैं जिसका परिणाम एक मरा हुआ देश हम सभी के सम्मुख है । विमलेश त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा एक गाँव में हुई है । इन दिनों वो कोलकाता में हैं । ये बात वे अपनी कविता ” इस तरह मैं ” में स्वयं ही कहते हैं –

बहुत पहले जब आया था गाँव छोड़कर इस शहर कोलकाता में
छूट गया आम का बगीचा
पानी से भरी नहर
खेत खूब लहलहाते

उनकी कविताओं में अपने गाँव से प्रेम झलकता है पर वहीं कहीं मुझे ये पंक्तियाँ भी दिखीं । जरूर गाँव में मार्गदर्शन की कमी रही जिसके कारण उन्हें कोलकाता का रुख पकड़ना पड़ा ।

किसी ने नहीं कहा कि गाते रहना अच्छा गाते हो
किसी ने नहीं कहा कि लिखते रहना अच्छा लिखते हो

अब जबकि वह काफी समय से कोलकाता में हैं अपने गाँव में आए बदलाव को देखकर बहुत दुखी नज़र आए –

गाँव में अब बस रह गए हैं सिरफ पागल और बूढ़े
स्त्रियाँ गाँव के चौखट पर परदेसियों के आने का अंदेशा लिए
जवान सब चले गए दिल्ली सूरत मुंबई कोलकाता
जंतसार की जगह गूँजता है मोबाइल का रिंगटोन

पर अपनी अगली ही कविता  -” धरती को बचाने के लिए ” में वो सभी का आह्वाहन करते दिखते हैं जिसे इन पंक्तियों में देखा जा सकता है –

आओ कि
मिल कर निर्मित करें एक राग
जो जरूरी है
बहुत जरूरी है
इस धरती को बचाने के लिए

संग्रह के दूसरे भाग – बिना नाम की नदियाँ में कवि ने स्त्रियों की दशा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है । कविता “बहनें ” में वे कहते हैं –

उनके पास अपना कुछ नहीं था
सिवाय लड़की जात के उलाहने के

रसोई में धुँए व आग के बीच तपती थीं वे
क्या उन्हें स्कूल जाने का मन नहीं करता था

गाँवों में लड़कियों को कम ही पढ़ाया जाता है और जल्दी ही उनका विवाह कर दिया जाता है । इसका चित्रण उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ किया है पर ये पंक्तियाँ पढ़ते – पढ़ते मेरी भी आँखें नम हो गईं –

साल के एक दिन
उनकी भेजी हुई राखियाँ आती थीं
या अगर कभी आ गईं वे खुद
तो जैसे उल्टे पाँव लौट जाने के लिए ही आती थीं

सचमुच एक लड़की  का जहाँ जन्म होता है ़, जहाँ वो पली बढ़ी होती है वही जमीन उसके लिए कितनी पराई हो जाती है । ससुराल से लौटी एक लड़की किस तरह अपने दुखों को छुपाती है और झूठी हँसी हँसती है कवि ने इस कविता में बड़े ही सहज ढंग से दर्शाया है । विवाह के बाद एक लड़की की व्यथा को कुछ कम करने के लिए कवि अपनी कविता “मत भेजना बाबुल” में कहते हैं –

मुझे मत भेजना वहाँ बाबुल
धन ही धन हो जहाँ
मुझे व्यापार करने वाले के पास मत भेजना

भेजना मुझे तो भेजना मेरे बाबुल
उस लोहार के पास भेजना
जो मेरी सदियों की बेड़ियों को पिघला सके

वो लड़कियाँ जिन्हें होस्टल में पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हो चुका है उनके लिए वे कहते हैं –

वे जीना चाहती हैं तय समय में
अपनी तरह की जिन्दगी
जो उन्हें भविष्य में कभी नसीब नहीं होना

कविता होस्टल की लड़कियाँ में वे कहते हैं –

उन्हें जरूरत खूब चमकीले धूप की
जिसपर जता सकें वे अपना हक किसी भी मनुष्य से अधिक

विमलेश त्रिपाठी की कविताएँ बहुत संवेदनशील हैं और उनकी पारखी नज़र मुझे बहुत आश्चर्यचकित कर रही है । कवि का जरूर अपनी माँ और बहनों से बहुत ज्यादा लगाव रहा है जिसके कारण वो स्त्रियों की दशा को इतनी बारीकी से समझ सकें हैं ।

तुम्हें ईद मुबारक हो सैफूदीन ,अंकुर के लिए ,महज लिखनी नहीं होती हैं कविताएँ ,तीसरा,पानी और एक पागल आदमी की चिट्ठी कविताएँ उल्लेखनीय हैं । पागल आदमी की चिट्ठी एक लंबी कविता है जिसके जरिए कवि देश और समाज के हालात बड़ी ही कुशलता के साथ उजागर करते हैं । इन पंक्तियों से कविता की तीक्ष्णता का अंदाजा लगाया जा सकता है –

पागल आदमी की चिट्ठी में
नींद नहीं होती
असंभव सपने होते हैं

कविता का मतलब सन्नाटा
देश का मतलब चुप्पी
सरकार का मतलब महाजन
जनता का मतलब गाय

एक देश और मरे हुए लोग संग्रह की अंतिम पर लंबी कविता है जिसके द्वारा कवि ने देश की जनता को झझकोर कर जगाने का पूरा प्रयास किया है । विमलेश त्रिपाठी की कविताओं की खासियत ये है कि कविताएँ तीक्ष्ण व दर्द से लपटी हुई है पर साथ ही पठनीय भी हैं ।  संग्रह का आवरण चित्र कुँवर रवीन्द्र द्वारा चित्रित है जो शीर्षक को और भी अर्थपूर्ण बना देता है ।



समीक्षक – पूनम शुक्ला (कवयित्री )
50- डी , अपना इन्कलेव , रेलवे रोड,गुड़गाँव, 122001
9818423425

एक देश और मरे हुए लोग ( काव्य संग्रह ) : कवि : विमलेश त्रिपाठी , प्रकाशक : बोधि प्रकाशन , एफ – 77 , सेक्टर – 9 ,रोड नंबर – 11,करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाइस गोदाम,जयपुर – 302006 , मूल्य : 99 रुपए ।

 पूनम शुक्ला


हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

अर्चना लार्क की कविताएँ यत्र-तत्र देखता आया हूँ और उनके अंदर कवित्व की संभावनाओं को भी महसूस किया है लेकिन इधर की उनकी कुछ कविताओं को पढ़कर लगा...

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

नेहा नरूका समकालीन हिन्दी कविता को लेकर मेरे मन में कभी निराशा का भाव नहीं आय़ा। यह इसलिए है कि तमाम जुमलेबाज और पहेलीबाज कविताओं के...

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

by Anhadkolkata
July 9, 2022
32

                           आधा डूबा आधा उठा हुआ विश्वविद्यालय भरत प्रसाद ‘चुनाव’ शब्द तानाशाही और अन्याय की दुर्गंध देता है। जबकि मजा यह कि इंसानों...

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि  पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

by Anhadkolkata
June 25, 2022
0

सत्ता के बहुभुज का आख्यान ( उदय प्रकाश की कथा सृष्टि से गुजरते हुए ) विनय कुमार मिश्र   उदय प्रकाश ‘जिनके मुख देखत दुख उपजत’...

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
6

सुबोध सरकार सुबोध सरकार बांग्ला भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कविता-संग्रह द्वैपायन ह्रदेर धारे के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार...

Next Post

अंकिता पंवार की कविताएँ

जयश्री रॉय की कहानी

धर्मेन्द्र राय की कविताएँ

Comments 1

  1. प्रदीप कांत says:
    9 years ago

    सन्क्षिप्त और बढिया समीक्षा

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.