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Home कविता

मां : कुछ कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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11
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 मां

एक

मां के सपने घेंघियाते रहे
जांत की तरह
पिसते रहे अन्न
बनती रही मक्के की गोल-गोल रोटियां
और मां सदियों
एक भयानक गोलाई में
चुपचाप रेंगती रही…

दो

इस रोज बनती हुई दुनिया में
एक सुबह
मां के चेहरे की झूर्रियों से
ममता जैसा एक शब्द गुम गया
और मां
मुझे पहली बार
एक औरत की तरह लगी….

आजकल मां                  

आजकल मां के
चेहरे से
एक सूखती हुई नदी की
भाप छुटती है

ताप बढ़ रहा है
धीरे-धीरे

बस
वर्फानी चोटियां
पिघलती नहीं….

मां 

तुमने ही जना
प्यार और नफरत की चाबियां तुम्हारे कमर में ही लटकी हैं कहीं
एक साथ ही
आंसू और खुशियों की सीढियां
तय की तुम्हारे साथ ही

तुमने ही जना
और तुम्हारे भीतर ही ढूंढता मैं जवाब
उन प्रश्नों के
जिसे हजारों वर्ष की सभ्यता ने
लाद दिया है मेरी पीठ पर

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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 मां

एक

मां के सपने घेंघियाते रहे
जांत की तरह
पिसते रहे अन्न
बनती रही मक्के की गोल-गोल रोटियां
और मां सदियों
एक भयानक गोलाई में
चुपचाप रेंगती रही…

दो

इस रोज बनती हुई दुनिया में
एक सुबह
मां के चेहरे की झूर्रियों से
ममता जैसा एक शब्द गुम गया
और मां
मुझे पहली बार
एक औरत की तरह लगी….

आजकल मां                  

आजकल मां के
चेहरे से
एक सूखती हुई नदी की
भाप छुटती है

ताप बढ़ रहा है
धीरे-धीरे

बस
वर्फानी चोटियां
पिघलती नहीं….

मां 

तुमने ही जना
प्यार और नफरत की चाबियां तुम्हारे कमर में ही लटकी हैं कहीं
एक साथ ही
आंसू और खुशियों की सीढियां
तय की तुम्हारे साथ ही

तुमने ही जना
और तुम्हारे भीतर ही ढूंढता मैं जवाब
उन प्रश्नों के
जिसे हजारों वर्ष की सभ्यता ने
लाद दिया है मेरी पीठ पर

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 11

  1. राजेश चड्ढ़ा says:
    14 years ago

    प्यार और नफरत की चाबियां तुम्हारे कमर में ही लटकी हैं कहीं…….
    अध्भुत विमलेश जी…मां होना जैसे… गहरा स्वभाव है..

    Reply
  2. shanti bhushan says:
    14 years ago

    मां के चेहरे की झूर्रियों से
    ममता जैसा एक शब्द गुम गया
    और मां
    मुझे पहली बार
    एक औरत की तरह लगी….(kya kathy hai… behtrin)

    BAHUT ACHCHHI KAVITAYEN…

    SHESHNATH…

    Reply
  3. rajani kant says:
    14 years ago

    मन छू लेनेवाली कविताएं . पहली कविता की अन्तिम पंक्ति शायद ’चुपचाप रेंगती रही’ होगी.

    Reply
  4. Neel Kamal says:
    14 years ago

    maa ek rahasya bhi hai aur ek avishkar bhi. is vishay par kavita likhana bahut badi chunauti hai.apko badhai.

    Reply
  5. Anonymous says:
    14 years ago

    khub bhalo laglo, aro likhun

    Reply
  6. गीता पंडित says:
    14 years ago

    मां के सपने घेंघियाते रहे
    जांत की तरह
    पिसते रहे अन्न
    बनती रही मक्के की गोल-गोल रोटियां
    और मां सदियों
    एक भयानक गोलाई में
    चुपचाप रेंगती रही..

    man ko kachotne vaala ek saty ….. sundar ahasaas…..badhai aapko……

    Reply
  7. वंदना शुक्ला says:
    14 years ago

    बिमलेश जी ,आपकी कवितायेँ आकाश में उड़ने कि जगह ,धरती पर चहलकदमी करती हैं,माँ के चेहरे कि सूखती हुई नदी कि महसूसियत से गांव से महानगर तक आने कि व्यथा-कथाओं तक,सरल विषयवस्तु कि सहज अभिव्यक्ति !इन शुभकामनाओं के साथ कि आपने जो ज़मीन तय कि है ,उस पर खड़े रहें ताकि जिंदगी के चेहरे करीब से देख सकें!
    वंदना

    Reply
  8. Vimlesh Tripathi says:
    14 years ago

    आप सभी का अभार….शुक्रिया…

    Reply
  9. Pooja Anil says:
    14 years ago

    मां सदियों
    एक भयानक गोलाई में
    चुपचाप रेंगती रही…

    बहुत संवेदनशील कवितायें. गहरे विश्लेषण से उपजे बोध को बताती हैं. बधाई विमलेश जी.

    Reply
  10. चैन सिंह शेखावत says:
    14 years ago

    bahut gahre bhaav..
    sunder rachnaen..
    abhaar.

    Reply
  11. Patali-The-Village says:
    14 years ago

    मन छू लेनेवाली कविताएं| धन्यवाद|

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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