ज्योति बसु का न होना एक युग का अंत है। जब ऐसे लोग जो अपने सिद्धान्तों व वसूलों के लिए जीवन भर लड़ते रहे, कभी समझौता नहीं किया– जब नहीं रहते तो एक खालीपन रह जाता है….मन ये सोचकर बहुत बेचैन हो उठता है कि ऐसे लोग क्या अब भी बन सकेंगे….समय इतना अजीब होता जा रहा है कि कई बार लगता है कि वे पुरानी दिवारें जो ढहती जा रही हैं, उनकी भरपाई शायद न हो सकेगी।….ऐसे मौकापरस्त और फरेब समय में हम कैसे उनकी रक्षा कर सकेंगे, जो मानव जाति के लिए सचमुच जरूरी थे…वे मूल्य….वे आदर्श……
ऐसे समय में जिनके होने से उनके होने का विश्वास जगता था….
उनके न रहने पर बहुत मुश्किल होता है उस डोर को थामे रखना जिसे विश्वास कहते हैं…..
राष्ट्रवाद : प्रेमचंद
राष्ट्रवाद : प्रेमचंद हम पहले भी जानते थे और अब भी जानते हैं कि साधारण भारतवासी राष्ट्रीयता का अर्थ नहीं समझता और यह भावना जिस जागृति...