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Home कविता

श्रीकांत दुबे की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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6
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श्रीकांत दुबे -09873964044

कवि-कथाकार श्रीकांत दुबे दिल्ली में नौकरी करते हैं और साथ-साथ लेखन भी।  इन्होंने ढेर सारी स्पैनिश कविताओं का बहुत ही बढ़िया अनुवाद किया है जिसकी खासी चर्चा होती रही है।

श्रीकांत अपनी कविताओं में एक ऐसी दुनिया से हमारा परिचय कराते हैं जो हमारे आस पास होते हुए भी हमारी आंखों से ओझल है। एक कवि के रूप में श्रीकांत का ‘फ्रेशनेस’ अलग तरह से आकर्षित करता है। और कई बार संवेदना के ऐसे धरातल पर हमें ले जाकर खड़ा करता है, जहां हम सोचने के लिए बाध्य होते हैं। इस बार प्रस्तुत है युवा कवि-कथाकार श्रीकांत दुबे की कविताएं आपकी बेबाक प्रतिक्रियाओं की उम्मीद के साथ..। 

बुखार
रात के एक बजकर पैंतीस मिनट पर आभास होता है सुबह से ठीक पहले वाले साढ़े चार या पांच का
हर क्षण में करता हूँ इंतजार…..
जो करना है पहले उसकी कल्पना करता हूँ कई बार
उतरता हूँ चारपाई से
न जाने कितना धीरे
एक गिलास पानी लेकर एक टैबलेट निगलने की कल्पना को
दिया जाना है कार्यरूप
मेज के पास से वापस बिस्तर पर आने तक कई बार टूटता है कल्पना का क्रम
टैबलेट मुह में करता रहता है पानी का इंतजार
शायद एक अजीब सी अभिव्यक्ति भी उभरी हुई है
चेहरे पर
गूंजती है किसी की आवाज,
जैसे आकाशगंगाओं के बीच से
राह खोजती भटकती हो
अकेली कोई ध्वनि
हाथ में थर्मामीटर के साथ खडा है कोई
और किसी याद की तरह सुनता हूं
कैसे हो तुम?
नींद
कभी उतरो मेरी आंखों में
रात के पहाड़ों से
जैसे उतरती ही जाती है नदी
मैदानों में
कभी यूं ले लो अपने पहलू में
कि मुझमें समाती जाओ
बहो मेरी धमनियों
मेरी शिराओं में सिर्फ तुम ही
कभी इस कदर भी आओ मेरे पास
कि लहरने लगो मुझ पर समुद्र सा
और मैं सदियों तक
सपनों का भी काम न करूं
या फिर सिर्फ इतना कर दो
कि मेरे रक्त और कोशिकाओं को ही
बदल डालो
नींद में!
जो चाहता हूं
साफ पानी की झील बन जाना चाहता हूं
जो कुछ भी हो मेरे पार
तुम्हें दिखे साफ साफ
तुम जब सामने हो तो बन जाना चाहता हूं आईना
कि जैसी दिखती हो मुझे
खुद को भी वैसी ही खूबसूरत दिखो।
जब घुस जाना ही विकल्प हो
कातिल समुद्र सी तरल
किन्हीं सघन रातों में
उनके पार होने पर देखना चाहता हूं
किनारे सरीखी तुम्हारी ही मुस्कान
तुमसे अपनी धड़कनों तक का रिश्ता चाहता हूं
चाहता हूं कि मेरी आंख की पुतली में उगे
हर बेजार खयाल की खबर हो तुम्हें
अपनी स्मृति के समूचे इतिहास में
सिर्फ तुम्हारा ही जिक्र भरना चाहता हूं
जबकि तुम्हें चाहता हूं
इन दिनों बस ऐसा ही करता हूं
और कहना चाहता हूं
कि तुम्हें हमेशा चाहना चाहता हूं
पृथ्वी
एक ही पांव पर नाचते हुए थक गई है वो
ठहरकर उसने देखा है चारो ओर
दृश्य के सीमांत तक
अपनी देह को घूरती अनगिन आंखें मिली हैं उसे
बारिश की एक चादर ने कर दिया है उसे गीला
झीने लग रहे आँचल से
झलकने लगे हैं उसके वक्ष,
और उन्हें ढांप सकने वाली हथेलियां
कहीं ग्रीष्म तो कहीं बसंत से बंधी हैं
पीठ पर एक सुरसुरी सा शरद
“‘घूरना’ देखने भर से कितना अलग है” को नीहारने की खातिर
फिर से घूमी है वो,
धीरे धीरे
ऐसा सोच कि घूरने वाले अब देख भर पा रहे होंगे
उसके घूमते वजूद को
घूमती ही जा रही है वो
अनगिन आंखों से निकल रही हैं अनगिन रौशनियां
अंधेरे भी अनगिन।
दिन और रात
उसकी देह पर
करवटें लिए जा रहे हैं।

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 6

  1. Anonymous says:
    14 years ago

    बहुत अच्छी कविताएं… बधाई

    अरूण अभिषेक

    Reply
  2. श्याम जुनेजा says:
    14 years ago

    प्यार में आदमी अभी तक जो नहीं हो पाया उसी को चिन्हित करती कितनी ताजादम कविताएं …वधाई !

    Reply
  3. संतोष त्रिवेदी says:
    14 years ago

    एक अलग तरह का अहसास ,
    बिलकुल हमारे अपने पास
    कोई है जो बोल रहा है
    हमें हमारी ही तरह से महसूस रहा है !

    बहुत उम्दा,सरल शब्दों में सम्पूर्ण अभिव्यक्ति !

    Reply
  4. सुन्दर सृजक says:
    14 years ago

    सरल शब्द,निखरी अभिव्यक्ति और सामान्य कथ्य शैली अपने आप में लेखन की नई आगज़ है |

    Reply
  5. Anonymous says:
    14 years ago

    भाई श्रीकांत की कविताओं में उनकी कहानियों सा 'गुरूत्वाकर्षण' है
    बधाई
    प्रदीप जिलवाने

    Reply
  6. Richa P Madhwani says:
    14 years ago

    nice collection

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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