• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

बांग्ला कवि विनय मजुमदार की एक कविता

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
8
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

बांग्ला के विलक्षण कवि विनय मजुमदार के यहां प्रेम कोई आध्यात्मिक वस्तु भले ही न हो किन्तु वह पवित्र अवश्य है– प्रकृति की तरह, फूलों, झरनों, पहाड़ों और नदियों की तरह। यह अस्थि–मज्जा से युक्त रक्त, मांस से भरपूर स्पन्दित प्रेम है। कवि की ही तरह उसकी काव्य–भाषा भी विलक्षण है। प्रस्तुत है कवि की “अकाल्पनिक” शीर्षक कविता का हिन्दी अनुवाद। अनुवाद युवा कवि एवं समीक्षक नील कमल ने किया है।



अकाल्पनिक




तुम्हारे भीतर आऊंगा
हे नगरी 
कभी–कभी चुपचाप
बसन्त में कभी 

कभी बरसात में
जब दबे हुए ईर्श्या–द्वेष
पराजित होंगे इस क़लम के आगे
तब, 

जैसा कि तुमने चाहा था, 
एक सोने का हार भी लाऊंगा उपहार।

तुम्हारा सर्वांग ज्यों इश्तहार
यौवन के बाज़ार का, 
फिर भी तुम्हारे पास आकर
महसूस होता है, 

जैसे तुम्हारी अपनी
एक तहज़ीब है, 

सिर्फ़ तुम्हारी,
और जो आदमी के भीतर की
चिरन्तन वृत्ति का प्रकाश भी है।

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Related articles

जयमाला की कविताएँ

शालू शुक्ला की कविताएँ

बांग्ला के विलक्षण कवि विनय मजुमदार के यहां प्रेम कोई आध्यात्मिक वस्तु भले ही न हो किन्तु वह पवित्र अवश्य है– प्रकृति की तरह, फूलों, झरनों, पहाड़ों और नदियों की तरह। यह अस्थि–मज्जा से युक्त रक्त, मांस से भरपूर स्पन्दित प्रेम है। कवि की ही तरह उसकी काव्य–भाषा भी विलक्षण है। प्रस्तुत है कवि की “अकाल्पनिक” शीर्षक कविता का हिन्दी अनुवाद। अनुवाद युवा कवि एवं समीक्षक नील कमल ने किया है।



अकाल्पनिक




तुम्हारे भीतर आऊंगा
हे नगरी 
कभी–कभी चुपचाप
बसन्त में कभी 

कभी बरसात में
जब दबे हुए ईर्श्या–द्वेष
पराजित होंगे इस क़लम के आगे
तब, 

जैसा कि तुमने चाहा था, 
एक सोने का हार भी लाऊंगा उपहार।

तुम्हारा सर्वांग ज्यों इश्तहार
यौवन के बाज़ार का, 
फिर भी तुम्हारे पास आकर
महसूस होता है, 

जैसे तुम्हारी अपनी
एक तहज़ीब है, 

सिर्फ़ तुम्हारी,
और जो आदमी के भीतर की
चिरन्तन वृत्ति का प्रकाश भी है।

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

जयमाला की कविताएँ

जयमाला की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 9, 2025
0

जयमाला जयमाला की कविताएं स्तरीय पत्र - पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। प्रस्तुत कविताओं में स्त्री मन के अन्तर्द्वन्द्व के साथ - साथ गहरी...

शालू शुक्ला की कविताएँ

शालू शुक्ला की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 8, 2025
0

शालू शुक्ला कई बार कविताएँ जब स्वतःस्फूर्त होती हैं तो वे संवेदना में गहरे डूब जाती हैं - हिन्दी कविता या पूरी दुनिया की कविता जहाँ...

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 6, 2025
0

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

ममता जयंत की कविताएँ

ममता जयंत की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 3, 2025
0

ममता जयंत ममता जयंत की कविताओं में सहज जीवन के चित्र हैं जो आकर्षित करते हैं और एक बेहद संभावनाशील कवि के रूप में उन्हें सामने...

चित्रा पंवार की कविताएँ

चित्रा पंवार की कविताएँ

by Anhadkolkata
March 31, 2025
0

चित्रा पंवार चित्रा पंवार  संभावनाशील कवि हैं और इनकी कविताओं से यह आशा बंधती है कि हिन्दी कविता के भविष्य में एक सशक्त स्त्री कलम की...

Next Post

कैथरीन मैन्सफ़ील्ड की कविताएं

बाबा नागार्जुन को याद करते हुए

आइए एक कवि से परिचय किया जाय

Comments 8

  1. कुश says:
    14 years ago

    क्या बात..!!

    Reply
  2. सृजनगाथा says:
    14 years ago

    अच्छी कविता, अच्छे भाव, अच्छी कामना

    Reply
  3. Vimlesh Tripathi says:
    14 years ago

    शुक्रिया …बहुत-बहुत आभार…

    Reply
  4. Pooja Anil says:
    14 years ago

    जब दबे हुए ईर्श्या-द्वेष
    पराजित होंगे इस क़लम के आगे
    तब,

    प्राकृतिक विचारों को प्रस्तुत करती उम्दा भावों की कविता. शुभकामनाएं

    Reply
  5. विमलेश त्रिपाठी says:
    14 years ago

    आभार पूजा..

    Reply
  6. NEEL KAMAL says:
    14 years ago

    ek genuine kavi ko logon ke beech laane ke liye shukriya. inki aur 4 kavitayen ab anudit hain. jald hi aap inhein bhi dekhenge.

    Reply
  7. Vimlesh Tripathi says:
    14 years ago

    shukriya neelkamal jee

    Reply
  8. Dinesh pareek says:
    14 years ago

    बहुत ही सुन्दर वचन आपकी जितनी तारीफ करू उतनी कम है जी |
    आप मेरे ब्लॉग पे भी देखिये जीना लिंक में निचे दे रहा हु |
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.