राहुल राजेश |
कविताओं में कोलकाता शहर के अलग-अलग रंग हैं। उन्होंने इस शहर में रहते हुए इस
पुराने शहर को न केवल अपनी सूक्ष्म आँखों से देखा है बल्कि उसे अलग-अलग कोणों से दर्ज
भी किया है। कोलकाता शहर पर बहुत सारे कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। न केवल बांग्ला
में बल्कि हिन्दी में भी। यहाँ यह कहना जरूरी है कि राहुल की कविताएँ पढ़ते हुए हम
उस कोलकाता को देख सकते हैं जो अक्सर हमारी आँखों में नहीं आ पाता। किसी
संवेदननशील कवि का किसी शहर को इस तरह दर्ज करना खासा दिलचस्प है और उल्लेखनीय भी।
तो पढ़ते हैं राहुल राजेश की कविताएँ। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार
तो रहेगा ही।
केवल बंग-बालाओं का
लावण्य नहीं है कलकत्ता
बस गयी और वहाँ फँस गयी
उस लड़की का श्राप भी है कलकत्ता
हावड़ा ब्रिज भर नहीं है कलकत्ता
लाल लंगोट बाँधकर गंगा में छप्प से
कूद गया शहर भी है कलकत्ता
अलसाता भर शहर नहीं है कलकत्ता
राइटर्स बिल्डिंग के सामने लाल दीघी में
भरी दोपहर बंसी डालकर आँखें गड़ाये
जागता शहर भी है कलकत्ता
पुरातन अजायबघर नहीं है कलकत्ता
हिंदुस्तान की नई इबारतें लिखने वाला
शुरुआती शहर भी है कलकत्ता
बंगालियों से कहीं अधिक अब बिहारियों
और मारवाड़ियों का शहर भी है कलकत्ता
फेयरली प्लेस में बेचूजी की चाय दुकान पर उबलता शहर भी है कलकत्ता
जीपीओ के दाएँ-बाएँ नानाविध स्वांग भरते
भिखारियों का शहर भी है कलकत्ता
रसिकों का ही नहीं, कदम कदम पर अड़े कानूनचियों का शहर भी है कलकत्ता
हड़तालों का शहर भी है कलकत्ता
कि बावजूद इसके, मेरी पसंद का
शहर है कलकत्ता!
***
वन वन भटक रही है हिरणी
नाभि में कस्तूरी नहीं, प्रेम की अगिन लिये
डुबकी लगा रहा है आखेटक
हुगली के तट पर तय हो गया है मोल
देह की ज्वाला मार देगी उसे पहले ही
यह जानते हुए भी भटक रही है वह
इसलिए तो उसने स्वप्न में
और एक छलाँग लगा दी है अभी-अभी
मिट्टी का सिंदूर बनकर
घोड़ों की टापें सुनाई दे रही हैं
लेकिन देह में इच्छाओं की दीमक लग गई है
प्रेम में बंगालन?
***
कोलकाता के
मिलेनियम पार्क में
बैठे हैं लोग जोड़े में
पेड़ों की धूपछाहीं छाँह में
बतियाते
साथ निभाते
वक्त बिताते
अंतरंगता पाते…
और जेठ का महीना है
ऊपर दहकता सूरज है
और नीचे गर्म हवा
और बीच में
हरी-हरी,
छोटे-बड़े छेदों से भरी
पेड़ों की छतरियाँ
हावड़ा ब्रिज का रेखाचित्र है
और बिल्कुल पास गंगा के
कैनवास पर तैरतीं
छोटी-बड़ी डोंगियाँ
माथे से पसीना पोंछता
यह कितना सुंदर दृश्य है !
***
बीबीडी बाग से ठीक सटे
फेरी घाट से चलती है लॉन्च
हावड़ा स्टेशन के लिए
मुसाफिर, मजूर, औरतें और बच्चे
प्लास्टिक के कैनों में लपक लपककर
भर लाते हैं श्रद्धालुओं के लिए गंगाजल
लोहे के भारी-भरकम सिक्कड़ों पर
कमाल के करतब करते
चीतों की तरह लगते हैं जो बच्चे
लड़ते हुए बिल्कुल
कुत्तों में बदल जाते हैं
जिसे निकालने में लगे थे लोग
शायद डूब गया था वह आदमी
पानी में फूली लाश
कई दिनों तक मन घबराता रहा…
देखते-देखते देखने लगा उन बच्चों को
पानी में ही गुत्थमगुत्था थे जो नंग-धड़ंग
जब अपनी जान छुड़ाकर भागते बच्चे ने
पानी में डटे बच्चे को चिल्लाकर कहा-
रंडी का गोश्त !
***
अपरिचय और अहम के
इस अहमक संसार में
वह लड़की
कम से कम मुस्कुराती तो है
देखकर !
मैं बालीगंज और वो कालीघाट
लौट जाती है हर शाम
बिल्कुल साथ साथ खड़ी
काली-पीली टैक्सी में बैठकर !!
***
गड़ियाहाट बोले तो
कलकत्ता का एकदम नामी बाजार
डोवर लेन, गड़ियाहाट में रहता हूँ
तो चौंक के बोलेगा- गोड़ियाहाट मार्केट तो?
आप रेहता है ! हामलोग तो प्राये वोहाँ
मार्केटिंग कोरने जाता है !
ना गेले पूरो हय कि ?
बैसाख से ही औरतें कहती मिल जाएँगी !
दिल्ली में बरसों बिताकर अब मुकुंदपुर में
बस गई मेरी बड़ी साली साहिबा का भी
दिल कहाँ मानता है ?
कमी गड़ियाहाट मार्केट बखूबी
पूरी जो कर देता है !
लगा ही लेती हैं और इसी बहाने
मेरी नन्ही बेटियों को मौसी के आने की
खुशी मिल जाती है और पत्नी को
एक जोड़ी नई कनबाली !
और एक मीठी झिड़की भी
कि इतना पास रहकर भी
हमारे भरोसे ही पड़ी रहती हो ?
और वह डोवर लेन में क्वाटर न चाहे
ऐसा हो नहीं सकता !
हम भी सात साल बाद आए अहमदाबाद से
तो तय था, पक्का डोवर लेन ही चाहिए
अपने दिनेश भाई भी यहीं हैं और अपना कलकतिया अरिंदम भी तो यहीं है !
रहना हुआ था बालीगंज, सर्कुलर रोड में
तब हम सब जब मन तब उठकर
चले आते थे गड़ियाहाट !
गुवाहाटी से मिसेज बरूआ और मौसमी
ट्रेनिंग नहीं, शॉपिंग के लिए ही तो आईं थीं !
हम कभी आकर रहेंगे इसी गड़ियाहाट में !
चलिए, जरा गड़ियाहाट मार्केट घूम आते हैं
ठीक चौराहे के बस स्टॉप पर हम खड़े थे
अरिंदम ने कहा, थोड़ी देर खड़े रहिए यहीं
सिगरेट पीते हम देखते रहे लोगों को
बसों में चढ़ती-उतरती भीड़ को
कौन, बड़ी सी बिंदी वाली ? जो खूब सिंदूर लगाए है और खूब चूड़ी पहने है ?
लगता है, अभी अभी शादी हुई है ! न ?
देखिए, देखिए, अभी उस तरफ गई
उसके साथ ! फिर लौट आई !
देखिए, देखिए, अभी बस में चढ़ी
और तुरंत उतर गई !
अरे हाँ ! कुछ हुआ है क्या ?
नहीं, ग्राहक पटा रही है !!
***
अक्सर आते-जाते
ईस्टर्न रेलवे मुख्यालय के इर्द-गिर्द
दिख जाते हैं वे
इन बेघर बच्चों में
इनकी निर्दोष खिलखिलाहटों के सिवा
कुछ भी तो सुंदर नहीं
देखकर उन्हें
मेरी नन्ही बेटियों जैसी तो हैं वे भी
पर मामूली मदद के सिवा
मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाता…
मेरी पीठ पर इतना ज्यादा है
कि मैं लाख कोशिशों के बावजूद
तनकर नहीं चल पाता ।
***
वहरोज मुझे आइना दिखाता है
इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ
इसलिए मैं उससे मिलने जाता हूँ
इसलिए मैं उसको सुनने जाता हूँ
इसलिए मैंउससे सीखने जाता हूँ
जिस दुनिया से मैं मिल नहीं पाता हूँ
इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ
इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ
इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ
इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ
इसलिए मैं उसके पास जाता हूँ ।
***
(*हनुमंत राव एक दिन अचानक कोलकाता के फेयरली प्लेस के पास बेचू जी की चाय दुकान पर मिल गए! वे एक मारवाड़ी फर्म में मामूली पगार पर मामूली-सी नौकरी करते हैं पर वे बात बड़े पते की करते हैं! उनसे जब भी मिलता हूँ, खुद को थोड़ा समृद्ध महसूस करता हूँ।)
मैं लपकता-भागता पहुँचता
तो देखता वह मुझसे पहले पहुँची हुयी है !
वह बैठी होती गोद में जाँघ से टिकाये
नन्हा-सा, गोल-मटोल, सोता बच्चा
मैं उसके पसरे हाथ में सिक्के डाल आगे
बढ़ जाता और वह टटोलकर सहेज लेती
याद आ जाते कभी-कभी विपिन पटेल साब
जो अहमदाबाद के आश्रम रोड के समानांतर
बिछी पटरी पर सरकती रेलगाड़ी देख कहते
इसमें रोज भिखारी लोग आते हैं और
इसी से लौट जाते हैं, डेली पसिंजर की तरह
तो वह भी बच्चा लिए लौट रही होती
खेलते-ठुमकते देखता तो मन हुलस जाता
ना, नशे से नहीं, नींद से जागा है बच्चा !
तो देखा, वह धपाधप भाग रही थी हावड़ा को
उसकी नहीं, पति की गोद में था बच्चा !
पहले भौंचक्क हुआ, खीजा, फिर खुश हुआ
कि चलो विधवा नहीं है, भरा-पूरा परिवार है !
कलकत्ता में सिक्के खोटे नहीं हुए हैं अभी
एक टका के मूढ़ी में एक बेगून भाजा सानकर
मजे से अपनी भूख मिटा लेते हैं लोग
दिल्ली में सत्ता है, मुंबई में पैसा है
तो कलकत्ता में जीवन है !
शुक्रिया कलकत्ता ! शुक्रिया बहुत बहुत !!
***
काँथा कि बाँधनी कि बालूचरी?
किछु ना, किछु ना, सुदू तुमी
पहुँचा था कवि प्रेम की देहरी पर
अभिमान की जूती उतारना देहरी पर
लेकिन माफ कर दिया
कबि मानुष तो !
किछु बोला जाए ना !!
संपर्क:-
जे-2/406, रिज़र्व बैंक अधिकारी आवास, गोकुलधाम,
गोरेगांव(पूर्व), मुंबई-400063 मो. 9429608159
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
कविताएं पढ़ गया ।बहुत अच्छी बनी हैं, मेरी समझ से । हर कविता कविता बन सकी है । आपका संकलन मेरे शहर पहुंच कर भी मेरे पास नहीं है । 12 -02 2022 तक हाथ आएगा । एक साथ क ई कविताएं पढ़कर मुझे हमेशा अच्छा लगता है । कविताओं की द्रवणशील करुणा अंतर तक ढुलकती आ रही है । कविताओं क
बहुत अच्छी और अर्थपूर्ण कविताएँ हैं। इन्हें पढ़ना तीन दिनों से ड्यू था। कोलकाता मेरा भी प्रिय महानगर रहा है। जब कभी भीतर के कोलाहल से भागने की तबियत होती थी तो अक्सर कोलकाता ही मेरी पनाहगाह बनता था। इसका बाह्य कोलाहल मुझे बहुत आसक्त करता था, जिसमें मुझे एक शोर नहीं बल्कि जीवन का उत्सव सुनाई देता था। कितना सही लिखा है तुमने कि 'दिल्ली सत्ता, मुंबई पैसे और कोलकाता जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले महानगर हैं।
कोलकाता और मेरे जीवन से जुड़े कई मिथक हैं। मुझे याद है कि '36, चौरंगी लेन' को श्याम बेनेगल की आँखों से ढूंढ़ता हुआ एक बार मैं पूरे दिन भटका था। राजकमल चौधरी और शंकर की नज़र से भी इस शहर को देखने की कोशिश की। मेट्रो गली का वह शराबखाना और सियालदह के माछ-भात का वह ज़ायका आज भी मेरी रुधिरों में बहता है।
बहरहाल, तुम्हारी ये कविताएँ कोलकाता को नए सिरे से देखती हैं जो निश्चय ही 'ट्राम में एक याद' की रुमानियत से बिल्कुल भिन्न है। ये कविताएँ अपने रूपकों में यह संकेत करती हैं कि यह शहर सिर्फ़ काली घाट, काला जादू, मिष्टी दोई और शोन्देश की वजह से नहीं है, इस शहर की अपनी आपाधापी, अपने सुख-दुख, अपना घाव और अपना मवाद हैं जो भद्रलोक के मध्यम वर्ग से सर्वथा अलग हैं। यह शहर आज भी कमोबेश उन लोगों का ही है जिनके खून-पसीने से इनकी बुनियाद भींगी हुई है। ये सभी बातें इन कविताओं में खुल कर आई हैं। ज्योति शोभा जी की भी एक कविता सीरीज कोलकाता पर है जिसमें अभिजात्यपूर्णभाषा के भव्य चमत्कार के सिवा मुझे कुछ नहीं दिखा।
इन कविताओं में कोलकाता की धुरी में जो सामान्य मनुष्य है, उसे देखने-समझने की समग्र कोशिश है। यहाँ भाषिक भव्यता पर साधारण की अलौकिकता भारी पड़ती दिख रही है। पूरे सीरीज की कविताएं अच्छी हैं। मेरे पाठकीय सब्र का फल मुझे मीठा ही मिला। बधाई प्यारे।
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I wanted to thank you for this excellent read!! I definitely loved every little bit of it. I have got you book-marked to look at new stuff you postÖ