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Home कविता

ममता जयंत की कविताएँ

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से अनहद कोलकाता द्वारा शुरू की गई एक विशेष श्रृंखला के तहत प्रकाशित

by Anhadkolkata
April 3, 2025
in कविता
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ममता जयंत

ममता जयंत की कविताओं में सहज जीवन के चित्र हैं जो आकर्षित करते हैं और एक बेहद संभावनाशील कवि के रूप में उन्हें सामने लाते हैं। उनके यहाँ मजदूर हैं तो प्रेमी की पत्नी के नाम खत भी है। ये कविताएँ सहज होकर ही सुंदर हैं और महत्त बातें रखती हैं। अनहद कोलकाता पर उनकी कविताएँ प्रस्तुत करते हुए हमें खुशी भी है और हमें उम्मीद है कि वे एक दिन हिन्दी कविता की अग्रपंक्ति में खड़ी होंगी।

हमेशा की तरह आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही।

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मजदूर

उनका होना चेतना का होना है
उनका चलना विकास का चलना है
उनका ठहरना प्रगति का ठहरना है
उनका जागना उम्मीदों का जागना है
उनका खोना विचारों का खोना है
उनका सोना मेहनत का सोना है
उनका मरना सभ्यता का मरना है

उनके इसी होने चलने सोने जागने
और सभ्यता में रहने से तृप्त है दुनिया भूख
इसी तृप्ति पर टिकी हैं दुनिया की तमाम जीवित इमारतें

वे नहीं जानते
मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्त्व
पर जानते हैं जीवन के मूल कर्तव्य

उनके लिए रक्षा जैसे शब्द बेमानी हैं
नहीं हैं उनकी सुरक्षा के लिए कहीं कोई इन्तज़ाम
असुरक्षा ही उनका सबसे सुरक्षित स्थान है
उनकी खबरों को नज़रअंदाज़ करना
सरकार का सरकारी सलीका

उनकी मौत पर नहीं होते विमर्श
न मनाए जाते हत्याओं पर मातम
ढक दिये जाते हैं शालीनता से उनके शव
बड़ी सहानुभूति से लगाया जाता है
योजनाओं में ज़ख्मों पर मरहम

अलबत्ता किसी आदमी की मज़बूरियों का वजन
ज्यादा होता है उसकी देह के वजन से
फिर वे तो माहिर हैं बोझा ढोने में
आखिर क्यों नहीं उठा पाते
अपना ही भार?

बैसाख की आस

तुमने भूख का वास्ता दिया
मुझे अन्न उगाने की सूझी
मैंने बोए गेहूँ जौ चना चावल दाल
और शर्बत चाय चीनी के नाम पर रोप दी ईख

मेरे इसी कार-व्यवहार पर टिके थे सब त्यौहार
बसंत आया फूल खिले हवा चली खेत लहलहाए
आस जगी बैसाख की

इसी सुनहरी चमक में थे
वनिता के गहने लाजो की चुनरी
नन्हें-मुन्नों के खेल खिलौने और कॉपी किताब

शाम होते ही बादलों का रुख बदला
रंग गहराया बिजली चमकी
छाए उमड़-घुमड़ कर
जैसे कर रहे हों पैमाईश धरा की

मैंने नज़र उठाई देखा और गुहार लगाई
आज बादलों से ज्यादा गड़गड़ाहट मन में थी
भीतर की अर्चना रोक रही थी ऊपर की गर्जना को
प्रकृति पर पहरे का प्रयास कोरी मूर्खता है

उस रात कंकड़ों ने भी दिखाई खूब नज़ाकत
यौवन से मदमाती फसल
सिमट गई थी वृष्टि की आगोश में
और समा गई धरा की गोद में

भोर होते ही
मैंने यूँ निहारा खुले मैदान को
ज्यों विदा के वक्त देखता है एक पिता बेटी को
मेरे पास डबडबाई आँखों के सिवा कुछ न था

एक हाथ में रस्सी थी दूसरे में हँसिया
और मन में तरह-तरह के ख़याल
अब सरकारी वादों पर टिकी थी
हर एक साँस!

 

प्रेमी की पत्नी के नाम

पता नहीं
मैं तुम्हारे लिए कौन हूँ
पर तुम मेरे लिए उस प्रेम की सुयोग्य अधिकारी हो
जिसे पाने की चाह मेरे भीतर सदा बलवती रही

तुम फलती-फूलती रहीं जिसकी छाँह में
मैं बीतती और रीतती गयी उसकी चाह में

ऊब जाती हो जिसे तुम देखकर-सुनकर
मैं झरोखों से झाँका करती हूँ उसे
रहता है इन्तज़ार आवाज़ सुनने का उसकी

सोचती हूँ बता दूँ तुम्हें सच-सच
हम हारे हैं एक ही खेल में
जीता तो कोई और है

मगर डरती हूँ
कहीं तुम नफ़रती होकर न उगलने लगो आग
बरसो बेतहाशा, कोसो मुझे दिलो-जान से
सींचती हूँ जिस पौधे को मैं नित नेह-नीर से
न उखाड़ दो तुम उसे पल में जड़ से

सुनो सखी!
जिसे तुमने विश्वास से बाँधा है
मैंने उसे प्रेम से थामा है
हमें आग और पानी की तरह नहीं
नीर और क्षीर की तरह मिलना चाहिए

प्रेमिकाओं ने जलाए हैं सदा
प्रेमियों के नाम के दीये
देखा है नम आँखों से
चाँद को चुपके-चुपके

मनुष्य न कहना

अभी मैंने पेश नहीं किए
मनुष्यता के वे सारे दावे
जो जरूरी है मनुष्य बने रहने को
इसलिए तुम मुझे मनुष्य न कहना

न कहना खग या विहग
क्योंकि उड़ना मुझे आया नहीं
मत कहना नीर क्षीर समीर भी
क्योंकि उनके जैसी शुद्धता मैंने पाई नहीं

न देना दुहाई
धरा या वसुधा के नाम की
चूंकि उसके जैसी धीरता मुझमें समाई नहीं

हाँ कुछ कहना ही चाहते हो
पुकारना चाहते हो सम्बोधन से
तो पुकारना तुम मुझे एक ऐसे खिलौने की तरह

जो टूटकर मिट्टी की मानिंद
मिल सकता हो मिट्टी में
जल सकता हो अनल में
बह सकता हो जल में
उड़ सकता हो आकाश में
उतर सकता हो पाताल में

ताकि तुम्हारे सारे प्रयोगों से बचकर
दिखा सकूँ मैं अपनी चिर-परिचित मुस्कान
दुखों से उबरने का अदम्य साहस
और एक सम्वेदनशील हृदय

बावजूद इसके बची रहूँ
किसी आखिरी उम्मीद की तरह
इसके सिवा एक मनुष्य और दे भी क्या सकता है
अपने मनुष्य होने के साक्ष्य?

गुब्बारे

हमारे सपने
हिलियम के उन गुब्बारों जैसे थे
जिन्हें माँ उड़ने के भय से
बाँध देती थी धागे से हाथों में
और हम कर मशक्कत खोल देते तुरन्त ही

वे स्वछंद विचरते आसमानी हवा में
पल भर को उड़ जाते हम भी फुग्गे संग
और लौटते ही ठिठक जाते
उनके वापस न आने के भय से

फिर हमें सिखाया गया
खिलौने खेलने को होते हैं उड़ाने को नहीं
उसके बाद नहीं उड़ने दिया एक भी गुब्बारा
बाँध लिए सब मन के धागों से

पता नहीं वे हमसे खेल रहे थे या हम उनसे
मगर जुड़े थे सब अन्तस से
अब भीतर ही पड़े हैं सारे के सारे
सजीले रंगों के सुंदर गुब्बारे!

पतंगें

आकाश में उड़ती पतंगे
नहीं जानती अंकुश का अर्थ
वे जानती हैं खुली हवा में विचरना
और छूना आसमान की ऊँचाईयों को

पतंगें
नहीं महसूस पातीं
उस हाथ के दबाव को
जो थामे रखता है उनकी डोर अपने हाथ में

पतंगें
लड़ना नहीं जानतीं
वे जानती हैं सिर्फ मिलना-जुलना
और बढ़ना एक-दूसरे की ओर

पतंगें
नहीं पहचान पातीं उस धार को
जिससे मिलते ही कट जाती है ग्रीवा

पतंगें
नहीं जानतीं लुटने मिटने कटने का अर्थ
वे देखना चाहती हैं दुनिया को ऊँचाई से
उनका ऊँचा-नीचा होना निर्भर है
मुट्ठी में कसे धागे के तनाव पर

पतंगें
नहीं थाम पातीं अपनी ही डोर अपने हाथ में
विजय और वर्चस्व की उम्मीदों को संजोए
आ गिरती हैं इक रोज़ ज़मीन पर
भरती हैं फिर-फिर उड़ान!

अधर्म

नहीं था हमारे भीतर
परम्परा के प्रति कोई सन्देह
जिसने जो दिया अपना लिया

यह रास्ता सुगम था
बजाय अपना बनाने के
या कि स्वीकारने के चुनौतियाँ

हम दूसरों के दिए भोजन पर तृप्त रहे
पहनकर दूसरों के कपड़े राजी
उनका दिया दान और दुआ
हमें दवा सा लगा

हम फिरते रहे लेकर धर्म की प्यास
छोड़ सब काम हुए धर्मों के चाकर
बने हिन्दू मुसलमाँ सिक्ख पारसी

सच खोजने की शक्ति हमारे भीतर कम थी
इन्सान बनने का हुनर न के बराबर

हमारे भीतर कोई प्यास कोई विद्रोह नहीं था
अनुभव से पहले ही कर लिया सब स्वीकार
हमारा कोई धर्म नहीं था
न था कोई ईश्वर!

 

पृथ्वी का सौन्दर्य

मनुष्य
नहीं मरता
न मरेगा कभी
वह बचा रहेगा तब तक
जब तक उठे रहेंगे उसके दोनों हाथ प्रार्थना में

अशेष रहेगी
उसकी मनुष्यता
उम्मीदों भावनाओं कल्पनाओं
और उस अनुगूँज में जो असाध्य क्षणों में भी
थाम लेती है उसका हाथ

इन्हीं एहसासों
और अनुभूतियों पर
निर्भर है पृथ्वी का सौन्दर्य!

 

ममता जयंत

परिचय:

जन्म व शिक्षा
_______________
नाम – ममता जयंत
जन्म – 21 सितम्बर
जन्म स्थान – दिल्ली
शिक्षा – एम.ए. [इतिहास], बी.एड.

लेखन व प्रकाशन
_________________
युवा कवि और आलोचक। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं व ब्लॉग में आलेख, आलोचना व कविताएँ प्रकाशित।
‘बाल सुमन माला’ नाम से एक बाल कविता संग्रह व
‘मनुष्य न कहना’ शीर्षक से एक काव्य संग्रह प्रकाशित।
[वर्ष – 2024. हिन्दी अकादमी दिल्ली के सहयोग से]

पुरस्कार और सम्मान
____________________
गोदावरी फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2024 में ‘राष्ट्रीय बाल हितैषी सम्मान’

अनुवाद: कुछ कविताएँ अंग्रेजी, उर्दू और मराठी में अनुदित
__________________________________________

शिक्षा जगत में भूमिका
______________________
एनसीईआरटी और एससीईआरटी [उत्तर प्रदेश] के दो महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर कार्य। उत्तर प्रदेश शैक्षिक दूरदर्शन पर प्रसारण हेतु
ई-एजूकेशन के तहत शैक्षिक विडियो निर्माण।

सम्प्रति
_____________
अध्ययन – अध्यापन।

रूचि व शौक
________________
सकारात्मक सामाजिक बदलाव हेतु पठन-पाठन एवं लेखन।

Tags: अनहद कोलकाता Anhad Kolkata हिन्दी बेव पत्रिका Hindi Web Magzineममता जयंतममता जयंत की कविताएँसमकालीन हिन्दी कविताएँ
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