
नेहा नरूका का लेखन साहसिक रचनाशीलता का दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत करता है – साथ ही प्रतिबद्ध लेखन अब तक की उनकी रचनाओं में एक कवित्व कौशल के साथ मौजूद है। उन्हे परवाह नहीं कि उनकी कविता को आलोचक किस कसौटी पर कसेंगे, लेकिन है वह सौ फिसदी कविता जो आत्माभिव्यक्ति के परे जाकर एक विशाल जन समूह से बार-बार टकराती है। इस टकराव में कई लोगों के आहत होने की भी संभावना तो बनी ही रहती है लेकिन न वे और न उनकी कविता इसकी कोई परवाह करती है। जिस तरह के लय को उन्होंने अपने जीवन में साध लिया है कविता में भी उसे लक्षित किया जा सकता है।
अनहद कोलकाता ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक विशेष श्रृंखला की शुरूआत की है और हमें बेहद खुशी है कि हमें रचनाकारों का बहुत सहयोग मिल रहा है। नेहा नरूका की कविताएँ प्रस्तुत करते हुए हमें बेहद खुशी है।
आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार तो रहेगा ही।
◆ केवल ढाई सौ ग्राम ◆
कविता एक किलो आम आम की तरह नहीं होती
फलवाले को फ़ोन मिलाया
वह जी सर, जी मेडम करता
घर भागा आया और पन्नी में बांधकर रख गया एक किलो ताजा, स्वादिष्ट और रसभरे आम
कविता की दुनिया में ऐसा नहीं सम्भव
ढाई सौ ग्राम शिल्प लिया
ढाई सौ ग्राम संवेदना
और मिक्सी में चलाकर बना दी रस, छंद, अलंकार, प्रतीक, बिंब, फैंटेसी युक्त कलात्मक, कमाल, कालजयी कविता
उधर सम्पादक ने फ़ोन घनघनाया और इधर झट से मेल कर दी गई महान कविता
कवि ख़ुश, सम्पादक ख़ुश, पाठक ख़ुश, आलोचक न्यौछावर
लो पूरा हुआ कविता संसार
कविता में जीवन की तरह अनगिनत अनिश्चताएँ हैं
जैसे जीवन में नहीं मालुम घर से तैयार होकर स्कूल में दोस्तों के साथ पोर्न देखने वाला लड़का
मंदिर में मिलने आई प्रेमिका को गुलाब का फूल देगा
या खेत की मेड़ पर टट्टी कर रही कक्षा चार की बलिका के साथ करेगा बलात्कार
इसलिए जो घड़ी-घड़ी तखरी लिए कविता को तौलते फिरते हैं
वे कभी-कभी मुझे उन क्रूर, कायर और कपटी सम्बन्धियों की तरह लगते हैं
जो कहते हैं प्यार तो करो हमसे पर केवल ढाई सौ ग्राम
हम भी करेंगे बदले में ढाई सौ ग्राम
और मैं शून्य बटे सन्नाटा प्रेम करके लौट आती हूँ
लौट आती हूँ कलाविदों के पास से भी यूँ ही
बिचारे इतना भी नहीं समझते लड़का अगर प्रेम देता तो कविता से सुगंध झड़ती
लड़के ने की है हिंसा तो कविता का फट पड़ा है कलेजा।
-फरवरी 2025
◆ मिसेज फ़िल्म की चर्चाओं के मध्य में टीना, मीना, रीना कथा कौंध ◆
जब टीना, मीना, रीना ससुराल छोड़कर घर आईं
तो पहले घरवालों ने उन्हें ख़ूब समझाया, फिर उन्हें डराया और फिर बार-बार सुनाया
टीना, मीना, रीना ठहरी ढीठ, टस से मस नहीं हुईं
आख़िरकार घरवालों ने कुछ घबराकर, कुछ लजाकर और कुछ मुँह फुलाकर
टीना, मीना, रीना को सपने पूरे करने की तथाकथित आज़ादी दे दी
फिर कुछ दिन बाद टीना एक निजी स्कूल में पढ़ाने लगी
मीना एक निजी अस्पताल में पोंछा लगाने लगी
और रीना इंस्टाग्राम पर रील बनाने लगी
अब टीना स्कूल जाती है तो घरवालों के लिए खाना बनाकर जाती है
मीना अपनी पूरे पैसे भाई-भतीजों को सौंप देती है
रीना दिनभर रील बनाती है और दिनभर बर्तन माँजती है
लेट-लतीफी के कारण टीना को स्कूल का प्रिंसीपल डाँटता है
मीना के पोंछे में उसकी सीनियर भर-भर के गंदगी निकालती है
और रीना उसकी तो कुछ पूछो मत इधर रील पोस्ट होती है उधर गालियाँ
कूल मिलाकर तीनों की ज़िंदगी इस समय झंड है
ऐसे में बहुत संभावना है कि तीनों अपने ससुराल छोड़कर आने वाले निर्णय पर कभी-कभार पछताती हों
पर ऐसा नहीं है
टीना, मीना, रीना नींद में भी ससुराल का नाम नहीं लेतीं
एक दो बार गलती से रात में बर्रा गईं तो उनकी देह से भय का पसीना छूटा
समकाल में टीना का मतलब है झुंझलाहट
मीना का मतलब है थकावट
और रीना बिचारी बेमतलब है
उनके अंदर का रहस्य ये है कि उन्हें न अपना घर पसंद, न घरवाले और न अपना काम
टीना, मीना, रीना ससुराल की तरह इस सबको भी छोड़ देना चाहती हैं
मगर मुश्किल वही है बहुत कुछ छोड़ने के लिए ज़िद के साथ जिस विचार की ज़रूरत होती है
जो इस पूरे वक़्त में ही नहीं है
तो उनके पास भी कैसे हो ?
-फरवरी 2025
◆ करधनी ◆
‘बाँधे कमरिया करधनी और जाए बलम अँगना’
लाड़ो का बाबा देखे, लाड़ो के लिए
बस इतना सपना !
और इधर लाड़ो ने रंग-बिरंगे सपने सजा रखे हैं
सूरज की तरह लाल सपने
बादल की तरह सफ़ेद सपने
अंधेरे की तरह काले सपने
पत्तों की तरह हरे सपने
बैरी बाबा सब खाब तोड़ देता है-
‘सुरग में टाँका, न लग सकेगा लाड़ो
तू अपना माथा काहे को फोड़े…’
लाड़ो कहती है-
‘बाबा मैं मानुस से प्रीत रखूँ
मानुस बनना चाहूँ।’
‘मानुस! कौन मानुस
मानुस तो जग में है ही नाहीं।
लाड़ो तू बची रहिओ…’
लाड़ो तोरई की बेल की तरह बड़ी हुई है
बेल का ब्याह नहीं होता
पर लाड़ो का ब्याह हुआ है
लगुन में नगद पैसा चढ़ाकर
बाबा एक बलम लाया है
बलम खील लाया है, बतासे लाया है
हार लाया है, झुमके लाया है
चूड़ी लाया है, पायल लाया है
साड़ी लाया है, शृंगार लाया है
बस करधनी भूल आया है।
बाबा फूट-फूट कर रोने लगा-
‘इस घर की कोई लाड़ो करधनी बाँधे बिना
ससुराल नहीं गई तो फिर लाड़ो कैसे जावेगी ?’
लाड़ो की विदाई न होने दी बाबा ने
जब तक करधनी नहीं आ जाती
तब तक लाड़ो ससुराल नहीं जाएगी
बारात दुल्हन के बिना ही विदा हो गई।
कोठरी में बैठी-बैठी लाड़ो हँस रही थी-
‘चलो करधनी के बहाने ही सही
उसे जाना न पड़ा नासमिटी ससुराल’
लाड़ो ने फिर एक खाब देखा है
इस खाब का रंग ज्वालामुखी जैसा है-
बलम कभी करधनी न ला पाए
बाबा तो बूढ़े हैं
एक दिन सुरग चले जाएँगे
फिर सबको समझना ही पड़ेगा
लाड़ो को करधनी नहीं पहननी
उसे बँधना नहीं खुलना है
जैसे खुल गई थी अब्बू ख़ाँ की बकरी
पर बाबा के जाते ही
उसे करधनी में बाँध दिया गया
तो ?
बलम करधनी ले आया
तो ?
बाबुल ने गौने की तैयारी कर ली
तो ?
अम्मा ने उसे करधनी में बाँध दिया
तो ?
क्या कर सकेगी वह
निपट अकेली ?
अच्छा हो बाबा के संग ही
निष्ठुर बाबुल और बलम भी मर जाएं
और करधनी बाँधने की यह रीत ही
हो जाए
बाबा-बाबुल-बलम की चिता के संग खाक !
***
नेहा नरूका
चंबल क्षेत्र के एक गांव उदोतगढ़ (भिंड, मध्यप्रदेश) में जन्म।
जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर से महिला कथाकारों की आत्मकथाओं पर शोधकार्य।
2012 से हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और वेबमाध्यमों पर कविताओं का प्रकाशन।
2023 में ‘फटी हथेलियाँ’ शीर्षक से पहला कविता संग्रह प्रकाशित।
पहली किताब के लिए 2024 का प्रतिष्ठित वागीश्वरी सम्मान प्राप्त।
शासकीय श्रीमंत महाराज माधवराव सिंधिया महाविद्यालय कोलारस, शिवपुरी, मध्यप्रदेश में अध्यापन कार्य।
कविता संग्रह: फटी हथेलियाँ
संपर्कः nehadora72@gmail.com