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Home कविता

मालिनी गौतम की कविताएँ

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक विशेष आयोजन के तहत

by Anhadkolkata
March 17, 2025
in कविता
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मालिनी गौतम
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित एक  विशेष श्रृंखला के तहत  आज प्रस्तुत है मालिनी गौतम की कविताएँ। मालिनी गौतम कविता की दुनिया में एक पहचाना नाम है। उनकी कविताएँ मानवीय संवेदना एवं संबंधों के साथ समय को भी दर्ज करने में सक्षम हैं।
अनहद कोलकाता पर मालिनी गौतम की कविताएँ प्रस्तुत करते हुए हमें खुशी है। आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही।

– संपादक

चलो आज हम रूठ जाते हैं

चलो आज हम रूठ जाते हैं!
क्या ही होगा रूठ जाने से
गोया कि मनाने वाला भी तो कोई हो
रूठकर भी बनाना होगा खाना
देखने ही पड़ेंगे
घर के कामकाज
चार बार पूछे जाने पर
झक मारकर देने होंगे जवाब
सुना है राजा दशरथ के रनिवास में
हुआ करता था कोपभवन
जहाँ रानियाँ कुपित हो
त्याग देती थीं साज श्रृंगार
और दशरथ दौड़े चले जाते थे उन्हें मनाने के लिए
हमारे यहाँ स्त्री के अलग कमरे की बात ही
किसी को समझ न आती
ये कोपभवन तो क्या ही समझ आएगा
यूँ भी इतना क्रोध नहीं आता
कि कोपभवन की जरूरत पड़े
कोई चार बार पूछ ले बस
नाराज़गी का सबब
स्नेह से थपथपा दे गाल
काँधे पर हाथ के स्नेहिल दबाव से
व्यक्त करे स्नेह का भाव
कुम्हलाया मुँह लिए
बैठ जाए आँचल पकड़ कर पास
घड़ी भर झाँक कर देख ले
आँखों की गहराई में
तो मान जाने के लिए
किसी तोहफ़े की भी दरकार नहीं है
कोई बस मना ले वैसे ही
जैसे फूल को हर रोज़ मनाता है भँवरा
जैसे नई कोंपले
ले आती हैं वृक्ष को अवसाद से बाहर
जैसे एक तस्वीर टाँगने भर से
खिलखिलाने लगती है सूनी दीवार
जैसे रूठे -मुरझाए हुए पौधे
अंजुरी भर पानी से किलकने लगते हैं
मेरा मान और मन भी
बस इतना-सा ही है
गर समझ पाते तुम!

कैरी ऑन

केमेस्ट्री की प्रेक्टिकल लैब में
सावधानी से काम करने के लिए
लड़की ने अपने कंधे पर झूलते बालों की
एक पोनी बना ली
कुछ शरारती लटें
फिर भी झूलती रहीं
आँखों के इर्द-गिर्द
लड़का अपने हाथ में परखनली लिए
ठीक पीछे ही खड़ा था
वह थोड़ा-सा झुककर धीरे से बोला
चोटी में अच्छी लगती हो तुम
लड़की का दिल इतनी ज़ोर से धड़का
कि उसके हाथ की परखनली काँप उठी
और दूसरे हाथ में पकड़ा हुआ
पोटैशियम परमेगनेट का कोनिकल फ्लास्क
हवा में ही ठहर गया
वह पीछे मुड़कर
लड़के को देखना चाहती थी
उसके चेहरे पर छाए असीम प्रेम को
अपनी आँखों में छुपा लेना चाहती थी
पंक्ति में खड़े विद्यार्थियों के मध्य
जल्दी करो,जल्दी करो का कोलाहल उठा
और लड़का फिर धीरे से बोला
कहाँ खो गई?
कैरी ऑन…
हिंदी मीडियम में पढ़ती उस लड़की ने
जानते हुए भी
घर आकर दस बार देखा डिक्शनरी में
कैरी ऑन का अर्थ
बरसों बीते
स्कूल कॉलेज जीवन
सब कैरी ऑन होता चला गया
न जाने क्यों
बस वह एक पल ही
कैरी ऑन नही होता लड़की के लिए
डिक्शनरी के सभी अर्थ कब सही हुए हैं जीवन में!

सहेजना

यहाँ-वहाँ बिखरी चीज़ों को
सहेजती हूँ जब मन उलझता है
पुरानी किताबों के बीच रखे
सूखे फूलों को देखती हूँ बार-बार
फिर एक नया फूल रख देती हूँ
पिछले मौसम की यादों के पास
जब शब्द उलझने लगते हैं
कागज़ों के कोने मोड़ती हूँ
फिर सीधा कर देती हूँ धीरे से
जैसे ख़ुद को सँवार रही हूँ
अधूरी चिट्ठियों को पढ़कर
फिर से अधूरा छोड़ देती हूँ
हर बार नए अर्थ जोड़ने के लिए
जब अंधेरा घना होता है
दीवारों पर उँगलियाँ फिराती हूँ
फिर कोई रंग उठा लेती हूँ
और एक कोना फिर से रंग देती हूँ
रोज़ ऐसे ही
थोड़ा-थोड़ा
खुद को बुनती हूँ
खुद को रचती हूँ

पथ से परे

एक दिन
मैंने कांच की चूड़ियों को उतारकर
दीवार पर टिका दिया
अच्छी लड़की होने की
सिलवटें
हथेलियों से सीधी कर दीं
जो आईने में दिखती थी
उसे वहीं छोड़ आई
कमरे की खिड़की में
जहाँ हवा नहीं आती थी
अब मैं चल रही हूँ
बिना तय किए हुए रास्ते पर
जहाँ धूल है कंकर हैं
लेकिन हर मोड़ पर
एक नया आकाश खुलता है
हवा पूछती है नाम मेरा
मैं हँस देती हूँ-
अब मुझे कोई पहचान नहीं चाहिए
***
मालिनी गौतम समकालीन कविता का उल्लेखनीय नाम हैं। वे लेखन के साथ अध्यापन भी करती हैं। उनका एक कविता संग्रह होने और न होने के बीच प्रकाशित है।
संपर्कः मालिनी गौतम
4/574, मंगल ज्योत सोसाइटी
संतरामपुर-389260
गुजरात
डॉ. मालिनी गौतम का जन्म 20 फरवरी को झाबुआ (म.प्र.) में हुआ। वे 1994 से गुजरात के संतरामपुर स्थित आदिवासी आर्ट्स एवं कॉमर्स महाविद्यालय में अंग्रेजी की एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। अंग्रेजी की प्रोफेसर होते हुए भी वे हिंदी की अनुरागी हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं: बूँद-बूँद अहसास (2013), दर्द का कारवाँ (2014), एक नदी जामुनी-सी (2016), चिल्लर सरीखे दिन (2017), चुप्पी वाले दिन (2022), गुजराती दलित कविता (2022) और चयनित कविताएँ-मालिनी गौतम (2023)। उन्होंने हिन्दी के वरिष्ठ कवि राजेश्वर वशिष्ठ की काव्य कृति ‘सुनो वाल्मिकी’ के गुजराती अनुवाद का संपादन किया है।
भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनका कविता संग्रह ‘चुप्पी वाले दिन’ एवं दिल्ली साहित्य अकादेमी से प्रकाशित उनकी अनुवाद की पुस्तक ‘गुजराती दलित कविता’ खूब चर्चित रही है|
उन्हें ‘परम्परा ऋतुराज सम्मान’, दो बार ‘गुजरात साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘वागीश्वरी पुरस्कार’,’ जनकवि मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान’, पत्रिका समूह राजस्थान का ‘सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार’, सप्तपर्णी पुरस्कार और अमर उजाला “भाषा बंधु” शब्द सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद गुजराती, अंग्रेजी, मराठी, मलयालम, उर्दू, नेपाली, पंजाबी, बांग्ला आदि भाषाओं में हुआ है।
संपर्क : malini.gautam@yahoo.in
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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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