
अनामिका प्रिया की कई कहानियाँ राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कहानियों में संवेदना के साथ कहन की सरलता और सघनता भी है। अनहद कोलकाता उनको शुभकानाएँ अर्पित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से शुरू हुई एक विशेष श्रृंखला के तहत यह कहानी अनहद कोलकाता के पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही।
थॉमस के जाने के बाद
अनामिका प्रिया
उस सपने से एकाएक सिल्विया की नींद उचट गई। तेज धड़कनों को सम्हालते हुए उसने घड़ी पर नजर डाली। तीन बजकर बीस मिनट हुए थे। चेहरे का पसीना पोंछते-पोंछते उसने एक गिलास पानी तेजी से खत्म कर लिया। अगर वाकई थॉमस का ऑक्सीजन लेवल चालीस पर पहुंच गया हो तो… वह तेजी से बाथरूम की तरफ भागी। उसके आंसू थम नहीं रहे थे। देर तक पानी से चेहरा धोती रही। थोड़ा धैर्य रखने की कोशिश के बाद उसने ड्राइवर को फोन लगाया था-‘जल्दी आ जाओ, हॉस्पिटल निकलना है ‘।
लगभग बीस मिनट के बाद ड्राइवर ने कॉल लगाकर बताया कि वह आकर नीचे खड़ा है। सिल्विया ने सोये हुए चार वर्षीय बेटे पर एक नजर डाली और तेजी से निकल आई ।
ड्राइवर ने गाड़ी घुमा ली थी। वह पिछली सीट में बैठ गई । सिर से पांव तक कपड़े का कवर और चेहरे पर डबल मास्क। वह कोरोना पोजेटिव हैं। ड्राइवर भी अपनी सुरक्षा के लिए एहतियात बरत रहा था। उस वक्त ड्राइवर बुलाना सिल्विया की विवशता थी। ड्राइवर को स्पष्ट निर्देश था कि गाड़ी को आवश्यकतानुसार सेनेटाइज करता रहे। गरम पानी पीता रहे और स्टीम भी ले।
ठीक पांच बजे वह अस्पताल के बाहर खड़ी थी। वहां पीली रोशनी में बदहवास परिजन मौजूद थे। सिल्विया सोचने लगी, थॉमस की इम्युनिटी इतनी वीक क्यों है? वह नॉनवेज नहीं खाता है, क्या इसलिए ! क्या वह मन से हार गया है ? वह भाई के मित्र डॉक्टर अश्विन के कमरे के बाहर आ गई थी- ‘थॉमस ठीक है न डॉक्टर ‘?
डॉक्टर ने शांति के साथ पर स्पष्ट कहा था- ‘आपको मन मजबूत कर लेना चाहिए।’ उस समय इस वाक्य का अर्थ सिल्विया नहीं समझ पाई थी। उसने सिर हिलाया और थॉमस के कमरे की ओर बढ़ी थी।
बेड पर पड़ा थॉमस स्थिर सा लगा। थका और कमजोर । सुबह सुबह उसके के आने पर कुछ अचंभित हुआ । सिल्विया बोली -‘सुबह सुबह डरावना सपना देखा कि तुम्हारा ऑक्सीजन लेवल चालीस तक पहुंच गया है’।
सिल्विया की बात सुनकर थॉमस थोड़ी देर के लिए गुम हो गया। उसने कल इच्छा जताई थी कि सिल्विया उसका लैपटॉप लेकर आये। सिल्विया के हाथों में अपना लैपटॉप देखकर वह कुछ उत्साहित दिखा। दस-बारह मिनट तक वह लैपटॉप और फोन में व्यस्त कुछ करता रहा। शायद वह थक गया इसलिए आंख बंद कर लेट गया था। सिल्विया अचरज में पूछने लगी -‘क्या कर रहे थे थॉमस?’ थॉमस से उत्तर मिला ‘फोन और लैपटॉप से पासवर्ड हटा दिया है। सिल्विया ने एक बार फिर पूछा क्यों , किसलिए’?
थॉमस ने बताया कि उसने शेयर में कुछ पैसा लगाया था , लगभग दस लाख… क्लेम के लिए प्रोसेस कर दिया है। वह आगे बोलता गया ‘ एल.आई.सी. में नॉमिनी के रूप में पापा का नाम है। चेंज करके तुम्हारा नाम डालना जरूरी था, पर अभी नहीं कर पाया… क्या किया जाए…जीवन में सब इतना मनचाहा नहीं होता । थॉमस चुप हो गया था ,पर उसकी आंखों से दो बूंद टपक कर कनपट्टी से नीचे बालों तक आ गये ।
वह सबकुछ हतप्रभ सुनती रही । कांपती छाया सी उसकी आवाज़ बेसम्हाल हो रही थी- ‘अभी यह सब क्यों कर रहे हो। घर की फिनिशिंग के काम अधूरे हैं,वो अकेले मुझसे नहीं हो सकता। दो महीने बाद जून में गृह प्रवेश भी करना है। जुलाई महीने में बेटे का चौथा जन्मदिन भी मनाना है, यही चाहते थे ना तुम’।
थॉमस की सांस उखड़ने लगी थी। नर्स ने ऑक्सीजन मास्क लगाया और सिल्विया के बाहर भेज दिया।
दोपहर हो गई थी। वह थॉमस की स्थिति देखे बिना वह घर नहीं लौट सकती थी। उसने नर्स से पूछा तो उसने अंदर आने की इजाजत दे दी। उसके दिमाग ने सोचना बंद कर दिया था। वह चुपचाप देखती रही थी कि थॉमस के नाक और मुंह से ब्लीडिंग हो रही है। तौलिए से नर्स साफ कर रही थी।
वह और थॉमस पिछले हफ्ते से कोरोना पॉजिटिव हैं। कई कोरोना पॉजिटिव के संकटों को देखते हुए वह खुद अचरज में थी कि वह किस तरह अबतक सामान्य है! उसके मुक़ाबले थॉमस परेशान सा था। खाने में बहुत ज्यादा अरुचि और कमजोरी से उसकी स्थिति बुरी होती गई थी। सांस लेने में दिक्कत होने पर भी अस्पताल में एडमिट होने पर वह राजी नहीं था । शायद दोनों का खयाल था कि जो भी अस्पताल जाता है , वह फिर रिकवर कर घर नहीं लौटता । तब सिल्विया ने अपने कोलकाता वाले छोटे भाई को फोन किया। भाई ने भी यही कहा- ‘ बहुत भीड़ होने की वजह से अस्पताल में प्रॉपर केयर नहीं हो पा रहा । अभी घर ही सही जगह है’।
बड़े भाई को भी आशंका थी कि इस फेज में यंग लोग की मौत ज्यादा हो रही,अस्पताल वाले ऑर्गन निकाल ले रहें हैं। सिल्विया ने कई लोगों से यही सुना था कि कोरोना पॉजिटिव होने से डेड बॉडी मिल नहीं रही, तो फिर ऑर्गन निकालने का कोई सबूत भी नहीं बचता।
अनिर्णय की स्थिति से जूझते हुए मिशनरी के छोटे से नर्सिंग होम में ऑक्सीजन की व्यवस्था हो गई। वहां थॉमस को एडमिट किया गया। यहां भीड़ कम होने से लापरवाही की आशंका नहीं थी। उम्मीद की झीनी सी परत अब सिल्विया के सूखे होंठों पर दिखी।
जिस बीमारी के नाम को वह मौत का साया समझ रही थी, वह पिछले एक हफ्ते से उन दोनों पर हावी था। खुद को इस तरह असहाय और अकेला पाना थका रहा था। डॉक्टर ने बुलाया तो उसका ध्यान बंटा। वह बोला- ‘आप समझ रही हो ना, कोई सुधार नहीं दिख रहा। फेफड़ा पूरी तरह से काम करना बंद कर चुका है। समय कम है’।
वह थॉमस की तरफ मुड़ी। उसका खाना खत्म हो चुका था। थॉमस ने मद्धिम आवाज में प्रार्थना करने की इच्छा जताई। दोनों साथ में प्रार्थना करने लगे । प्रार्थना के बाद थॉमस ने क्रॉस का चिन्ह बनाया और कहने लगा-‘ तुम ठीक से रहना और हमारे बाबू का पूरा ख्याल रखना ‘।
सिल्विया ने अचानक देखा , ऑक्सीजन का स्तर अस्सी से साठ, फिर साठ से चालीस हुआ। थॉमस के मुंह से ढेर सारा झाग निकला और अचानक आक्सीजन चालीस से जीरो पर पहुंचकर रुक गया था। नर्स बोली ‘नॉट रेस्पॉन्डिंग’… शरीर ऑक्सीजन की रेंज से बाहर आ गया है। इस अप्रत्याशित आघात से सिल्विया संज्ञा शून्य सी हो गई। सुबह सपने में जो देखा, वह कैसे इस तरह वास्तविकता में घटित हो गया !
सिल्विया के दोनों भाई आ गये थे। शायद डॉक्टर ने उनको खबर की होगी। फिर थॉमस को अस्पताल से डिस्चार्ज कराने की प्रक्रिया शुरू हुई। दोनों भाई कब्रिस्तान जाने की तैयारी में लग गए । बड़े भाई ने थॉमस के ऑफिस और परिवार के लोगों को यह सूचना दे दी। सूचना के साथ संदेश भी था ‘कृपया यहां मातमपुर्सी के लिए न आए, कोरोना की गाईड लाईन का अनुपालन करें ,सुरक्षित रहें।
अगले कई दिन कैसे निकल गए ,यह बताना सिल्विया के लिए बहुत मुश्किल है। दोनों भाइयों ने ताबूत का इंतजाम किया और कई परिजनो की उपस्थिति में थॉमस को मिट्टी दी गई । वह तो यंत्रचालित पुतली की तरह सबके कहे मुताबिक करती रही । बाबू को संभालना या घरेलू कामकाज पूरी तरह सहायिका के भरोसे रहा।
दोनों भाई लौट गये । थॉमस के परिजन भी अपने ठिकाने पर पहुंच गए थे। वह अपने फ्लैट में अकेली रह गई…अपने भीतर के एकांत में डूबी और गुम।
मित्र और सहकर्मी शिवानी सिल्विया से मिलने आई तो उसका हाल देखकर कहा- ‘ तुम खुद समझदार हो। दुख के भंवर में डूबने-उतराने से कोई रास्ता निकलना नहीं है। ऑफिस आओ, कुछ अच्छा लगेगा’।
कैसे समझाती सिल्विया कि उसे अभी कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा। ऑफिस से बार बार फोन आने लगे तो जैसे-तैसे सिल्विया ने मन को कड़ा किया … थॉमस को विदा करने के बाद वह कब तक फ्लैट में सिमट कर दुख मनाती रहेगी।
ऑफिस पहुंची तो उसे सबकी सहानुभूति मिली। दो दिन बाद बॉस ने अपने केविन में बुलाया ‘ जो हुआ वह बहुत शॉकिंग था सिल्विया, लेकिन दुनिया से कदमताल करते हुए चलना पड़ेगा। अभी तो कई झमेले पार करने है तुम्हें। फैमिली पेन्शन और ग्रेच्युटी के लिए थॉमस के ऑफिस जाना होगा। कोई लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी हैं तो उसके क्लेम के लिए भी डेथ सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ेगी। ऑफिस से दो वीक की छुट्टी लो और इस काम में लग जाओ।’
सिल्विया समझ रही थी कि आगे मुश्किलों का लंबा रास्ता है। कई मोर्च पर उसे लड़ना होगा। ऑफिस ने मृत्यु प्रमाण पत्र मांगा था, पेंशन और बीमा के पैसों के लिए। विडंबना थी कि बीमा पॉलिसी में नॉमिनी के रूप में ससुर का अब तक नाम रह था जो अब खुद दिवंगत थे। सास ऑफिस और बीमा के कागजात लेने को तैयार नहीं हुईं । दो टूक कहा उन्होंने -‘बेटा हमारा था,ये चार-पांच साल पहले आई लड़की को क्यों फायदा लेने दें। शायद मन में यह भी बात हो कि क्या पता कुछ समय बाद बहू क्या करे! हो सकता है कि दूसरी शादी कर ही ले। उसे यह सब क्यों मिलना चाहिए?
थॉमस के देहांत के बाद सिल्विया के घर का काम रुक गया। थॉमस के न होने से एक तो आर्थिक संकट रहा और ठेकेदारों की मनमानी चल रही थी सो अलग। जल्दी समझ गई सिल्विया कि पति न हो तो अकेली औरत समाज में तुच्छ और श्रीहीन समझ ली जाती है। ठेकेदार ने भी उसे दंतविहीन समझ लिया है।
जब ऑफिस में मृत्यु प्रमाण पत्र की जुगाड़ में लगी, तो हर जगह कमजोर और बेचारगी का पहचान पत्र गले में टंगा होना उसे बिल्कुल नहीं सुहाया। सबकी निगाहें असहज करती रहीं। वह अजीब से संकोच से गड़ जाती रही। इसी का पति मरा है, यही तो आपस में बात कर रहे होंगे लोग। हंसते – बतियाते हुए छठी इंद्रिय उसे सजग करती कि लोग उसे ध्यान से देख रहे। सबसे मिलते यह भी उसके ध्यान में आता रहा कि मृतक के नाम पर होने वाली प्रार्थना का कार्यक्रम अबतक संपन्न नहीं हुआ है। उसने उदास होकर अपनी सहकर्मी शिवानी से भी चर्चा की कि इन दिनों ईसाई समाज उसे मांगलिक उत्सवों में आमंत्रित नहीं कर रहा। जबकि इसाईयत में इस तरह शुभ- अशुभ जैसे विचार चलन में नहीं है।
थॉमस और सिल्विया ने बड़े प्यार से अपने जिस घर की परिकल्पना की थी, वह अभी आधा-अधूरा था । तो क्या थॉमस के जाने के बाद उसे वैसे ही छोड़ दे सिल्विया ! … यूं अपने दुख में डूबी रहकर, मुश्किल से जोड़े संसाधनों को छितरा दे ! क्या यह एक अलग तरह की त्रासदी नहीं होगी। ‘दुख के भंवर में डूबा रहना भी एक तरह का विलास है.. दुख का विलास ‘! यही तो कहता था थॉमस। यह सिल्विया और अपने बच्चे का जीवन है, जिसे अपने होने या न होने से फर्क नहीं पड़ने देना चाहेगा थॉमस। अपने बच्चे की, अपने सपनों की और अपने घर को संवारना की जवाबदेही अब पूरी तरह सिल्विया की है।
सच है जीवन के बदले परिदृश्य में सबकुछ अप्रत्याशित रूप से बदल गया है ! दो लोगों की सैलरी के हिसाब से जो घर की ई. एम. आई. थी, उसे चुकाने में अब दिक्कत आ रही है । पर उसका जीवन किसी के लिए तमाशा न बने ,यह चुनौती सिल्विया को बार बार ताकत दे रही है। उसने सोच लिया कि घर के बचे काम खत्म कर थॉमस के नाम पर की जाने वाली प्रार्थना नए घर से करेगी। इतने प्यार से बनवाये घर का सुख थॉमस नहीं ले पाया ,पर उसके लिए जो प्रार्थना हो, वह इस नये घर से हो, तो सिल्विया तो कुछ तसल्ली होगी।
घर के लिए संसाधन जुटाने की सिल्विया की भागदौड़ और व्यस्तता देख अड़ोस-पड़ोस और मुहल्ला हैरान रहा कि इस ढीठ औरत को मर्द के न होने का कोई गम नहीं। अब क्या करेगी ये औरत इतना बड़ा घर बनवाकर, इससे मिलती-जुलती कई टिप्पणी वह सुन चुकी थी।
सच था कि उसके सिमटे मन को इतने बड़े घर की जरूरत कहां थी ! पर घर कोई छोटा सामान नहीं था , जिसे वह अपनी लाल साड़ी की तरह किसी आलमारी के अंधेरे कोने का हिस्सा बना देती। न उसे अपने दुख संग किसी बक्से में ठेलकर बंद करने का उपाय उसके पास था। घर इतना मूर्त और दृश्य था कि सबकी ऑखों में पड़ता रहा, घूमता रहा और चुभता रहा। घर के साथ-साथ सिल्विया का घूमना-पहनना सब प्रश्नों के घेरे में रहे। पति न हो तो इतने ऐशोआराम की क्या जरूरत है ! पति को खो चुकी स्त्री मनुष्य के तौर पर कुछ कमतर हो जाती है क्या !
नए मकान में सिल्विया की गृहस्थी ने पग धरा था। गृह प्रवेश की जगह प्रार्थना कार्यक्रम रखा जाना बड़ी उदास करने वाली बात थी। कार्यक्रम में शामिल होकर दुख बांटने पहली बार ससुराल का पूरा कुनबा आया था । घर तरह-तरह के संभाषण से भर गया था ‘बहू राजरानी है … आलीशान घर, ड्राइवर, घरेलू सहायिका… ‘। ‘कितने खून पसीने से बनाया है थॉमस ने…पर सुख भोगेगी सिल्विया’। यहां की सुख सुविधाओं से आहत और हैरान रिश्तेदार सिल्विया को अचरज में डाल रहे थे! क्या किसी को यह ध्यान नहीं कि यह घर पंद्रह साल के लोन पर है और ई. एम.आई की जवाबदेही अकेले सिल्विया पर है।
कितनी नजरों ने नापी गई थी सिल्विया। ‘देखो खाना- पहनना सब कैसा मस्त चल रहा है ‘! ‘दुखी क्या लगेगी , अच्छे से एडजस्ट कर गई है ‘! उनमें से किसी ने सुझाव दिया था ‘थॉमस के बेटे के नाम से घर का म्यूटेशन करा देना चाहिए’। सिल्विया अभी प्रतिप्रश्न की स्थिति में नहीं थी, न मानसिक तौर पर न सामाजिक तौर पर। एक युवा की मौत पर उस दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कार्यक्रम है और सब के सब फायदे-नुकसान की टोह ले रहे।
रिश्ते का एक देवर अपने ऑफिस का अनुभव साझा कर रहा था- ‘पिछले साल मेरे बैंक सहकर्मी का देहांत हुआ था। हम लोग उसके घर मिलने गए। उसकी पत्नी तब ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। फिर बाद में बैंक ज्वाइन की, तब भी कुछ महीने बड़ी डरी-सहमी रही। सबने काम सीखने में मदद की उसकी। साल गुजरा कि देखते देखते पूरी बदल गई। बाल कट गए, ड्रेस नये फैशन के, घूमना -फिरना- शॉपिंग सब शुरू हो गया। …नौकरी आ गई थी ,पैसा आ गया था । .. कहीं कोई रोक-टोक नहीं ‘।
चार-पांच महिला-पुरूषों की सामूहिक सी ठिठोली गूंजी थी।
सिल्विया हतप्रभ थी। यह समाज सहज औरत को स्वीकार कहां कर पाता है! तभी तो वह दोहरा चरित्र ओढ़ लेती है। फिर उसे त्रिया चरित्र घोषित करके दम लेते हो। यह कैसी संवेदना है कि जिंदगी से संगत बैठाती स्त्री को पांत से बाहर बिठाकर सुकून पाते हो। यहां कैसे लोग इकट्ठा हैं जो उसकी आधी-अधूरी जिंदगी पर फिदा हैं, चुस्की ले रहे, उफ्फ ! आज भले स्त्री को पति की चिता पर न लिटाओ ,पर उसे जिंदा देखने में परेशानी है।
सिल्विया की आधी-अधूरी जिन्दगी, उसका मकान ,नौकर , ड्राइवर … सबको कितना आकर्षक लग रहा है। अबतक वह एक बहू, पत्नी और मां रही है। उसका कामकाजी होना भी इन तीनों भूमिकाओं में सहायक भर रहा।
एकाएक रिश्तों की लिपि को पढ़ने के चिन्ह धुल से गए थे। रिश्तों की पहचान के सारे उड़े रंग के साथ हतप्रभ थी। क्या अपनापा भी एक रस्म अदायगी भर है !
प्रार्थना कार्यक्रम से पहले सिल्विया को एक काम जरूरी लगा। उसने सबको गपशप में मशगूल छोड़ चार वर्षीय के बेटे को लिया और कब्रिस्तान चली आई। थॉमस की कब्र पर जाकर उसने बेटे को समझाया कि उसके पिता का असली घर यही है। इसी घर में उन्हें हमेशा रहना है। वे उस नए घर में नहीं आयेंगे। उनके लिए हमें प्रार्थना करने की जरूरत है। आज नये घर में हम उनके लिए प्रार्थना करेंगे।
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परिचय – अनामिका प्रिया
*समकालीन भारतीय साहित्य ,आजकल, कथादेश ,परिकथा, इंद्रप्रस्थ भारती, ककसाड़, पाखी, दोआबा, इरा वेब पत्रिका और डायमंड बुक्स में कहानियां प्रकाशित ।
*कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में शोध और समीक्षा आलेख
*प्रभात खबर और रांची एक्सप्रेस के लिए फीचर, कवर स्टोरी और रिपोर्टिंग
* प्रकाशित पुस्तक- ‘हिन्दी कथा साहित्य और झारखंड’
( पुस्तक रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम में अनुशंसित पुस्तक के रूप में स्वीकृत)
*संप्रति: अध्यक्ष, हिंदी विभाग, रामगढ़ कॉलेज, रामगढ़ कैंट, झारखंड
*संपर्क : अनामिका प्रिया
नीरज कुमार,
गेट नंबर-1
सरला बिरला यूनिवर्सिटी कैंपस ,
महिलौंग, टाटीसिल्वे,
रांची – 835103
झारखंड
मो.- 9546166234
ईमेल-123anamika111priya@gmail.com