• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home आलोचना

महाकवि त्रिलोचन पर कुमार अनिल

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in आलोचना, साहित्य
A A
0
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

Related articles

 मौन जड़ता में कल्याणमयी बनी रहे स्त्री ! – डॉ. शोभा जैन

रूपम मिश्र की कविताओं पर मृत्युंजय पाण्डेय का आलेख

सरलता के आकाश त्रिलोचन
कुमार अनिल
त्रिलोचन को याद करते हुए पता नहीं क्यों मन अपने को गांव से जोड़ते हुए बरहज आश्रम में होने वाली रामकथा के प्रसंग से जोड़ ले रहा है। याद आ जाते हैं स्वाध्यायी शिवमंगल व्यास जो हिन्दी के एक विभागाध्यक्ष के वक्तव्य के बाद संचालक के बुलावे की प्रतीक्षा न करपहले अपना झोला फिर स्वयं  व्यास गद्दी पर आसीन होकर उस हिन्दी विभागाध्यक्ष को उनके इस कथन पर चुनौती दे देते हैं कि हिन्दी के प्रोफेसर साहब सिद्ध करें कि तुलसी के राम ने कहाँ झूठ बोला था-
निज जननी के एक कुमारा, तात तासु तुम प्रान अधारा
विवाद में फँसी तुलसी की यही चौपाई थी, जिसका उल्लेख कर प्रोफेसर साहब ने अपना अर्थ दिया था और राम कथा वाचक शिवमंगल जी उसे कवितावली, राधेश्याम रामायण और तुलसी रामायण से ही विभिन्न उद्धरण देकर एक कुशल योद्धा की भाँतिउन्हें चित्त कर रहे थे, युवा त्रिलोचन की कद-काठी से मेल खाती शिवमंगल व्यास की काया और वाणी की माया अद्भुत थी।
प्रोफेसर साहब और श्रोता अवाक् होकर शिवमंगल व्यास की व्याख्या सुनते रहे, आज मेरा मन स्वाध्यायी शिव मंगल व्यास और त्रिलोचन में साम्य बैठा रहा है। कम किताब पढे आधी शरीर मे लाल लंगोट धारण करने वाले शिवमंगल बहुत बड़े शास्त्र ज्ञाता नही थे, पर लोक निसृ:त ज्ञान के भण्डार थे, और तुलसी के प्रति निष्ठा ‘राम से अधिक राम के दासा‘ सूत्र से अनुप्राणित थी। तुलसी के प्रति यह निष्ठा त्रिलोचन मे भी लोकप्रवाह से आई होगी ऐसा निष्कर्ष मेरे जैसा सामान्य पाठक निकाल सकता है। कौन है जिसने तुलसी से कुछ ग्रहण न किया हो? और ज्यादा माडर्न दिखने की ललक में तुलसी को ब्राह्मणवादी, रूढ़िवादी, सामंतवादी, मनुवादी न कहा हो? पर कितने हैं जिन्होंने इस संस्कार से कहा है कि-
        तुलसी बाबा, भाषा मैने तुमसे सीखी
        मेरी सजग चेतना में तुम रमे हुए हो…….
यह सजग चेतना त्रिलोचन को कहाँ से मिलती रही उन्होंने तो इशारा कर दिया और सजग चेतना से शब्द की आराधना करते रहे । याद आ जाता मकान बनाता हुआ राजगीर । त्रिलोचन को बना बनाया ईंट का साँचा नहीं मिला जिस पर ईमारतें खड़ी करते रहे, क्योंकि त्रिलोचन कह चुके हैं कि ‘मेरी सहज चेतना में तुम रमे हुए हो‘ और ऐसे विश्वविजयी कवि की चेतना से अनुप्राणित व्यक्ति शब्द की महत्ता पर सजग रहेगा ही और कहेगा कि-
महल खड़ा करने की इच्छा है शब्दो का
जिसमें सब रह सकें रम सकें लेकिन सांचा
ईंट बनाने का मिला नही है, शब्दो का
समय लग गया, केवल कामचलाऊढाँचा
किसी तरह तैयार किया है। सबकी बोली-
हाली, लाग-लपेट, टेक, भाषा, मुहावरा,
भाव,आचरण इंगित, विशेषता,फिर भोली-
भूली इच्छाएं, इतिहास विश्व का, बिखरा
हुआ रूप-सौन्दर्य भूमिका, स्वर की धारा
विविध तरंग-भंग भरती लहराती गाती
चिल्लाती,इठलाती, फिर मनुष्य आवारा
गृही असभ्य, सभ्य, शहराती या देहाता,
सबके लिए निमंत्रण है अपना जन जानें
और पधारें इसको अपना ही घर मानें
‘अपना जन जाने‘ कहने वाले त्रिलोचन को कौन होगा जो अपना मन नहीं सौंप देगा,याद आ जाते हैं रेणु जी, पूछते हैं- “…..त्रिलोचन को देखते ही हर बार मेरे मन के ब्लैक बोर्ड पर, एक ‘अगणितक‘, असाहित्यिक और अवैज्ञानिक प्रश्न अपने आप लिख जाता है- ‘वह कौन सी चीज है जिसे त्रिलोचन में जोड़ देने पर वह शमशेर हो जाता है और घटा देने पर नागार्जुन…..?”बेहद अहम प्रश्न उठाया है रेणु जी ने, पता नहीं हिन्दी के आलोचक इस प्रश्न से कितना उलझ सके है । याद आ रहे है विष्णुचन्द्र शर्मा ‘काल से होड़ लेता शमशेर‘ में अज्ञेय, शमशेर, केदार, रामविलास से खींचतान करते हुएशमशेर के प्रसंग में कहते हैं कि‘निराला उनके लिए परंपरा की विभूति हैं और त्रिलोचन सरलता का आकाश । नरोत्तम दास के निकट के कवि मानने वालों को विष्णुचन्द्र शर्मा का जबाब यह होता है कि कहन की खूबी, नरेशन वाली बात जो नरोत्तम दास में है वह त्रिलोचन में भी है। त्रिलोचन में सपाटबयानी भी देखी गई। मेरी अत्यंत छोटी बुद्धि इस तरफ जा रही है कि कहीं यह सपाटबयानी ही त्रिलोचन को शमशेर से बिलगा तो नही  रही है !त्रिलोचन का अपेक्षाकृत शांत सरल स्वर, राजनीति से ज्यादा आंख-मिचौली न करने की वृत्ति, प्राकृतिक उपादानों और लोकचेतना की सहज चेतना अपने अंतर्मन मे पाले हुए, शब्दो की मितव्ययिता का भाव उन्हें नागार्जुन से बिलगा देता है! कविता का मिजाज, कहने का अंदाज भले ही त्रिलोचन व शमशेर को बिलगा रहा हो पर मन का तार तो दोनों को बाँधे हुए था, तभी तो ‘सारनाथ की एक शाम‘ कविता मे शमशेर अपने त्रिलोचन को इस तरह से याद करते है-
तूने शताब्दियों
सॉनेट में मुक्त छंद खन कर
संस्कृत वृत्तो में उन्हे बाँधा सहज ही लगभग
जैसे ‘य‘ आकाश बँधे हुए हैं अपने
सरगम के अट्टहास में
ओ शक्ति से साधक अर्थ के साधक
तू धरती को दोनो ओर से
थामे हुए और
आँखे मींचे हुए ऐसे ही सूँघ रहा है उसे
जाने कब से!
तुझे केवल मैं जानता हूँ
धरती को दोनो ओर से थामकर,आँख मींचकर सूँघने वाले इस कवि को वैसा ही कवि जानने का दावा कर रहा है जो हर रोज जमाने की चोट को अपने सीने पर लेने का, जज्ब़ करने का हुनर जानता है।न बिस्तरा है न चारपाई है/ जिंदगी खूब हमने पाई है कहने वाला कवि दुनियावी तिकड़म से निपटने का जो अलहदा तरीका निकालता है उसे जानकर आप भी हैरान हो सकते हैं, “डी.टी.सी. वाले बहुत चालाक समझते हैं अपने आपको। किराया बढ़ाकर २५ पैसे कर दिया है। मैं भी वह तिकड़म करता हूँ कि 15 पैसे में ही पहुँच जाता हूँ। आजादपुर से आपके घर आता हूँ और यहाँ से बस का किराया15 पैसा ही है” भावपूर्ण ढंग से त्रिलोचन को याद कर उन्हें सचल विश्वविद्यालय कहने वाले विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं कि ‘वे जीवन भर ऐसी तिकड़म सफलतापूर्वक करके मुस्कराते और उल्लास से थिरकते रहे‘।
        
 काशी में त्रिलोचन के साथ गंगा पार करने वाले नामवर सिंह यह कहते हैं कि साहित्य की गंगा भी हम लोंगो ने साथ ही पार की। लेकिन त्रिलोचन ‘ताप के ताये‘ हुए थे, इसलिए कभी रेल की पटरी के समानान्तर पैदल चलते हुए मिलते है, तो कभी अपने गाँव के किसानों से बतियाते हुए, त्रिलोचन को याद करते हुए अक्सर याद आ जाते है बड़का बाबा जो जाड़े की गुनगुनी धूप मे पुआल की टाल के नीचे बैठ श्रीमद्भागवत को पढ़ते रहते थे।कलकत्ता को करीब से जानने वाले कवि त्रिलोचन कभी भी अपने जनपद से नही कटे। नदी, घाट, गौरैया, अमोला को याद करने वाले त्रिलोचन यह चाहते थे कि- दादुर, मोर, पपीहें बोले/धरती ने सोधे स्वर खोले/मौन समीर तरंगित हो ले/ यह दिन फिर आए।
       
 यह दिन फिर आए कि घर से आटा पिसाने टीन का कनस्तर लिए निकला व्यक्ति कवि सम्मेलन पहुँच जाए, यह दिन फिर आए कि गँवई मनई सा दिखने वाला कोई व्यक्ति देश के किसी भी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से पैदा होने वालेहिन्दी-उर्दू के पाठक/रचनाकारों की तुलना में अधिक रचनाकार व पाठक पैदा करें। यह दिन फिर आवें कि कोई ‘तुलसी को अपनी सजग चेतना में रमाकर‘ यह कहे कि- गालिब गैर नही हैं,अपनों से अपने हैं/ गालिब की बोली ही आज हमारी बोली/नवीन आंखों में जो नवीन सपने हैं/ वे गालिब के सपने हैं, गालिब ने खोली……।संभवत: ज्ञानेन्द्रपति जी ने कहीं लिखा है कि ‘शब्द लिखने के लिए ही यह कागज बना है‘ यह सही भी है पर अंतर की अनुभूति को बिना रंगे चुने शब्द की साधना करने वाले त्रिलोचन जैसे लोग ही सहज संप्रेष्य शैली में उतार सकते हैं-
शब्द
मालूम है
व्यर्थ नही जाते हैं
पहले मैं सोचता था
उत्तर यदि नही मिले
तो फिर क्या लिखा जाए
किन्तु मेरे अन्तर निवासी ने मुझसे कहा-
लिखा कर
तेरा आत्मविश्लेषण क्या जाने कभी तुझे
एक साथ सत्य शिव सुन्दर को दिखा जाए
अब मैं लिखा करता हूँ
अपने अंतर की अनुभूति बिना रंगे चुने
कागज पर बस उतार देता हूँ
       ००००००००००००००००००००००
कुमार अनिल
संक्षिप्त परिचय –
० सर्वप्रथम विष्णुचन्द्र शर्मा जी ने कुछ कविताएँ सर्वनाम में छापी,तत्पश्चातअक्षरा, आजकल, वागर्थ, साहित्यअमृत, पाठ,राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, दैनिक जागरण, दुनिया इन दिनों, जैसी पत्र-पत्रिकाओं मेंआलेख एवं कविताएं प्रकाशित
० साहित्यिक पत्रिका सरयू -धारा का करीब १० वर्षो तक सहयोगी संपादक
० आकाशवाणी गोरखपुर से दर्जनों वार्ताएँ प्रसारित
० सम्प्रति उ०प्र० राजस्व विभाग में अधिकारी
संपर्कः
64जी, खरैयापोखरा, बशारतपुर
गोरखपुर, पिन-273004
ईमेल-, aktripathiup@gmail.com
मोबाइल नंबर 9452212058

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

 मौन जड़ता में कल्याणमयी बनी रहे स्त्री !  – डॉ. शोभा जैन

 मौन जड़ता में कल्याणमयी बनी रहे स्त्री ! – डॉ. शोभा जैन

by Anhadkolkata
April 1, 2025
0

डॉ. शोभा जैन डॉ. शोभा जैन इंदौर में रहती हैं एवं अग्निधर्मा पत्रिका का संपादन करती हैं। स्त्री विमर्श से जुड़े मद्दे पर लिखा हुआ यह...

रूपम मिश्र की कविताओं पर मृत्युंजय पाण्डेय का आलेख

रूपम मिश्र की कविताओं पर मृत्युंजय पाण्डेय का आलेख

by Anhadkolkata
January 27, 2023
0

युवा कवि रूपम मिश्र को 7 जनवरी 2023 को  द्वितीय मनीषा त्रिपाठी स्मृति अनहद कोलकाता सम्मान प्रदान किया गया है। कवि को बहुत बधाई। ध्यातव्य कि...

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

अर्चना लार्क की कविताएँ यत्र-तत्र देखता आया हूँ और उनके अंदर कवित्व की संभावनाओं को भी महसूस किया है लेकिन इधर की उनकी कुछ कविताओं को पढ़कर लगा...

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

नेहा नरूका समकालीन हिन्दी कविता को लेकर मेरे मन में कभी निराशा का भाव नहीं आय़ा। यह इसलिए है कि तमाम जुमलेबाज और पहेलीबाज कविताओं के...

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

by Anhadkolkata
July 9, 2022
32

                           आधा डूबा आधा उठा हुआ विश्वविद्यालय भरत प्रसाद ‘चुनाव’ शब्द तानाशाही और अन्याय की दुर्गंध देता है। जबकि मजा यह कि इंसानों...

Next Post

सुशांत सुप्रिय की नई कविताएँ

संदीप प्रसाद की कविताएँ

हंस कथा सम्मान से सम्मानित जयश्री रॉय की कहानी - माँ का कमरा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.