• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

विमल चंद्र पांडेय की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
9
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

Related articles

जयमाला की कविताएँ

शालू शुक्ला की कविताएँ

विमल चंद्र पांडेय कथाकार के रूप में खासे चर्चित रहे हैं। मेरी जानकारी के मुताबिक 2004-5 में उनकी कहानी डरआई थी जिसने हिन्दी जगत को अपने कहन और तकनीक के कारण चौंकाया था। बाद में भारतीय ज्ञानपीठ से उनका कहानी संग्रह डर नाम से ही प्रकाशित होकर आया। विमल हालांकि कविता लेखन में शुरू दौर से ही सक्रिय रहे हैं लेकिन उनकी पहचान कुछ दिन पहले तक एक कथाकार के रूप में ही थी।  फिलवक्त आलम यह है कि विमल अपनी अच्छी कविताओं की मार्फत पाठकों के मन में तेजी से जगह बनाते जा रहे हैं। कारण यह कि इधर विमल की बहुत ही अच्छी कविताएं लागातार पढ़ने में आई हैं।

विमल की कविताओं में सादगी और गुस्सा दोनों साथ-साथ आते हैं। उनकी चिंता में वह सब बातें शामिल हैं जिनकी बदौलत एक आम आदमी इस दुनिया में अपनी पूरी इमानदारी और सच्चाई के साथ रह-जी सके। विमल अपनी कहानियों की तरह कविता में भी मारंतक रूप से सहज हैं और यह सहजता उनकी कविता से पाठक के सीधे संवाद के द्वार खोलती है। पाठक इनकी कविता में अनायास शामिल होकर एक यात्रा पर निकल पड़ता है कुछ-कुछ संमोहन की-सी अवस्था में। यही विमल की कविता की ताकत है। कहना चाहिए कि विमल के यहां व्योरे हैं लेकिन कविता बची रहती है। इसलिए अब उन रचाकारों में विमल भी शुमार हैं जो एक साथ कथा और काव्य दोनों विधाओं में लागातर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज किए हुए हैं। आशा है हम बहुत जल्द विमल की कविता की किताब भी पढ़ पाएंगे।

अनहद पर आइए पढ़ते हैं विमल चंद्र पाण्डेय की कविताएं..। आपकी बेबाक प्रतिक्रियाओं का तो इंतजार रहेगा ही…..।  
आपकी खाली जगह आपकी नहीं
उसमें हो सकती है थोड़ी हवा
थोड़ा सी चादर
कोई गैरज़रूरी किताब
आपका थोड़ा सा दुख
या फिर कोई दूसरा चेहरा
मगर जिस जगह आप बैठा करते थे उन दिनों
वह जगह आपकी नहीं आपकी गैरहाजि़री में
समय की नंगी डाल पर जब उसी कमरे में पार्टियां लटक रही थीं
आपका वजूद फिसल गया था उस पल वहां से
फोन पर भले ही आपको कहा गया हो
–पार्टियों में तुम्हारी बहुत कमी खली
आप समझ लें यह आपकी खुशी के लिये कही गयी एक झूठी बात थी
आपकी खाली जगह में आपकी कमी कहीं थी
नहीं होती
आपकी सबसे बड़ी समस्याओं में हमेशा रहा
–क्या होगा मेरे जाने के बाद
लेकिन जाने के बाद आपकी खाली जगहें आहिस्ता-आहिस्ता भरती गयीं
किसी इंसानी चेहरे या कि किसी कुर्सी मेज़ तक से
देश में– दुनिया में क्या आपके मोहल्ले और यहां तक कि आपके घर में
चीज़ें बदलेंगी क्षणिक रूप से
फिर एक छोटे से समयांतराल में
डरावने ढंग से सब कुछ वैसा ही हो जायेगा
दीवारें निगल लेती हैं अनुपस्थितियां चुपचाप
न बदलेगा घर में चाय पिये जाने का वक्त
न पानी की टंकी भरने की चिंता
टीवी के रिमोट के लिये होने वाली मारामारी में भी कोई नहीं फर्क पड़ेगा
आपका जि़क्र आते ही एक मनहूस सन्नाटा छा जायेगा माहौल में
जिसे तोड़ेगा कोर्इ हंसता हुआ
आपकी एक पुरानी मज़ाकिया बात याद दिलायेगा
इतना ही बचेगा आपका वजूद
आपके जाने के उपरांत
इतनी ही बचती हैं यादें विदाई के बाद
कि जीना मुहाल न करें
मुहल्ले में उसी तरह आयेगा पोस्टमैन अपनी तेज़ आवाज़ में हांक लगाता
आपके नामों की चिट्ठियों को लेकर कुछ देर का मौन पसरा रहेगा आसपास के घरों में
आपके जाने के काफी दिनों बाद तक नहीं रुकेंगी आपकी पत्रिकाएं
बच्चे उसी तरह आपके घर के सामने सीखेंगे साइकिल चलाना
सब्ज़ियों के ठेले और फेरी लगाकर चादर बेचने वालों की हांक वैसी ही रहेगी
आपके पुराने मित्र सबसे ज्यादा याद करेंगे आपको
शुरू में आपके लिये एक जगह और शायद एक गिलास भी रखी जायेगी
धीरे-धीरे आप यादों के एल्बम में एक तस्वीर बन जाएंगे
आपका अंजाम देखने के बाद भी सब व्यस्त रहेंगे अपनी दुनिया में
वही पुरानी दुनिया की सबसे आश्वस्तिकारक बात सोचते हुये
उनके न रहने पर बहुत असंतुलन हो जायेगा दुनिया में
इसके सुंदर होने का राज़ यही है
झूठी आश्वस्तियों पर भरोसा करते हैं हम
ऐसे ही खूबसूरत बनी रहेगी ये दुनिया
आने-जाने की आवृत्तियों के बीच
उम्मीदें बची रहेंगीं।
आपके सपने आपका सबसे बड़ा अपराध थे

आपको अगर अपने बचपन की चीज़ें अच्छे से याद हो
तो आप ज़रूर मानेंगी कि आपकी सारी जि़दें पूरी की गयीं
आपको एक खांचा दिया गया था
जिसमें रहते हुये आपको सबका ढेर-ढेर सारा प्यार पाना था
आपके लिये पूरा एक संसार आबाद था
मां का दुलार भरा आलिंगन और पिता की आंखों का गर्व
भाई का मखमली स्नेह और सहेलियों की हंसियों का नूर
इन सबके अलावा
शादी के बाद पिता की पसंद के एक राजकुमार की रेशमी बांहें
बस आपको इतना करना था कि उस खांचे से बाहर नहीं निकलना था
आपको डाक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखना चाहिये था
ज़्यादा से ज़्यादा आईएएस आफिसर
आपने जो सपने देखे
उनकी रोशनी उन खांचों से बाहर जाती थी
वह रोशनी आपके पिताओं की आंखों को चुंधिया जाती थीं
इंसानों की तरह सपने भी मासूम थे और उनकी भी जाति होती थी
आपके सपनों की जाति आपके पिता के सपनों की जाति से बड़ी नहीं होनी चाहिये थी
आपका घर छोड़ना डोली में होना चाहिये था
आप इस बात का श्रेय दें उन्हें
उनकी सीखों ने ही आपके भीतर की चिंगारी को फूंक मारी
लेकिन कमाल की बात थी कि उस नींव पर कोई सपनीली इमारत बनाने की कल्पना
आपकी जि़ंदगी की सबसे बड़ी भूल थी
आपको अपना गर्व मानने वाले पिता नहीं समझेंगे आपके सपनों की कीमत
उसकी भूख और आपकी आंखों की चमक
उन्हें आपसे प्यार है पर आप पर भरोसा करने का ज़ोखिम वे नहीं उठाएंगे
आप एक बड़े शहर में
अपने सपनों का पीछा कर रही होंगी
आपके पिता अपने छोटे-से घर में
आपको न याद करने की कोशिश कर रहे होंगे
आप जिस वक़्त बसों और ट्रेनों में
ढेरों लिजलिजे कामुक स्पर्शों के बीच
जबड़े भींचे अपने ईश्वर से पूछ रही होंगी अपने सपनों का मूल्य
आपके पिता खाने की टेबल पर मां से कह रहे होंगे – मेरे सामने उसका नाम लेने की ज़रूरत नहीं
आप जिस वक़्त अपनी मां से फ़ोन पर यह कहना चाहती हैं
-तुम्हारे बिना लड़ाइयां लड़ना बहुत कठिन है मां
वे मां के पीछे खड़े आपके हार मान कर लौट आने की दुआ कर रहे होते हैं
उन्हें नहीं पता कि आपके सपनों में अनगिनत सपनों के बीज हैं
उन्हें नहीं पता कि आप अपना घर छोड़कर सिर्फ़ अपने लिये नहीं निकली हैं
आपको भी नहीं पता कि आप जिस दिन सफलता की एक छोटी सी हंसी हंसती हैं
बहुत सारे छोटे शहरों में अचानक कितने ही सहमे चेहरों पर मुस्कान आ जाती है
आपको अपने पिता को कुछ समय भूले रहने की ज़रूरत है
जो आपको दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं
जो आपके सबसे बड़े दुश्मन हैं
हम जो एकांत में होते हैं, वही हैं

रात के दो बजे अचानक चाय की तलाश में टहलने निकले
सड़कें, गलियां, रात, सब सुनसान
हमेशा भीड़ भरे उस संगमरमरी फर्श को सुनसान पाकर थूका था तुमने
उस हीरोइन के पोस्टर में जाकर तुमने दबाये थे उसके स्तन
और नोच कर फेंक दिये थे नेताओं के हाथ जोड़ते विज्ञापन
जब हमें कोई नहीं देख रहा होता है
हमारा असली किरदार बाहर आकर चिल्लाता है गहरी उत्तेजना से
किसी के बारे में हमारे असली विचार वही हैं
जो हम उसकी पीठ पीछे बिखेरते हैं और उड़ा देते हैं धज्जियां
मैं तुम्हें औरतों की इज़्ज़त करने वाला समझता था दोस्त !
जब तक शराब पीकर टेरेस पर उस दिन तुमने नहीं दी थीं
दुनिया की सारी औरतों को गंदी गालियां
मैं कोई स्त्रीवादी नहीं हूं लेकिन मेरी मां एक औरत है
इसलिये तुम्हें वहां से धकेल देने से बचने के लिये ज़रूरी था एक तमाचा
बड़े हादसे टालने के लिये कर्इ बार ज़रूरी होती है त्वरित प्रतिक्रिया
सिगरेट में कहां छिपी होती है मौत
शराब में कहां घुली होती हैं गालियां
हथेलियों को जोड़ने में कैसे घुसता है उनके बीच आदरभाव
कैसे निकालेंगे एक दूसरे में घुली-मिली छिपी चीज़ें
तुम्हारी हंसी की यादों में किधर छिपी है मेरी असाध्य बीमारी
मेरे जीवन के रिसते जाने का राज़
अकेलेपन को लेकर ही सबसे ज़्यादा सवाल रहे हैं मन में
फिल्मी कलाकार क्या सोचते होंगे एकांत में
क्या वे भी याद करते होंगे अपने बचपन के दोस्त का उधार
उसे चुकाने के बारे में
क्या सोचते होंगे प्रधानमंत्री अगर अकेले हुये कभी
उन्हें अपने खाली बिना दबाव के पुराने दिन बुलाते होंगे क्या
क्या सोचा होगा अपने आखिरी एकांत में भगत सिंह ने
हत्था खींचे जाने के ठीक पहले
उन्हें अंदाज़ा होगा कि उनके जाने के बाद कागजों पर ही होंगी ज़्यादातर क्रांतियां
क्या सोचा होगा गांधी ने गोली खाने के बाद
सिर्फ़ नोट पर रह जाने जैसी भयानक बात का उन्हें अंदाज़ा होगा क्या
सलीब पर ठोके जाने के बाद र्इशु
क्या सोच रहे होंगे अपने भीतर के एकांत में
अपने हत्यारों के लिये किस मन से की होगी उन्होंने माफ किये जाने की प्रार्थना
रात में कितने अपने लगते हैं खाली पार्क
दिन में ट्रैफिक जाम से जूझती सड़कें, सन्नाटे में अश्लील-सी
अपने होने का अर्थ पूछती
तुम्हें पेशाब लगी और सामने नाली होने के बावजूद
हंसते हुये चले गये तुम दस कदम आगे रसूल मियां के घर के दरवाज़े पर
हम जो एकांत में होते हैं
वहीं हैं दरअसल पूरी तरह
अच्छे, बुरे, गलत, सही
लेकिन वही, बिल्कुल वही
रोने ने बचाये रखा है अब तक

आप इस बात से सहमत हों या न हों
समझ लीजिये
हमारी आधी से अधिक समस्याओं के विकराल होते जाने का कारण यही है
हमने छोड़ दिया है रोना
रोने को लेकर जो फलसफ़े बने हैं
उन्हें कृपया यहां प्रयोग मत करें
वे उतनी ही सच्ची हैं
जितनी हमारे यहां महिलाओं, जातियों और पाप-पुण्य को लेकर बनी कहावतें
नहीं रोकर हम बन गये मज़बूत
जीत लिये किले
कहलाये मर्द
और शराब पीकर महफि़लों में की क्रूर बातें
इस तरह हमने साबित किया कि हमारे भीतर महिलाओं वाली कमज़ोरियां नहीं हैं
अपन कभी नहीं रोते वाले भाव से
हम अशिष्ट घटनाओं, निकृष्ट चुटकुलों और वीभत्स दुर्घटनाओं पर हंसे
और इस तरह से नष्ट कर दी अपने शरीर की रोने वाली कोमलतम ग्रंथि
जो हमारी लाख कु-कोशिशों के बावजूद हमें इंसान बनाये रखती थी
तुम जितनी बातें मुझे सिखा कर गयी थी 
ज़्यादातर चीज़ें फिर उसी दौड़ में खो गयी हैं
और मैं भूलता जा रहा हूं 
आत्मा की पवित्रता के साथ रोना
जबकि जानता हूं कि इंसान नाम की इस प्रजाति को
रोने ने ही बचाये रखा है अब तक
तुम तो जानती ही हो गुड़िया !
आत्मा और पवित्रता कितनी आउटडेटेड चीज़े हैं
आजकल इनके बिहाफ पर एक बार का मोबाइल रिचार्ज भी नहीं हो पाता
अब बुद्धिजीवियों की तरह यह मत पूछना
कि आखिर मोबाइल रिचार्ज कराने की ज़रूरत क्या है
तुम साथ रहती गर, ज़रूरत तो रोटी की भी नहीं होती
अब देखो न गुड़िया !
आखिरी दिनों के इंतज़ार में बैठा हूं तो उम्र लम्बी मालूम पड़ती है
तुम्हारे साथ जब तितली के पंखों की गति से फड़फड़ाता था समय
मैं नहीं जानता था कि इतने महीने साल हैं मेरे पास
नहीं पता था दुनिया के इतने जंजाल हैं मेरे पास
रोने की सुविधा देने के बदले में मांगे गये हैं हमसे सिर्फ़ कुछ आंसू
एक जीवित हृदय
और दो पारदर्शी पानीदार आंखें
हालांकि रोते हुये आंखों से आंसू और होठों से कराह निकलना कोर्इ शर्त नहीं है
कविता में रो पाने का वरदान बहुत कम कवियों को मिला है
क्या पता डायनासोर भी जब न लड़ पाते जलवायु से
तो किसी के कंधे पर सिर रख थोड़ी देर रो लेने के बाद
बढ़ा लेते अपनी ताकत, विपरीत से लड़ने की क्षमता
क्या पता वे बचे होते अब तक गर उन्हें रो सकने का वरदान मिला होता
हम भूलते गये रोना
किसी भावुक फिल्म को देखते हुये
किसी की भीगी कहानियां सुनते हुये
घोंसले से गिरे एक चिडि़या के बच्चे को उठाते हुये
हरे पेड़ को सूखता देखते रहे
करते रहे अपने अगले प्रमोशन की बातें
यह भूलकर कि हम पेड़ की जगह हैं
और पेड़ हमारी जगह
जो हमसे ज़्यादा दुखी हैं हम पर
Vimal C.Pandey
Writer, journalist and translator
Mumbai
Ph- +919820813904, +919451887246

A portal dedicated to cinema….

http://www.addiction2cinema.com/

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

जयमाला की कविताएँ

जयमाला की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 9, 2025
0

जयमाला जयमाला की कविताएं स्तरीय पत्र - पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। प्रस्तुत कविताओं में स्त्री मन के अन्तर्द्वन्द्व के साथ - साथ गहरी...

शालू शुक्ला की कविताएँ

शालू शुक्ला की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 8, 2025
0

शालू शुक्ला कई बार कविताएँ जब स्वतःस्फूर्त होती हैं तो वे संवेदना में गहरे डूब जाती हैं - हिन्दी कविता या पूरी दुनिया की कविता जहाँ...

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 6, 2025
0

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

ममता जयंत की कविताएँ

ममता जयंत की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 3, 2025
0

ममता जयंत ममता जयंत की कविताओं में सहज जीवन के चित्र हैं जो आकर्षित करते हैं और एक बेहद संभावनाशील कवि के रूप में उन्हें सामने...

चित्रा पंवार की कविताएँ

चित्रा पंवार की कविताएँ

by Anhadkolkata
March 31, 2025
0

चित्रा पंवार चित्रा पंवार  संभावनाशील कवि हैं और इनकी कविताओं से यह आशा बंधती है कि हिन्दी कविता के भविष्य में एक सशक्त स्त्री कलम की...

Next Post

शैलजा पाठक की कविताएं

केशव तिवारी की कविताएं

प्रदीप सैनी की प्रेम कविताएं

Comments 9

  1. shesnath pandey says:
    13 years ago

    आपकी खाली जगह आपकी नहीं

    Reply
  2. manoj chhabra says:
    13 years ago

    '…कविता में रो पाने का वरदान बहुत कम कवियों को मिला है…' sahi hai…

    Reply
  3. Unknown says:
    13 years ago

    हम जो एकांत में होते हैं
    वहीं हैं दरअसल पूरी तरह
    अच्छे, बुरे, गलत, सही
    लेकिन वही, बिल्कुल वही
    …. विमल का कविमन इन दिनों बहुत अच्‍छी कविताएं रच रहा है, इन्‍हें पढ़ते हुए बेहद आत्‍मीय संतुष्टि होती है। बधाई और शुभकामनाएं विमल… और शुक्रिया विमलेश।

    Reply
  4. RJ DILEEP SINGH says:
    13 years ago

    बहुत खूब…….
    जितनी खूबसूरत कहानियां उतनी ही बेबाक अंदाज़ में लिखी गईं हैं कवितायेँ भी………..

    Reply
  5. Unknown says:
    13 years ago

    बहुत खूब! वेदना, अस्वस्थता का असली दर्शन!

    Reply
  6. हारिल says:
    13 years ago

    kya kahne guru ji bahut shandar….hamesha ki tarah satik ….

    Reply
  7. रामजी तिवारी says:
    13 years ago

    विमल भाई ..साहित्य में आप जीवन के इतने करीब होते हैं , की सहसा विश्वास नहीं होता , की हम कोई कविता , कहानी या संस्मरण पढ़ रहे हैं ..| ऐसा लगता है हम ये सब जी रहे हैं …| अब इस दौर में जहाँ जीवन और साहित्य में फर्जीवाड़े की धूम मची हो , यह विस्मयकारी लगता है ….बधाई मित्र ..इन कविताओं के लिए …

    Reply
  8. atul pandey says:
    9 years ago

    Mast Bhaiya

    Reply
  9. atul pandey says:
    9 years ago

    Mast Bhaiya

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.