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अनहद
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Home कविता

विजय सिंह की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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विजय सिंह

विजय सिंह की कुछ कविताएं हम अनहद पर पहले भी पढ़ चुके हैं। उनकी कविता में आपको नवान्न की महक मिलेगी। सबसे खास बात यह कि विजय में नया कुछ करने-कहने की छटपटाहट को आप साफ-साफ महसूस कर सकते हैं। यह छटपटाहट ही कवि के लिए एक नए जगत तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करेगी, ऐसा विश्वास है। यहां प्रस्तुत इस युवतर कवि की कविताएं पढ़कर उसके भविष्य के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है।
आपकी बेबाक प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।


तुम्हारी याद में
तुम्हारी याद में
आसमान
अब भी जग रहा है
जग रहे हैं
आसमान के साथ पेड़
पेड़ की पतियाँ हरेपन के साथ
और चीटियाँ तुम्हारी यादों की
गठरी लिये
ढूंढ़ रही हैं अपना वाल्मीक
पता नही क्यों
उनके लिये सबसे महत्वपूर्ण हो गया है
तुम्हारी याद को बचाए रखना
किसी कहानी की तरह
जैसे समंदर का पानी बचाकर रखता है
नमक को
और बचा रह जाता है दुनिया में
स्वाद का हिस्सा
वैसे ही चीटियाँ बचाएंगी
तुम्हारी कहानी
ज़र्द पड़ी उम्मीदों के खिलाफ !
भागती हुई लडकियां
भागती हुई लडकियां
नदी की तरह नहीं होती
वह होती है
एक पुराने पड़ गए साल की तरह
जो दीवार  से उतरकर दिमाग में
टंग जाता है
एक किस्से की तरह
और लडकियां
क़स्बे के बेस्वाद खाने में
चटनी की तरह
सच कहता हूँ
भागती हुई लडकियां
नदी की तरह नहीं होती
न ही रेलगाड़ी की तरह
न सूरज-चाँद की तरह
अगर कुछ होना जरूरी ही हो
तो हो सकती हैं
भागती हुई लडकियां
नदी के इक रास्ते की तरह
रेलगाड़ी की पटरी की तरह
आजादी के लिये देखे गए
पहले स्वप्न की तरह
भागती हुई लडकियां
अब भी भाग रही हैं
और
नए साल में भी भागेंगी
खूब भागेंगी
कहीं वह पानी की तरह
किसी को भिगोते हुए भागेंगी
तो कहीं हवा की तरह
लेकिन यह तय है
लडकियां जब भी भागेंगी
धरती की एक नयी आजादी के लिये
भागेंगी !!!!
बल्कि इसलिए
जब सच
समंदर के पानी-सा ठहर जाए
तब सबसे जरूरी होता है
गलत को गलत कह देना
इस दुनियादारी में
उम्मीद को जिन्दा रखने का अर्थ
अपनी गलतियों को आदिम भाव से
स्वीकार कर लेना
कविता में इन बातों को देना पनाह
कि तलाश किसी संजीवनी की
ज्यादा कुछ नहीं
बल्कि इसलिए
कि बना रहे धरती का आसमान से संवाद
और जीवन जीने की कवायद में
बची रहे नीव की तरफ लौटने की
स्मृति !!!!
एक कविता कामरेडों के लिये
कागज पर ही सही
मै एक रास्ता बनाता हूँ
अपनी ही भूख से लड़कर
प्रतिरोध को रास्ता बनाता हूँ
तुम ठीक कहते हो कामरेड
विकल्प था मेरे पास
कि इस मुफलिसी की दुनिया में
मै भूखा ना रहूँ
लेकिन मै क्या बताउं
कि भूखा रहकर मैं
एक भूखे इंसान का
नक्शा बनाता हूँ
ताकि बचा रहे दमन के दिनों में
लड़ने का सबसे आसान रास्ता…
 मनुहार
अँधेरे कमरे में
उदास पन्नो के सामने
सुख चुकी नदी से आए
कुछ बेनाम शब्दों के बीच
घुटनों के बल बैठा था
तुम्हारे नाम का
गुलदस्ता लिये….
———————————————————————————– 
संपर्कः विजय सिंह
पता-माही-मांडवी छात्रावास ,
भारतीय भाषा केंद्र
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
फ़ोन-09968434475

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

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Comments 4

  1. सुन्दर सृजक says:
    10 years ago

    ताकि बचा रहे दमन के दिनों में
    लड़ने का सबसे आसान रास्ता

    सभी कविताओं में एक ताजगी है….पर इसमें विमलेश त्रिपाठी की कविताओं की महक भी शामिल है …. बधाई !

    Reply
  2. Unknown says:
    10 years ago

    विजय के लिए जब विमलेश जी ने कहा कि इनकी कविताओं में आपको नवान्न की महक मिलेगी तो बिल्कुल सही कहा….बहुत ताजगी लिए मासूम इच्छाओं, अवरोधों और प्रतिरोधों को कवि ने बिना किसी अतिरिक्त बौद्धिकता के रख दिया है…..कविताओं की लय और प्रवाह तो देखने लायक है……सचमुच कवि के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित होना चाहिए……बधाई विजय…..

    Reply
  3. Unknown says:
    10 years ago

    सच में विजय सिंह की कविताओं में बहुत ताजगी है। वे बहुत उम्‍मीद जगाने वाले कवि हैं। बधाई विजय, शुभकामनाएं।

    Reply
  4. neetisha xalxo says:
    10 years ago

    keep it up, vijay ji maja aa gaya. aage bhi naye andaje byaan ko aur aur aur aur sun na chahungi. really wonderful.

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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