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Home कविता

विमलेन्दु की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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14
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शालू शुक्ला की कविताएँ

विमलेन्दु को पहली बार फेसबुक पर ही देखा-जाना। लेकिन शुरू दौर से ही इस कवि की कविताएं आकर्षित करती रहीं। आज भारी संख्या में लोग लिख रहे हैं। ढेर सारी कविताएं लिखी जा रही हैं। लेकिन यह सच है कि बहुत कम संजिदा कवि और संजिदा रचनाएं हैं। विमलेन्दु की कविताओं में कुछ खास है जो उन्हें भीड़ से अलग करती है। इस बार अनहद पर प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएं।

———————————————————-  

                       

                                                                                                                                            
एक सजग पाठक और बेपरवाह लेखक..कविता-कहानी-संगीत-फिल्म और न जाने किस-किस चीज़ के लिए दीवानगी..। टीवी-आकाशवाणी में प्रस्तोता..। वसुधा, पहल, वागर्थ, साक्षात्कार आदि पत्रिकाओं में वर्षों पहले कविताएँ/समीक्षा प्रकाशित..।आवारगी प्रधान लक्षण..।


बदनाम औरतों के नाम प्रेम-पत्र

रात गये    
इनकी देह में फूलता है हरसिंगार
जो सुबह
एक उदास सफेद चादर में तब्दील हो जाता है.
इनके तहखानों में
पनाह लेते हैं
उन कुलीन औरतों के स्वप्न-पुरुष
जिनकी बद् दुआओं को
अपने रक्त से पोषती हैं ये.
इनकी कमर और पिण्डलियों में
कभी दर्द नहीं होता
और कंधे निढाल नहीं होते थकान से.
इनके स्तनों पर
दाँत और नाखूनों के निशान
कभी नहीं पाये गये.
पढ़े लिखे होने का कोई भी
सबूत दिए बगैर
वे अपने विज्ञान को
कला में बदल देती हैं.
ये आज भी
दस बीस रुपये मे
बाज़ार करके लौट आती हैं
भगवान जाने
इनके चाचा दाई और जिज्जी की
दूकानें कहाँ लगती हैं
अपने जन्म की स्मृतियों का
ये कर देती हैं तर्पण
और मृत्यु के बारे में 
इसलिए नहीं सोचतीं
कि हर चीज़ सोचने से नहीं होती.
प्रेम मृत्यु है
इन बदनाम औरतों के लिए.
                  2.
इतिहास के अंतराल में कहीं
होती है इनकी बस्ती
जहाँ सभ्यताओं की धूल
बुहार कर जमा कर दी गई है.
इनके भीतर हैं
मोहन जोदड़ो और हड़प्पा के ध्वंस
पर किसी पुरावेत्ता ने
अब तक नहीं की
इनकी निशानदेही.
इन औरतो की
अपनी कोई धरती नहीं थी
और आसमान पर भी नहीं था कोई दावा
इसीलिए इन्होंने नहीं लड़ा कोई युद्ध.
कोई भी सरकार चुनने में
इनकी दिलचस्पी इसलिए नहीं है
कि सरकारें
न तो जल्दी उत्तेजित होती हैं
और न जल्दी स्खलित !
               **

तुमसे मिलने के बाद

कई बार माँ की गोद में सिर रखा  
बहुत दिनों के बाद
एकदम शिशु हो गया.
मित्र से लिपटकर खूब चूमा उसे
वह एकदम हक्का बक्का.
कई बार पकड़े गये हजरत
बिना बात मुस्कुराते हुए.
लौकी की सब्जी भी 
इतने स्वाद से खायी
कि जैसे छप्पन भोगों का रस
इसी कमबख्त में उतर आया हो.
आज खूब सम्भल कर चलाई स्कूटर.
जीवन से यह एक नये सिरे से मोह था.
कुछ चटक रंग
मेरी ही आँखों के सामने
मेरे पसंदीदा रंगों को बेदखल कर गये.
एकाएक जीवन की लय
विलम्बित से द्रुत में आ गई
एक शाश्वत राग को 
मैं नयी बन्दिश में गाने लगा.
भीषण गर्मी में भी 
कई बार काँप गया शरीर
अप्रैल के अंत की पूरी धूप
एकाएक जमकर बर्फ बन गई.
शर्म से पानी-पानी होकर
सूरज ने ओढ़ लिया शाम का बुर्का.
रात एक स्लेट की तरह थी मेरे सामने
जिस पर सीखनी थी मुझे
एक नई भाषा की वर्णमाला.
मैं एक अक्षर लिखता
और आसमान में एक तारा निकल आता
फिर धीरे धीरे
पूरा आसमान तारों से भर जाता.
तीन अक्षरों का तुम्हारा नाम पढ़ने में
पूरी रात तुतलाता रहा मैं ।
         **

नये साल में

नये साल में
मैं रोशनी और अँधेरे के बीच से
सारे बिचौलियों को हटा देना चाहता हूँ.

अगर समय मिले
तो मैं जाना चाहता हूँ बंजर खेतों में
और उन्हें
बीजों की साजिश बताना चाहता हूँ.

मैं उन गीतों को गुनगुनाना चाहता हूँ
जिन्हें हमारी स्त्रियाँ
आँचल की गांठ में
बाँधकर छुपाए रखती हैं.

मेरी इच्छा है
कि इस साल एक गौरैया
मेरे घर में अपना घोंसला बनाए.

मैं बादलों के नाम
एक खत भेजना चाहता हूँ
हवाओं के हाथ
जो बेशक धरती का प्रेमपत्र नहीं होगा.

मैं इन्द्रधनुष से कुछ रंग चुराकर
एक नया संयोजन
बनाना चाहता हूँ उनका.
जैसे पीले रंग के साथ लाल को रखकर
एक झण्डा पकड़ाना चाहता हूँ मैं
दुनिया के तमाम उदास लोगों को.

          **

जो इतिहास में नहीं होते

जो लोग इतिहास में  
दर्ज़ नहीं हो पाते
उनका भी एक गुमनाम इतिहास होता है.
उनके किस्से
मोहल्ले की किसी तंग गली में
दुबके मिल जाते हैं.
किसी पुराने कुएं की जगत पर
सबसे मटमैले निशान में भी
उन्हें पहचाना जा सकता है.
ऐसे लोग, आबादी के
किसी विस्मृत वीरान के
सूनेपन में टहलते रहते हैं.
एक पुराने मंदिर के मौन में
गूँजती रहती है इनकी आवाज़.
कुछ तो 
अपनी सन्ततियों के पराजयबोध में
जमें होते हैं तलछट की तरह.
तो कुछ
पुरखों की गर्वीली भूलों की दरार में
उगे होते हैं दूब की तरह.
जिन लोगों को 
इतिहास में कोई ज़गह नहीं मिलती
उन्हें कोई पराजित योद्धा
अपने सीने की आग में पनाह देता है.
ऐसे लोगों को
गुमसुम स्त्रियाँ
काजल की ओट में भी
छुपाए लिए जाती हैं अक्सर.
ऐसे लोग 
जो इतिहास में नहीं होते
किसी भी समय
ध्वस्त कर देते हैं इतिहास को.
                   **

                                                               संपर्कः

                                       पी.के. स्कूल के पीछे, गली नं. 2, रीवा (म.प्र.)
____________________________________________________________________________________________________________

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 14

  1. आशुतोष कुमार says:
    13 years ago

    बदनाम स्त्रियों के लिए प्रेम-पत्र आज की हिंदी कविता की उपलब्धि है .कविताई साहस , समाज- राजनीतिक आलोचना-दृष्टि , सहज विट , सटीक व्यंग्य और सब से ज़्यादा अपनी जीवन- धर्मिता (vitality)के चलते .इन्ही गुणों के चलते यह जड़ाऊ भावुकता , करूणा-विलाप और आत्ममुग्ध रैडिकलियत और शब्द -शोर से साफ़ बच जाती है.

    Reply
  2. ashvaghosh says:
    13 years ago

    ये खुला पत्र बहुत बोल्ड तरीके से घावों को उधेड़ता है रिसते मवाद की असलियत सामने लाता है .तहखानों की सडांध ,बू मारते लोग,सब कुछ इतना साफ़ साफ़.बिना किसी अतिरिक्त भावुकता के.बधाई कवि को

    Reply
  3. kshama says:
    13 years ago

    बेहद प्रभावी कवितायेँ …

    Reply
  4. nirupma says:
    13 years ago

    भीड़ में चल कर भीड़ का हिस्सा बन और उसी में अपनी पहचान बनाना सारी बाते कहनी जितनी आसान है उतनी होती नही …नदी का पानी उफन कर जब शहर में फैलता है तो उसे बाढ़ कहते है जो जीवन देता नही है और जब उसी पानी को नहर के ज़रिये उतारा जाता है तो जीवन देता है….. ऐसा ही है ये कविता का संसार…. यहाँ कवितायें बाढ़ बन कर आयी है जो किसी सोच को जीवन नही दे रही जबकि विमलेन्दु जी की कविताओं को पढ़ कर साफ़ लगता है कि सोद्देश्य समाज में उतारा गया है ..

    Reply
  5. Unknown says:
    13 years ago

    विमलेंदु से मेरा भी परिचय फेसबुक से ही हुआ… उनकी कविताएं नेट पर ही पढ़ी हैं और उन्‍होंने हमेशा प्रभावित किया है। विमलेंदु के पास बहुत सघन संवेदनाएं और समृद्ध भाषा है, साथ ही सहज जीवन से कविता के लिए नये से नये विषय उठाने का साहस भी… उनका खिलंदड़पन उन्‍हें बहुत निर्मम रचनाकार बनाता है, जो उनके प्रति बहुत आश्‍वस्ति देता है। मेरी शुभकामनाएं…

    Reply
  6. damayanti sharma says:
    13 years ago

    बड़ी सुन्दर कवितायेँ हैं | पहली कविता – "बदनाम औरतों के नाम प्रेम-पत्र" तो बहुत अच्छी – बड़ी मार्मिक बन पड़ी है |
    "प्रेम मृत्यु है इन बदनाम औरतों के लिए..".- इससे बड़ा सच भला और क्या !!
    "जो इतिहास में नहीं होते" भी बड़ी पसंद आई..- "ऐसे लोग जो इतिहास में नहीं होते, किसी भी समय ध्वस्त कर देते हैं इतिहास को.".बहुत भावपूर्ण और सशक्त !! बाकी कवितायेँ भी अच्छी लगी…… शुभकामनाएँ और बधाई !!

    Reply
  7. Nilay Upadhyay says:
    13 years ago

    रात एक स्लेट की तरह थी मेरे सामने
    जिस पर सीखनी थी मुझे
    एक नई भाषा की वर्णमाला.

    बहुत सुन्दर भाई।

    Reply
  8. sakhi with feelings says:
    13 years ago

    bahut sunder rachnaye

    Reply
  9. ANULATA RAJ NAIR says:
    13 years ago

    बेहतरीन…सशक्त एवं बेबाक रचनाएँ….

    सांझा करने का शुक्रिया.

    सादर.

    Reply
  10. रामजी तिवारी says:
    13 years ago

    अदभुत है इन कविताओं से गुजरना ..बधाई आपको

    Reply
  11. Unknown says:
    13 years ago

    मेरी कविताओं को आप सुधी दोस्तों का साथ मिला तो मेरा हौसला बढता है….भाई विमलेश जी के साथ ही आप सब मित्रों को धन्यवाद.

    Reply
  12. Ritu Vishwanath says:
    13 years ago

    एक झण्डा पकड़ाना चाहता हूँ मैं
    दुनिया के तमाम उदास लोगों को. chahat kuch karne ki

    अपने जन्म की स्मृतियों का
    ये कर देती हैं तर्पण
    और मृत्यु के बारे में
    इसलिए नहीं सोचतीं
    कि हर चीज़ सोचने से नहीं होती. Vedna or Bebasi ,,,, sach me kamal ki Rachnaye … Dhanyawad.

    Reply
  13. हेमा दीक्षित says:
    13 years ago

    यूँ तो सभी कविताएं बहुत अच्छी है परन्तु बदनाम स्त्रियों के नाम लिखे गये बेबाक और खुले प्रेमपत्र हेतु विशिष्ट बधाई आपको …

    Reply
  14. avanti singh says:
    13 years ago

    सब रचनाये बहुत उच्च श्रेणी की है,बधाई आप को

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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