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Home समीक्षा

समीक्षा-समीक्षा

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in समीक्षा, साहित्य
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4
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लोक की जमीन से जुड़ी कविताएं
तारिका सिंह
शोध सहायिका, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय
संपर्कः09451216430
                    इधर की समकालीन कविता में कवियों का लोक से जुड़ाव और लोक से उनके रिश्ते में कमी आई है। कविता अनावश्यक रूप से वैश्विक-सी हो गई है जिससे किसी भी कवि की कविता को अलग से पहचान पाना बेहद कठिन हो गया है। कुछ आलोचकों ने इसी एक वजह से कविता के एक ही तरह से लिखे जाने की बात उठाई है। उनका कहना है कि आज की कविताओं में एक रसता या इकहरेपन के आने का मूल कारण उसका लोक से जुड़ाव कम होते जाना है। लेकिन इसी तरह के समकालीन कविता के माहौल में कुछ कवि ऐसे हैं जो अपनी मौलिकता के कारण आलग से पहचाने जा सकते हैं। उनके यहां लोक की अपनी एक समृद्ध जमीन तो है ही साथ ही समकालीन कविता का वह तेवर भी है जो उन्हे विशिष्ट और महत्वपूर्ण बनाता है। ये कवि शिल्प और अंतर्वस्तु दोनों के बीच संतुलन रखते हुए अद्भुद कविताओं से हमारा परिचय करा रहे हैं। विमलेश त्रिपाठी उनमें एक महत्वपूर्ण नाम है और यही कारण है कि आज उनकी कविताओं पर लोगों का ध्यान जा रहा है। गौर तलब है कि कविता के लिए हर वर्ष दिया जाने वाला महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित  सूत्र सम्मान ( 2011) उन्हें दिए जाने की घोषणा हुई है।
                   बहरहाल विमलेश त्रिपाठी का अभी पहला संग्रह ही छपकर आया है और अपनी मौलिकता और तेवर से कविता प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल होता दिख रहा है।  यह पहला काव्य संग्रह “हम बचे रहेंगे” पूरा यकीन दिला रहा है कि अगर ऐसी कवितायें हैं तो हम ज़रूर बचे रहेंगे | उनकी कविता की भाषा के साथ भावों की सादगी दो टूक है|  एक अविच्छिन्न  प्रवाह निरंतर बांधता है, कविताओं में अपरिचय की गंध नहीं बल्कि  पाठक हर पंक्ति  पर कवि के साथ परिचित होता जाता है |  कवि बहुत अपना–सा निश्छल और रिश्तों की ऊष्मा में लबरेज नज़र आता है | कवि पाठक के मन के बेहद करीब होता जाता है और उसकी हिस्सेदारी रिश्तों से शुरू होकर यकीन के कैनवास तक फैली प्रतीत होने लगती है | 
                 कवि की सहजता आश्चर्यचकित करती है, मुझे अनायास ही यह उक्ति स्मरण हो आती है कि,’कविः क्रान्तदर्शिनो भवति ‘ , कवि भूत, भविष्य एवं  वर्तमान की वस्तुओ का भी दर्शन अपने प्रातिभ चक्षु से करने की सामर्थ्य रखता है | यह उक्ति आज के कवि विमलेश पर  सटीक उतरती है। कविता से लम्बी उदासी  कविता में  ‘जितने समय में मैं लिखता हूँ एक शब्द/ उससे कम समय में मेरा भाई आत्महत्या कर लेता है/ उससे भी कम समय में बहन ‘औरत से धर्मशाला’ में तब्दील हो जाती है ये सभी वर्तमान  के कडुवे होते जाते सच हैं |  कवि को घर की खोंड में बोये हुए शब्दों की स्मृति कचोटती है और पिता का कवच याद आता है तभी तो कवि को कभी यकीन नहीं होता कि  हमारे ह्रदय में संवेदना का एक भी बीज शेष नहीं रह गया है | कवि की आशावादिता इस संग्रह कि कविताओं में भरी हुई है  वह कहता है कोई  भी समय इतना गर्म नहीं होता कि करोड़ों मुठ्ठियों को एक साथ पिघला दे | 
                             “हम बचे रहेंगे” संग्रह में छोटी बड़ी कुल मिलाकर  लगभग 55 कवितायें अपने  बिम्बों के माध्यम से नया आस्वाद  लेकर उपस्थित हैं | भोजपुरी क्षेत्र से आने वाले  इस कवि की भाषा में भोजपुरी अंचल के शब्द अपनी ज़मीनी सच्चाई के साथ पाठ की सुगमता को अभिव्यंजित करने में तल्लीन लगते हैं |  रुखर हाथ , अमगछिया के रखवारे ,अनागराहित भाई, बैरन चिट्ठियां , माँ के अलाताये पैर और पिता की बुढ़ारी आँखें  आदि अनेक ऐसे शब्द हैं जो कविता में भावों की महक भरते हैं | इन कविताओं से गुजरते हुए पाठक के हृदय में ज़मीनी एहसास कायम होता है |  साथ ही यह कहना निराधार नहीं हैं कि कवि हर कविता में एक विश्वास जगाने में पूर्णतः सक्षम ठहरता है| 
                                      बेरोजगार  भाई  के  लिए, जीने  का  उत्सव , गनीमत  है अनाग्राहित  भाई,  समय हैं  न  पिता,   स्त्रियाँ , पत्नी, तुम्हारे लिए,  पहली बार,  लौटना,  यकीन, शब्दों के स्थापत्य के पार ,  कहाँ जाऊं ,  लोहा और आदमी , कविता के बाहर, बारिश    आदि अनेक कवितायें कवि  के मन में फैले हुए रिश्तों क़ी संवेदना और ऊष्मा को शब्दों में उतार कर सार्वभौमिकता के वितान पर सजाने में समर्थ हैं |
                    ‘वैसे ही आऊंगा’ कविता में बार बार जीवन में लौटने क़ी बात को कवि बहुत ही स्पष्टता और धज के साथ कहता है ‘रात के चौथे पहर जैसे पंछियों की नींद को चेतना आती है/ वैसे ही आउंगा ।  नश्वरता के बीच अनश्वरता क़ी आहट पैदा करता हुआ कवि अपने समय से बहुत आगे की बात करता हुआ लगता है | शब्दों का बेमानी हो जाना कवि को सालता है , वह कहता है कि नंगे हो रहे हैं शब्द हांफ रहे हैं शब्द और ऐसे समय में वह शब्दों को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है | उसे कवि होने पर शर्म भी आती है पर वहीँ उसे इस बात का गर्व भी है ‘ऐसे खतरनाक समय में मैं कवि हूँ‘ |
                      अलिखित  आंसुओं में डूबता उतराता कवि बेहद मार्मिकता के साथ स्वयं को समय का सबसे कम जादुई कवि मानता है , आडम्बरों से दूर कवि का यह सादगीपूर्ण बयान किसी भी साक्ष्य का मुहताज नहीं है | कवि की  साफगोई देखिये कि प्यार में वह बेहद ईमानदार और भावुक है तभी तो कहता है 
‘जब पहली बार मैंने प्यार किया/
तो सोचा इसे सच कर रख दूंगा/
जैसे दादी अपने नैहर वाली बट्लोयी  में
चोरिका संचती थी
जीवन भर निरखुंगा निर्मिमेष
आँखों में मोतिया  के धब्बे के बनने के बाद भी . 
                     कवि के जीवन में स्त्रियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे अधिकतर माँ  और पत्नी के रूप में हैं |  स्त्री के प्रति उसकी संवेदनाएं उसे स्त्री मन के बेहद नज़दीक पहुंचाती हैं तभी वह कह सकता है 
‘तब तक सीख लिया था स्त्रियों ने
किवाड़ों की ओट में
चाय की सुरकी के साथ
बूँद–बूँद नमकीन और गरम आंसू पीना | 
कवि को स्त्री सदियों मनुष्य से अलग एक भिन्न प्रजाति की तरह लगती है कि वह उसे चलती हुई हवा सी नज़र आती है या फिर चूल्हे में लावन की तरह जलती हुई। पत्नीकविता में कवि ने भारतीय स्त्री के एकांत दुख को बहुत बारीकी से रेखांकित किया है। कवि  स्त्री को जानने तक ही सीमित नहीं बल्कि सदियों से उस   को महसूस करता हुआ, उसको जीता हुआ लगता है | 
                     जीवन का उत्सव कविता में  धुरखेलुआ की राजा रानी की कथा सुनने का बिम्ब पाठक की आँखों में किरकिराहट घोलता है|  कवि को अफसोस है कि मनुष्य के मनुष्य बनने तक यह दुनिया मनुष्यता से खाली हो गयी है मगर फिर भी उसे यकीन है कि ‘उठे हुए हाथ का सपना मरा नहीं है’।
                   अंततः यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि हम बचे रहेंगे कवि का पहला संग्रह होते हुए भी प्रौढ़ता का अहसास दिलाता हुआ संग्रह है जैसा कि केदारनाथ सिंह ने फ्लैप में रेखांकित भी किया है। यह संग्रह जरूर सुधि पाठकों तक पहुंचने में सफल होगा तथा समकालीन कविता में एक महत्वपूर्ण संग्रह के रूप में याद किया जाएगा।
                                  ———————————————————-
हम बचे रहेंगे – विमलेश त्रिपाठी {कविता संग्रह}
‘नयी किताब‘,  
एफ-3/78-79, सेक्टर-16, रोहिणी, दिल्ली – 110089.
दूरभाष ः 011-27891526
इ-मेल ः nayeekitab@gmail.com
मूल्य- 200 रू.

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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लोक की जमीन से जुड़ी कविताएं
तारिका सिंह
शोध सहायिका, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय
संपर्कः09451216430
                    इधर की समकालीन कविता में कवियों का लोक से जुड़ाव और लोक से उनके रिश्ते में कमी आई है। कविता अनावश्यक रूप से वैश्विक-सी हो गई है जिससे किसी भी कवि की कविता को अलग से पहचान पाना बेहद कठिन हो गया है। कुछ आलोचकों ने इसी एक वजह से कविता के एक ही तरह से लिखे जाने की बात उठाई है। उनका कहना है कि आज की कविताओं में एक रसता या इकहरेपन के आने का मूल कारण उसका लोक से जुड़ाव कम होते जाना है। लेकिन इसी तरह के समकालीन कविता के माहौल में कुछ कवि ऐसे हैं जो अपनी मौलिकता के कारण आलग से पहचाने जा सकते हैं। उनके यहां लोक की अपनी एक समृद्ध जमीन तो है ही साथ ही समकालीन कविता का वह तेवर भी है जो उन्हे विशिष्ट और महत्वपूर्ण बनाता है। ये कवि शिल्प और अंतर्वस्तु दोनों के बीच संतुलन रखते हुए अद्भुद कविताओं से हमारा परिचय करा रहे हैं। विमलेश त्रिपाठी उनमें एक महत्वपूर्ण नाम है और यही कारण है कि आज उनकी कविताओं पर लोगों का ध्यान जा रहा है। गौर तलब है कि कविता के लिए हर वर्ष दिया जाने वाला महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित  सूत्र सम्मान ( 2011) उन्हें दिए जाने की घोषणा हुई है।
                   बहरहाल विमलेश त्रिपाठी का अभी पहला संग्रह ही छपकर आया है और अपनी मौलिकता और तेवर से कविता प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल होता दिख रहा है।  यह पहला काव्य संग्रह “हम बचे रहेंगे” पूरा यकीन दिला रहा है कि अगर ऐसी कवितायें हैं तो हम ज़रूर बचे रहेंगे | उनकी कविता की भाषा के साथ भावों की सादगी दो टूक है|  एक अविच्छिन्न  प्रवाह निरंतर बांधता है, कविताओं में अपरिचय की गंध नहीं बल्कि  पाठक हर पंक्ति  पर कवि के साथ परिचित होता जाता है |  कवि बहुत अपना–सा निश्छल और रिश्तों की ऊष्मा में लबरेज नज़र आता है | कवि पाठक के मन के बेहद करीब होता जाता है और उसकी हिस्सेदारी रिश्तों से शुरू होकर यकीन के कैनवास तक फैली प्रतीत होने लगती है | 
                 कवि की सहजता आश्चर्यचकित करती है, मुझे अनायास ही यह उक्ति स्मरण हो आती है कि,’कविः क्रान्तदर्शिनो भवति ‘ , कवि भूत, भविष्य एवं  वर्तमान की वस्तुओ का भी दर्शन अपने प्रातिभ चक्षु से करने की सामर्थ्य रखता है | यह उक्ति आज के कवि विमलेश पर  सटीक उतरती है। कविता से लम्बी उदासी  कविता में  ‘जितने समय में मैं लिखता हूँ एक शब्द/ उससे कम समय में मेरा भाई आत्महत्या कर लेता है/ उससे भी कम समय में बहन ‘औरत से धर्मशाला’ में तब्दील हो जाती है ये सभी वर्तमान  के कडुवे होते जाते सच हैं |  कवि को घर की खोंड में बोये हुए शब्दों की स्मृति कचोटती है और पिता का कवच याद आता है तभी तो कवि को कभी यकीन नहीं होता कि  हमारे ह्रदय में संवेदना का एक भी बीज शेष नहीं रह गया है | कवि की आशावादिता इस संग्रह कि कविताओं में भरी हुई है  वह कहता है कोई  भी समय इतना गर्म नहीं होता कि करोड़ों मुठ्ठियों को एक साथ पिघला दे | 
                             “हम बचे रहेंगे” संग्रह में छोटी बड़ी कुल मिलाकर  लगभग 55 कवितायें अपने  बिम्बों के माध्यम से नया आस्वाद  लेकर उपस्थित हैं | भोजपुरी क्षेत्र से आने वाले  इस कवि की भाषा में भोजपुरी अंचल के शब्द अपनी ज़मीनी सच्चाई के साथ पाठ की सुगमता को अभिव्यंजित करने में तल्लीन लगते हैं |  रुखर हाथ , अमगछिया के रखवारे ,अनागराहित भाई, बैरन चिट्ठियां , माँ के अलाताये पैर और पिता की बुढ़ारी आँखें  आदि अनेक ऐसे शब्द हैं जो कविता में भावों की महक भरते हैं | इन कविताओं से गुजरते हुए पाठक के हृदय में ज़मीनी एहसास कायम होता है |  साथ ही यह कहना निराधार नहीं हैं कि कवि हर कविता में एक विश्वास जगाने में पूर्णतः सक्षम ठहरता है| 
                                      बेरोजगार  भाई  के  लिए, जीने  का  उत्सव , गनीमत  है अनाग्राहित  भाई,  समय हैं  न  पिता,   स्त्रियाँ , पत्नी, तुम्हारे लिए,  पहली बार,  लौटना,  यकीन, शब्दों के स्थापत्य के पार ,  कहाँ जाऊं ,  लोहा और आदमी , कविता के बाहर, बारिश    आदि अनेक कवितायें कवि  के मन में फैले हुए रिश्तों क़ी संवेदना और ऊष्मा को शब्दों में उतार कर सार्वभौमिकता के वितान पर सजाने में समर्थ हैं |
                    ‘वैसे ही आऊंगा’ कविता में बार बार जीवन में लौटने क़ी बात को कवि बहुत ही स्पष्टता और धज के साथ कहता है ‘रात के चौथे पहर जैसे पंछियों की नींद को चेतना आती है/ वैसे ही आउंगा ।  नश्वरता के बीच अनश्वरता क़ी आहट पैदा करता हुआ कवि अपने समय से बहुत आगे की बात करता हुआ लगता है | शब्दों का बेमानी हो जाना कवि को सालता है , वह कहता है कि नंगे हो रहे हैं शब्द हांफ रहे हैं शब्द और ऐसे समय में वह शब्दों को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है | उसे कवि होने पर शर्म भी आती है पर वहीँ उसे इस बात का गर्व भी है ‘ऐसे खतरनाक समय में मैं कवि हूँ‘ |
                      अलिखित  आंसुओं में डूबता उतराता कवि बेहद मार्मिकता के साथ स्वयं को समय का सबसे कम जादुई कवि मानता है , आडम्बरों से दूर कवि का यह सादगीपूर्ण बयान किसी भी साक्ष्य का मुहताज नहीं है | कवि की  साफगोई देखिये कि प्यार में वह बेहद ईमानदार और भावुक है तभी तो कहता है 
‘जब पहली बार मैंने प्यार किया/
तो सोचा इसे सच कर रख दूंगा/
जैसे दादी अपने नैहर वाली बट्लोयी  में
चोरिका संचती थी
जीवन भर निरखुंगा निर्मिमेष
आँखों में मोतिया  के धब्बे के बनने के बाद भी . 
                     कवि के जीवन में स्त्रियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे अधिकतर माँ  और पत्नी के रूप में हैं |  स्त्री के प्रति उसकी संवेदनाएं उसे स्त्री मन के बेहद नज़दीक पहुंचाती हैं तभी वह कह सकता है 
‘तब तक सीख लिया था स्त्रियों ने
किवाड़ों की ओट में
चाय की सुरकी के साथ
बूँद–बूँद नमकीन और गरम आंसू पीना | 
कवि को स्त्री सदियों मनुष्य से अलग एक भिन्न प्रजाति की तरह लगती है कि वह उसे चलती हुई हवा सी नज़र आती है या फिर चूल्हे में लावन की तरह जलती हुई। पत्नीकविता में कवि ने भारतीय स्त्री के एकांत दुख को बहुत बारीकी से रेखांकित किया है। कवि  स्त्री को जानने तक ही सीमित नहीं बल्कि सदियों से उस   को महसूस करता हुआ, उसको जीता हुआ लगता है | 
                     जीवन का उत्सव कविता में  धुरखेलुआ की राजा रानी की कथा सुनने का बिम्ब पाठक की आँखों में किरकिराहट घोलता है|  कवि को अफसोस है कि मनुष्य के मनुष्य बनने तक यह दुनिया मनुष्यता से खाली हो गयी है मगर फिर भी उसे यकीन है कि ‘उठे हुए हाथ का सपना मरा नहीं है’।
                   अंततः यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि हम बचे रहेंगे कवि का पहला संग्रह होते हुए भी प्रौढ़ता का अहसास दिलाता हुआ संग्रह है जैसा कि केदारनाथ सिंह ने फ्लैप में रेखांकित भी किया है। यह संग्रह जरूर सुधि पाठकों तक पहुंचने में सफल होगा तथा समकालीन कविता में एक महत्वपूर्ण संग्रह के रूप में याद किया जाएगा।
                                  ———————————————————-
हम बचे रहेंगे – विमलेश त्रिपाठी {कविता संग्रह}
‘नयी किताब‘,  
एफ-3/78-79, सेक्टर-16, रोहिणी, दिल्ली – 110089.
दूरभाष ः 011-27891526
इ-मेल ः nayeekitab@gmail.com
मूल्य- 200 रू.

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Comments 4

  1. जीवन सिंह says:
    13 years ago

    भोजपुरी छौंक कविताओं को विलक्षणता प्रदान करती है

    Reply
  2. Kanchan Lata Jaiswal says:
    13 years ago

    nice analysis. nice poetries also.

    Reply
  3. Unknown says:
    13 years ago

    This comment has been removed by the author.

    Reply
  4. Unknown says:
    13 years ago

    आजकल कवियो की बाढ सी आ गयी है । सार्थक ,सकारात्मक ,कविता खोजना दुश्वार सा हो गया है ,कविता को बचाने मे विमिलेश जी का योगदान सराहनीय है । आभार..।

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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