संजय राय |
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
संजय राय |
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड
अर्चना लार्क की कविताएँ यत्र-तत्र देखता आया हूँ और उनके अंदर कवित्व की संभावनाओं को भी महसूस किया है लेकिन इधर की उनकी कुछ कविताओं को पढ़कर लगा...
नेहा नरूका समकालीन हिन्दी कविता को लेकर मेरे मन में कभी निराशा का भाव नहीं आय़ा। यह इसलिए है कि तमाम जुमलेबाज और पहेलीबाज कविताओं के...
आधा डूबा आधा उठा हुआ विश्वविद्यालय भरत प्रसाद ‘चुनाव’ शब्द तानाशाही और अन्याय की दुर्गंध देता है। जबकि मजा यह कि...
सत्ता के बहुभुज का आख्यान ( उदय प्रकाश की कथा सृष्टि से गुजरते हुए ) विनय कुमार मिश्र उदय प्रकाश ‘जिनके मुख देखत दुख उपजत’...
सुबोध सरकार सुबोध सरकार बांग्ला भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कविता-संग्रह द्वैपायन ह्रदेर धारे के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार...
अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।
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संवेदना को झकझोरती रचनाएँ !
वाह, बहुत सुंदर ||
बेहद सुन्दर कवितायें … उम्दा .. एक एक रत्न
bahut sunder kavitayein
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आज वह कहती है-
'समझ लो!
मैंने जब-जब जो-जो लिखा
पानी पर लिखा'…
…बहुत सुन्दर …किसी भी आग्रह से दूर….अपनी लय की कविताएं…धन्यवाद एवं शुभकामनाएं.
स्कूल जाते बच्चे
इितहास की गलियों में नहीं
समय के भूगोल में फैल जाते
अतीत उन्हें छू नहीं पाता
वर्तमान बस्ते में उनकी पीठ पर लदा होता
भविष्य को
वे गुब्बारे में भर के उड़ा देते
स्कूल जाते बच्चे
समाय की लीक पर नहीं चलते
वे चलते तो लीक बनती
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बेहतरीन चयन
ताज़गी भरी कविताएं. चिड़िया की सार्वत्रिक उपस्थिति इन कविताओं को आपस में जोड़ती भी है. 'चिड़िया, घोसले और आइला' हो या 'स्कूल जाते बच्चे', या फिर 'उसकी डायरी में मरता गुलाब' इन सबमें चिड़िया का होना हमारे दैनंदिन के छोटे-बड़े अनुभवों को एक अवर्णनीय आत्मीयता से रस-सिक्त कर देता है. अभिव्यक्ति की सहजता और मुहावरे का टटकापन इन कविताओं को उल्लेखनीय बना देता है. विमलेश का कवि में व्यक्त भरोसा निराधार नहीं लगता. आश्वस्त करने वाली कविताएं हैं. संजय राय को बधाई कि वह बिना झटका दिए झकझोरने की कुव्वत रखते हैं. यह कामना भी कि उनके पैर इसी तरह ज़मीन पर टिके रहें.
हृदयस्पर्शी सुंदर कविताएँ!!!
'चिड़िया' का सभी कविताओं में होना मायने रखता है. 'चिड़िया, घोंसले और आइला' हो या 'स्कूल जाते बच्चे' या फिर 'उसकी डायरी में मरता गुलाब', चिड़िया सब जगह है, जैसे किसी अदृश्य धागे से इन सभी कविताओं को जोड़ती. अनुभव छोटे-बड़े हो सकते हैं अलग-अलग कविताओं में जो व्यक्त हुए हैं, पर वे एक सहज आत्मीयता से सराबोर लगते हैं. अभिव्यक्ति कि ताज़गी और मुहावरे का टटकापन विशेष ध्यान खींचता है. विमलेश का कवि में भरोसा निराधार नहीं लगता. बधाई संजय राय को इस उम्मीद के साथ कि उनके पैर आगे भी ऐसे ही ज़मीन पर टिके रहेंगे.
वाह .. बहुत अच्छी अच्छी रचनाएं !!
कविताएँ उम्मीद जगाती हैं…कवि को शुभकामनाएँ विमलेश का आभार
अन्यथा न लें तो बस इतना कहना चाहूंगा कि शब्दों की थोड़ी सी मितव्ययिता इन्हें और धारदार बनाएगी.
स्कूल जाते बच्चे
समाय की लीक पर नहीं चलते
वे चलते तो लीक बनती……..
बहुत अच्छी कविताये…बधाई…..
अपनी इस हल्की और मुलायम
दुनिया से निकलकर जब वे स्कूल पहुँचते
ग्यारह बजने में पांच मिनट कम होता
और
पृथ्वी उनके कन्धों पर हाँफ रही होती