संजय राय |
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
संजय राय |
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
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रंजीता सिंह गहन अनुभूति और साकारात्मक संवेदना की कवि हैं - उनकी कविताएँ पढ़कर निश्चय ही इस पर यकीन कायम होने लगता है। उनकी कविता की...
जसवीर त्यागी अपनी कविताओं में न केवल संबंधों के बारीक धागे बुनते हैं बल्कि वे शब्दों के माध्यम से भावनाओं की एक ऐसी मिठास भी उत्पन्न...
युवा कवि और पत्रकार 'प्रणव प्रियदर्शी' लगभग कई वर्षों से लगातार कविता के क्षेत्र में उचित हस्तक्षेप कर रहें हैं । प्रस्तुत कविताएँ उनके सद्य प्रकाशित...
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संवेदना को झकझोरती रचनाएँ !
वाह, बहुत सुंदर ||
बेहद सुन्दर कवितायें … उम्दा .. एक एक रत्न
bahut sunder kavitayein
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आज वह कहती है-
'समझ लो!
मैंने जब-जब जो-जो लिखा
पानी पर लिखा'…
…बहुत सुन्दर …किसी भी आग्रह से दूर….अपनी लय की कविताएं…धन्यवाद एवं शुभकामनाएं.
स्कूल जाते बच्चे
इितहास की गलियों में नहीं
समय के भूगोल में फैल जाते
अतीत उन्हें छू नहीं पाता
वर्तमान बस्ते में उनकी पीठ पर लदा होता
भविष्य को
वे गुब्बारे में भर के उड़ा देते
स्कूल जाते बच्चे
समाय की लीक पर नहीं चलते
वे चलते तो लीक बनती
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बेहतरीन चयन
ताज़गी भरी कविताएं. चिड़िया की सार्वत्रिक उपस्थिति इन कविताओं को आपस में जोड़ती भी है. 'चिड़िया, घोसले और आइला' हो या 'स्कूल जाते बच्चे', या फिर 'उसकी डायरी में मरता गुलाब' इन सबमें चिड़िया का होना हमारे दैनंदिन के छोटे-बड़े अनुभवों को एक अवर्णनीय आत्मीयता से रस-सिक्त कर देता है. अभिव्यक्ति की सहजता और मुहावरे का टटकापन इन कविताओं को उल्लेखनीय बना देता है. विमलेश का कवि में व्यक्त भरोसा निराधार नहीं लगता. आश्वस्त करने वाली कविताएं हैं. संजय राय को बधाई कि वह बिना झटका दिए झकझोरने की कुव्वत रखते हैं. यह कामना भी कि उनके पैर इसी तरह ज़मीन पर टिके रहें.
हृदयस्पर्शी सुंदर कविताएँ!!!
'चिड़िया' का सभी कविताओं में होना मायने रखता है. 'चिड़िया, घोंसले और आइला' हो या 'स्कूल जाते बच्चे' या फिर 'उसकी डायरी में मरता गुलाब', चिड़िया सब जगह है, जैसे किसी अदृश्य धागे से इन सभी कविताओं को जोड़ती. अनुभव छोटे-बड़े हो सकते हैं अलग-अलग कविताओं में जो व्यक्त हुए हैं, पर वे एक सहज आत्मीयता से सराबोर लगते हैं. अभिव्यक्ति कि ताज़गी और मुहावरे का टटकापन विशेष ध्यान खींचता है. विमलेश का कवि में भरोसा निराधार नहीं लगता. बधाई संजय राय को इस उम्मीद के साथ कि उनके पैर आगे भी ऐसे ही ज़मीन पर टिके रहेंगे.
वाह .. बहुत अच्छी अच्छी रचनाएं !!
कविताएँ उम्मीद जगाती हैं…कवि को शुभकामनाएँ विमलेश का आभार
अन्यथा न लें तो बस इतना कहना चाहूंगा कि शब्दों की थोड़ी सी मितव्ययिता इन्हें और धारदार बनाएगी.
स्कूल जाते बच्चे
समाय की लीक पर नहीं चलते
वे चलते तो लीक बनती……..
बहुत अच्छी कविताये…बधाई…..
अपनी इस हल्की और मुलायम
दुनिया से निकलकर जब वे स्कूल पहुँचते
ग्यारह बजने में पांच मिनट कम होता
और
पृथ्वी उनके कन्धों पर हाँफ रही होती