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नील कमल |
पौ फटते ही काम पे जाती पारबती की माई
सुरसतिया था नाम बताती पारबती की माई इनके घर झाड़ू-पोछा तो बरतन-बासन उनके
हाड़ तोड़ कर करे कमाई पारबती की माई पेट काट कर पाले बुतरू सिल कर रक्खे होंठ
दुनिया माया जाल बताती पारबती की माई अति उदार मन हृदय विशाला कठिन करेजे वाली
महाबीर की एक लुगाई पारबती की माई हाथ और मुँह के बीच तनी रस्सी पर चलती जाये
अजब नटी है गजब हठी है पारबती की माई
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हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
सरल शब्दों में सहज अभिव्यक्ति…
बहुत ही सुन्दर…
अपनी मिट्टी अपने गाँव की याद दिलाती रचना…
badhiya ghajal ,prastuti hetu badhai vimlesh bhai !
बहुत अच्छी रचना है…पर इसे ग़ज़ल कहने की कोई विवशता नहीं है।
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|
भावपूर्ण आभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर!!!