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Home कविता

अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
7
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मेरी कविताएं ही मेरा वक्तव्य हैं।
अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं पहली ही नजर में अपने गठन और कथ्य के कारण चौंकाती हैं। लेकिन इन कविताओं के भीतर प्रवेश करने पर हमें कविता का एक अजस्त्र स्त्रोत दिखायी पड़ता है जिसमें हम खोते चले जाते हैं। अंबर  लय और तुक में कई तरह के प्रयोग करते दिखते हैं। उनके कहन में एक अलहदा किस्म की सुगंध है। इन कई कारणों से अंबर कवि और कविताओं की भीड़ में अलग से पहचाने जा सकते हैं। इस बार अनहद पर अनकी कविताएं प्रस्तुत हैं। आप अपनी राय जरूर रखें..। 

एक

दाड़ो दोई हाथ

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नयन मिलाये पर फोड़ दिए
काम न आये जी तोड़ दिए
तात-मात रोग में छोड़ दिए
निज भ्राता लूट, ठोंका माथ
दुखी-दीन पलटकर न देखे
लुन्ठना, लीलना ही लेखे
नख से शिख मेखें ही मेखें 
किया कुकर्म धोबन के साथ.
दो
सुनो मेरी कथा
जीवन गया बृथा
बाहर सारे वैभव भीतर भरी व्यथा 
सुनो मेरी कथा
इस तरह जीने को मैं बार बार मरा हूँ
गटागट जहर पिया
कुछ यों मुझ लोलुप तुकबंद  ने
जीवन जिया 
भर घाम एक पाँव
ठाढ़ा रहा हाट बीच सब बेचा-खरीदा
भू, भवन, भूषण, वसन, अवसन देह, नेह, तिया
शेष बूढ़ा पिंड 
फूटी आँख, टूटे हाथ, पछताता हिया
लगा गया काल 
माथे के नीचे पाथर का तकिया
तीन
संगी मिलना बहुत दुहेला
घाम की घुमरी में हैं बस बेला की धूल
दोपहर ठाढ़ी लिलार पर जी निपट उचाट 
सब के शीश निर्जल घट हैं. सूना हैं घाट,
भर ले लुटिया, अकेले ही निपटा आ हाट.
एक आँख रोयेगा कब तक 
संगी मिलना बहुत दुहेला
चल अपने बिन घरनी के घर
जाग नंगा डासके बिस्तर
कौन ऐसा तीन भुवन खोल
दे सम्मुख जिसके हेड़ वसन
पूरा शरीर और सकल मन;
नहीं हैं कंठ जो कंठ लगे.
गंगाजी में नौका डूबी,
बृथा गया जीवन का धेला.
चार
डगमग चरण धंसती धरन
था भुवन धान का जलभरा खेत
और अब क्या रहा
बिका धान जल बहा
आँखों गड़ती रेत 
शेष अन्वेष अनमन
तब की भूख और थी भात और
अब भूख अगाध, जूठन का कौर
आज टाट हूँ, वह भी खांखर
रोना अपार और कम हैं आँखर
देखता हूँ डूबती तरन.
पांच
काल निदाघ की दाह
शेष करतल भर छांह
यम का यज्ञ भेरुंड
भू जानो हवन-कुंड
हवि होते कितने मुंड
कि जला लोक ज्यों लाह
ठेठ माथे पर घाम 
दूर प्रेयसी का धाम 
किन्तु चला अविराम
भरने बांह में बांह.

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 7

  1. प्रशान्त says:
    14 years ago

    आपने अपनी प्रस्तावना में सही लिखा – समकालीन कविताओं के बीच अंबर रंजना की इन कविताओं ने अपने शिल्प की वजह से अचानक चौंका सा दिया. उनके लय में अपनी ताल बिठाने में वक्त लगा जिसकी वजह से एकाधिक बार उनकी कविताओं को पढ़ना पड़ा. पर अंततः उनकी कविताओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका.’दो’ और ’पाँच’ कुछ ज्यादा रुचिं. प्रस्तुत करने के लिए आपका शुक्रिया.उन्हें इन कविताओं के लिये मेरी बधाई प्रेषित करें.

    Reply
  2. Abha M says:
    14 years ago

    बहुत बढिया है.. दिल को छू गईं…..

    Reply
  3. neel kamal says:
    14 years ago

    naye ka swagat hona hi chahiye !
    in kavitaon mein chhayavadi daur ki jhalak milti hai… kavi ke prati meri shubhkamana.

    Reply
  4. संजय कुमार चौरसिया says:
    14 years ago

    बहुत बढिया है

    Reply
  5. Anonymous says:
    14 years ago

    अंबर की कविताएं सचमुच अलग तरह की हैं…कविता में यह लय की वापसी के संकेत हैं…आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं ..युवाओं को जगह दे कर…बधाई…अरूण शीतांश आरा

    Reply
  6. Anonymous says:
    14 years ago

    sundor kovita

    Reply
  7. विमलेश त्रिपाठी says:
    14 years ago

    आभार आप मित्रों का….

    Reply

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