रघुराई ।। संपर्कः 09883728063 |
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
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अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।
गरिमा सिंह "शरीर में श्वेत रक्त कणिकाओं का घटना या बढ़ जाना नही बता सकता है सपनों के मरने की दर और उसे जिन्दा रखने की...
दिव्या श्री दिव्या श्री हिन्दी की युवतर कवि हैं और पिछले सालों में अपनी संवेदनात्मक एवं प्रेम विषयक कविताओं से हिन्दी जगत का ध्यान अपनी ओर...
गुंजन उपाध्याय पाठक 'मूर्खों की शौर्य गाथा में कभी ईश्वर इतना मजबूर नहीं था' इन पंक्तियों को लिखने वाली कवि गुंजन उपाध्याय पाठक के सरोकार गहन...
रुचि बहुगुणा उनियाल रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताओं में जो बेचैनी और छटपटाहट है वह हर संवेदनशील मनुष्य के मन में है क्योंकि समय ही ऐसा...
पायल भारद्वाज पायल भारद्वाज युवतर एवं बेहद संभावनाशील कवि हैं। उनकी कविताओं में स्त्री के दर्द और बेवशी के साथ समय की विडंबना भी झलक रही...
अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।
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bhalo laglo pore,aro kovita lagan
शानदार!!!!!
सच को उजागर करती मन का असली तेवर दिखाती कविता..
विमलेश जी पाठकों का भी ख्याल रखा करिये..आपसे आग्रह है कि सिर्फ एक कविता पोस्ट मत किया करें…यानि १ से ज्यादा..
रघुराई भाई,
आपकी कविता में वर्तमान दौर में पगी आम हिन्दुस्तानी की सम्वेदना का सुंदर स्वाद है।
"परिचय के नाम पर
मेरे पास फिलवक्त
सिर्फ मेरी पीठ है…"
ये पंक्तियाँ अति मगर्मिक हैं।
रघुराई को कविता और होली दोनो की बधाइयाँ!
Bahut sunder kwita. Raghurai ji ko badhaiyan.'Aam Hindustani' ka behtareen parichy diya hai aapne…
आपने सही कहा विमलेश रघुराई भविष्य के कवि हैं… इन्हे भी गढ़िए जैसे रविन्द्र आरोही को गढ़ा है आपने…बहुत-बहुत शुभकामनाएं… अरूण शितांश, आरा
रघुराज जी की सुन्दर कविता ..आपका ब्लॉग और कविता चर्चामंच मे मैं साझा करंगी … शुक्रवार के दिन… आप चर्चामंच मे भी अपने विचार रख अनुग्रहित करियेया .. … धन्यवाद
मेरी एक पीठ
झुकी रहती है हमेशा
अपने हित-मीत परिचितों के लिए
कि वे आसानी से
चला सकें अपनी-अपनी बंदूकें
सुंदर पंक्तियाँ ….गहन अभिव्यक्ति …..
कमाल का बिम्ब लिया आपने….
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
मेरी दूसरी पीठ
फेंकी हुई रहती धूप में
सड़क के बीचोंबीच
जिसपर से गुजर जाते
रोज ही
कई-कई जोड़े चरमराते जूते
ये पंक्तियाँ हमे झकझोरती हैं, हमारे संवेदनाओं को जगाती हैं।