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Home कविता

आइए एक कवि से परिचय किया जाय

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
9
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रघुराई ।। संपर्कः 09883728063

रघुराई जोगड़ा ने ढेर सारी कविताएं लिखी हैं। स्कूली दिनों से लेकर अबतक लिखने का सिलसिला अनवरत जारी है। बीच में कई कहानियां भी लिखीं। लेकिन कहीं भी रचनाएं न भेजने के कारण उनकी किसी भी रचना को किसी प्रमुख पत्र में स्थान नहीं मिला। लेकिन मेरा विश्वास है कि रघुराई भविष्य के कवि-कथाकार हैं। फिलवक्त उनकी कविताओं की ढेर से एक कविता अनहद के पाठकों के लिए। हम आगे भी उनकी कविताएं यहां देंगे। यह कविता यहां उनसे परिचय करने के निमित्त..। आपकी बेबाक प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
पीठ
मेरी एक पीठ
छूट जाती है हमेशा घर में
दीवार से सटी
ठुंका होता उसपर एक कील
कि जिसपर पत्नी टांगती है
अपनी साफ और धुली हुई ब्लाऊज
मेरी दूसरी पीठ
फेंकी हुई रहती धूप में
सड़क के बीचोंबीच
जिसपर से गुजर जाते
रोज ही
कई-कई जोड़े चरमराते जूते
मेरी एक पीठ
झुकी रहती है हमेशा
अपने हित-मीत परिचितों के लिए
कि वे आसानी से
चला सकें अपनी-अपनी बंदूकें
एक पीठ
दफ्तर के जरूरी कागजों से दबी
दुहरी हुई
देखती है बार-बार घड़ी
और दूसरी एक पीठ
हमेशा चिंतित
देश-दुनिया
संस्कृति सभ्यता के बारे में
मैं एक आम हिन्दुस्तानी
परिचय के नाम पर
मेरे पास फिलवक्त
सिर्फ मेरी पीठ है…

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 9

  1. Anonymous says:
    14 years ago

    bhalo laglo pore,aro kovita lagan

    Reply
  2. Arpita says:
    14 years ago

    शानदार!!!!!
    सच को उजागर करती मन का असली तेवर दिखाती कविता..
    विमलेश जी पाठकों का भी ख्याल रखा करिये..आपसे आग्रह है कि सिर्फ एक कविता पोस्ट मत किया करें…यानि १ से ज्यादा..

    Reply
  3. संदीप प्रसाद says:
    14 years ago

    रघुराई भाई,
    आपकी कविता में वर्तमान दौर में पगी आम हिन्दुस्तानी की सम्वेदना का सुंदर स्वाद है।

    "परिचय के नाम पर
    मेरे पास फिलवक्त
    सिर्फ मेरी पीठ है…"

    ये पंक्तियाँ अति मगर्मिक हैं।
    रघुराई को कविता और होली दोनो की बधाइयाँ!

    Reply
  4. Vijaya Singh says:
    14 years ago

    Bahut sunder kwita. Raghurai ji ko badhaiyan.'Aam Hindustani' ka behtareen parichy diya hai aapne…

    Reply
  5. Anonymous says:
    14 years ago

    आपने सही कहा विमलेश रघुराई भविष्य के कवि हैं… इन्हे भी गढ़िए जैसे रविन्द्र आरोही को गढ़ा है आपने…बहुत-बहुत शुभकामनाएं… अरूण शितांश, आरा

    Reply
  6. डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति says:
    14 years ago

    रघुराज जी की सुन्दर कविता ..आपका ब्लॉग और कविता चर्चामंच मे मैं साझा करंगी … शुक्रवार के दिन… आप चर्चामंच मे भी अपने विचार रख अनुग्रहित करियेया .. … धन्यवाद

    Reply
  7. डॉ. मोनिका शर्मा says:
    14 years ago

    मेरी एक पीठ
    झुकी रहती है हमेशा
    अपने हित-मीत परिचितों के लिए
    कि वे आसानी से
    चला सकें अपनी-अपनी बंदूकें

    सुंदर पंक्तियाँ ….गहन अभिव्यक्ति …..
    कमाल का बिम्ब लिया आपने….

    Reply
  8. Kailash Sharma says:
    14 years ago

    बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

    Reply
  9. Unknown says:
    14 years ago

    मेरी दूसरी पीठ
    फेंकी हुई रहती धूप में
    सड़क के बीचोंबीच
    जिसपर से गुजर जाते
    रोज ही
    कई-कई जोड़े चरमराते जूते
    ये पंक्तियाँ हमे झकझोरती हैं, हमारे संवेदनाओं को जगाती हैं।

    Reply

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