• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
7
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram
मेरी कविताएं ही मेरा वक्तव्य हैं।
अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं पहली ही नजर में अपने गठन और कथ्य के कारण चौंकाती हैं। लेकिन इन कविताओं के भीतर प्रवेश करने पर हमें कविता का एक अजस्त्र स्त्रोत दिखायी पड़ता है जिसमें हम खोते चले जाते हैं। अंबर  लय और तुक में कई तरह के प्रयोग करते दिखते हैं। उनके कहन में एक अलहदा किस्म की सुगंध है। इन कई कारणों से अंबर कवि और कविताओं की भीड़ में अलग से पहचाने जा सकते हैं। इस बार अनहद पर अनकी कविताएं प्रस्तुत हैं। आप अपनी राय जरूर रखें..। 

एक

दाड़ो दोई हाथ

Related articles

रेखा चमोली की कविताएं

ज्ञान प्रकाश पाण्डे की ग़ज़लें

नयन मिलाये पर फोड़ दिए
काम न आये जी तोड़ दिए
तात-मात रोग में छोड़ दिए
निज भ्राता लूट, ठोंका माथ
दुखी-दीन पलटकर न देखे
लुन्ठना, लीलना ही लेखे
नख से शिख मेखें ही मेखें 
किया कुकर्म धोबन के साथ.
दो
सुनो मेरी कथा
जीवन गया बृथा
बाहर सारे वैभव भीतर भरी व्यथा 
सुनो मेरी कथा
इस तरह जीने को मैं बार बार मरा हूँ
गटागट जहर पिया
कुछ यों मुझ लोलुप तुकबंद  ने
जीवन जिया 
भर घाम एक पाँव
ठाढ़ा रहा हाट बीच सब बेचा-खरीदा
भू, भवन, भूषण, वसन, अवसन देह, नेह, तिया
शेष बूढ़ा पिंड 
फूटी आँख, टूटे हाथ, पछताता हिया
लगा गया काल 
माथे के नीचे पाथर का तकिया
तीन
संगी मिलना बहुत दुहेला
घाम की घुमरी में हैं बस बेला की धूल
दोपहर ठाढ़ी लिलार पर जी निपट उचाट 
सब के शीश निर्जल घट हैं. सूना हैं घाट,
भर ले लुटिया, अकेले ही निपटा आ हाट.
एक आँख रोयेगा कब तक 
संगी मिलना बहुत दुहेला
चल अपने बिन घरनी के घर
जाग नंगा डासके बिस्तर
कौन ऐसा तीन भुवन खोल
दे सम्मुख जिसके हेड़ वसन
पूरा शरीर और सकल मन;
नहीं हैं कंठ जो कंठ लगे.
गंगाजी में नौका डूबी,
बृथा गया जीवन का धेला.
चार
डगमग चरण धंसती धरन
था भुवन धान का जलभरा खेत
और अब क्या रहा
बिका धान जल बहा
आँखों गड़ती रेत 
शेष अन्वेष अनमन
तब की भूख और थी भात और
अब भूख अगाध, जूठन का कौर
आज टाट हूँ, वह भी खांखर
रोना अपार और कम हैं आँखर
देखता हूँ डूबती तरन.
पांच
काल निदाघ की दाह
शेष करतल भर छांह
यम का यज्ञ भेरुंड
भू जानो हवन-कुंड
हवि होते कितने मुंड
कि जला लोक ज्यों लाह
ठेठ माथे पर घाम 
दूर प्रेयसी का धाम 
किन्तु चला अविराम
भरने बांह में बांह.

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

रेखा चमोली की कविताएं

रेखा चमोली की कविताएं

by Anhadkolkata
March 11, 2023
0

  रेखा चमोली की कविताएं स्थानीय दिखती हुई भी आदमी की संवेदनाओं से जुड़कर इसलिए वैश्विक हो जाती हैं  की वे स्त्री विमर्श के बने बनाये...

ज्ञान प्रकाश पाण्डे की ग़ज़लें

ज्ञान प्रकाश पाण्डे की ग़ज़लें

by Anhadkolkata
March 17, 2023
0

ज्ञान प्रकाश पाण्डे     ज्ञान प्रकाश पाण्डे की ग़ज़लें एक ओर स्मृतियों की मिट्टी में धँसी हुई  हैं तो दूसरी ओर  वर्तमान समय की नब्ज...

विवेक चतुर्वेदी की कविताएँ

विवेक चतुर्वेदी की कविताएँ

by Anhadkolkata
December 3, 2022
0

विवेक चतुर्वेदी     विवेक चतुर्वेदी हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कवि हैं। न केवल कवि बल्कि एक एक्टिविस्ट भी जो अपनी कविताओं में समय, संबंधों...

ललन चतुर्वेदी की शीर्षकहीन व अन्य कविताएं

by Anhadkolkata
February 4, 2023
0

ललन चतुर्वेदी कविता के बारे में एक आग्रह मेरा शुरू से ही रहा है कि रचनाकार का मन कुम्हार  के आंवे की तरह होता है –...

विभावरी का चित्र-कविता कोलाज़

विभावरी का चित्र-कविता कोलाज़

by Anhadkolkata
August 20, 2022
0

  विभावरी विभावरी की समझ और  संवेदनशीलता से बहुत पुराना परिचय रहा है उन्होंने समय-समय पर अपने लेखन से हिन्दी की दुनिया को सार्थक-समृद्ध किया है।...

Next Post

मां : कुछ कविताएं

राहुल सिंह की पहिलौंठी कविताएं

विपिन चौधरी की तीन कविताएं

Comments 7

  1. प्रशान्त says:
    12 years ago

    आपने अपनी प्रस्तावना में सही लिखा – समकालीन कविताओं के बीच अंबर रंजना की इन कविताओं ने अपने शिल्प की वजह से अचानक चौंका सा दिया. उनके लय में अपनी ताल बिठाने में वक्त लगा जिसकी वजह से एकाधिक बार उनकी कविताओं को पढ़ना पड़ा. पर अंततः उनकी कविताओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका.’दो’ और ’पाँच’ कुछ ज्यादा रुचिं. प्रस्तुत करने के लिए आपका शुक्रिया.उन्हें इन कविताओं के लिये मेरी बधाई प्रेषित करें.

    Reply
  2. Abha M says:
    12 years ago

    बहुत बढिया है.. दिल को छू गईं…..

    Reply
  3. neel kamal says:
    12 years ago

    naye ka swagat hona hi chahiye !
    in kavitaon mein chhayavadi daur ki jhalak milti hai… kavi ke prati meri shubhkamana.

    Reply
  4. संजय कुमार चौरसिया says:
    12 years ago

    बहुत बढिया है

    Reply
  5. Anonymous says:
    12 years ago

    अंबर की कविताएं सचमुच अलग तरह की हैं…कविता में यह लय की वापसी के संकेत हैं…आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं ..युवाओं को जगह दे कर…बधाई…अरूण शीतांश आरा

    Reply
  6. Anonymous says:
    12 years ago

    sundor kovita

    Reply
  7. विमलेश त्रिपाठी says:
    12 years ago

    आभार आप मित्रों का….

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.