• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

संदीप प्रसाद की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A

Related articles

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ


संदीप प्रसाद ने स्नातकोत्तर की पढ़ाई प्रेसिडेण्सी कॉलेज, कोलकाता से पूरी की है। स्कूल के समय से ही कविताएं लिख रहे हैं। कुछ पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित हुई हैं। फिलहाल वे पश्चिम बंगाल के एक विद्यालय में अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। 
अनहद पर उनकी कविताएं पहली बार आपकी प्रतिक्रियाओं की उम्मीद के साथ। 



माँ, कविता और रोटियाँ
घर की चौखट पर बैठ
मैँ उसे सुनाया करता
अपनी कविता,
जब पीढ़े पर बैठे हुए वो सेँकती थी
रोटी।
अक्सर ऐसे समय मेँ
उसकी पुतलियाँ विचारोँ की लटाई थाम कर
ढीले छोड़ दिया करती— अपने ख़्वाब।
मुझे लगता कि उसके ख़्वाब
अंधेरे माघ के चौदहवेँ दिन के
आकाश मेँ उड़ रहे हैँ
और उसमेँ लहरा रही हैँ
घबराहट और उत्सुकता भरी
दो पूँछेँ।
प्राय: मेरी कविताएँ
खड़बड़ाकर निकल जाती उसके सामने से
और रह जाती केवल उड़ती हुई धूल
जिन्हेँ वह छा जाने दिया करती
अपनी आँखोँ पर।
घर की चौखट पर
माँ को सुनाते हुए कविता,
मैँ लपेट लिया करता खुद को
कुहरे की कई तहोँ से
और जब कुहरा छँटता
तो सामने होती
अद्‌भुत उर्वरता और कविता की खुशबू से लबरेज
माँ की नरम–नरम रोटियाँ।
आज भी अक्सर बड़ी कसक के साथ
सोचता हूँ—
मैँ कविता सुनाते हुए
नहीँ बना सकता रोटियाँ,
जिन्हे वो बना लिया करती थी
सुनते हुए
कविता।

जब प्यार होता है
जब प्यार होता है
तो कम हो जाते हैँ दुनियां के मुद्दे
हकीकत और सपना फड़फड़ाते हैँ
एक ही धागे से चिपक कर ;
महजिद से बँधे रंगीन
कागजी झंडोँ की तरह।
अचानक सब कुछ लगने लगता है–
अलग–अलग सा।
खड़बिद्दर रास्तोँ पर धीमेँ
रिक्शे की दचकन
कसे हुए बस पे पिछली सीट पर
दबी हुई सी जगह
घड़ी की सुइयोँ की नोक पर दौड़ते शहरोँ के
चमचमाते दुकानो के लम्बे– लम्बे आइने
पीछे –पीछे आने वाली
संगीत की कोई मद्धम धुन
सफर मेँ किसी पुल के लम्बे अंधेरे मेँ
डूबा कोई लम्हा
तालाब के किनारोँ पर तैरते शैवालोँ को
खाती हुई नन्ही मछलियां
बाँस के किसी कुंज मेँ छिपते
किसी पीले साँप
को देख कर लगने वाला डर
या ऐसी ही बहुत सी चीजोँ का असर
वैसा नहीँ होता , जैसा होता है।
अक्सर ऐसे समय मेँ
कमजोर हो जाते हैँ दिल मेँ बैठे जानवर के
पैने दाँत और नाखून
अल्लाह और राम के नारोँ के बीच
दिख जाता है
टूटा हुआ राम का धनुष…
कतरा भर अल्लाह के आँसू।
वैलेन्टाईन्स डे
कै–कै की आवाज के साथ
अचानक उकियाती हुई
कुतिया मर गई रात को।
शायद ज़हर दे दिया किसी ने…!
सुबह को फुदकते–कूदते हुए
गली का कुत्ता
उसकी लाश के पास आकर ठिठक गया
और फिर चुपचाप अकेले मेँ
सुनसान हो कर बैठ गया और
उसकी आँखो के कोरोँ मेँ सिमट आई नमकीन बूँद
क्योँकि अपने रंगीन दिनोँ मेँ उसने
उसके साथ गुजारे थे , कई हसीन लम्हे–
शाम को कुत्ता
खीँच –खीँच कर मांस खा रहा था
और कुतिया के
पसलियोँ की हड्डियाँ
सफेद –सफेद दिख रही थीँ…!

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

Related Posts

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
3

अर्चना लार्क की कविताएँ यत्र-तत्र देखता आया हूँ और उनके अंदर कवित्व की संभावनाओं को भी महसूस किया है लेकिन इधर की उनकी कुछ कविताओं को पढ़कर लगा...

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
3

नेहा नरूका समकालीन हिन्दी कविता को लेकर मेरे मन में कभी निराशा का भाव नहीं आय़ा। यह इसलिए है कि तमाम जुमलेबाज और पहेलीबाज कविताओं के...

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

                           आधा डूबा आधा उठा हुआ विश्वविद्यालय                                                                                भरत प्रसाद ‘चुनाव’ शब्द तानाशाही और अन्याय की दुर्गंध देता है। जबकि मजा यह कि...

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि  पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

by Anhadkolkata
June 25, 2022
0

सत्ता के बहुभुज का आख्यान ( उदय प्रकाश की कथा सृष्टि से गुजरते हुए ) विनय कुमार मिश्र   उदय प्रकाश ‘जिनके मुख देखत दुख उपजत’...

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
1

सुबोध सरकार सुबोध सरकार बांग्ला भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कविता-संग्रह द्वैपायन ह्रदेर धारे के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार...

Next Post

नील कमल की कविताएं

आज लौटा हूं तो...

नील कमल की एक अद्भुद कविता

Comments 6

  1. उत्‍तमराव क्षीरसागर says:
    12 years ago

    उम्‍मीद जगाती कवि‍ताऍं…।

    Reply
  2. वंदना शुक्ला says:
    12 years ago

    संदीप जी
    बहुत सुन्दर कवितायेँ! ''माँ ,कविता और रोटियां…अद्भुत..!..''माँ'' शब्द ही एक कविता है…महसूस किया जाये तो…!
    बधाई

    Reply
  3. Brajesh Kumar Pandey says:
    12 years ago

    जीवन के अनुभवों कि सहज अभिव्यक्ति ये कविताएँ कवि की संवेदना को उद्घाटित करती हैं .आज जब खांटीपन का ह्रास हो रहा है ऐसे में संदीप कि कविताएँ आहत तो जरूर हैं लेकिन एक उम्मीद के साथ .बिना लग -लपेट के घटनाओं से संवेदित हो जाना निश्चित ही आकर्षित करता है.

    Reply
  4. संदीप प्रसाद says:
    12 years ago

    आप सभी को धन्यवाद !

    Reply
  5. Unknown says:
    11 years ago

    अच्छी कविता है

    Reply
  6. जितेन्द्र देव पाण्डेय 'विद्यार्थी' says:
    10 years ago

    शाम को कुत्ता
    खीँच -खीँच कर मांस खा रहा था
    और कुतिया के
    पसलियोँ की हड्डियाँ
    सफेद -सफेद दिख रही थीँ…!

    सांकेतिक भाषा का शानदार प्रयोग

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.