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Home कविता

ब्रजेश कुमार पांडेय की दो कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
9
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जन्म -बक्सर (बिहार)
कथादेश, देशज, परिकथा सहित पत्र -पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।  कविताएँ लीलाधर मंडलोई द्वारा सम्पादित किताब “कविता का समय” में भी। अचला शर्मा और सुधीश पचौरी की किताब नए जनसंचार माध्यम और हिंदी में बीबीसी के कार्यक्रमों पर समीक्षा प्रकाशित ।
संपर्क – बर्फ फक्ट्री के पास ,पांडे पट्टी ,बक्सर,            
बिहार-802103.  Mobile: [09770556046]


इन सबके बीच 
अरे पगली मैना 
किस-किस जतन से 
तिनका -तिनका सुख जोड़ा 
लेकिन कभी यह सोचा 
कि जिस कूप में 
बनाया घोसला तुमने
एक छांह देखकर 
देखकर एकाकी
और यह भी कि
लहरा रहा है
इंटों के बीच इंच भर जगह में 
जड़ जमाए यह झुरमुट 
लेकिन तुम्हारी मुग्धता ने कभी यह सोचने का भी 
समय नहीं दिया
कि कभी भी खिसक सकता है आधार
कि तुम हो जाओगी फुर्र
और तुम्हारे अंडे डुप्प से …
इन सबके बीच 
समय की अंगड़ाई लेने जितना भी 
मिल गया समय तो 
चूजे भरने को होंगे उड़ान 
टकराकर दीवार से 
डुप्प से …
यदि घड़ी के सेकंडों के बीच की 
बढ़ भी जाए दूरी 
तो भी नई पांख लिए परिंदे 
कुँए के पानी में दिखते आकाश में 
नापेंगे ऊंचाई 
डुप्प से… .
मै नहीं मिलूँगा 

जब मै पूछता हूँ 
किसी से उसका पता 
वह कह उठता है 
पता नही 
कब कहाँ रहूँ 

फिर 
लिख लीजिए 
यह नंबर 
नाइन फ़ोर थ्री एट…
हमेशा मिलूँगा इसी पर 

मुझसे लोग कहते है 
दे दीजिए कोई नंबर 
मै कहता हूँ 
लिख लीजिए पता 
ग्राम-पांडेपुर ,पोस्ट -निमेज 
हमेशा मिलूँगा 
इसी पते पर 

अभी तक मुझसे मिलने 
कोई नहीं आया
मेरे गाँव
उन्हें आशंका है न
कि मै नहीं मिलूँगा 

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 9

  1. Udan Tashtari says:
    15 years ago

    बहुत गहन रचनायें पढ़ने का मौका लगा!!

    Reply
  2. विमलेश त्रिपाठी says:
    15 years ago

    Thanks a lot….

    Reply
  3. Arpita says:
    15 years ago

    यदि घड़ी के सेकंडों के बीच की
    बढ़ भी जाए दूरी
    तो भी नई पांख लिए परिंदे
    कुँए के पानी में दिखते आकाश में
    नापेंगे ऊंचाई
    डुप्प से… .

    धन्यवाद…अच्छी कविता के लिये…….

    Reply
  4. विमलेश त्रिपाठी says:
    15 years ago

    आपका आभार….

    Reply
  5. shesnath pandey says:
    15 years ago

    बहुत ही अच्छी कविताएँ है… इस घटाटोप समय में जो संवेदना का क्षरण और आदमी का भटकाव है उसे ये कविताएँ सहजता से कहती है… कवि मैना से सवाल करता है… मैना कभी भारतीय जन मानस के लोक राग रंग की हिस्सेदार रही है… अर्थात सीधे-सीधे न कहते हुए भी कवि मनुष्य के हाथ से छूटता हुआ उसका गाँव उसके लोक राग की बातें करता है… इन बातों से एक रास्ता निकलता है… और वो रास्ता अपने को पहचानने की,विश्वास की भरोसा की… कुला मिलाकर ये कविताएँ आदमी के जड़ो की बात करती है…

    Reply
  6. पारुल "पुखराज" says:
    15 years ago

    मै नहीं मिलूँगा

    bahut achichi lagi

    Reply
  7. सुशीला पुरी says:
    15 years ago

    जब मै पूछता हूँ
    किसी से उसका पता
    वह कह उठता है
    पता नही
    कब कहाँ रहूँ
    !!!!!!!!!
    लाजवाब !!!

    Reply
  8. अपूर्व says:
    15 years ago

    सुंदर कविताएं..खासकर दूसरी वाली..समय की भट्ठी मे गलते-पिघलते आदमी की पहचान कब कितने सांचों मे ढ़ल कर बदल-बदल कर सामने आती है..यह बड़े संवेदनशील तरीके से कहती कविता..

    Reply
  9. Unknown says:
    13 years ago

    अभी तक मुझसे मिलने
    कोई नहीं आया
    मेरे गाँव
    उन्हें आशंका है न
    कि मै नहीं मिलूँगा,…
    बहुत अच्छा लगा यह पढकर ,.. शुक्रिया ।

    Reply

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