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Home कविता

कहना सच को सच की तरह : विमलेश त्रिपाठी

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
18
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कुछ अरसा पहले वागर्थ के संपादक विजय बहादुर सिंह ने अपने संपादकीय में एक बहुत ही अच्छी कविता लिखी थी। कविता के रूप में संपादकीय लिखने का शायद पहला सिससिला उन्होंने शुरू किया, जहाँ तक मेरी जानकारी है। कविता को पढ़ते हुए मैं काफी उद्वेलित हो गया और अनायास ही मेरे जेहन में एक कविता ने जन्म लेना शुरु किया। उस कविता को आपके साथ शेयर कर मुझे बहुत खुशी हो रही है।

कहना सच को सच की तरह

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राहत मिलती है यह सुन-देखकर कि अब भी गुस्सा है
और भड़ास निकालने का साहस भी

इस अजीब सी हो गई दुनिया में
जहां सिर्फ नाच का शोर चमचमाती रंगिनियों में

एक पूरी पीढ़ी डिस्कोथेक और नाईट क्लब के हवाले
बूढ़े सब मोह भंग के शिकार
और जिनसे दुनिया को उम्मीद
वे शब्दों की बाजीगरी में ढुंढते अपने जिन्दा होने के सबुत

चुप रहो और करो इंतजार का नाकाब ओढ़े
जहाँ मर गए लोगों की एक लंबी जमात खड़ी

ऐसे में जब अचानक चीखने की हद तक चिल्लाता है
निकालता है भड़ास पूरी ताकत के साथ साठ पार का एक आदमी
तो भड़ास वह अच्छा लगता है
सच को सच की तरह कहना और सुनना सच को सच की तरह
जरूरी लगता है इस मुर्दगी सन्नाटे में

समय ऐसा यह जब पता नहीं कितने ‘अंत’ की घोषणा
और लगभग स्वीकार कर चुके लोग
कि सच का भी हो गया अन्त
कि फिसल जाने दिया हमने ही समय वह हाथ से
जब एक स्त्री की इस्मत के मसले पर
रच जाता था भारत इसी धरती पर इसी भारत में

भाई के चप्पलों को सिर पर रख
जंगल से घर तक की यात्रा का मिसाल भी यहीं देखने में आता
और कितना कुछ
कि पूरी दुनिया देखती थी हैरत से
नत होते थे गुरूर से भरे मस्तक
विस्मय से

क्या जरूरी है दुहराना कि कैसे-कैसे मंजर देखे
और झेले हमने अपनी छातियों पर
पर इतने अकेले नहीं हुए हम कभी
न इतने खाली
कि जिस जमीन पर खड़े हम
किसी भी पल उसी के खिसक जाने का अंदेसा

एक हत्यारा संसद में पहुंचकर करता है अट्टहास
हमें गुस्सा नहीं आता
क्या फर्क पड़ता है हमें
कि दुनिया में नहीं रहे ऐसे लोग
जिनके रहने से दुनिया को दुनिया की तरह
बने रहने की एक उम्मीद जगती थी

अभी कल ही कि बात है
इसी शहर के एक फूटपाथ पर पड़ी थी लाश एक अधेड़
गुजरे थे हजारों लोग उसी रास्ते से भागते
अपने-अपने दफ्तर दुकानों तक पहुँचने के लिए
गुजरी थी शहर के सबसे बड़े अधिकारी की गाड़ी उसी रास्ते के किनारे से
गुजरने वालों में शहर के लेखक कवि भी थे
जिन्हें पहुंचना था किसी गोष्ठी में और सुनानी थी कविता मनुष्य के बदहाल होते जाने पर
कहते हैं उसी शहर से गुजरती है राज्य के मुख्यमंत्री की कार भी
और उस दिन भी गुजरी थी

उसी रास्ते से गुजरना हुआ था स्कूल के कुछ बच्चों का
साथ में उनकी माताएं भी थी स्कूल के भारी भरकम बैग सम्हाले
पानी के बोतल
एक बच्चे ने पूछा था – मां कौन सो रहा है सड़क के किनारे।
— कोइ नहीं बेटा, कोइ नशाखोर होगा। तुम चलो स्कूल के लिए देर हो रही है

और बच्चा कुछ सोचते हुए आगे बढ़ गया था

वह कोई नशाखोर नहीं था
था वह इसी देश का नागरिक
और अचानक स्ट्रोक के बाद सत्तरह घंटे तक पड़ी रही थी
उसकी बूढ़ी देह लावारिश
उस समय उसका इकलौता बेटा अमेरिका के किसी शहर में था

कब तक आखिर कब तक हम
अपनी ही पनही सम्हालने में करते रहेंगे उम्र यह शेष
एक न एक दिन खड़ा होना ही पड़ेगा
बोलना ही पड़ेगा वर्षों से दबी वह बात
जो आज तक बोली नहीं गई
कभी भय से कभी मजबूरी से और कभी जान बूझकर
कि बोलने से ही हमारा सदियों का बनाया
तिलस्मी दानव मोम की तरह पिघल सकता था।

और वह कल पिघल सकता था तो आज भी
जरूरी है कि हमारे अन्दर
सच को सच की तरह कह पाने का साहस हो
और एक जरूरी ताकत जिसे किसी बाजार से नहीं खरीदा जाता

तो शुरूआत एक भड़ास से ही
कि सच को सच की तरह कहने से ही सही……

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

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Comments 18

  1. Unknown says:
    15 years ago

    ACHCHI HAI AUR SACH BHI. SACH KO SACH KI TARAH KAHNA SHAYAD SABSE MUSHKIL KAAM HAI.

    Reply
  2. स्वप्निल तिवारी says:
    15 years ago

    achhi rachna vimlesh ji ….

    Reply
  3. Rajat Yadav says:
    15 years ago

    हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.

    मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.

    यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.

    शुभकामनाएं !

    "टेक टब" – ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )

    Reply
  4. Rajat Yadav says:
    15 years ago

    आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
    आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
    इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
    उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
    आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
    और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ "टेक टब" (Tek Tub) पर.
    यदि फ़िर भी कोई समस्या हो तो यह लेख देखें –

    वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें ?

    Reply
  5. Dr.Dayaram Aalok says:
    15 years ago

    संवेदना और सद्भावना से रीते आज के मानव को सडक पर पडी लाश के बारे में जानकारी लेने और अस्पताल तक पहुंचाने के बाद गवाही के लिये कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने का समय ही कहां है?
    "फ़ुट पाथ पर पडा था वो भूख से मरा था
    कुर्ता हटा के देखा-उसके पेट पर लिखा था
    ्सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा"

    Reply
  6. Udan Tashtari says:
    15 years ago

    बहुत उम्दा रचना, बधाई.

    वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

    डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

    Reply
  7. मनोज कुमार says:
    15 years ago

    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    Reply
  8. शोभित जैन says:
    15 years ago

    सच से रूबरू कराती के बेहतरीन प्रस्तुति …
    भावनाओं को झिंझोड़ने में सफल ….

    टिप्पणीकर्ता :
    सउदी अरब के किसी शहर में बैठा एक गैरजिम्मेदार नागरिक

    Reply
  9. शोभित जैन says:
    15 years ago

    This comment has been removed by the author.

    Reply
  10. sakhi with feelings says:
    15 years ago

    bhaut sahi likha hai har mudda

    sakhi

    Reply
  11. शशांक शुक्ला says:
    15 years ago

    अच्छा लिखा है,

    Reply
  12. Unknown says:
    15 years ago

    bahut achcha hai….sach ko sach ki tarah kah pana agar hota itna aasan…to ye duniya kuch aur hi hoti…very true…

    Reply
  13. विमलेश त्रिपाठी says:
    15 years ago

    इस रचना को इतना प्यार देने के लिए हार्दिक कृतज्ञता…

    Reply
  14. Dimple Maheshwari says:
    15 years ago

    आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं……….हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं…..बधाई स्वीकार करें…..हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें…..|

    Reply
  15. अजय कुमार says:
    15 years ago

    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

    Reply
  16. Anonymous says:
    15 years ago

    bimleshji
    2nd may ke karykram ka kya hua

    Reply
  17. Jayram Viplav says:
    15 years ago

    कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,

    धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,

    कलम के पुजारी अगर सो गये तो

    ये धन के पुजारी वतन बेंच देगें।

    हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ , साथ हीं जनोक्ति द्वारा संचालित एग्रीगेटर " ब्लॉग समाचार " http://janokti.feedcluster.com/ से भी अपने ब्लॉग को अवश्य जोड़ें .

    Reply
  18. भारतेंदु मिश्र says:
    15 years ago

    भाई बिमलेश जी,आपकी कविताएँ अनहद मे पढी बहुत मार्मिक हैं।बधाई स्वीकारें।

    Reply

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