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Home कविता

स्त्रियां

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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ज्ञान प्रकाश पाण्डे की ग़ज़लें


एक

इतिहास के जौहर से बच गई स्त्रियां
महानगर की अवारा गलियों में भटक रही थीं
उदास खुशबू की गठरी लिए
उनकी अधेड़ आँखों में दिख रहा था
अतीत की बीमार रातों का भय
अपनी पहचान से बचती हुई स्त्रियां
वर्तमान में अपने लिए
सुरक्षित जगह की तलाश कर रही थीं

दो

पुरूषों की नंगी छातियों में दुबकी स्त्रियाँ
जली रोटियों के दुःस्वप्न से
बेतरह डरी हुई थीं
उनके ममत्व पर
पुरूषों के जनने का असंख्य दबाव था
स्याह रातों में किवाडों के भीतर
अपने एकांत में
वे चुपचाप सिसक रही थीं सुबह के इंतजार में

तीन

स्त्रियां इल्जाम नहीं लगा रही थीं
कह रही थीं वही बातें
जो बिल्कुल सच थी उनकी नजर में
और अपने कहे हुए एक-एक शब्दों पर
वे मुक्त हो रही थीं

इस तरह इतिहास की
अंधी सुरंगों के बाहर
वे मनुष्य बनने की कठिन यात्रा कर रही थीं

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Anhadkolkata

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