सुनना, गुनना और बोलना हमारी परम्परा ही नहीं बल्कि संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. हमारे मालवे में बड़े बूढ़े और सयाने लोग इसी सब के साथ हमेंशा लगे रहते है ओर सबके साथ सब कुछ साझा करते है, और यही हमारी ताकत है. हम सब देवास के लोग जो लिखने -पढने का शौक रखते है कुछ लिखते पढते ओर गुनते बुनते है सबके साथ साझा ही नहीं करते पर दूसरों को भी सुनने में और समझने में यकीन करते है. देवास में लिखने पढने वालो की एक वृहद लंबी परम्परा रही है संगीत, साहित्य, चित्रकला ओर ना ना प्रकार की ललित कलाएं इस शहर की विशेषता है और इस कला को हम साकार होते देखते है जब अपनी ही माटी के लोग उठते और खड़े होते है पूरी प्रतिबद्धता ओर उत्साह के साथ कि देश- प्रदेश में सबके साथ सबके लिए कुछ सार्थक करेंगे. ओटले के प्रथम आयोजन में दिल्ली के ड़ा जीतेंद्र श्रीवास्तव के कविता पाठ को लोग भूले नहीं थे इसकी की गरिमा और गंभीरता को सबने रेखांकित भी किया था. इसी क्रम में दूसरे आयोजन के रूप में देवास के ओटले पर हिन्दी के सशक्त कवि एकांत श्रीवास्तव के साथ एक दिवसीय काव्य पाठ का आयोजन किया गया. एकांत हिन्दी के एकमात्र एक ऐसे कवि है, जो कविता को जीते है वरन वे कविता की उस अकादमिक पीढ़ी से आते है जो कविता के पूरे संसार को अपने तईं एक नया मुहावरा, नई समझ और नया विस्तार देते है. एकांत का काव्य संसार कविता की एक ऐसी दुनिया है जहां प्रयोग, नवाचार, शब्द, अर्थ और कथन अपना एक बिम्ब ही नहीं गढते वरन पुरजोर तरीके से कविता की मुखालफत करते है. अविभाजित म् प्र के छत्तीसगढ़ में जन्मे एकांत ने अपनी भाषा के संस्कार तो लिए ही है, परन्तु दुनियावी अनुभवों की थाती से वे एक ऐसी कविता का अनुशासन लेकर आये कि उन्होंने परम्परागत रचनाधर्म की कई सीमाओं को तोड़ा और कविता की दुनिया में नई समझ, उपज और व्याख्या प्रस्तुत की. कई पुस्तकों के रचनाकार भाई एकांत को दीर्घकालीन संपादन का भी वृहद अनुभव है. वागर्थ जैसी नामचीन पत्रिका के सम्पादक होने के नाते उन्होंने नए कवियों को भी तराशा और मंच दिया. एक परिपक्व कवि, संपादक और बेहतरीन इंसान एकांत को सुनना और चर्चा करना अपने आप में एक सुखान्त अनुभव है. देवास के बेहद पारिवारिक आयोजन में जुटे श्रोता ललित कलाओं और साहित्य संगीत से बखूबी वाकिफ है. कुमार गन्धर्व के सांगीतिक अनुशासन से सीखे लोग, नईम, डा प्रकाश कान्त जैसे परिपक्व कहानीकारो के कारण बहुत संजीदा ढंग से गुनते-बुनते और समझते है.
एकांत ने कविता पाठ के पहले अपनी रचना प्रक्रिया पर बीज वक्तव्य देते हुए बड़ी महत्वपूर्ण बातें कही. एकांत ने कहा कि कविता पर बोलना ठीक वैसा ही है जैसे कुम्हार से कहा जाए कि घड़े बनाने की प्रक्रिया पर बोले. जैसे कुम्हार नहीं कह सकता कि कितना पानी कितनी-कौनसी मिट्टी, कितना तापमान भट्टी का और कितनी धूप सूरज की लगी–एक घड़े को बनाने में, ठीक वैसे ही कविता के बनने में भी कवि कह नहीं सकता, और सम्पूर्ण होने के बाद भी कवि को या रचनाकार को अपने रचना में कमी दिखाई देती है, हाँ एक संतोष जरूर होता है जो अकथनीय होता है. मुक्तिबोध ने डबरे पर सूरज जैसा बिम्ब इस्तेमाल किया था, भवानी प्रसाद, रघुवीर सहाय का जिक्र करते हुए एकांत ने कहा कि इन जैसे वरिष्ठ कवियों ने भी रचना प्रक्रिया पर बहुत लिखा बल्कि कविता भी लिखी है परन्तु ठीक-ठाक क्या है, यह कह पाना बहुत मुश्किल है. “मूर्ति बनाता हूँ और तोड़ देता हूँ” या तुलसी दास भी कहते है कि सारी रात बिस्तर बिछाने में चली गयी नींद का क्या कहू, जैसी कविताओं का जिक्र करते हुए एकांत ने कहा कि रचना एक समय के बाद संतोष जरूर देती है पर पूर्णता नहीं और शायद यही कवि और रचनाकार का आतंरिक संघर्ष है जो उसे बार-बार लिखने को प्रेरित करता है. एकांत ने कहा कि जीवन छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव से शुरू हुआ था अपनी दादी के साथ सत्रह बरस बीताये गाँव में, समाज के विकास में बहुत कुछ देखा-परखा और समझने की कोशिश की,पर असंतुष्टी हाथ लगी, कविता से पूर्णता मिली है इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है. एकांत ने कहा कि चंद्रगुप्त के नाटक में कवि कोमा में जागता था और मै कोमा गाँव में पैदा हुआ, वही पास से महानदी निकलती है जिसने मेरी रचना और कविता पर गहरा प्रभाव डाला, मात्र दो हजार की आबादी वाला गाँव था, वही पला-बढ़ा, मेरी ताकत उस अंचल के लोग, वहाँ का सारा परिवेश, खेत खलिहान और वहाँ के लोगो का संघर्ष है. आज भी वहाँ जाता हूँ तो ऊर्जा लेकर लौटता हूँ. जीवन में कृष्ण पक्ष तो है ही, पर यातना बोध काव्य नहीं है. शुक्ल पक्ष का जिक्र करते हुए एकांत ने कहा कि रचना को समग्र रूप से अपनी धरा, मिट्टी से जुडना चाहिए अगरचे वो मिट्टी से नहीं जुडती तो सवाल यह है कि फ़िर वो किसके लिए है? कविता में सम्बन्ध, भावनाओं पर बहुत बात होती है, छत्तीसगढी शब्द “निझाऊ’ यानी खालीपन का जिक्र करते हुए एकांत ने कहा कि यदि आज के विद्रूप होते समय में हम संबंधो को नहीं बचायेंगे तो कविता को कैसे बचायेंगे? कविता में स्मृति का सार्थक उपयोग हो – ना कि राजनैतिक दुरुपयोग. अमृताप्रीतम ने भी इस बात को बहुत खूबसूरती से कहा था. रचना कैसी हो और इसके मूल्यांकन का क्या पैमाना हो यह सवाल अक्सर उठते रहते है इस पर एकांत ने कहा कि रचना का एक मात्र प्रतिमान पाठक का ह्रदय होता है इसलिए हर रचना में विचार का होना जरूरी है क्योकि विचार के बिना जीवन की सार्थकता नहीं तो कविता या रचना कैसे रहेगी. पाब्लो नेरुदा ने कहा था यदि ओंस की बूँद को नहीं पहचान पाये तो जीवन में क्या किया यह भी तो प्रश्न है. आज की कविता के समकालीन परिदृश्य को समझना हो तो सिर्फ पत्रिकाओं को पढने से काम नहीं चलेगा इसके लिए समकालीन समय में छप रहे संग्रहो में जाना होगा और खोजना होगी अच्छी कवितायें.
देवास के ओटले पर एकांत ने अपने सभी संग्रहों से प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया जिसमे से प्रमुख थी पिता, मेले में, वसंत आ रहा है, जमीन, अन्न है मेरे शब्द, फूल, जब गाती है माँ, बहनें, प्यार का शोकगीत, अंतर्देशीय, दंगे के बाद, बोलना, लोहा, नागकेशर के देश से कुछ अंश, भाई की चिट्ठी, तीन ओरतें, बुनकर की मृत्यु, रास्ता काटना.
कार्यक्रम के दौरान बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा प्रकाशित निमाड अंचल के रचनाकार गोविन्द सेन के पहले व्यंग्य संग्रह का विमोचन भी एकांत श्रीवास्तव ने किया. देवास के वरिष्ठ साहित्यकार ड़ा ओम प्रभाकर ने एकांत का शाल ओढाकर सम्मान किया. कार्यक्रम इंदौर के हिमांशु फाउन्डेशन के सहयोग से आयोजित किया गया था जिसका संचालन ड़ा सुनील चतुर्वेदी ने किया और अंत में आभार प्रदर्शन युवा कथाकार संदीप नाईक ने किया. कार्यक्रम में देवास, इंदौर एवं उज्जैन के साहित्यकार एवं श्रोता उपस्थित थे. अगले दिन इंदौर में हिमांशु फाउन्डेशन के तत्वावधान में एकांत ने एकल कविता पाठ किया जिसमे इंदौर के सुधि श्रोता और साहित्यकार मौजूद थे. एक कवि को इससे ज्यादा और संतुष्टि मिल सकती है कि उसकी रचनाओं को सुन पढ़ा और गुना जाए. इन दोनों अवसरो पर अशोकनगर के युवा चित्रकार पंकज दीक्षित के कविता पोस्टरों की भी प्रदर्शनी लगाई गयी थी.
संदीप नाईक, देवास के ओटले से (Email- naiksandi@gmail.com)
hardik badhai.. kash ham bhi karykram me shamil hote..
bdhiya lekh hai ,acha lga padh kar
yadi aap gau seva se judna chaahen to blog par saadar aamntrit hai
गौ वंश रक्षा मंच gauvanshrakshamanch.blogspot.com