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अनहद
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Home कविता

नील कमल की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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14
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नील कमल का काव्य संग्रह

इस समय के समर्थ युवा कवि नील कमल का जन्म 15 अगस्त 1968 को वाराणसी के एक गांव भटेलहा में हुआ। देश की सभी पत्र-पत्रिकाओं में कविता, समीक्षा एवं आलोचनात्मक लेखों का प्रकाशन। वे फिलहाल प. बंगाल सरकार के एक महत्वपूर्ण विभाग में प्रशासनिक पद पर कार्यरत हैं। 
हाथ सुंदर लगते हैं नील कमल का पहला काव्य संग्रह है जो कलानिधि प्रकाशन, लखनऊ से हाल ही में छपकर आया है। उक्त संग्रह से तीन कविताएं यहां दी जा रही हैं। आपकी प्रतिक्रियाएं आमंत्रित हैं।


हाथ
हाथ सुंदर लगते हैं
जब होते हैं किसी दूसरे के हाथ में
पूरी गरमाहट के साथ
हाथ खतरनाक लगते हैं
जब उतरते हैं किसी गर्दन पर
हाथों को पकड़ने की कोशिश में
पाता हूं
कि उग आया है जंगल हाथों का
गर्दन के आस-पास
और दुनिया हाथों के जंगल में बदल गई है
वह जंगल हमें बुलाता है बार-बार
अब बचने का मतलब है
हाथों के जंगल से बच निकलना
बचना है तो
पैरों से लेने होंगे काम हाथों के
दुश्मन को पहचानने के लिए
चिपका देनी होंगी आंखें उन हाथों में
जो फिलहाल हैं गर्दन पर ।
दाढ़ी
अपराधी नहीं काटते दाढ़ी
दाढ़ी सन्यासी भी नहीं काटते
दाढ़ी में रहता है तिनका
तिनका डूबने का सहारा होता है
दाढ़ी वे भी नहीं काटते
जिनके पास इसके पैसे नहीं होते
दाढ़ी सिर्फ दाढ़ी नहीं होती
यह इतिहास के गुप्त प्रदेश में
उग आई झाड़ी है
इस झाड़ी में छिपे बटेर
ढ़ूंढ़ रहें हैं शंकराचार्य
ढूंढ़ रहे हैं शाही ईमाम ।
नींद में रेलगाड़ी
भोर की गाढ़ी नींद में
कोई सपना प्रवेश करता है
गुप्तचर की तरह
और पकड़ा जाता है
भोर की नींद के उचटते ही
यह सपना सदियों से
पीछा कर रहा है नींद का
और अब उसके पकड़े जाने के बाद
कसती है मुट्ठी
तो वह रेत बन जाता है
सपने रेत की तरह
पड़े रहते हैं चौड़े तटों पर
और बहती रहती है नींद
नदी की तरह
कितना प्यारा मजाक है
बुजुर्गों के जमाने से
चली आ रही यह बात
कि नदी का पेट
कभी मापा नहीं जा सकता
नींद में आती है रेलगाड़ी
जिसे समय रहते
पकड़ा न गया तो
अनर्थ हो जाएगा
एक आदमी दौड़ रहा है
पूरे दमखम से
उसके प्लेटफार्म तक आते-आते
आगे बढ़ चुकी होती है रेलगाड़ी
छुक-छुक, छुक-छुक रेलगाड़ी
शायद वह आदमी
नौकरी के इंटरव्यू के लिए
नहीं पहुंच पाएगा
और नौकरी का सपना
उसकी आंखों में
रेत-सा पसर जाएगा
सपने में आता है एक जहाज
पानी वाले जहाज में चढ़कर
जाना था जिस आदमी को
सात समुंदर पार
वह बेतहाशा दौड़ता हुआ आता है
कि इसके पहले ही
लंगर उठ चुका होता है
नदी के तट और चौड़े होते हैं
नदी के बीच ही
उभर आता है रेतीला टापू
सपने में एक आदमी को
मिलता है इम्तहान का पर्चा
पर्चे के सवाल देख
आदमी के हाथ के तोते
उड़ जाते हैं
कि किसी भी सवाल का जवाब
उसे नहीं आता है
अब नींद में रेत ही ज्यादा है
पानी बहुत कम
सपने में नदी पर होता है
एक बड़ा लंबा पुल
जिस पर चलती है रेलगाड़ी
छुक-छुक, छुक-छुक रेलगाड़ी
रेलगाड़ी में बैठा कोई मुसाफिर
नदी को देखकर हाथ जोड़ता है
एक लड़की, दांये हाथ से
छाती से माथे तक, और फिर
दोनों कंधों को छूती
एक क्रॉस बनाती है
और अपना रेशमी स्कार्फ
दुबारा कसकर बांधती है
रेलगाड़ी नदी के उपर से
गुजरती है तभी कोई नौजवान
एक सिक्का उछाल देता है नदी में
भोर की गाढ़ी नींद में डूबा हुआ
वह आदमी – बस प्यार से देखता है नदी को।

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 14

  1. vandan gupta says:
    14 years ago

    तीनों कवितायें बेजोड्…………पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।

    Reply
  2. vandan gupta says:
    14 years ago

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    Reply
  3. वंदना शुक्ला says:
    14 years ago

    बिमलेश जी .
    नील कमल जी की सुन्दर कवितायेँ पढवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद
    वंदना

    Reply
  4. Dr.J.P.Tiwari says:
    14 years ago

    हाथ सुंदर लगते हैं
    जब होते हैं किसी दूसरे के हाथ में
    पूरी गरमाहट के साथ

    हाथ खतरनाक लगते हैं
    जब उतरते हैं किसी गर्दन पर
    Waah! kyaa bat kahi hai aapne koi soche to ..teeno hi kavitaaye apne kathy me saarthak aur bahut hi upyogi…..

    Reply
  5. ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι says:
    14 years ago

    अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई।

    Reply
  6. संगीता स्वरुप ( गीत ) says:
    14 years ago

    बहुत अच्छी प्रस्तुति …दाढ़ी और गाड़ी दोनों बढ़िया लगीं ..

    Reply
  7. Arpita says:
    14 years ago

    कविता सिर्फ अभिव्यक्ति नहीं बल्कि जीवन को सुंदरता और कोमलता के साथ जीने का माध्यम है जिसमें सुखद घटनाओं के साथ दुखद घटनायें भी सहज शामिल हो जाती हैं साथ ही जीवन में बिखरे अदृश्य खतरों की तरफ संकेत करती कविता है नीलकमल जी की….पहले कविता संग्रह की बधाई….

    "सपने रेत की तरह
    पड़े रहते हैं चौड़े तटों पर
    और बहती रहती है नींद
    नदी की तरह"……
    बिमलेश जी आभार जो नये संग्रह की कवितायें यहां शेयर किये….

    Reply
  8. Brajesh Kumar Pandey says:
    14 years ago

    Nilkamal ki kavitaen n sirf nid aur sapno me jivn sangharsh ko rekhankit krti hai blki dadhi ke bhane samay ke canvas par surkh safed rango ko bhi ujagar krti hai.dadhi par premranjan aimesh ki kavitaon se alag sandarbhit .shukriya bimlesh bhai.

    Reply
  9. अपर्णा says:
    14 years ago

    bejod kavitaen!

    Reply
  10. Unknown says:
    14 years ago

    teenon kavitaaen bahut badhiya hain. yatharth ko sapnon se alag karti aur sapnon ko jeevan kee sachchai se milati hui.
    hamari shubhkaamnaaen.
    neel kamal ji ko unke pratham sangrah ke prakashan par badhai.

    Reply
  11. संदीप प्रसाद says:
    14 years ago

    बहुत अच्छी कविता है ।

    Reply
  12. Er. सत्यम शिवम says:
    14 years ago

    बहुत ही बेहतरीन रचना…मेरा ब्लागःः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे….धन्यवाद

    Reply
  13. shesnath pandey says:
    14 years ago

    kavita achhi hai… brajesh bhai ne bahut hi achhi bat kahi hai…

    Reply
  14. रवि कुमार says:
    14 years ago

    बेहतरीन कविताएं….

    Reply

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