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आनंद गुप्ता |
बहुत पहले आनंद गुप्ता की कविताएँ पढ़ने-सुनने को मिली थीं। करीब 15 साल पहले की बात होगी जब आनंद कविताएँ लिखने की शुरूआत कर रहे थे और हमें लग रहा था कि हमारा एक और साथी तैयार हो रहा है। लेकिन कुछ दिनों की सक्रियता के बाद आनंद कहीं गुम हो गए। घर-परिवार की जिम्मेवारियों ने उन्हें इस कदर जकड़ा कि लिखना लगभग छूट ही गया। यदाकदा किसी कार्यक्रम में उनसे मुलाकात होती तो मैं कहता – लिखिए भाई, वापिस आइए। हमें आपकी जरूरत है। और आनंद सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाते।
बेहद चुप रहने वाला यह यह दोस्त लगभग एक दशक बाद फिर से कविता की दुनिया में सक्रिय हुआ है। उम्मीद जगाती कविताएँ लिखी हैं इन दिनों। हम आनंद की वापसी का स्वागत करते हुए उनकी कुछ कविताएँ यहाँ पढ़ रहे हैं।
उम्मीद है कि हमें आपकी बेवाक प्रतिक्रियाएं प्राप्त होंगी।
प्रेम में पड़ी लड़की
वह सारी रात आकाश बुहारती रही
उसका दुपट्टा तारों से भर गया
टेढ़े चाँद को तो उसने
अपने जूड़े मे खोंस लिया
खिलखिलाती हुई वह
रात भर हरसिंगार–सी झरी
नदी के पास
वह नदी के साथ बहती रही
इच्छाओं के झरने तले
नहाती रही खूब–खूब
बादलों पर चढ़कर
वह काट आई आकाश के चक्कर
बारिश की बूँदों को तो सुंदर सपने की तरह
उसने अपनी आँखों में भर लिया
आईने में उसे अपना चेहरा
आज सा सुंदर कभी नहीं लगा
उसके हृदय के सारे बंद पन्ने खुलकर
सेमल के फाहे की तरह हवा में उड़ने लगे
रोटियाँ सेंकती हुई
कई बार जले उसके हाथ
उसने आज
आग से लड़ना सीख लिया।
मैं कैसे गाऊँ वसंत गीत
पेड़ों की डालियों पर
गुलजार है नये पत्ते
पलाश के फूल दिपदिपाते
कोयल की कूक से
हवा में घुल रहा वसंत
मंजरियों से भर गये हैं
आम के पेड़
चिड़िया गाती वसंत राग
फुदकती है डाल दर डाल
महुए की मदमाती गंध से
झूमती हवा में
घुल रही है चैती-फगुआ के गीत
ऐसे ही एक वसंत में
मैंने तुम्हारे माथे पर टाँक दिया था
प्रेम का पहला चुंबन
तुम्हारे चेहरे पर खिल उठा था वसंत
पर आज न जाने क्यूँ
मेरे लिए वसंत एक शब्द मात्र है
जैसे मैं लिखता हूँ दुख
जैसे मैं लिखता हूँ उदासी
वसंत के सारे गीत
आनंद की जगह शोर पैदा करते हैं
मैं कैसे गाऊँ वसंत गीत
कि मैं देखता हूँ
एक जूट मजदूर की उम्मीद
हर रोज दम तोड़ती है
चिमनियाँ अब नहीं उगलती धुँआ
कि पैंतीस वसंत पार कर चुकी चंपा को
आज भी अपने जीवन में वसंत का है इंतजार
कि एक बूढ़े किसान की आँखों से
कब का गुम हो गया है जो वसंत
किसी धन्ना सेठ की तिजोरी में बंद पड़ा है
कि अपराधीगण अब धड़ाधड़
लेने लगे हमारे भाग्य का फैसलें
कि बजट की तमाम घोषणाओं के बावजूद
अपने बुरे दिनों के जाने की
कोई सूरत उन्हें नजर नहीं आती
कि एक भूखा कमजोर बच्चा
हर रोज मेरे सपने में लड़खड़ाता गिर पड़ता है
कि एक लड़की जिसके तन पर
अभी-अभी वसंत ने दी थी दस्तक
पवित्र कलश से
शौचालय की बाल्टी में तब्दील कर दी जाती है
मैं कैसे गाऊँ वसंत गीत
मेरी उमंग पर भारी है मेरी शर्म
मैं जानता हूँ
कि मेरे कागज काले करने से
कुछ नहीं बदलेगा
मैं एक मजदूर के कानों में
खड़खड़ाती मशीनों की आवाज बन
बजना चाहता हूँ
मैं एक किसान के सपने में
घनघोर बादल सा गड़गड़ाड़ाना चाहता हूँ
मैं किसी चम्पा की नींद में
वसंत के फूल सा खिलना चाहता हूँ
मैं किसी भूखे बच्चे के मुख में
निवाला बन पड़ना चाहता हूँ
मैं किसी मजलूम की
हवा में लहराती मुट्ठी बनना चाहता हूँ
अभी
मैं कैसे गाऊँ वसंत गीत
मेरी उमंग पर भारी है मेरी शर्म
वसंत एक उम्मीद का नाम है
उम्मीद
एक नवजात चिड़ियाँ की आँखों में बसा
खुले आकाश की पहली उड़ान है
हर पतझड़ के बाद
खिलखिलाते वसंत का आगमन
एक उम्मीद लिए आती है
आम के पेड़ों पर लदी मंजरियाँ
डालियों पर छाये
पलाश, सेमल और कचनार
तेज धूप में
बहादुर सैनिक की तरह डटा
दुपहरिया का फूल
कटे पेड़ की ठूँठ पर सिर उठाए
ताजे टटके पत्ते
एक उम्मीद की तरह उग आते हैं
उम्मीद एक नाविक की आँखों में
कलकल बहती नदी है
तुफानी रातों में समुद्र को
राह दिखाता आकाशदीप
धरती की आँखों पर आकार लेता
सबसे सुंदर सपना
वसंत एक उम्मीद का नाम है
इस वक्त धरती
उम्मीद से कितनी हरी-भरी लग रही है।
तुम्हारी आँखों में उतर आया है चाँद
आज की रात चाँदनी से नहाई हुई है
तालाब में बैठा चाँद
तरंगों के साथ अठखेलियाँ करता
हमें टुकुर-टुकुर निहारता है
बगीचे में खिला हरसिंगार
सीधे तुम्हारी नींद से झरता हुआ
मेरी आँखों पर बरस रहा है
तुम्हारी साँसों से बहती फागुनी बयार
मेरे गालों को छूती साँसों में घुलती है
मेरे अंदर महक उठते है कचनार
आज की रात
आकाश हमारा बिस्तर है
हम पूरे ब्रह्मांड को मापने निकले
आकाश गंगा में भटकते दो नक्षत्र
हम आकाश पर घुमड़ते
बरसने को आतुर बादल के दो टुकड़े
भींगेंगे आज साथ-साथ
सुनो प्रिये!
तुम्हारी आँखों में उतर आया है चाँद
चाँदनी से नहायी
मेरे बिस्तर पर पड़े आकाश को बाँहों में थामे
जी भर प्यार करूँगा
टाँक दूँगा चाँद पर असंख्य चुम्बन।
नई किताब की गंध
अभी–अभी खोली है नई किताब
और भक्क से आई सुवासित गंध ने
किया है मेरा स्वागत।
नई किताब की गंध में
मैं अक्षरों की सुगंध
महसूस कर पा रहा हूँ कहीं भीतर
उन विचारों की सुगंध भी
जो इन अक्षरों के भीतर कहीं दबी पड़ी है।
नई किताब की गंध में
उम्र के तपे दिनों
स्याह रातों की सुगंध है
और कुछ अधूरे सपनो की भी।
नई किताब की गंध में
उस आदमी के पसीने की सुगंध है
जिनके हाथों ने टांके हैं अक्षर।
नई किताब की गंध में
शामिल है एक कटे हुए पेड़ की घायल इच्छाएँ
एक चिड़ियाँ का उजड़ा हुआ आशियाना
और किसी बच्चे के
स्मृतियों में गुम गए बचपन की गंध।
अभी–अभी खोली है नई किताब
मैं विचारों के साथ–साथ
एक पेड़, एक चिड़ियाँ,
कुछ अधूरे सपनों, छूटी स्मृतियों
और पन्नों पर अक्षर टाँकते
दो हाथों की कहानी पढ़ रहा हूँ।
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आनंद गुप्ता
जन्म-19 जुलाई 1976, कोलकाता
शिक्षा– कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य मेंस्नातकोत्तर
प्रकाशन–वागर्थ, परिकथा, कादम्बिनी, जनसत्ता, इरा, अनहद (कोलकाता), बाखली एवं कुछ अन्य पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।कुछ कहानियाँ एवं आलेख भी प्रकाशित।
आकाशवाणी कोलकाता केंद्र से कविताएं प्रसारित।
सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा कविता नवलेखन के लिए शिखर सम्मान।
कविता केन्द्रित अनियतकालीन पत्रिका ‘सृजन प्रवाह‘ में संपादन सहयोग।
सम्प्रति– पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित विद्यालय में अध्यापन।
पता– गली नं -18, मकान सं– 2/1, मानिक पीर, पो. – कांकिनारा, जिला– उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल-743126
मोबाइल नं – 09339487500
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
बेहतरीन कविताए हैं सबसे प्यारा लगा मै कैसे गाउँ वसन्त गीत खास कर ये लाईने—कि एक लड़की जिसके तन पर
अभी-अभी वसंत ने
दी थी दस्तक
पवित्र कलश से
शौचालय की बाल्टी में
तब्दील कर दी जाती है….
आप जैसे मित्रों का स्नेह और उत्साहवर्द्धन ही है कि कविता की दुनिया में फिर से वापस लौटा पाया।आभार।��
सभी कविताये अच्छी हैं ।प्रेम में पड़ी हुई लड़की.b बसन्त एक उम्मीद का नाम है ।
विशेष रूप पसंद आई । आनन्द को बधाई
सभी कविताये अच्छी हैं ।प्रेम में पड़ी हुई लड़की.b बसन्त एक उम्मीद का नाम है ।
विशेष रूप पसंद आई । आनन्द को बधाई
आभार।
आभार।