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Home कविता

बेबी शॉ की कविताएँ

by Anhadkolkata
November 3, 2025
in कविता
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बेबी शॉ

बेबी शॉ की कविताएँ सहज मन से उपजी कोमल गान की तरह हैं जो बहुत देर तक हमारे जेहन में ठहर कर हमें कुछ सोचने को विवश करती हैं। ‘लोग हैं लागि कवित्त बनावत’ की एक पुरानी धारणा को छोड़ते हुए यह कवि प्रेम और राष्ट्र दोनों पर ही सहजता से अपनी दृष्टि रखती हैं और यह दृष्टि ही उनकी ठोस प्रतिक्रिया है – वरंच इसे अभिव्यक्ति कहना अधिक उचित होगा।

इनकी कविता इन्ही के शब्दोंं में स्थिर होकर भी अस्थिर और अस्थिर होकर भी स्थिर है। यही इनकी कविता का गुरूत्व है। लेकिन यह हमारी अपनी दृष्टि है – आग्रह है कि आप भी पढ़ें और अपनी राय अवश्य दें।

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– संपादक 

 

 

 

अस्थिर स्थिरता

सब कहते हैं :
आजकल
सब कुछ अस्थिर है!

फिर भी देखो
दूर के पहाड़ स्थिर हैं
पहाड़ों में मिली नज़रें स्थिर हैं
सूर्यास्त का रंग स्थिर है
कविता की कॉपी स्थिर है
पहले चुम्बन की स्मृति स्थिर है
पहली बार नाभि पर रखा हाथ भी स्थिर है!

जैसे पूरी पृथ्वी स्टैचू है
तुम्हारे बिना…

 

प्रेम

बांधकर रखना…

कस कर

जैसे एक हत्या
कसकर
बांधती है हत्यारे को …

 

एक

मैं सोचती हूँ
एक दिन
सब सही हो जाएगा

एक दिन
तुम
और
मैं
एक सुबह देखेंगे
एक साथ

यह एक भी
एक अजीब संख्या है
जो सब कुछ मिला देती है
एक में

 

कूटनीति

वास्तविक प्रेम
किसके साथ किया जाए

यह सोचते हुए
जीवन से दूर किया

चिड़िया को
नदियों को

जंगल को
सहज-सुलभ व्यवहार को

फिर मिली
अवस्था

जिसे कहते हैं—
राष्ट्र

और
राजनीति!

 

चित्र

तुम्हारी कोई भी तस्वीर
तुम-सी नहीं है

यों प्रतीत होता है
परकाया प्रवेश कराया गया है—

तुममें
एक छाया-सा

ये रूप
ये रंग

ये प्रकाश
ये अंधकार

एक स्थिर समय में
स्थिर हो गया है

मुझे ग़ुस्सा आता है
कि मैं ख़ुद को भूलकर

एक अजीब-सी दुनिया
और उसमें तुम्हारा रहन-सहन

और तुम्हारी कोई भी तस्वीर देखकर
तुम्हें पहचाने की कोशिश करने लगती हूँ

एक निर्जन दुपहर में
तूफ़ान के साथ

मैं गंभीर होकर कामना करती हूँ
ख़ुद को सुलझाने के लिए

मैं ख़ुद को ख़त्म कर लूँगी
इस थके हुए विश्व में

एक स्थिर चित्र को
देखती ही रह जाऊँगी

और तुम इतने शानदार—
अपनी विशालता में

अँधेरे में भी उजाले की तरह
विसर्जन से पहले

मूर्ति के चेहरे की दीप्ति लिए
तुम विश्व भर में

अंतहीन रूप से फैल रहे हो…
अनगिनत लोग

अस्पष्ट उदासी और छुपे हुए आँसू लिए
तुम्हें देख रहे हैं

मुझे दर्द होता है
बहुत दर्द होता है

दर्द…
क्यों मैं ठीक-ठाक चित्र नहीं बना सकती!

 

भाग्य–विधाता

हमें कहा गया—
स्वाद ज़रूरी नहीं

ज़रूरी है गोमूत्र-सेवन
हमें कहा गया—

व्यक्ति-स्वातंत्र्य के ऊपर है
राष्ट्र-वंदना

हमें कहा गया—
बेरोज़गारी की समस्या से भी ज़्यादा ज़रूरी है

मंदिर में पत्थर-मूरत की प्राण-प्रतिष्ठा
हमने मान ली यह बात

और खोद ली ख़ुद के लिए
एक गहरी क़ब्र

जहाँ सोकर निश्चिंत
खिलखिलाकर हँस पड़ी

भारत माता!

***

बेबी शॉ  सुपरिचित कवि एवं अनुवादक हैं।

Tags: अनहद कोलकाता Anhad Kolkata हिन्दी बेव पत्रिका Hindi Web Magzineइस सदी की कविताएँबेबी शॉ Baby shawबेबी शॉ की कविताएँ
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