
रीता दास राम की उपलब्धियाँ बहुत हैं जिनमें एक यह है कि वे कविता में सहज और सरल रूप से अपनी बात कहती हैं और समय के दंश को दर्ज करती हैं। उनका कहन कई बार दुनिया के सारे मनुष्यों से जुड़ती हुई दिखती हैं। कविता को लेकर उनकी संजीदगी उल्लेखनीय है और यकीन होता है जब वे कहती हैं –
मानवों ने सब कुछ
भोगा, काटा, जीया, तराशा और
मिट्टी में मिल गए
यह धड़कता जीवन ही है
जिसने पृथ्वी में बदलती दुनिया का इतिहास रचा
बहरहाल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुरू हुई एक विशेष श्रृंखला के तहत प्रस्तुत है रीता दास राम की कविताएँ। आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही।
असहमति
असहमतियाँ
संज्ञान लेती सटीक प्रतिक्रिया है
सोचने पर मजबूर करती
झकझोरती
विचारों के नए द्वार खोलती है
परिष्कृत कर नए आयाम को अंजाम देने का झंकृत
विस्तार करती है
पक्ष- प्रतिपक्ष
नया पुराना
झूठ सच
मथ कर सच निकालती है
असहमति
नया गढ़ने की पुरातन विधि
फल प्रतिफल से परे
जिसने लक्ष्य साधना सीखा है।
भाषा
भाषा ने कराई
इंसान की इंसान से पहचान
परखना बताना समझाना आसान होता गया
अपशब्द और शब्दों में अन्तर हुए
भाषा में किए गए प्रयोग
य़ह बहुत ही खूबसूरत सफर तय करना था
भाषा ने अच्छाई से बुराई को चुनौती दी
भाषा का मालिक बन बैठा इंसान
अच्छाई और बुराई पर राज करता रहा
नई पीढ़ी ने गढ़े बदलाव
भाषा समय के सान्निध्य में करवट लेती रही
सदियों से बदलते मानव समूहों ने
भाषा से भाषाओं को जन्म दिया
ये भाषाओं का जीवन मनुष्य के बिना अधुरा ही नहीं
बल्कि असंभव था
पृथ्वी
पृथ्वी
हवा, पानी, जमीन, आसमान, मौसम, जलवायु
के बिना पूरी नहीं होती
नहीं होती पूरी
इंसानों, पशु, पक्षी, जलचरों, पौधों
के बिना
खत्म होती सदियों ने
कई परिवर्तनों के साथ
हिमयुग के दर्शन कराए
मानवों ने सब कुछ
भोगा, काटा, जीया, तराशा और
मिट्टी में मिल गए
यह धड़कता जीवन ही है
जिसने पृथ्वी में बदलती दुनिया का इतिहास रचा
मानव समूह
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी
समाज में कई मानव समूह हुए
बटते रहे
ऊँच-नीच, जाति, धर्म, संस्कारों, रीति-रिवाजों, परंपराओं में
जिसने विनाशकारी, विस्फोटक, हिंसात्मक परिणाम दिए
और भोतर होती गई मानवता
मानव गुलाम बने, बनाए गए
मृत्यु ने मृत्यु पर राज किया
जीवन अपराजित सा खड़ा, देखता रहा
मानव समुद्र को खारा होते
क्या जरूरत थी
वैचारिकता को
कुंद करने की जरूरत थी !
क्या वाकई
सीमा की हद तय करने की जरूरत थी !
या बेहद होना था जरूरी….
भारत सा नहीं है
विश्व में कोई कहीं भी ऐसा
सब रंग ढब ढंग मन समाहित हो जैसा
जाने क्यों कर सिरे से बद रंग तलाशने की जरूरत महसूस हुईं
क्या खोने की जरूरत थी
क्या पाने की जरूरत थी
मिट्टी में क्यों कर मजमून मिलाने की जरूरत थी
इतना भी क्या था के बदतर बदल जाने की जरूरत थी
बीता हुआ वक्त
जाने वाले आकर चले जाते हैं लेकर अपना समय
जब उनका जाना जरूरी हो जाता है
कुछ बच जाती है
उनके कार्यों की फेहरिस्त
उनकी कवायदों का सिलसिला
औचक संज्ञान लेता रह जाता है
रह जाता है उठाया हर सवाल,
दर सवाल
उनसे मिले जवाबों का ठहर जाना रह जाता है
नजर आता है बातों में लहूलुहान करना
बहना और बहाना भुलाया नहीं जा सकता
नजरें हो जितनी ही चाहे भेदक
उनका हँसना हँसाना याद आता है
कुछ रह जाता है उनका आना
ठहरना
कर गुजरना
उखडना
कुछ कुछ निभाना याद आता है
नही भूलाई जा सकती है कुछ तारीखें
दिल की तसल्ली के लिए उनका बदल जाना सुकून देता है
बड़ी राहत है के बीत जाता है टीसता वक्त नहीं लौटता
बस जख्मों की फेहरिस्त का सिलसिला चुभता रह जाता है
कर लेते है याद के जरूरी है याद रखना
जिनका होना, रहना और होकर गुजर जाना याद आता है
बँटना मंजूर नहीं
बाँट नही सकती राजनीति
देशवासियों को टुकडों में
बातों से
धर्मांधता से
भेदभाव से
जातिवाद से
नस्लभेद से
विचारों से
भाषाओं से
अल्पसंख्यकों के नाम पर
अभिव्यक्ति के नाम पर
बँटना मंजूर नहीं
करोड़ो की जनसंख्या में बसे इन देशवासियों को
इन्हें मिलकर रहने का हूनर आता है
राजा महाराजा गए, अंग्रेज गए
किले बंदी हुई, कत्लेआम हुए
दंगे देखे, फ़साद देखे
गुण्डागर्दी देखी बलात आघात देखे
विभक्त होना मंजूर नहीं … अखण्डता ही लक्ष्य सिध्द है
मिट गए मिटाने वाले देश को चलाने वाले
हुकूमत करने वाले तानाशाही दिखाने वाले
लोकतंत्र है
परतंत्र नहीं, स्वतंत्र रहना सीखा है।
नेतृत्व
नेतृत्व है
बोलना
बोलते चले जाना
सोच-समझ कर बोलना
बिना सोचे समझे बोलना
बेलगाम बोलना
चोटिल करना
आहत करना
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
गैर जरूरी फायदा लेना है
जबकि बोलना एक जिम्मेदारी है
अभिव्यक्त करना हिम्मत है
बोलने की सक्षमता ताकत है
उद्देश्य निसंदेह सरोकार रचते हो फिर भी
बोलने के अपने
सधे बंधे गढ़े मंजे दृष्टिकोण
वैशिष्ट्य के कायदे
संतुलन का इल्म कराते है
जिसने दुनिया को नेतृत्व के दर्शन कराए और मतलब सिखाया
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परिचय – रीता दास राम
डॉ. रीता दास राम (कवयित्री / लेखिका)
1968 नागपूर में जन्म।
एम.ए., एम फिल, पी.एच.डी. (हिन्दी) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई।
वर्तमान आवास : 2602, टॉवर 8, मैगनोलिया, रुणवाल फोरेस्टस, कांजूर मार्ग पश्चिम, मुंबई – 400074.
मो नं : 9619209272.
मेल : reeta.r.ram@gmail.com
प्रकाशित पुस्तकें – (7 निजी और 4 संपादकीय पुस्तकें प्रकाशित)
* कविता संग्रह: 1 “तृष्णा” 2012 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली).
2 “गीली मिट्टी के रूपाकार” 2016 (हिन्दयुग्म प्रकाशन,दिल्ली)
* कहानी संग्रह – 1 “समय जो रुकता नहीं” 2021 (वैभव प्रकाशन, रायपुर),
2 “चेक एंड मेट” 2025 (पुस्तकनामा प्रकाशन, दिल्ली)।
* उपन्यास : “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” 2023, (वैभव प्रकाशन, रायपुर)
* आलोचना : 1 “हिंदी उपन्यासों में मुंबई” 2023 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली)
2 “आलोचना और वैचारिक दृष्टि” 2024 (अनंग प्रकाशन दिल्ली)
* संयुक्त संपादन : 1 “टूटती खामोशियाँ” 2023 (त्रिभाषीय काव्य संकलन) विद्यापीठ प्रकाशन,
मुंबई विश्वविद्यालय के पत्रिका की पुस्तक।
* संपादन : 1. “कविता में स्त्री : समकालीन पुरुष कवि” 2024, आपस प्रकाशन अयोध्या से
प्रकाशित।
2. “हमारी अम्मा : स्मृति में माँ” – (भाग 1) 2025, पुस्तकनामा, दिल्ली।
3. “हमारी अम्मा : स्मृति में माँ” – भाग 2) 2025, पुस्तकनामा दिल्ली।
* उपन्यास “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” पर लघु शोध सम्पन्न।
कविता, कहानी, लघु कथा, उपन्यास, संस्मरण, आलोचना, स्तंभ लेखन, साक्षात्कार, लेख, प्रपत्र, आदि विधाओं में लेखन द्वारा साहित्यिक योगदान।
हंस, नया ज्ञानोदय, शुक्रवार, दस्तावेज़, पाखी, नवनीत, वागर्थ, चिंतनदिशा, आजकल, लमही, कथा, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ मित्र के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साझा काव्य संकलनों, वेब-पत्रिका, ई-मैगज़ीन, ब्लॉग, पोर्टल, में कविताएँ, कहानी, साक्षात्कार, लेख प्रकाशित। काव्यपाठ, प्रपत्र वाचन, संचालन द्वारा मंचीय सहभागिता।
सम्मान –
* काव्य संग्रह ‘तृष्णा’ को ‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान’ 2013,
* ‘अभिव्यक्ति गौरव सम्मान’ 2016,
* काव्य सग्रह ‘गीली मिट्टी के रुपाकार’ को ‘हेमंत स्मृति सम्मान’ 2017,
* ‘शब्द मधुकर सम्मान’ 2018, दतिया, मध्यप्रदेश,
* साहित्य के लिए ‘आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान’ 2019,
* ‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ का ‘महिला रचनाकार सम्मान’ 2021,
* ‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ का “शिक्षा भूषण सम्मान” 2022,
* ‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ का “अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सेतु सम्मान” 2023 लंदन पार्लियामेंट में।
* उपन्यास ‘पच्चीकारियों के दरकते अक्स’ को ‘कादंबरी सम्मान’ 2024 जबलपुर से।