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Home संस्मरण

जीवन  का मर्म कानून से  नहीं समझा  जा सकता – मधु कांकरिया

मधु कांकरिया का एक चिंतनपरक संस्मरण

by Anhadkolkata
March 13, 2025
in संस्मरण
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मधु कांकरिया

जीवन  का मर्म कानून से  नहीं समझा  जा सकता

मधु कांकरिया

         सोचा न था कि वह रात इतनी उदास होगी क्योंकि जिंदगी से लबालब भरे उस ग्रुप का हर चेहरा थिरक रहा था .रात के सन्नाटे में उनकी हंसी नृत्य करती सुंदरी के नुपुरों की तरह खनखनाती थी. ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर से आया बारह शोध कर्ताओं का वह एक ग्रूप था जो मुबई से ८० किलोमीटर दूर लूनावला में अपनी प्रोजेक्ट के लिये आया हुआ था, उसी ग्रूप को भारतीय कल्चर और माईथॉलजी पर मुझे दस व्याखान देने थे. हिसाब से व्याखान देने के बाद मुझे उनसे दूर अपने डेरे पर लौट जाना था. पर भीतर का लेखक मचल मचल कर जा बैठता उन्ही के बीच. उन्हे भी अच्छा लगता.मैं उन्हे यहाँ के बारे में बताती,वे मुझे वहां के बारे मे बताते. दोनों देशों की संस्कृति,राजनीति और युवा पीढ़ी से होते होते पता नहीं कैसे बात घूम फिरकर परिवार और माँ-बेटे पर आ गयी।

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        उस ग्रूप के फेक्ल्टी मि.स्टीव यहाँ के परिवारों से बहुत प्रभावित थे जिस प्रकार यहाँ बच्चे माँ-बाप के लिये मथुरा-वृन्दावन होते हैं। मि.स्टीव को और भी सुखद आश्चर्य हुआ जब मैने उन्हे बताया कि मैं, मेरा बेटा, पुत्रवधू और कभी कभार मेरी माँ भी मेरे साथ आकर रहती हैं. उन्होने पूछा – एक ही फ्लेट में. मेरे हाँ कहने पर  उन्होने पूछा – क्या कभी झमेला नहीं होता ? हाँ  होता है, लेकिन संग रहते रहते हम झमेलों से निपटना सीख जाते हैं. सोना टूट टूट कर जुड़ता हा,जबकि लकड़ी टूट कर फिर नहीं जुड़ती. अच्छे रिश्ते भी सोने की तरह होते हैं ,टूट टूट कर जुड़ते हैं.

         बातों ही बातों में मैने बताया कि आज भी कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब मेरी और माँ की दिन में एक बार क़म से क़म बात न हो. मेरी बात सुन 28 वर्षीय क्रिस्टी ने एक गहरी सांस भरी और भारी मन से बताया कि पिछले 12 वर्षों से उसने न तो अपनी मां का चेहरा देखा है और न ही उससे कोई बात ही की है. क्यों? क्योंकि उसके मनोरोगी और हिंसक सौतेले पिता के बहकावे में आकर उसकी मां ने उसे घर से निकाल दिया था . क्रिस्टी ने यह भी कहा कि उसने यहाँ तक सोच लिया है कि वह कभी मां नहीं बनेगी जिससे उसके जैसा झुलसा बचपन किसी और को न मिले . रात के सन्नाटे में तैरते उसके दुख को  पूरी तरह हज़म भी नहीं कर पायी थी कि झुलसे बचपन का जख्म लिये केली एकाएक चीख पड़ी. उसके दुख का रंग  और भी गाढ़ा था. वह छह सप्ताह की दूध पीती बच्ची थी कि तभी ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने उसे उसकी मां की गोद से छीन लिया था. उसकी मां ने शायद उसे पीट दिया था और किसी ने इसकी शिकायत कर दी थी. वहां का सख्त कानून जो मां पर  भी विश्वास नहीं करता, कानून ने उसे मां की गोद से अलग कर दिया , बाद में उसकी बूआ ने उसको कानून से अपने पास ले लिया.

        पांच वर्ष बाद पश्चाताप से भरी और ममता की मारी  उसकी मां अपने दूसरे बेटे के साथ जब उससे मिलने आई तो आशंकाग्रस्त उसकी बूआ ने उसे अपनी मां से नहीं मिलने दिया. कानून बूआ के साथ था. मां, बूआ और कानून के बीच फंसी क्रिस्टी मां को देख तक नहीं पायी. मां उसके लिये आज भी एक अनदेखा अनछुआ रिश्ता है , एक स्वप्न है .एक ऐसा खंजर है जो दिन रात उसके सीने मे गड़ा हुआ है .

       कानून में बंधा समाज किस तरह भावना हीन होकर अतिरेक में जीता है, इसकी जलती हुई मिसाल थी ये जिंदगियां .कभी किसी मां ने अपनी सन्तान के साथ क्रूर व्यवहार किया होगा, उसका खामियाजा हर मां को भुगतना पड़ रहा है. मैने उसे बताया कि हमारे यहाँ मां पर सहज विश्वास है ..हालांकि हमारे यहाँ भी कई बार माताओं द्वारा बच्चों को बेरहमी से पीटते देखा गया है.खुद मैं बचपन में अपनी मां द्वारा कई बार पीटी गयी हूं, फिर भी आज मेरी स्मृति में सबसे भरोसेमंद चेहरा मुझे अपनी मां का ही दिखाई देता है. कई बार यह भी देखा कि वेबस मां ने गुस्सा बच्चे पर निकाल दिया , उसे पीट दिया,फिर खुद भी रोने लगी. मां और बच्चे का रिश्ता एक सहज और प्राकृतिक रिश्ता होता है उसे कानून के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है . मैने क्रिस्टी को सलाह दी कि वह ऑस्ट्रेलिया जाकर अपनी मां से अवश्य मिले .यदि उनकी गलती है तो भी उन्हे एक मौका अवश्य दे. उसने भरी आवाज़ और भरी आँखों से बताया कि वह कैसे मिलेगी अपनी मां से ,उसे तो पता ही नहीं कि वह रहती कहाँ हैं? मैने कहा कोई बात नहीं तुम्हारे इतने रिश्तेदार होंगे, मित्र होंगे, कोई न कोई तो बता ही देगा उनका पता. उसने कहा ले दे कर उसका एक हाफ ब्रदर है (मां के पिछले बॉय फ्रेंड से जन्मा उसका सौतेला भाई). लेकिन वह भी कैसे बताएगा, क्योंकि हो सकता है कि इस बीच मां ने अपना नाम ही बदल लिया हो. मैं आसमान से गिरी – ऐसा भी हो सकता है ? उसने कहा हां, मेरी मां और उसके वर्तमान हज़्बेंड  के बीच कानूनी मुकदमा चल रहा है, इसलिये कानून की नज़रों से बचने के लिये मेरी मां पहले भी ऐसा कर चुकी है. मैने माथा पीट लिया – इस गुत्थी को सुलझाना मेरे बस का नहीं था.

          मि.स्टीव ने कहा – भारत से वे पारिवारिक मूल्य सीख कर जा रहे हैं, पूरी जिंदगी वे भी अपने बेटे के लिये तरसते रहे थे. तलाकशुदा पत्नी ने अपने बेटे को उनसे मिलने तक नहीं दिया. आज बेटा बालिग हो गया है इसकारण बेटे से कभी कभार मिल लेते हैं, पर रिश्तों में वह गहराई और आत्मीयता नहीं आ पायी है . हाल ही जन्मे पोते  के लिये दिल कलपता है लेकिन सालभर में महज कुछ दिनों के लिये ही अपने पोते से मिल पाते हैं वे. ऑस्ट्रेलिया में बढ़ते मनोरोगों और हिंसा के लिये वे बहुत हदतक टूटते बिखरते परिवार ,भावशून्यता और असुरक्षा बोध में बीतते बचपन को ही मानते हैं. क्योंकि परिवार ही आदमी को आदमी बनाता है . जबकि केले मानती है कि ऑस्ट्रेलिया के टूटते बिखरते परिवार के लिये बहुत हद तक वे कानून भी जिम्मेद्वार हैं जो वहां कि पागल सरकार ने बना रखे हैं.

          मैं सोच रही थी – इतना आधुनिक और उन्नत समाज पर इतना नहीं जानता कि अस्तित्व के अर्थ और जीवन के मर्म क्या कानून द्वारा पकड़ में आ सकते हैं?

****

मधु कांकरिया हिन्दी साहित्य की प्रतिष्ठित लेखिका हैं। मधु जी के लेखन का मुख्य क्षेत्र गद्य है। मधु जी के उपन्यास और कहानियॉं बहुचर्चित हैं। कथेतर के क्षेत्र में मधु जी ने बहुत सुन्दर यात्रा-वृत्त लिखे हैं। इनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता तथा समाज में व्याप्त अनेक ज्वलंत समस्याएं जैसे संस्कृति, महानगर की घुटन और असुरक्षा के बीच युवाओं में बढ़ती नशे की आदत, लालबत्ती इलाकों की पीड़ा तथा नारी अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं के विषय रहे हैं।

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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