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Home कविता

जसवीर त्यागी की कविताएँ

by Anhadkolkata
September 13, 2023
in कविता
A A
8
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जसवीर त्यागी अपनी कविताओं में न केवल संबंधों के बारीक धागे बुनते हैं बल्कि वे शब्दों के माध्यम से भावनाओं की एक ऐसी मिठास भी उत्पन्न करते हैं कि अपने भी कुछ ज्यादा अपने लगने लगते हैं और दूसरे कुछ-कुछ और ज्यादा सहज।

अगर सहजता और भावनाओं का मेल देखना हो तो हमें इस कवि के पास बार-बार लौटना होगा।

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जसवीर की कविताएँ किसी बड़े आन्दोलन या उद्देश्य को अपना लक्ष्य नहीं बनातीं। वे हमें वहाँ लेकर जाती हैं जहाँ से यह जीवन थोड़ा अधिक सुंदर दिखता है और इस धरती के लिए एक मासूम-सी उम्मीद बँधती है।

जसवीर जी की कविताएँ अनहद कोलकाता पर हम पहली बार पढ़ रहे हैं। तो आइए इस महत्त कवि का स्वागत करें।

आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही।

 

 

 

 

जसवीर त्यागी

 

बेटियों का चेहरा
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

वह गली-गली घूमकर
साइकिल पर सामान बेचता है

बहुत बार
कभी गरमी,कभी बरसात
और कभी सरदी बहुत होती है

फिर भी बिना नागा
काम पर जाता है
सूरज की तरह

हर तरह के मानुष से मुलाकात होती है
बोलना-सुनना भी बिक्री-कला का एक अनिवार्य अंग है

दिन छिपे
जब घर की स्मृति का दीया जगमगाने लगता है
वह साइकिल का हैंडल
घर की ओर घुमा देता है
पत्नी द्वारा मंगाया
घर का जरूरी सामान खरीदता है

पिता को आता देख
तीनों बेटियाँ
हरसिंगार की कलियाँ-सी खिलने लगती हैं

बड़ी वाली
दौड़कर पिता की साइकिल थामती है

मंझली खाट बिछा देती है
तीसरी और सबसे छोटी वाली
जल भरा लोटा लेकर आती है

पिता की बगल
बेल-सी फैल जाती हैं
सुनती हैं सारे दिन का हाल-चाल

बातचीत के दौरान
तीनों बेटियों में से कोई-सी एक कहती है-
काश हमारी भी छोटी-मोटी दुकान होती
तो हमारी जिंदगी भी दूसरी होती

कम-से-कम पिताजी को
दिनभर घूम-घूमकर
यूँ खटना तो न पड़ता

फिर उनमें से कोई एक
उदास चेहरा लिए कहती है
गरीब इंसान से तो
धूप बारिश भी मख़ौल करती है

पिता बेटियों की चिंता की चर्चा में
शामिल होने से बचते हैं
और कहते हैं
आजकल दुकान की कीमत की रकम में
हो सकते हैं एक जवान बेटी के पीले हाथ

पिता और बेटियों की चिंताएँ
एक ही नदी की
दो अलग-अलग धाराएँ हैं
दोनों के मूल में जल है

कभी-कभी
तीसरे नम्बर की बेटी पूछती है-

पिताजी जब आप
साइकिल पर सामान बेचते हो
आपको धूप भी लगती होगी

पिता बेटियाँ को गौर से देखते हैं
और मुस्कुराकर कहते हैं-

मेरी बच्चियों का चेहरा
सदा मुझे
धूप और धूल से दूर रखता है।

 

माँ और घर
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अपनी बनावट में
जितने छोटे,सरल
और कोमल शब्द हैं
माँ और घर

अपनी अर्थवत्ता और सार्थकता में
उतने ही व्यापक,तरल और सबल हैं

कभी-कभी मुझे
माँ घर लगती हैं

और घर माँ लगता है।

 

जीवन
÷÷÷÷

कट्टरता
संभावनाओं के द्वार बंद करती है
जीवन संभावनाओं का नाम है

जो लोग कट्टरता को
गले लगाते हैं
वे जीवन को
गले लगाने से चूक जाते हैं।

 

जीवन और सपना
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हर इंसान का
अपना एक सपना होता है

जिसके लिए
वह जीवन जीता है

जिसका
कोई सपना नहीं होता

उसका
जीवन भी नहीं होता।

 

रुकी जिंदगी
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मेरा चार साल का बेटा
बहुत शरारती है

सारा दिन धमाचौकड़ी
कूदम-फादम
लटक-झटक
उठा-पटक

स्वीकार-इंकार
डांट-फटकार
लाड-प्यार

यही सब उसकी दिनचर्या है
उसके खेल-खिलौने भी
न जाने क्या सोचते होंगे?

थककर जब सो जाता है
उसकी शरारतें भी
उसके संग सो जाती हैं

सोते हुए
दुनिया का
सबसे मासूम बच्चा लगता है

सारा घर
उसके जागने का इंतजार करता है
कि वह जगे
और रुकी हुई जिंदगी
फिर से चल पड़े।

 

बिटिया के गुड्डे-गुड़िया
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

बिटिया के गुड्डे-गुड़िया की पीठ हमारी तरफ
और मुँह दूसरी ओर था

हमें इस बात का
कोई ख्याल न था

बिटिया स्कूल से घर आयी
आते ही निहारा खिलौनों को

देखते ही
गुड्डे-गुड़िया का मुँह अपनी तरफ
और पीठ दीवार की ओर करते हुए बोली-

गुड्डे-गुड़िया और मुझे
एक-दूसरे का चेहरा
दिखना भी चाहिए।

 

कर्म-पथ
÷÷÷÷÷

बाहर जेठ माह की धूप है
और उसे काम पर
बाहर जाना है

वह सोचता है
रुकता है
विचारता है

जेठ माह की धूप भी तो
अपने कर्म-पथ पर अग्रसर है

फिर मैं क्यों?
कर्म-विमुख हो जाऊं

मैं
धूप से प्रेरणा पाऊं।

 

ठौर-ठिकाना
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मैं टूटा हुआ
एक बटन हूँ
तुम्हारी कमीज का

उठाकर फिर से
लगा लो मुझे

टूटे हुए को
छूटे हुए को
एक ठौर-ठिकाना मिल जायेगा।

 

मुलाकात
÷÷÷÷÷÷

वह कारागार में बंद है
उषा होने पर
कारागार में झरोखे से धूप आती है

सामने फूलों वाला एक पेड़ है
जिस पर बैठकर पँछी चहचहाते हैं

उसे भरोसा है
एक दिन वह
धूप,पेड़
और पंछियों से
मिलेगा जरूर।

 

फूल और कांटा
÷÷÷÷÷÷÷÷÷

जमीन पर
एक फूल पड़ा है
कांटा उसके साथ है

देखने वालों को
दूर से ही चमकता है फूल

कांटे का
ख्याल नहीं आता

स्मृतियों में
फूल बचता है।

 

कवि -परिचय
———————-

नाम: जसवीर त्यागी

शिक्षा: एम.ए, एम.फील,
पीएच.डी(दिल्ली विश्वविद्यालय)

सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज
राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ, आजकल, कादम्बिनी, जनसत्ता, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, कृति ओर, वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।

*अभी भी दुनिया में*- काव्य-संग्रह।

*कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी भाषाओं में अनुवाद*

*सचेतक और डॉ रामविलास शर्मा*(तीन खण्ड)का संकलन-संपादन।

*रामविलास शर्मा के पत्र*- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन।

सम्मान: *हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।*

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018

मोबाइल:9818389571
ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

Tags: Jasvir Tyagi/जसवीर त्यागी : कविताएं
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Comments 8

  1. सुषमा गुप्ता says:
    2 years ago

    जीवन की छोटी से छोटी घटना को बड़ी ही सहजता से अपनी कविताओं में पिरो कर रखते हैं। जो हमेशा अपनी सी लगती हैं। आशावादी कविताओं से एक सुंदर संदेश देते हैं। कविताओं में सुंदर और वास्तविक दृश्य चित्रण होता है। बहुत ही सुंदर लेखनी है कवि की जो हमेशा प्रेरित करती है।

    Reply
    • Anhadkolkata says:
      2 years ago

      आभार । अनहद कोलकाता से जुड़े रहने का शुक्रिया ।

      Reply
  2. मनोरमा says:
    2 years ago

    कवि के लिए प्रशंसा के शब्द कम हैं

    Reply
    • Anhadkolkata says:
      2 years ago

      आभार । अनहद कोलकाता से जुड़े रहने का शुक्रिया।

      Reply
  3. Rohit kumar says:
    2 years ago

    साधारण शब्दावली में कितने ही मार्मिक भावों और सहजता को बयां करती हुई कविताएँ हैं।

    अच्छा लगा पढ़कर। 😊

    Reply
    • Anhadkolkata says:
      2 years ago

      आभार । अनहद कोलकाता से जुड़े रहने का शुक्रिया।

      Reply
  4. रश्मि लहर says:
    2 years ago

    अद्भुत सृजन करते हैं! आपकी सहज तथा समृद्ध लेखनी को नमन!

    Reply
    • Anhadkolkata says:
      2 years ago

      आभार । अनहद कोलकाता से जुड़े रहने का शुक्रिया ।

      Reply

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