• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कथा

आबल-ताबल : दसवीं : ललन चतुर्वेदी

by Anhadkolkata
August 13, 2023
in कथा
A A
0
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

आबल-ताबल – ललन चतुर्वेदी       

परसाई जी की बात चलती है तो व्यंग्य विधा की बहुत याद आती है। वे व्यंग्य के शिखर हैं – उन्होंने इस विधा को स्थापित किया, लेकिन यह विधा इधर के दिनों में उस तरह चिन्हित नहीं हुई – उसके बहुत सारे कारण हैं। बहरहाल कहना यह है कि अनहद कोलकाता पर हम आबल-ताबल नाम से व्यंग्य का एक स्थायी स्तंभ शुरू कर रहे हैं जिसे सुकवि एवं युवा  व्यंग्यकार ललन चतुर्वेदी ने लिखने की सहमति दी है। यह स्तंभ महीने के पहले और आखिरी शनिवार को प्रकाशित होगा। आशा है कि यह स्तंभ न केवल आपकी साहित्यिक पसंदगी में शामिल होगा वरंच जीवन और जगत को समझने की एक नई दृष्टि और ऊर्जा भी देगा। 

Related articles

रूपा सिंह की कहानी – लकीरें

प्रज्ञा पाण्डेय की कहानी – चिरई क जियरा उदास

प्रस्तुत है स्तंभ की दसवीं कड़ी। आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही। 

ललन चतुर्वेदी

 

पत्नी और धर्मपत्नी

सुबह की सैर के अनेक फायदे आप सुन चुके हैं। इसे मैं चिंतन-काल मानता हूँ। ऐसे ही एक सुबह प्यारेलाल जी से मुलाक़ात हो गई। उनके चेहरे पर मेले के उसरने वाली उदासी पसरी हुई थी। मैंने उनसे उलाहना भरे स्वर में कहा- “क्या प्यारे,सुबह-सुबह क्यों मुंह लटकाये हुए हो।”

“क्या कहूँ। आँखों में रात कटी है। एक धर्मसंकट में फंस गया हूँ। मसला गंभीर है। चूंकि समस्या पत्नी से संबंधित है,इसलिए इसे मैं गुरु-गंभीर भी मानता और समझता हूँ। घर में पत्नी की पुकार और ऑफिस में साहब की घंटी पर किसके कान खड़े नहीं होते ? शायद ऐसे वीर-बहादुरों की संख्या धरती पर नगण्य ही हैं जो पत्नी और साहब की बातों पर तत्काल कान नहीं देते।”

मैंने उनके अनुभव पर मुहर लगाते हुए कहा-“क्या पते की बात कहते हो! आठ घंटे साहब और बारह घंटे पत्नी को देने के बाद जो समय बचे उसे मैं अमृत काल मानता  हूँ। अब राम-प्रात की वेला को पत्नी और आफिस की गतिविधियों के चिंतन पर व्यर्थ मत करो। चलो,मौसम्बी का जूस पियो और सेहत को बुलंद रखो।फिर भी यदि कोई मसला है तो बतलाओ। हर समस्या का समाधान है।”

प्यारेलाल जी ने लंबी सांस लेकर बतलाना शुरू किया- “मेरी पत्नी का नाम माधुरी है।”

“इसमें कौन सी नई बात है। हर व्यक्ति की पत्नी का एक नाम होता है। यह अलग बात है कि कुछ लोग प्यार प्रदर्शित करने के लिए पत्नी को अलग-अलग नामों से भी पुकारते हैं।”

“तुम तो मज़ाक ही शुरू कर देते हो। पहले पूरी बात तो सुन लिया करो।असल में कल रात की पार्टी से लौटने के बाद माधुरी गुम-सुम दिखने लगी हैं। घर में उदासी पसरी हुई है। वह जब बोलती हैं तो लगता है कि घर बोल रहा है।उनकी उदासी मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

“आखिर हुआ क्या उन्हें?मैं भी तो जानूँ।”

” बात बिलकुल मामूली सी है। पार्टी में लोग अपनी-अपनी पत्नी का एक-दूसरे से परिचय करा रहे थे।लोग अपनी पत्नी को श्रीमती, धर्मपत्नी,अर्धांगिनी,स्वामिनी आदि विभिन कर्णप्रिय नामों से परिचय करा रहे थे।कुछ लोग वाइफ और स्वीट हार्ट वाले भी थे। इसमें किसी को क्या आपत्ति?आप अपनी पत्नी को जो कहें। दाल में जितना घी डालें ,स्वाद उसी के अनुसार मिलेगा। मैं तो सीधा-सादा आदमी ठहरा। एक सज्जन से माधुरी का मैंने भी परिचय कराते हुए कहा- ये माधुरी जी हैं,मेरी पत्नी।”उनकी बहुत ठंडी प्रतिक्रिया रही। खैर,खाने-पीने के बाद हम दोनों घर लौट आए। रास्ता सन्नाटे में ही कटा।संवादहीनता की स्थिति भयावह होती है।”

“तो तुम्हारा चेहरा इसीलिए उतरा हुआ है। “

“नहीं भाई ! बात दरअसल ऐसी है कि माधुरी मुझसे सख्त नाराज हैं। कहती हैं कि सारा प्यार घर में ही टपकता है। यहाँ दिन-रात तरह-तरह की उपमाओं और विशेषणों से नवाजते रहते हो। महफिल में तुम्हारे कंठ सूख जाते हैं। यदि प्यार से एक बार धर्मपत्नी कह देते तो तुम्हारी इज्जत में बट्टा लग जाता?”

“अब तुम्हीं बताओ,मैं उन्हें क्या और कैसे समझाऊँ? वाणी और अर्थ तथा जल और लहरों के बीच तुलसी दास जी भी अंतर बतलाने में असमर्थ हो गए थे। मैं कैसे बतलाऊँ कि पत्नी और धर्मपत्नी दोनों एक ही हैं।तुम तो हिन्दी के प्रोफेसर हो। बतलाओ।”

मैंने माथा पकड़ लिया। मैं कैसे कहूँ कि तुम्हारी पत्नी के लिए मैं प्रोफेसर नहीं हूँ और अपनी पत्नी के लिए तो मास्टर भी नहीं।पत्नी के सामने पति को हमेशा अनुशासित विद्यार्थी की भूमिका में रहना चाहिए। मैंने मन ही मन इन बातों पर गंभीरतापूर्वक मनन किया। मुझे थोड़ी देर तक मौन देखकर प्यारेलाल जी ने कहा- “पत्नी का नाम आते ही तुम्हारी भी बोलती बंद हो  गई प्रोफेसर!”

“पत्नी अतर्क्य होती है,मन-बुद्धि से परे प्यारे! तुम घर जाओ, प्रेम से भाभी के साथ चाय पर चर्चा के दौरान मन की बात बतलाओ। गृहस्थी में अच्छे दिन बनाए रखने के लिए मैं तुम्हें कुछ जरूरी टिप्स दे रहा हूँ।”

“बतलाओ भी भाई ! माधुरी के चाय का भी टाइम हो गया है।दिन दो पहर चढ़ चुका है। सूरज के बढ़ते ताप के साथ मेरी भी चिंताओं का ग्राफ बढ़ने लगा  है।”

“देखो,पहली मार्के की बात यह है कि स्त्री से बातें करते समय अधैर्य नहीं होना चाहिए। जाकर प्रेम से भाभी को समझाओ कि पत्नी संज्ञा है,विशेषण है,क्रियाविशेषण है,अव्यय है। इसीलिए पत्नी के पहले कुछ भी जोड़ना व्याकरणिक रूप से गलत तो है ही बल्कि मैं कहूँगा कि नैतिक रूप से भी गलत है। अब तुम्हीं बतलाओ पत्नी से पहले कोई है? पत्नी स्वयं में पूर्ण है । उसको किसी विशेषण से विभूषित करने की जरूरत ही नहीं है। यह हृदय की बात है। विज्ञजन पत्नी के संदर्भ में विधि,विज्ञान और शास्त्र का कभी हवाला नहीं देते।” प्यारेलाल जी मेरी बातों से पूर्ण रूप से आश्वस्त दिख रहे थे। उनके चेहरे पर  चमक और संतोष का भाव उभरने लगा था। वह अचानक उठ कर चल पड़े। मुझे कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ। ज्ञान प्राप्त हो जाने पर शिष्य गुरु को छोड़ देता है। मेरी चिंता कुछ अलग थी। समाधान में मैंने  भी तेज कदमों से घर का रुख किया। अनावश्यक विलंब से मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। निश्चित रूप से चंचला आज चाय के बदले कारण बतलाओ नोटिस सर्व करने के लिए तैयार बैठी होगी।   *****

                                                                                                                                                 

 

                                                                                                                                                   ललन चतुर्वेदी

 (मूल नाम ललन कुमार चौबे)

वास्तविक जन्म तिथि : 10 मई 1966

मुजफ्फरपुर(बिहार) के पश्चिमी इलाके में

नारायणी नदी के तट पर स्थित बैजलपुर ग्राम में

शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी), बी एड.यूजीसी की नेट जेआरएफ परीक्षा उत्तीर्ण

प्रश्नकाल का दौर नाम से एक व्यंग्य संकलन प्रकाशित

साहित्य की स्तरीय पत्रिकाओं में सौ से अधिक कविताएं प्रकाशित

रोशनी ढोती औरतें शीर्षक से अपना पहला कविता संकलन प्रकाशित करने की योजना है  

संप्रति : भारत सरकार के एक कार्यालय में अनुवाद कार्य से संबद्ध एवं स्वतंत्र लेखन

लंबे समय तक रांची में रहने के बाद पिछले तीन वर्षों से बेंगलूर में रहते हैं।

संपर्क: lalancsb@gmail.com और 9431582801 भी।

 

 

 

 

Tags: Lalan chturvedi/ललन चतुर्वेदी : हिन्दी व्यंग्य
ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

रूपा सिंह की कहानी – लकीरें

रूपा सिंह की कहानी – लकीरें

by Anhadkolkata
May 16, 2025
0

रूपा सिंह रूपा सिंह की कहानियाँ हमें मानवीय संबंधों और उनकी विसंगतियों की ओर ले जाती हैं और हमें पता ही नहीं चलता कि हम कब...

प्रज्ञा पाण्डेय की कहानी – चिरई क जियरा उदास

प्रज्ञा पाण्डेय की कहानी – चिरई क जियरा उदास

by Anhadkolkata
March 30, 2025
0

प्रज्ञा पाण्डेय प्रज्ञा पाण्डेय की कहानियाँ समय-समय पर हम पत्र पत्रिकाओं में पढ़ते आए हैं एवं उन्हें सराहते भी आए हैं - उनकी कहानियों में आपको...

अनामिका प्रिया की कहानी – थॉमस के जाने के बाद

अनामिका प्रिया की कहानी – थॉमस के जाने के बाद

by Anhadkolkata
March 28, 2025
0

अनामिका प्रिया अनामिका प्रिया की कई कहानियाँ राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कहानियों में संवेदना के साथ कहन की सरलता और...

उर्मिला शिरीष की कहानी – स्पेस

उर्मिला शिरीष की कहानी – स्पेस

by Anhadkolkata
March 15, 2025
0

उर्मिला शिरीष स्पेस उर्मिला शिरीष   मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावें             जैसे उड़ जहाज को पंछी पुनि जहाज पे आये। (सूरदास)             आज चौथा...

ममता शर्मा की कहानी – औरत का दिल

ममता शर्मा की कहानी – औरत का दिल

by Anhadkolkata
March 10, 2025
0

ममता शर्मा औरत का दिल ममता शर्मा                 वह औरत का दिल तलाश रही थी। दरअसल एक दिन सुबह सवेरे उसने अख़बार  में एक ख़बर  पढ़...

Next Post
‘एक जीवन अलग से’  पर पल्लवी विनोद की समीक्षा

'एक जीवन अलग से' पर पल्लवी विनोद की समीक्षा

ललन चतुर्वेदी की कविताएँ

ललन चतुर्वेदी की कविताएँ

प्रेमचंद की जयंती पर उनकी एक प्रासंगिक कहानी – जिहाद

राष्ट्रवाद : प्रेमचंद

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.