आबल-ताबल – ललन चतुर्वेदी
परसाई जी की बात चलती है तो व्यंग्य विधा की बहुत याद आती है। वे व्यंग्य के शिखर हैं – उन्होंने इस विधा को स्थापित किया, लेकिन यह विधा इधर के दिनों में उस तरह चिन्हित नहीं हुई – उसके बहुत सारे कारण हैं। बहरहाल कहना यह है कि अनहद कोलकाता पर हम आबल-ताबल नाम से व्यंग्य का एक स्थायी स्तंभ शुरू कर रहे हैं जिसे सुकवि एवं युवा व्यंग्यकार ललन चतुर्वेदी ने लिखने की सहमति दी है। यह स्तंभ महीने के पहले और आखिरी शनिवार को प्रकाशित होगा। आशा है कि यह स्तंभ न केवल आपकी साहित्यिक पसंदगी में शामिल होगा वरंच जीवन और जगत को समझने की एक नई दृष्टि और ऊर्जा भी देगा।
प्रस्तुत है स्तंभ की चौथी कड़ी। आपकी राय का इंतजार तो रहेगा ही।
कुत्ते से सावधान
ललन चतुर्वेदी
कुत्ते मेरे पीछे पड़ गए हैं। जिनके पीछे कुत्ते पड़ जाएं,उनका हाल तो आप समझ ही सकते हैं। मैंने बहुत कोशिश की कि कुत्तों के संदर्भ में रहीम की रणनीति का अनुपालन करूँ पर बार-बार मुंह के बल गिरा। आप जितनी बार रणनीति बदल लें,कुत्ते को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।कुत्ते के पास एक स्थायी रणनीति होती है। अपनी इसी रणनीति के बल पर सभ्य समाज में उसकी जगह सर्वाधिकार सुरक्षित है,उसे मान-सम्मान प्राप्त है। सौ में से निन्यानबे आदमी उसके लिए अपने हाथ में वफादारी का मुकुट लिए बैठे हैं। जैसे ही कोई कुत्ता मिलता है वे उसे मुकुट पहना कर संतोष की सांस लेते हैं। मजाल है कि कोई उनके सामने कुत्ते की निंदा कर दे। ऐसी जुर्रत यदि कोई करे तो कुत्ते के बदले वे सज्जन आरोपी का मुंह नोच लें। ऐसे ही लोगों ने कुत्ता जाति को वफादारी का पेटेंट दे दिया है।
आलीशान महलों के मुख्य-द्वार पर जब मैं ‘कुत्ते से सावधान’ सूक्ति का अवलोकन करता हूँ तो स्वागतम जैसे शब्द और स्वस्तिक जैसे प्रतीक चिह्न की हैसियत का पता चल जाता है। आखिर कुत्ते इतने प्रिय क्यों हो गए कि उसने स्वागत और स्वस्तिक को विस्थापित कर दिया।यह विषय का एक पहलू है। कुत्तों के कौतुक इतने रहस्यमय हैं कि वे मेरे लिए न सिर्फ स्थायी कौतूहल के बल्कि सतत अनुसंधान के विषय बन गये हैं।इतना स्नेह-प्यार दुनिया के सारे प्राणियों को मिले तो यह जग ही तपोवन हो जाए,यहाँ रामराज्य स्थापित हो जाये।बहरहाल, मेरे मोहल्ले में जब सुंदरियाँ कुत्ते के साथ सैर पर निकलती हैं तो मैं दिल थाम कर उनके ‘पेट’ को देखता हूँ। अब उनसे बात करने का दुस्साहस तो मैं कर नहीं सकता तो मौन भाव से उनके कुत्ते के बारे में चिंतन करता रहता हूँ। इस चिंतन के क्रम में उनके संबंध में ज्ञान के कुछ अनमोल खजाने मिल जाते हैं। क्या यह किसी खुशी से कम है?लोकहित में इन जानकारियों को मैं शेयर करता रहूँगा। पहली किस्त में संक्षेप में इतना जानिए कि हर कुत्ता में एक खास गुण होता है। इसीलिए वह जीवनपर्यंत खासमखास बना रहता है। अकारण नहीं लोग उन्हें महंगे दामों पर खरीद कर संतान की तरह पालते हैं। जिस तरह अनंत किसिम के कुत्ते होते हैं,उसी तरह उनके अनंत किसिम के गुण भी हैं। मैं तो उन्हें गुण का आगार समझता हूँ।
अब गली के कुत्ते को ही ले लीजिए। साहब लोग इन्हें ‘स्ट्रीट डॉग’ कहते हैं। मालूम नहीं अँग्रेजी में भारी भरकम नाम देने के बावजूद वे इनको वेटेज क्यों नहीं देते ? अब यह उनका दृष्टिकोण है। इसमें कोई क्या कर सकता है। हालांकि ये स्ट्रीट डॉग साहबों के प्रति बड़े उदार होते हैं। ये उन्हें कभी परेशान नहीं करते। यहाँ तक कि उनको देखकर कभी भौंकते भी नहीं। यह अनुभव की बात है और मेरा अपना अनुभव है। आपका अनुभव कुछ भिन्न भी हो सकता है। सभ्य,सुदर्शन कोई जेंटलमैन/वूमेन मोहल्ले से गुजरे तो स्ट्रीट डॉग मौन अभिवादन कर आँख मूँद लेते हैं,मानो उन्हीं का ध्यान कर रहे हों। परंतु जैसे ही कोई गरीब,फटे-पुराने कपड़े पहने कोई भिखारी सामने दिख जाए तो घमंडी मेघ की तरह गर्जन करने लगते हैं। गरीबों से यह कैसी नाराजगी! मैंने एक सज्जन से इस संबंध में जानना चाहा कि कुत्ते गरीबों के प्रति इतने क्यों आक्रामक हो जाते हैं? सज्जन का जवाब नोट करने लायक था – ऐसे लोग प्रायः कुत्ते को नुकसान पहुंचाते हैं,उन पर पत्थर फेंकते हैं। शायद इसीलिए उनको देखकर वे भड़क जाते हैं।इस संबंध में सबके अपने-अपने विचार हैं। मैं कैसे कहूँ कि गरीब/भिखारी कुत्ते के दुश्मन हैं।
‘स्ट्रीट डॉग’ के संबंध में लोगों का चाहे जो भी नजरिया हो,आज मैं अपनी चर्चा ‘स्ट्रीट डॉग’ पर ही केन्द्रित करूंगा। जितनी औकात है,उसी हिसाब से बात करता हूँ। फिलहाल मेरी पहुँच यहीं तक है। जब सुसभ्य,संभ्रांत और कुलीन(इलीट) कुत्तों के बारे में जानकारी एकत्र करूंगा,जरूर साझा करूंगा। पुनः दोहरा रहा हूँ, कुत्ते मेरे लिए सतत अनुसंधान और शाश्वत महत्व के विषय हैं। अतः आपको कभी निराश नहीं करूंगा। मुझे मालूम है कि मेरे पाठक मामूली इंसान हैं। अतः वे कुत्तों के गुण-धर्म विवेचन से नाराज-परेशान नहीं होंगे।बड़े लोगों के सामने कुत्ते की आलोचना करना एक जोखिम भरा काम है। वे कुत्ते की आलोचना सुनना बिलकुल पसंद नहीं करते। उल्टे वे ऐसे आलोचक के पीछे कुत्ते की तरह पड़ जाते हैं। लगता है जैसे यह काम उनके ही कार्य क्षेत्र का है।
स्ट्रीट डॉग कमाल के होते हैं। पूरा मोहल्ला ही उनका घर होता है। अपनी सीमाओं के प्रति इतना चौकस संसार का कोई प्राणी नहीं है। मजाल नहीं कि कोई दूसरा कुत्ता उनकी बाउंड्री में आ जाए। अपनी सीमाओं के प्रति इतने सतर्क कि जाति – धर्म सबसे ऊपर अपना मोहल्ला।आखिर सारे कुत्ते तो उन्हीं के जाति के हैं और लगभग धर्म भी उनका एक ही है। फिर भी वे अपने मोहल्ले में किसी की घुसपैठ बर्दाश्त नहीं कर सकते। देश भक्ति का पाठ कोई इनसे पढ़े। किसी को कोई रियायत नहीं। कोई कितना मजबूत,बड़ा,देशी या विदेशी नस्ल का ही क्यों न हो बस सामने दिखने भर की देर है।जब तक उसको मोहल्ला-पार नहीं करेंगे,तब तक दम नहीं लेंगे।अगर ‘स्ट्रीट डॉग’ अलसा कर सोया भी हुआ है ,तब भी एक बार आँख खोल कर गुर्राएगा जरूर। इतने पर भी अजनबी नहीं समझा तो हजार मीटर का दौड़ लगवा कर ही छोड़ेगा।अगर वह कमजोर या बीमार भी है तो भी उसके सिंगल सिग्नल पर मोहल्ले के सारे कुत्ते इकट्ठे हो जाएंगे। वे अपनी एकता और मोहल्ले की अखंडता का परिचय देने के लिए किसी भी अवसर से नहीं चूक सकते। स्ट्रीट डॉग की इस कर्तव्य- निष्ठा पर कौन नहीं कुर्बान हो जाए।इसीलिए कहा गया है कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। यह बात केवल सैद्धांतिक नहीं है। मैं फील्ड- ट्राइल के आंखो-देखी अनुभव पर यह सब अंकित कर रहा हूँ। आए दिन मेरे नजरों के सामने अनेक मुठभेड़ होते रहते हैं। ऐसे ही लोमहर्षक समूह युद्ध में अपने मोहल्ले का ‘मोती’ जब लहूलुहान होकर गुजर रहा था तो प्यारेलाल जी की नजर उस पर पड़ गई। उसके शौर्य से वे इतने उत्साहित नजर आने लगे कि सीमा पार से होने वाली हालिया घुसपैठ की गतिविधियों पर नियंत्रण में कुत्तों की भूमिका पर बात करने लगे। सुरक्षा विशेषज्ञ की भूमिका में आकर सुझाव देना शुरू कर दिया- सीमा पर घुसपैठ को रोकने में प्रशिक्षित कुत्ते बहुत कारगर सिद्ध हो सकते हैं। कुत्तों की घ्राण-शक्ति और पहचान शक्ति पर इस नाचीज को भी कभी कोई संदेह नहीं रहा। डॉलर कॉलोनी(कुछ समय तक अस्थायी निवास रहा) के निवासी इस गरीब आदमी के पास कुत्तों के अनेक रहस्यमयी शक्तियों की पुख्ता जानकारी है। इस लिहाज से बहस के अंत में उनके समक्ष एक छोटा सा महत्वपूर्ण सुझाव रखा -“इन कुत्तों को नियंत्रण में भी रखना जरूरी होगा।” उन्होंने इसको लगभग अनसुना करते हुए हुए मोती को ‘शेरू’ में अपग्रेड करने का बहुमूल्य प्रस्ताव रख दिया। इस समय उनके मन में मोती के वीरोचित कर्म के प्रति अगाध श्रद्धा की लहरें उफान पर थीं। मोहल्ले के बच्चों ने उनके इस प्रस्ताव का कर-तल ध्वनि से स्वागत करते हुए इसे सर्व सम्मति से पारित कर दिया। फिलहाल शेरू इलाज के लिए प्यारेलाल जी के सुरक्षित संरक्षण में है। प्यारेलाल जी ने अपने घर के मुख्य द्वार पर स्वर्णिम रंग में धातु की तख्ती लगा ली है- कुत्ते से सावधान।उनके घर की शोभा बढ़ाती इस तख्ती को आते-जाते लोग ध्यान से देख रहे हैं।
***** लेखक परिचय
ललन चतुर्वेदी
(मूल नाम ललन कुमार चौबे)
वास्तविक जन्म तिथि : 10 मई 1966
मुजफ्फरपुर(बिहार) के पश्चिमी इलाके में
नारायणी नदी के तट पर स्थित बैजलपुर ग्राम में
शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी), बी एड.यूजीसी की नेट जेआरएफ परीक्षा उत्तीर्ण
प्रश्नकाल का दौर नाम से एक व्यंग्य संकलन प्रकाशित
साहित्य की स्तरीय पत्रिकाओं में सौ से अधिक कविताएं प्रकाशित
रोशनी ढोती औरतें शीर्षक से अपना पहला कविता संकलन प्रकाशित करने की योजना है
संप्रति : भारत सरकार के एक कार्यालय में अनुवाद कार्य से संबद्ध एवं स्वतंत्र लेखन
लंबे समय तक रांची में रहने के बाद पिछले तीन वर्षों से बेंगलूर में रहते हैं।
संपर्क: lalancsb@gmail.com और 9431582801 भी।