• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

नई सदी की युवा कविता – कुछ प्रश्नों के उत्तर

by Anhadkolkata
June 20, 2022
in कविता, साहित्य
A A

किसी समाज में कविता का बचा होना मनुष्यता के बचे होने का प्रमाण है
विमलेश त्रिपाठी

नई सदी की युवा कविता पर कुछ भी कहने से पहले मैं यह स्वीकार करना जरूरी समझता हूँ कि जब मैंने लिखना शुरू किया तब यह सदी लगभग अपने अंतिम चरण में थी – बतौर तथ्य अगर कहूँ तो कह सकता हूँ कि मेरी तीन कविताएँ 2003 में ही वागर्थ के किसी अंक में पहली बार प्रकाशित हुई थीं। उस समय से लेकर आज तक की कविता पर लागातार मेरी दृष्टि बनी रही है। बेशक इस दौरान खूब-खूब कविताएँ लिखी गईं, खूब-खूब पुरस्कार लिए-दिए गए लेकिन बहुत कम ऐसी कविताएँ सामने आईं जिनमें कालजयी होने की क्षमता हो। कुछ प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त कविताएँ भी उस स्तर की नहीं रहीं जिन्हें वाकई पुरस्कार मिलना चाहिए था – इस दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि वरिष्ठ कवियों या आलोचकों द्वारा उन्हीं कविताओं को चिन्हित किया गया जिनके कवि के साथ उनके किसी न किसी रूप में संबंध या ताल्लुकात थे – चुपचाप बहुत अच्छी कविताएँ लिखने वाले और किसी गुट या मठ में विश्वास न करने वाले कवियों पर कुछ भी कहने से लोग बचते रहे। एक और बात गौर करने लायक है कि अकादमिक तबकों में युवा कविता को वह तरजीह न मिली जिसकी वह हकदार थी – अलबत्ता छात्रों ने जरूर कुछ कवियों को बतौर पाठक चिन्हित और प्रशंसित किया।
ये कुछ और चुपचाप लिखने वाले कवि अपने साथ किसी गॉडफादर को लेकर नहीं आए इसलिए अपने कहन और मिजाज में पूर्ववर्ती कविता से भिन्न स्वर लेकर आए- इनके कहन में न तो अतिशय कलात्मकता और चमत्कार का भार था और न ही कविता को लद्दड़ गद्य बना देने की प्रवृति। इनके पास अपने और संसार के दुख थे, अपने संघर्ष थे, अपने लिए एक सही रास्ते के चुनाव की छटपटाहट थी और सच को सच कहने का माद्दा था। इनके एक हाथ में घर की जिम्मेदारी थी तो दूसरे हाथ में बद से बदतर होते जा रहे देश को सुंदर बनाने का स्वप्न था। ये लागातार लड़ रहे थे, पराजित भी हो रहे थे लेकिन खूबी यह कि गिर कर अपने शरीर से खुद ही धूल झाड़कर फिर से चल पड़ने वाले इन कवियों ने कविता में कुछ नया और भिन्न किया। वे सबकुछ जानते समझते हुए अपने हिस्से की कठिन यात्राएँ कर रहे थे –
हम शहद बाँटते हैं
मधुमक्खियों की तरह
हज़ारों मील लम्बी और कठिन है
हमारे जीवन की भी यात्राएँ
उन्हीं की तरह
रहते हैं हम अपने काम में मगन
उन्हीं की तरह धरती के
एक-एक पुल की गंध और रस का
है पता हमें
वाकिफ़ हैं हम
धरती की नस-नस से
              (सुरेश सेन निशांत)
दूसरी बात यह कि इस सदी को बाजार ने गहरे प्रभावित किया इस बाजार की खासियत यह रही कि यह अब आपके घर में यहाँ तक कि शयन कक्ष में भी प्रवेश कर गया – इस बाजार समय में हर चीज बेची और खरीदी जाने लगी। इस बाजार ने जो सबसे नाकारात्मक काम किया वह कि उसने मूल्यों की जगह पैसे को स्थापित किया। अब पैसा ही सबसे बड़ा मूल्य था। यह तथ्य है कि साहित्य अनगिनत समय से मूल्यों को बचाने के लिए लड़ रहा है – इस सदी में भी मूल्यों के बचाने की लड़ाई उन कवियों ने ही पुरजोर तरीके से लड़ी जो अपनी जमीन और अपनी माटी से जुड़े हुए थे। इस बाजार ने कुमार विश्वास जैसे बिकाऊ और तथाकथित सेलिब्रिटी कवियों को पैदा किया तो उस बाजार के दबाव ने ही केशव तिवारी, कुमार अनुपम, मनोज कुमार झा और अदनान काफिल दरवेश जैसे कई प्रतिबद्ध कवियों को भी जन्म दिया। यहाँ कवियों की भी दो जमात देखी जा सकती है – एक जिन्हें बाजार ने अपने जैसा बना दिया और दूसरे जो इस बाजार और बाजारवाद के खिलाफ आद्यन्त लड़ने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
सोशल मिडिया का आना इस सदी की एक खास परिघटना है। कविता के संदर्भ में यह और अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है कि यह अभिव्यक्ति के एक सहज उपलब्ध माध्यम के रूप में विकसित हुआ। हमारी पीढ़ी ने जब लिखना शुरू किया था तो इस तरह के सहज उपलब्ध मंच नहीं थे इसलिए हमें कविताएँ छपने का महीनों इंतजार करना पड़ता था – साथ ही कविताओं को टाइप कराकर डाक से भेजना भी एक श्रमसाध्य और खर्चीला काम था – शायद यही वजह था कि कविताएँ लिखने के बावजूद मैंने किसी पत्रिका को कविता न भेजी। यह तभी संभव हो पाया जब मैं बेरोजगार न रहा। बाद में सोशल मिडिया से जुड़ाव हुआ – अपने संकोची स्वभाव के कारण जिन कवियों से मैंने बातें तक न की थीं उनसे बात भी हुई। मुझे याद आता है कि राजेश जोशी, उदय प्रकाश, कुमार अंबुज आदि वरिष्ठ कवियों से पहली बार मेरी बात सोशल मिडिया पर ही हुई। यह सोशल मिडिया का एक साकारात्मक पहलू जरूर है लेकिन इस मिडिया ने कवियों की बाढ़-सी ला दी, इस बाढ़ में कचरे के ढेर अधिक इकट्ठे हुए। तुरत प्रतिक्रिया को भी कविता कहा और माना जाने लगा – सोशल मिडिया ने कवियों को जरूरी धैर्य और आवश्यक मिहनत से दूर किया। लोगों ने अपने-अपने ब्लॉग बना लिए और कुछ भी लिखकर स्वयं को कवि मानने लगे। कई लोगों ने तो अपने नाम के आगे कवि को श्री और श्रीमती की तरह जोड़ लिया। कुल मिलाकार यह कि कविता लेखन के लिए जिस गंभीरता, दायित्वबोध और धैर्य की जरूरत होती है – सोशल मिडिया ने उसको नष्ट किया। लेकिन मेरे जैसे संकोची और चुपचाप रहने वाले लोगों के लिए इस मिडिया ने यह किया कि हमें एक बड़े पाठक वर्ग से जोड़ा। हमारे अंदर के डर और उपेक्षाबोध को तिरोहित कर इसने हमारे अंदर आत्मविशावास भरा। इसे इस तरह से भी देखे जाने की जरूरत है।
सोशल मिडिया की बदौलत ही कई लोगों ने कविता पर हाथ आजमाना शुरू किया – कुछ लोग जिनकी कविताएँ अपनी डायरी तक ही सीमित थीं वह अब फेसबुक और ब्लॉग पर चमकने लगीं। इसके कारण कविता और कवियों की एक बहुत ही नई और अभूतपूर्व पीढ़ी सामने आई – जाहिर है कि इनमें कई लोग ऐसे हैं जिन्हें रेखांकित भी किया गया। वीरू सोनकर, रश्मि भारद्वाज, कल्पना झा और शायक आलोक जैसे कवि पहले फेसबुक पर छपे बाद में इन्हें पत्रिकाओं में जगह मिली- यह चमत्कार से कम नहीं था।
इन कवियों की भीड़ में कुछ ऐसे कवि भी सामने आए जिनके पास अपनी माटी की गंध थी – जिनके पास अपने लोक-अनुभव का एक समृद्ध संसार था। इन कवियों ने अपने लोक अपनी माटी और अपने लोक को कविताओं में जगह दी। मिथिलेश कुमार राय गाँव में रहते हुए जमीन से जुड़ी कविताएँ लिख रहे हैं – नील कमल ने भी लोक जीवन को आधार बनाकर कुछ अच्छी कविताएँ लिखी हैं – ये ऐसे कवि हैं जिके पास अपनी जमीन है ये शब्दों के मार्फत कोई पहेली रचने वाले कवि नहीं हैं और न ही बुझव्वल बुझाने वाले अतिशय कलावादी कवि। ये ऐसे कवि हैं जिनकी कविताएं जमीन से पैदा होकर आसमान को संबोधित हैं। ये अंग्रेजी साहित्य घोंटकर विश्व कविता की उल्टी करने वाले कवि तो कतई नहीं हैं।
यहाँ यह फिर दुहराने की जरूरत है कि जिन युवा कवियों के पास अपनी जमीन है उनके पास एक खास तरह की विचारधारा भी काम कर रही है – अनुज लुगुन की कविताओं की पहचान इसलिए है कि वे आदिवासी समाज के प्रतिनिधि युवा कवि के रूप में सामने आते हैं, उसी तरह केशव तिवारी, महेश चंद्र पुनैठा, बहादुर पटेल, सिद्धेश्वर सिंह जैसे कवि अपनी लोक संपृक्ति के कारण लोकप्रिय और विश्वसनीय कवि बन सके हैं। यहाँ इस बात का उल्लेख भी जरूरी है कि कवियों की एक पीढ़ी ऐसी भी है जो कला का इस्तेमाल कर कालजयी कविताएँ लिखने के लिए मरी जा रही है – यह ऐसे कवियों की जमात है जिसके लिए घनानंद कह गए हैं – लोग हैं लागि कवित्त बनावत। तो यह पीढ़ी शब्दों के पैंतरे और कहन की अद्वितीयता सिद्ध करने में ही अपनी पूरी ऊर्जा लगाए दे रही है लेकिन इन्हें कौन समझाए कि ‘ट्रू’पोएट्री के लिए खुद भी ‘ट्रू’ होना पड़ता है। अपने व्यक्तिगत जीवन में इमानदार हुए बिना, संसार को सुंदर बनाने की विचारधारा को खून में शामिल किए बिना बड़ी कविता लिखी ही नहीं जा सकती।
यह ठीक है कि कला का प्रथम लक्ष्य आनंद प्रदान करना है – लेकिन आनंद और मनोरंजन ही कला का अंतिम उद्देश्य मान लेना कला को सीमित और संकुचित बना देना है। ठीक उसी तरह कला को सिर्फ विचारधारा का वाहक बना देना भी खतरनाक है। कविता अन्य कलाओं से इस मायने में भिन्न है कि वह बहुत जल्दी हृदय में प्रवेश करती है और उसका असर भी तीव्र होता है – क्या यही कारण नहीं है कि पुराने जमाने में जब योद्धा थककर निराश हो जाते थे तो कविता उनमें नए जोश और उमंग का संचार करती थी – यह एक अटपटा उदाहरण भले हो लेकिन इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि संगीत और नृत्य या पेंटिंग और फिल्म से अधिक ताकत कविता में है। यहाँ यह भी कहना जरूरी लगता है कि कविता जब इतनी ताकतवर विधा है तो उसे सकारात्मक प्रतिरोध और रचनात्मक आन्दोलन का हथियार जरूर बनाया जा सकता है। लेकिन कविता यह काम तभी करेगी या कर सकती है जब वह ईमानदार हृदय से निकले और आम लोगों तक इसकी पहुँच बने।
लेकिन यह कविता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि नई सदी की चकाचौंध रोशनियों और तेजी से बदलते हुए समय के बीच जोर-जोर भागते आम मनुष्य के बीच कविता के लिए बहुत ही कम जगह बची है। यह जरूर है कि सोशल मिडिया के आगमन के बाद एक नए तरह का पाठक वर्ग पैदा हुआ है लेकिन वह भी कितना गंभीर है यह विमर्श का मुद्दा है। रही बात आलोचकों के बीच नई सदी की कविता के मूल्यांकन की तो यह काम एक तरह से अनछुआ ही है। अकादमिक तबके के लोग निराला और केदार से होते हुए कुछ एक स्वनामधन्य कवियों तक ही पहुँच पाए हैं। कवियों की एक बड़ी जमात है जो चुपचाप अपना काम कर रही है लेकिन वह लगभग अनालोचित ही है। यह व्यर्थता की बात नहीं है। अनोलोचित होकर न कवि व्यर्थ हो सकता है और न कविता। उसी तरह किसी कवि या कवियों की जमात का मुल्यांकन न कर भी आलोचना व्यर्थ नहीं। आलोचना के पास और भी जरूरी काम हो ही सकते हैं लेकिन अब डेढ़ दशक के बितने के बाद नई सदी की कविता का समग्र मूल्यांकन होना चाहिए और यह इस तरह होना चाहिए कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाय। निश्चय ही यह कार्य एक जरूरी इमानदारी की माँग भी रखता है।
आलोचक और आलोचना के बिना भी कविता की जो जगह समाज में है वह बनी ही रहेगी। जिस तरह हम रोना और हँसना नहीं छोड़ सकते उसी तरह कविता के बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता है – कविता समाज में कई-कई शक्लों में मौजूद है – कहीं प्रत्यक्ष तो कही परोक्ष रूप में। किसी समाज में कविता का बचा होना मनुष्यता के बचे रहने का प्रमाण है यह बात हमें याद रखनी चाहिए।
साभार – वागर्थ
  Email: starbhojpuribimlesh@gmail.com

Related articles

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

·Mobile: 09088751215

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

Related Posts

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

अर्चना लार्क की सात कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
3

अर्चना लार्क की कविताएँ यत्र-तत्र देखता आया हूँ और उनके अंदर कवित्व की संभावनाओं को भी महसूस किया है लेकिन इधर की उनकी कुछ कविताओं को पढ़कर लगा...

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

नेहा नरूका की पाँच कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
3

नेहा नरूका समकालीन हिन्दी कविता को लेकर मेरे मन में कभी निराशा का भाव नहीं आय़ा। यह इसलिए है कि तमाम जुमलेबाज और पहेलीबाज कविताओं के...

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

चर्चित कवि, आलोचक और कथाकार भरत प्रसाद का एक रोचक और महत्त संस्मरण

by Anhadkolkata
June 24, 2022
4

                           आधा डूबा आधा उठा हुआ विश्वविद्यालय                                                                                भरत प्रसाद ‘चुनाव’ शब्द तानाशाही और अन्याय की दुर्गंध देता है। जबकि मजा यह कि...

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि  पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

उदय प्रकाश की कथा सृष्टि पर विनय कुमार मिश्र का आलेख

by Anhadkolkata
June 25, 2022
0

सत्ता के बहुभुज का आख्यान ( उदय प्रकाश की कथा सृष्टि से गुजरते हुए ) विनय कुमार मिश्र   उदय प्रकाश ‘जिनके मुख देखत दुख उपजत’...

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

प्रख्यात बांग्ला कवि सुबोध सरकार की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 24, 2022
1

सुबोध सरकार सुबोध सरकार बांग्ला भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कविता-संग्रह द्वैपायन ह्रदेर धारे के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार...

Next Post

अंकिता रासुरी की लंबी कविता

कविता संवाद - 2

सुशील मानव की कविताएँ

Comments 2

  1. Pooja Singh says:
    4 years ago

    सच कहा कविता बची रही है स्वार्थ और स्वार्थगत बाज़ार में तो तय है कि जीवन के साथ सच्ची कविताएँ भी बची रहेंगी… I

    Reply
  2. भास्कर चौधुरी says:
    4 years ago

    सच्ची कविता लिखने के लिए कवि को सच्चा होना ज़रूरी है.. सारगर्भित और सुंदर आलेख. बधाई बिमलेश भाई

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.