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शंकरानंद |
पिछले कुछ वर्षों में शंकरानंद ने अपनी लागातार सक्रियता से हिन्दी युवा कविता के संसार में उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज की है। गौरतलब है कि कवि के पास अपनी एक भाषा तो है ही साथ ही उसके मानस में अपने अंचल के प्रति एक विशेष लगाव भी दिखता है। उसकी कविताओं में फूलों की गंध है, चिडियों की चहक है, चूल्हे का धुआँ है तो मतदाता सूची की पड़ताल भी है। यह कवि अपनी सजग दृष्टि से दुनिया को देख रहा है और उसको कविता में शिद्दत से दर्ज कर रहा है। कहना चाहिए कि इस कवि में विविधता है जो बड़ी कविताओं की जमीन होती है। हम इस कवि की ओर हसरत भरी निगाह और उम्मीद से देख रहे हैं।
अनहद पर हम पहली बार शंकरानंद को प्रकाशित कर रहे हैं। हमें खुशी है कि आप लागातार हमारा हौसला बढ़ा रहे हैं।
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कटाव के बाद
ये वही जगह है जो कभी पत्तों के रंग में रंगी थी
यहां फूलों की गंध थी
यहीं थी चिड़ियों की चहक
यही अंडे थे यहीं घोंसले
और उनके बीच झड़े हुए पंख भी रहते थे
आप तस्वीरों में यहां खेलते बच्चों की हंसी को महसूस कर सकते हैं आज भी
चूल्हे का धुआं मिलेगा
कुतरे हुए नाखून और दानों के अवशेष मिलेंगे
कटे हुए घर के बीच अब बची है जीवन की गूंज
अब उन घरों के ढ़हने की याद रह गई शेष
जो गले हुए लोहे की तरह चुभती हैं
यह सब अब एक इतिहास है
आप आइये तो देखेंगे कि गांव के बीचोंबीच नदी बह रही है
एक निर्मम नदी
जिसमें मरे हुए लोगों की चीख पानी की आवाज में शोर करती है।
मतदाता सूची
जो नागरिक हैं वे दर्ज हैं हर सूची में
उनका नाम मिलेगा तस्वीर के पास
उनके माता का और पिता का भी नाम मिलेगा
उनकी जन्म तिथि मिलेगी
और भी मिलेगा सब कुछ सरकार के पास जो बताता है कि सरकार कितना चिन्तित है
पर कोई लापता हुआ उस सूची से तो सरकार नहीं बताती
कि कहां गए वे और क्यों गुम हुए शहर के बीच
उनका क्या हुआ जो लापता हुए
ये भी सरकार को नहीं मालूम न उनकी खोजबीन होती है इस तरह कि मिल जाएं
फिर लोग भूलने लगते हैं उन्हें धीरे धीरे
फिर एक दिन मतदाता सूची से भी नाम कट जाता है
अब सरकार उसमें नए नाम जोड़ लेती है।
एक बच्चे की इच्छा
रेत का बने या ईंट गारे का
या ताश के पत्तों का रहे घर मेरा
या पत्थर का ही हो गुफा की तरह
पर एक घर हो स्थायी इस दुनिया में
जिसमें मैं रहूं तो धूप नहीं आए
बारिश में पानी नहीं टपके
कोई खाली नहीं करवाए किराएदार की तरह
वह मेरा हो स्थायी पता
मैं उसकी दीवार पर असंख्य चित्र बनाना चाहता हूँ।
शिविर में रात
विस्थापन के बाद तमाम दुःख एक दिन कम पड़ जाते हैं
जब पता चलता है कि बेघर होना कितना तकलीफदेह है
तब न खाना अच्छा लगता है
न पानी न हवा न स्वप्न
तब नींद भी कई कई रात नहीं आती और कोई पूछता नहीं कि जाग क्यों रहे हो
शिविर में रात गुजारते समय यह पता चलता है कि
इस विशाल पृथ्वी पर एक इंच जमीन भी मिल जाती अपना कहने के लिए
तो वहां खड़े होकर सांस लेता
तब पता चलता कि जिन्दा होना किसे कहते हैं!
बांध की तरह
यह दुनिया दरअसल इसलिए बची है
कि सपने जिन्दा हैं
वे बांध की तरह खड़े हैं
हर दुःस्वप्न की नदी के किनारे
वे लहरों को सहते हैं तो दुनिया तबाह होने से बच जाती है
अगर झड़ते हैं धूल की तरह तो कुछ भी शेष नहीं बचता
दुःख यही है कि हर बांध टूट जाता है एक दिन
वहां बनता है नया बांध।
लौटने की जगह
घर एक धरती है विशाल
एक अछोर आसमान
एक नदी है
एक छायादार पेड़
घर एक उम्मीद है
घर एक रात
घर एक इतिहास है
घर एक भूगोल
दुनिया में कहीं भी रहें
घर आपके लिए लौटने की जगह है
एक अंतिम आसरा तमाम सूर्यास्त के बाद
यहां कभी भी आएंगे तो दरवाजा खुल जाएगा!
उन दिनों
जब सभी लोग सो जाते
मैं जागता रहता
यही सोचता कि अगर जीवन में एक घर नहीं बना सका तो
क्या मुंह दिखाऊँगा अपने बच्चों को
जब पीठ पर सामान लादे बदलना होगा बार बार घर
तब किस घरती में छिपाऊँगा मुँह
उन दिनों बेघर होना एक अपराध की तरह था
जिसके लिए मैं नहीं
मेरी सरकार जिम्मेदार थी जो हड़प लेती थी जमीन जबरन
मैं हर बार कहता कि मेरी सरकार ने मुझे बर्बाद किया
लेकिन वह इसे मानने के लिए हरगिज तैयार नहीं थी
वह एक आदेश देती थी और मेरा सब कुछ हड़प लेती थी।
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संपर्क-क्रांति भवन,कृष्णा नगर,खगड़िया-851204
मो0-8986933049
शंकरानंद
जन्म-8 अक्टूबर 1983
खगड़िया के एक गांव हरिपुर में
शिक्षा-एम0ए,बी0एड
प्रकाशन-आलोचना,वाक,आजकल,हंस,पाखी,वागर्थ,पक्षधर,उद्भावना,कथन,वसुधा,लमही,तहलका,पुनर्नवा,वर्तमान साहित्य,नया ज्ञानोदय,परिकथा,जनपक्ष,माध्यम,शुक्रवार साहित्य वार्षिकी,स्वाधीनता शारदीय विशेषांक,साक्षात्कार,सदानीरा,बया,मंतव्य,दस्तावेज,जनसत्ता,समावर्तन,परिचय,
आउटलुक,दुनिया इन दिनों साहित्य विशेषांक,समय के साखी,निकट,अनहद,युद्धरत आम आदमी,अक्षर पर्व,हिन्दुस्तान,प्रभात खबर,दैनिक भास्कर,अहा!जिन्दगी आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी नियमित रूप से कविताएं प्रसारित।
कुछ में कहानी भी।
कविताओं का कुछ भारतीय भाषाओं में अनुवाद।
पहला कविता संग्रह ‘दूसरे दिन के लिए‘;2012द्धभारतीय भाषा परिषद,कोलकाता से
’प्रथम कृति प्रकाशन माला’ के अंतर्गत चयनित एवं प्रकाशित।
दूसरा कविता संग्रह‘पदचाप के साथ‘;2015द्धराजभाषा विभाग के सहयोग से बोधि प्रकाशन,जयपुर से प्रकाशित।
सम्मान-2016 का विद्यापति पुरस्कार
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
शंकरानंद की सभी कविताये अच्छी है ।लेकिन कटाव के बाद , एक बच्चे की इच्छा और लौटने की जगह – उम्दा कविताये है । इन कविताओ की भाषा सहज है ।
अच्छी कविताएँ सच्ची कविताएँ.. लौटने की जगह, बाँध की तरह, शिविर में रात बहुत अच्छा विन्यास दिया हैl बधाई