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Home कविता

पंखुरी सिन्हा की नई कविताएँ

by Anhadkolkata
June 20, 2022
in कविता, साहित्य
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पंखुरी सिन्हा


 

पंखुरी सिन्हा ने हिन्दी कविता और कथा विधा में एक लंबी दूरी तय की है। कथा और कविता की कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही कई महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिले हैं। गौरतलब है कि इधर की इनकी कविताओं में आज के वैज्ञानिक विकास से उपजी विडंबनाएँ तो हैं ही साथ ही राजनीति और तंत्र का विकृत रूप भी अभिव्यक्त हुआ है। कहना चाहिए कि पंखुरी के कवि की निगाह सदैव सजग-सतर्क है और वे लागातार लेखन में सक्रिय हैं। खास बात यह कि पंखुरी ने अपनी कविताओं को सिर्फ स्त्री तक समेट कर नहीं रखा बल्कि वे लागातार एक व्यापक फलक की ओर अग्रसर हैं – उनकी कविता स्त्री की कविताएँ न होकर मनुष्य की कविताएँ हैं।  अनहद पर उनकी कविताएँ प्रस्तुत करते हुए हमें खुशी है – आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार तो रहेगा ही।
एनीमेशन
अजब सपना था
बिलकुल हकीकत जैसा
मेरा हर वक्त
बेवक्त ही बजने वाला फ़ोन
लगातार बज रहा था बेवक़्त
यानि नज़र आये इस तरह बेवक्त
जैसे खाने को छूते ही
जैसे साबुन हाथ पर लगाते ही
जैसे चेहरे पर लेप लगाते ही
लगातार दौड़ा रहा था फ़ोन
और इस तरह बज रहा था
जैसे किसी घर का सिक्योरिटी अलार्म
लेकिन निकल कर जाया नहीं जा सकता था कहीं और
कहाँ चला जाए कोई अपना घर छोड़कर
और क्यों छोड़ दे कोई अपना घर
क्या ये विस्थापन की ही कोई नयी राजनीति है?
या फिर नए किस्म की कोई नयी घुसपैठ?
ये सवाल कोई ज़ोर ज़ोर से पूछ रहा था
सपने में?
और फ़ोन भी किसी दैत्य की तरह बज रहा था
सपने में
पहले नहाते
फिर खाते, फिर खाने के बीच
फिर उसमे एनीमेशन जैसी कोई हरकत हुई
गतिविधि या क्रिया
वह गेंद की तरह उछलने लगा
अंग्रेजी का वह शब्द वाइब्रेशन
गेंद के उछलने की तीव्र गति और क्रिया में परिणत हो गया
वह बिस्तर से उछलकर मेरे करीब आने लगा
उसके दांत उगने लगे
मेरे नहाते वक़्त बजते रहने की सारी ऊर्जा से लैस
वह उचक उचक कर
मेरी थाली तक पहुँचने लगा
मेरी उंगलिओं में अपने दांत गड़ाने लगा
मेरी कलाई में भी
और ठीक जब उसके दांत
मेरे चमड़े के भीतर धंस रहे थे
शायद मेरे अपने खून की गर्माहट से
या दर्द की आहट से
मेरी नींद खुल गयी
और मेरा फ़ोन
मेरा सेल फ़ोन
केवल मुझसे कुछ दूरी पर
किसी वहशी मशीन की तरह बज रहा था
जिसके कल पुर्जे अगर बिगड़ जाएँ
तो बहुत कुछ को भस्म कर सकते थे
कर रहे थे
लेकिन उसे उठाकर फेंक नहीं दिया जा सकता था कुएं में
नदी, झील या समुद्र में
वह बातें करवा ही लेता था
खुद से, खुद पर
कभी, कभी लगातार और केवल गलत समय बजकर ।
साल्वाडोर दाली और वायरलेस युद्ध
थोड़ा सा भी रूमानी
या खुश हो लेने पर
एक रूमानी सा यंत्र था टेलीफोन
खुशमिजाज़ सा
लेकिन ह्रदय के किसी मरीज़ की तरह
जिसके हाथ पाँव बंधे हों
लाइफ सपोर्टिंग यंत्रों के तारों से
और चिप्पियाँ चिपकी हों
शरीर पर यहाँ – वहाँ
छाती पर भी
ठीक ह्रदय के इर्द गिर्द
फ़ोन यानि सेल फ़ोन के अदृश्य तार
साल्वाडोर दाली की तस्वीरों की खामोश चीख की तरह
दबाएं हों ढ़ेर सारी आवाज़ें गर्दन में
आपकी मेरी गर्दनो में
किसी की कम
किसी की ज़्यादा
और घड़ियाँ पिघल नहीं रही हों
घड़ियाँ और मुस्तैदी से बंध गयी हों
उनमे समय के अतिरिक्त सारा जादू
सारा तमाशा
सारा मजमा
फ़िल्मी गीत तक बंध गए हों
आइ पॉड, आइ पैड
के महीन मसृण तार
कसकर लिपटे हों
हर कहीं इर्द गिर्द
लटके हों हवा में
एक घना सा जाल हो
जाने किन उपकरणो के तारों का
जबकि शब्द हो ज़माने में वायरलेस
वाइ फाई
जिसका कनेक्शन लिया जा सकता हो
सरकारी या निजी कंपनियों से
जिनमे से कुछ मूलतः विदेशी भी हैं
और जिनके साथ हमारे कॉन्ट्रैक्ट
एक दिन पता चलता है
मूलतः घाटे के सौदे हैं
दबाव की शतों पर
और इस तरह की तमाम खबरें
आती रहती हैं
इन्ही किस्मों के पर्दों पर
इन्ही तारों के जरिये
छपे हुए अखबार के कागज़ पर भी
दिखाई देती हों ये खबरें
और बाकी के ढेर सारे हिसाब किताब, जोड़ घटाव
खुद तो उच्चारित करते होते हैं
लगातार इर्द गिर्द
कइयों को ज़ोर से बोलने की अनुमति नहीं होती
बस एक तंत्र हो अजब खुफिआ बातों का
और भाषा घोर रहस्यवादी ।
पुलिस का साइरन
पुलिस का साइरन तो कोई कविता का विषय नहीं
ठीक है, कि अब लिखित रूप से
उसका होना परिभाषित हो गया है
आपके लिए और आपके साथ
राजधानी की पुलिस का कम स कम और सबसे ज़्यादा
वह अब नागरिकों का अपना पुलिस बल है
घोषित रूप से नागरिकों की ओ र
पुलिस अब सत्ता की नहीं
पुलिस अब कभी कभार ही करती है लाठी चार्ज
नागरिकों की भीड़ भी
काफी बेकाबू हो सकती है
 चैतन्य, जागरूक और सही भी
जबकि उसी के भीतर घटी होतीं हैं 
सारी दुर्घटनाएं
ठीक है कि थाना असुरक्षित भी है
और बदनाम भी
अंदरूनी इलाकों में
कहते हैं, पुलिस के पास अशेष गोलियां हैं
नक्सलवादी कौन हैं
ये एक बड़ा सवाल है
लेकिन कैसे घरों के भी समय असमय से
ताल मिलाकर बजता है
पुलिस का साइरन
परेशानी का विषय
और अवाक करने वाला सवाल है।
पुलिस साइरन जैसे हॉर्न
क्या केवल फैशन है
कि लोगों ने पुलिस साइरन से मिलता हॉर्न लगवा लिया है
अपनी मोटर गाड़ियों और मोटर साइकलों  में
क्या इस तरह आ जाती है
कुछ ताकत, गाडी के होने से भी ज़्यादा
यानो और यातायात की गति में
या कुछ भूमिकाओं के बदलने का चक्कर है
कुछ ज़्यादा सख्ती अपनी आवाज़ में लपेट लेने का
कुछ अस्त्रों का आकर्षण भी है
या कि सवाल है
इन सबपर
बहुत कुछ है जो बेताल है
बहुत सारी बातें
पर इतना शोर है
इतना शोर है
कि केवल कोलाहल है
यह महानगर ।
चोर चोर मौसेरे भाई
चुनाव हर बात का निदान नहीं
सत्ता में ठीक ठीक कौन है
इसका जवाब न चुनाव देते हैं
न चुनाव के विजेता
जो नयी सरकार चुनाव के बाद आई
वह भी खंगालना नहीं चाहती
मिनिस्टरों के खाते
तो वह आखिर आई क्यों?
क्या केवल नयी धर्मांधिता लेकर आई नयी सरकार?
एक नया कट्टर धर्मांध साधु दल
पहले वाली
अपीज़मेंट की पुरानी अंग्रेजी नीति के तहत
अल्प संख्यकों के त्यौहार मनाती बैठी थी
ऐसा करें
हम टेलीविज़न पर बाँट लें समय
राजनेता, इमामों और साधुओं के बीच
जनता तो कहीं अफीम खाए पड़ी है
जब मौसम हत्याएं करता है
उसके भयाक्रांत चेहरे टेलीविज़न पर दिखते हैं
अंगूठा छाप से साक्षरता की दूरी
बेमतलब तय करते जनतंत्र में ।
      
 चुनावी हिंसा
बोगस वोटिंग
बूथ कैप्चरिंग
फ़र्ज़ी बैलट बॉक्स
फ़र्ज़ी मतदान
सारी चुनावी हिंसा
बड़ी पत्रकारिता
साक्षरों के सरोकार
इंटेलीजेन्सिया की सारी गतिविधि
इन्ही की बनी हुई
पत्रकारिता के सबसे बड़े सरोकार
मंत्री पद के वितरण
कोई नहीं खबर लेता
बँट चुकी फाइलों की
बरसों पहले बंट चुकी फाइलों की
उन सारे बिचौलियों की
जो दरअसल
मध्य वर्ग के ही लोगों का बना है
जो बड़ी संजीदगी से
कागज़ के नोटों को
अपनी जेबों में भरकर
घर ले जाते रहे हैं
दुमंजिले, तिमंजिले, मकान बनवाते रहे हैं
और कुछ भी नहीं कहता रहा है
हमारा पत्रकार
देशी प्रबुद्ध वर्ग
विदेशी मीडिया की तर्ज़ पर
चुनावी हिंसा की बातों से इतर ।


****

पंखुरी सिन्हा
संपर्क—-A-204, Prakriti Apartments, Sector 6, Plot no 26, Dwarka, New Delhi 110075

ईमेल—-nilirag18@gmail.com

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9968186375——सेल फ़ोन

जन्म— —18 जून 1975

शिक्षा —एम ए, इतिहास, सनी बफैलो, 2008

             पी जी डिप्लोमा, पत्रकारिता, S.I.J.C. पुणे, 1998

            बी ए, हानर्स, इतिहास, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, 1996

अध्यवसाय—-BITV, और ‘The Pioneer’ में इंटर्नशिप, 1997-98

        —- FTII में समाचार वाचन की ट्रेनिंग, 1997-98

        —– राष्ट्रीय सहारा टीवी में पत्रकारिता, 1998—2000

प्रकाशन———हंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, बया, मंतव्य, आउटलुक, अकार, अभिव्यक्ति, जनज्वार, अक्षरौटी, युग ज़माना, बेला, समयमान, अनुनाद, सिताब दियारा, पहली बार, पुरवाई, लन्दन, पुरवाई भारत, लोकतंत्र दर्पण, सृजनगाथा, विचार मीमांसा, रविवार, सादर ब्लोगस्ते, हस्तक्षेप, दिव्य नर्मदा, शिक्षा व धरम संस्कृति, उत्तर केसरी, इनफार्मेशन2 मीडिया, रंगकृति, हमज़बान, अपनी माटी, लिखो यहाँ वहां, बाबूजी का भारत मित्र, जयकृष्णराय तुषार. ब्लागस्पाट. कॉम, चिंगारी ग्रामीण विकास केंद्र, हिंदी चेतना, नई इबारत, सारा सच, साहित्य रागिनी, साहित्य दर्पण, करुणावती साहित्य धारा, मंतव्य  आदि पत्र पत्रिकाओं में, रचनायें प्रकाशित, दैनिक भास्कर पटना में कवितायेँ एवं निबंध, हिंदुस्तान पटना में कविता एवं निबंध,

हिंदिनी, हाशिये पर, हहाकार, कलम की शान, समास, गुफ्तगू, उमंग, साहित्य उत्कर्ष आदि पत्रिकाओं, ब्लौग्स व वेब पत्रिकाओं में, कवितायेँ तथा कहानियां, प्रतीक्षित

किताबें —– ‘कोई भी दिन‘ , कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2006

                  ‘क़िस्सा-ए-कोहिनूर‘, कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2008

                   ‘प्रिजन टॉकीज़‘, अंग्रेज़ी में पहला कविता संग्रह, एक्सिलीब्रीस, इंडियाना, 2013

‘डिअर सुज़ाना’ अंग्रेज़ी में दूसरा कविता संग्रह, एक्सिलीब्रीस, इंडियाना, 2014

 पवन जैन द्वारा सम्पादित शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह ‘काव्य शाला’ में कवितायेँ सम्मिलित

 हिमांशु जोशी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘प्रतिनिधि आप्रवासी कहानियाँ’, संकलन में कहानी सम्मिलित

 विजेंद्र द्वारा सम्पादित और बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह ‘शतदल’ में कवितायेँ शामिल 

रवींद्र प्रताप सिंह द्वारा सम्पादित कविता संग्रह ‘समंदर में सूरज’ में कवितायेँ शामिल

गीता श्री द्वारा सम्पादित कहानी संग्रह ‘कथा रंग पूरबी’ में कहानी शामिल

‘रक्तिम सन्धियां‘, साहित्य भंडार इलाहाबाद से पहला कविता संग्रह, 2015

इसी पुस्तक मेले २०१७ में बोधि प्रकाशन से दूसरा कविता संग्रह, ‘बहस पार की लंबी धूप’, प्रकाशित

पुरस्कार— 

कविता के लिए राजस्थान पत्रिका का २०१७ का पहला पुरस्कार

 राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड 2013

पहले कहानी संग्रह, ‘कोई भी दिन‘ , को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान

             ————‘कोबरा: गॉड ऐट मर्सी‘, डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यू जी सी, फिल्म महोत्सव में, सर्व श्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला

————-‘एक नया मौन, एक नया उद्घोष‘, कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार,

————-1993 में, CBSE बोर्ड, कक्षा बारहवीं में, हिंदी में सर्वोच्च अंक पाने के लिए, भारत गौरव सम्मान

अनुवाद—-कवितायेँ मराठी में अनूदित,

          कहानी संग्रह के मराठी अनुवाद का कार्य आरम्भ,

उदयन वाजपेयी द्वारा रतन थियम के साक्षात्कार का अनुवाद,

रमणिका गुप्ता की कहानियों का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद

सम्प्रति—-

पत्रकारिता सम्बन्धी कई किताबों पर काम, माइग्रेशन और स्टूडेंट पॉलिटिक्स को लेकर, ‘ऑन एस्पियोनाज़’,

एक किताब एक लाटरी स्कैम को लेकर, कैनाडा में स्पेनिश नाइजीरियन लाटरी स्कैम,

और एक किताब एकेडेमिया की इमीग्रेशन राजनीती को लेकर, ‘एकेडेमियाज़ वार ऑफ़ इमीग्रेशन’,

साथ में, हिंदी और अंग्रेजी में कविता लेखन, सन स्टार एवम दैनिक भास्कर में नियमित स्तम्भ एवम साक्षात्कार

            हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

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Comments 6

  1. Pooja Singh says:
    5 years ago

    बेहद अच्छी कविताएँ खास कर चुनावी हिंसा सत्य का आईना हैl यह अच्छी बात है कि पंखुरी जी कविता बाहर के दर्शक दीर्घा में बैठे कवि की तरह नहीं उनका हिस्सा हो कर लिखती हैं l बहुत शुभकामनाएँ…

    Reply
  2. Unknown says:
    5 years ago

    Bahut shukria Pooja ji

    Reply
  3. NKC says:
    5 years ago

    कवितायेँ जैसे हमसे बतियाते हैं , सभी बहुत ख़ास !

    Reply
  4. अरुण चन्द्र रॉय says:
    5 years ago

    अच्छी कवितायेँ। खास तौर पर एनीमेशन और चुनावी हिंसा। पंखुरी जी की कवितायेँ नया विम्ब गढ़ रही हैं।

    Reply
  5. devendra gautam says:
    5 years ago

    आम बोलचाल की ज़ुबान में आधुनिक जीवन की विद्रूपताओं पर इतनी गहरी टिप्पणियां, इतने तीखे तंज, इतने अनूठे बिंब, इतने सजीव चित्र। निश्चित रूप से हिन्दी साहित्य में पंखुरी सिन्हा की इन छह कविताओं का स्वागत किया जाना चाहिए। इनके विषयों का चयन नागरिक जीवन में अक्सर पेश आनेवाली परेशानियों से किया गया है। तकनीक ने जीवन को जहां सहज बनाया है वहीं वहीं इसका दुरुपयोग औरों के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर देता है। एनिमेशन शीर्षक कविता उसी खीज को रेखांकित करती है। मोबाइल ने संपर्कों के दायरे को बढ़ा दिया है। दूर-दराज के लोगों के साथ बातचीत को आसान कर दिया है लेकिन वहीं अनचाहे फोन काल नाहक परेशान करते हैं। आप गहरी नींद में सोये हों और किसी शरारती तत्व के कारण लगातार अकारण आपका फोन बज रहा हो तो आपके अंदर खीज तो उत्पन्न होगी ही।
    साल्वाडोर, दाली और वायरलेस युद्ध शीर्षक कविता भी मोबाइल पर ही केंदीत है। चोर-चोर मौसेरे भाई, चुनावी हिंसा, पुलिस का साइरन, पुलिस साइरन जैसे हार्न राजनीति, नौकरशाही और नवधनाड्य वर्ग की विकृत मानसिकता की ओर इशारा करती हैं साथ ही जन जागरुकता का आह्वान करती हैं। कुल मिलाकर यह महत्वपूर्ण कविताएं हैं। पंखुरी सिन्हा इनकी रचना के लिए बधाई की पात्र हैं।

    -देवेंद्र गौतम

    Reply
  6. Unknown says:
    5 years ago

    उम्दा कविताएं।

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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