• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कविता

हेमन्त देवलेकर की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
3
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

Related articles

जयमाला की कविताएँ

शालू शुक्ला की कविताएँ

हेमन्त देवलेकर

 यह सुखद संयोग था कि नीलांबर कोलकाता द्वारा साल 2016 आयोजित एक साँझ कविता की – 2 में हेमन्त दा से मिलने और उनकी कविताएँ सुनने का मौका मिला। सहज ही यकीन करना मुश्किल हुआ कि कोई इतना सहज-सरल कैसे हो सकता है। शायद कवि-कलाकार होने का यही नेमत है – वरना हम इस बात पर कभी विश्वास न करते कि कला भी इंसान को बदलती है। वह एक शाम थी जिसमें यह अभिनेता डूबकर गीत गा रहा था – यह हुगली का एक किनारा था जहाँ आशुतोष दुबे के साथ मैं भी एक श्रोता था – मुझे कहना चाहिए कि एक कलाकार को लेकर जिस तरह की सहजता की चाहना मेरे जेहन में है – वह हेमन्त दा ने पूरी की और यकीन हुआ कि हिन्दी कविता का भविष्य सुरक्षित है।

बहरहाल यह सब भावुकता में कह गया – कविताओं पर बस यही कहूँगा कि हेमंत दुर्लभ कवि हैं। उनका अपना अलहदा मिजाज और कहन की शैली है, उनकी कविता और व्यक्तित्व दोनों में झीम-झीम बजता एक जादू है। हम उनके आभारी हैं कि उन्होंने अनहद के लिए सहर्ष अपनी कविताएँ उपलब्ध कराईं।
हम आपकी प्रतिक्रियाओं का शिद्दत से इंतजार करेंगे।

 ******

दशहरी आम


लगभग धड़ी भर आम आए थे
उस दिन घर में
मालकिन ने कहा था उससे
कि जल्दी-जल्दी हाथ चला
रस ही निकालती रहेगी
तो पूड़ियाँ कब तलेगी
भजिए भी निकालने हैं अभी
और सलाद काटकर सजाना है तश्तरी

वह दशहरी आमों का रस निकालती रही :
अस्सी रुपए किलो तो होंगे इस वक़्त

” माँ – माँ !! हमें भी खिलाओ न रस
देखें तो कैसे होते हैं दशहरी आम
जब नए-नए आते हैं मौसम में
हम भी खाएँगे आम
हमें भी दो … रस “

उसे लगा रस की पतीली के इर्द-गिर्द
बच्चे हड़कंप मचा रहे हैं
फिर उसने कनखियो से घूरा
दायें-बाएँ
और उन्हें चुप होने का किया इशारा

फिर कोई जान न पाया उसके हाथों की ऐय्यारी को
मालकिन भी नहीं

उसके हाथ आमों पर
अब उतने सख्त नहीं थे
वह छिलकों और गुठलियों में
बचाती जा रही थी थोड़ा-थोड़ा रस

एक थैली में समेट लिए उसने
सारे छिलके और गुठलियाँ
– ” जाते-जाते गाय को खिला दूँगी “
मालकिन से कहते हुए
वह सीढ़ियाँ उतर गई ।

तानपूरे पर संगत करती स्त्री


पहले – पहल
उसी को देखा गया
साँझ में चमके
इकलौते शुक्र तारे की तरह

उसी ने सबसे पहले
निशब्द और नीरव अन्तरिक्ष में
स्वर भरे और अपने कंपनों से
एक मृत – सी जड़ता तोड़ी
उसे तरल और उर्वर बनाया
ताकि बोया जा सके – जीवन

वह अपनी गोद में
एक पेड़ को उल्टा लिए बैठी है
इस तरह उसने एक आसमान बिछाया है
उस्ताद के लिए

वह हथकरघे पर
चार सूत का जादुई कालीन बुनती है
जिस पर बैठ “राग” उड़ान भरता है

हर राग तानपूरे के तहखाने में रहता है
वह उँगलियों से उसे जगाती है
नहलाती है , बाल संवारती और
काजल आँजती है , खिलाती है

उसने हमेशा नेपथ्य में रहना ही किया मंजूर
अपनी रचना को मंच पर
फलता – फूलता देख
वह सिर्फ हौले-हौले मुसकुराती है

उसे न कभी दुखी देखा ,
न कभी शिकायत करते
वह इतनी शांत और सहनशील
कि जैसे पृथ्वी का ही कोई बिम्ब है

अपने अस्तित्व की फ़िक्र से बेख़बर
उसने एक ज़ोखिम ही चुना है
कि उसे दर्शकों के देखते-देखते
अदृश्य हो जाना है ।

दस्ताने

मैं गरम कपड़ों के बाज़ार मे था
मन हुआ
कि स्त्री के लिए
हाथ के ऊनी दस्ताने ले लूँ

पर ध्यान आया
कि दस्ताने पहनने की फुर्सत
उसे है कहाँ

गृहस्थी के अथाह जल मे
डूबे उसके हाथ
हर वक़्त गीले रहते हैं

तो क्या गरम दस्ताने
स्त्री के हाथों के लिए बने ही नहीं…?

” ये सवाल हमसे क्यों पूछते हो…”
तमाम गर्म कपड़े
ये कहते , मुझ पर ही गर्म हो रहे थे

कंधे

तराज़ू के दो पलड़े हैं कंधे
एक पर अस्तित्व का बाट
दूसरे पर उत्तरदायित्वों का भार

तुला-दान में खर्च होता है जीवन
हताशाओं से उबारने की जड़ी
कंधों के पर्वत पर उगती है

किसी के गले लग कर देखिये
सबसे सुकून भरे पर्यटन स्थल हैं कंधे
उनके कारण ही हम जान पाते
कि छत्तीस का आँकड़ा
विरोध का नहीं, प्रेम का प्रतीक है

आदमी का संघर्ष
जितना रोटी के लिए
ज़्यादा उससे
मददगार कंधों के लिए

वैकुंठ को ले जाने वाला विमान
कोई मिथक नहीं
कंधों में रूपांतरित यथार्थ है

देखना सबसे पहली घटना है


प्रेम –
विश्वास जगाने की सहज क्रिया है

अचानक हम पाते
कुछ विशिष्टता अपने भीतर
और ‘साधारणता‘
इन बदलावों को देख
अचंभित खड़ी रहती

– मसलन उल्टे हाथ की सबसे छोटी उंगली में
आ जाती है पहाड़ ठेलने की ताक़त

त्वचा के भीतर
इच्छाशक्ति की कोशिकाओं में
होने लगते हैं ऐसे करिश्मे
जब पता चलता
कि कोई है जो अपनी हथेली पर
आपके नाम का पहला अक्षर
लिखा करता है अक्सर

और आप ‘चमत्कार‘ की तरह घट जाते हैं
किसी के जीवन में

प्रायश्चित


इस दुनिया में
आने – जाने के लिए
अगर एक ही रास्ता होता

और नज़र चुराकर
बच निकलने के हज़ार रास्ते
हम निकाल नहीं पाते

तो वही एकमात्र रास्ता
हमारा प्रायश्चित होता
और ज़िंदगी में लौटने का
नैतिक साहस भी

प्रेम की अनिवार्यता

बहुत असंभव-से आविष्कार किए प्रेम ने
और अंततः हमें मनुष्य बनाया
लेकिन अस्वीकार की गहरी पीड़ा
उस प्रेम के हर उपकार का
ध्वंस करने पर तुली

दिया जिसने, सब कुछ न्योछावर कर देने का भोलापन
तर्क न करने की सहजता
और रोने की मानवीय उपलब्धि

प्रेम ने हमारी ऊबड़-खाबड़, जाहिल-सी
भाषा को कविता की कला सिखाई
और ज़िंदगी के घोर कोलाहल में
एकांत की दुआ मांगना

संभव नहीं था प्रेम के बिना
सुंदरता का अर्थ समझना

प्रेम होना ही सबसे बड़ी सफलता है
कोई असफल कैसे हो सकता है प्रेम में…?

———–0———

 हेमंत देवलेकर 
संपर्कः 09039805326

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

जयमाला की कविताएँ

जयमाला की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 9, 2025
0

जयमाला जयमाला की कविताएं स्तरीय पत्र - पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। प्रस्तुत कविताओं में स्त्री मन के अन्तर्द्वन्द्व के साथ - साथ गहरी...

शालू शुक्ला की कविताएँ

शालू शुक्ला की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 8, 2025
0

शालू शुक्ला कई बार कविताएँ जब स्वतःस्फूर्त होती हैं तो वे संवेदना में गहरे डूब जाती हैं - हिन्दी कविता या पूरी दुनिया की कविता जहाँ...

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 6, 2025
0

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ

ममता जयंत की कविताएँ

ममता जयंत की कविताएँ

by Anhadkolkata
April 3, 2025
0

ममता जयंत ममता जयंत की कविताओं में सहज जीवन के चित्र हैं जो आकर्षित करते हैं और एक बेहद संभावनाशील कवि के रूप में उन्हें सामने...

चित्रा पंवार की कविताएँ

चित्रा पंवार की कविताएँ

by Anhadkolkata
March 31, 2025
0

चित्रा पंवार चित्रा पंवार  संभावनाशील कवि हैं और इनकी कविताओं से यह आशा बंधती है कि हिन्दी कविता के भविष्य में एक सशक्त स्त्री कलम की...

Next Post

विहाग वैभव की नई कविताएँ

सुशांत सुप्रिय की कविताएँ

दीप्ति कुशवाह की लंबी कविता - निर्वीर्य दुनिया के बाशिंदे

Comments 3

  1. Pooja Singh says:
    8 years ago

    सच्ची बात । सारी कविताएँ अच्छी है प्राकृतिक हैं मुझे सबसे प्यारी लगी " प्रेम "जिसकी लाइन खास कर "कोई है जो अपनी हथेली पर आपके नाम का पहला अक्षर लिखा करता है अक्सर और आप चमत्कार की तरह घट जाते हैं किसी के जीवन में "।दूसरी जिसमे कहा– "सुकून भरे पर्यटन स्थल हैं कंधे उनके कारण ही हम जान पाते कि छत्तीस का आँकड़ा विरोध का नहीं, प्रेम का प्रतीक है"।
    स्त्री के नेह की लाइने — "गृहस्थी के अथाह जल मे डूबे उसके हाथ हर वक़्त गीले रहते हैं तमाम गर्म कपड़े ये कहते,मुझ पर ही गर्म हो रहे थे"।
    बधाई शुभकामनाएँ..।पूजा

    Reply
  2. विमलेश त्रिपाठी says:
    8 years ago

    बहुत आभार पूजा। शुभकामनाएँ।

    Reply
  3. Unknown says:
    8 years ago

    Very nice and simply meaningful poem. I just love hemant da's nature and their personality as a good human being. It was very special those day in which i attends vihaan theatre workshop & learned lots of things like confidence, always be happy etc. These things is very nessary in ur theatre journy . Thank you so much Hemant Da..😃

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.