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Home कविता

सुशांत सुप्रिय की कविताएँ

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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3
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शालू शुक्ला की कविताएँ


सुशांत सुप्रिय
सुशांत सुप्रिय की कविताएँ बहुत समय से पढ़ता रहा हूँ। सुशांत के विषय चयन से लेकर शब्द चयन तक असाधारण रूप से आकर्षित करते रहे हैं। एक और बात जो गौर करने लायक है वह है कवि की संवेदना और अपना निजी अनुभव। कवि का अनुभव संसार बहुत व्यापक है जो उसे महत्वपूर्ण और रेखांकनीय कवि बनाता है। इनकी कृतियाँ हैं – हत्यारे ( 2010 ) , हे राम ( 2013 ) , दलदल ( 2015 ) , ग़ौरतलब कहानियाँ ( 2017 ) , पिता के नाम ( 2017 ) : पाँच कथा – संग्रह । # इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ( 2015 ) ,अयोध्या से गुजरात तक ( 2017 ): दो काव्य-संग्रह ।# विश्व की चर्चित कहानियाँ ( 2017 ) , विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ( 2017 ) :  दो अनूदित कथा-संग्रह । सुशांत पहली बार अनहद पर छप रहे हैं – उन्हें खूब बधाइयाँ। आपसे गुजारिश कि साथ बने रहें।
ध्यान से देखो
                                                                            
यह गाँव के कुत्तों का विलाप नहीं
गिरवी पड़े खेतों का रुदन है

यह सूखी नदी नहीं
दर्द का आख्यान है

यह बरबाद खेती नहीं
निष्ठुर त्रासदी है

यह किसान का योगासन नहीं
उसके गर्दन तक दलदल में
                   
धँसे होने की
                   
छटपटाहट है

यह कविता नहीं
मर्मांतक पीड़ा है

यह मरघटी शांति नहीं
प्रजातंत्र का क्षरण है …

               

इस त्रासद वेला में
                                                                              

शोक-गीत-सा यह देश
त्रासदी-सा यह काल
कालिख़-पुते-से ये नीति-नियंता

और मैं जैसे
मिट्टी से भर दिया गया कुआँ
जिसके सीने में धड़कती है अब भी
मीठे जल की स्मृति

 जिगरी यार से मिलना

बहुत दिनों बाद
जिगरी यार से मिलना

जैसे
मीठे पानी के कुएँ पर
प्यास बुझाना

जैसे
सूख रहे खेत का
फिर से लहलहा जाना

जैसे
हाँफते हुए फेफड़ों में
फिर से ताज़ी हवा भर जाना

जैसे
फिर से बचपन में
लौट कर
कंचे खेलना
रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाना

जैसे
पशु-पक्षियों
पेड़-पौधों
फूलों-तितलियों
चाँद-सितारों से
फिर से बतियाना

बहुत दिनों बाद
जिगरी यार से मिलना

जैसे
तन-मन का
सूरजमुखी-सा खिलना

भूल-सुधार

एक बहुत पुरानी संदूक में से
निकली थीं मेरे बचपन की
कुछ किताबें-कापियाँ
जिन्हें विस्मित हो कर
देख रही थीं
मेरी अधेड़ आँखें

कि अचानक
अपनी बनाई किसी
बहुत पुरानी पेंटिंग पर
अटक गई मेरी निगाहें

वहाँ बीच सड़क पर कड़ी धूप में
मौजूद थे बरसों के थके कुछ लोग

उनकी बोलती आँखों से
मिली मेरी आँखें
और स्तब्ध रह गया मैं —
                             ‘
तुम्हारी बनाई इस पेंटिंग में
                               
कहीं कोई छायादार पेड़ नहीं
                               
बरसों से इस भीषण गरमी में
                               
झुलस रहे हैं हम … ‘

अक्षम्य भूल —
सोचा मैंने

तभी मेरी सात बरस की पोती ने आकर
बना दिए उस पेंटिंग में
कुछ छायादार पेड़
कुछ रंग-बिरंगी चिड़ियाँ

इस तरह
बरसों बाद कुछ थके राहगीरों को
छायादार ठौर मिल गई

चौबीस घंटों में

मैं रात की जम्हाई हूँ
और सुबह की स्फूर्ति भी

पतंगें कट कर लौट गई हैं
धरती की गोद में
विजेता बच्चों के चेहरों पर हैं मुस्कानें
हारे हुए बटोर रहे हैं
बिखरी उदासी के धागे

मेरे ज़हन के संगणक में
दर्ज़ हैं दिन के सभी प्रहर
मेरी देह साक्षी है
प्रहरों के रंगों-ख़ुशबुओं की
स्मृति के कलश में भरे हैं
समय के अनगिनत क़िस्से
धीरे-धीरे सूख कर चटख हो रही है
दिन की पेंटिंग

मछली की आँखों में बसी है
आकाश की नीलिमा
समय के अथाह जल में
एक गुड़ुप्-सा हूँ मैं

चौबीस घंटों के अनगिनत दोहराव से
बनी दुनिया में प्रहरों को
बीतते हुए देखता हूँ मैं
तैयार करता हूँ अपने परों को
नयी उड़ान के लिए

चाहता हूँ कि
मेरी धरती की हर सुबह
स्वर्णिम हो
पर यह कैसा तलछट है
जो जम गया है
मेरे समय की रेत-घड़ी में
ये कौन-से मुँहझौंसे प्रहर हैं
जो लगातार उलीच रहे हैं
बाज़ार का काला अँधेरा
मेरी सभ्यता के क्षितिज पर ?


बौड़मदास की सीनरी

बौड़मदास की सीनरी में
                     
किसान आत्महत्या
                     
कर रहे हैं
                     
दलितों का उत्पीड़न
                     
हो रहा है
                     
मुसलमानों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में
                     
मारा जा रहा है
                     
स्त्रियों के साथ
                     
बलात्कार हो रहा है
दरअसल
बौड़मदास की सीनरी में
                     
इस देश का नक़्शा धरा है
                     
जो गाँधीजी के स्वप्न
                     
में से गिर कर
                     
रसातल में पड़ा है

                         ————०————

  सुशांत सुप्रिय
         
परिचय 

नाम : सुशांत सुप्रिय 
जन्म : 28 मार्च , 1968 
शिक्षा : अमृतसर ( पंजाब ) , व दिल्ली में ।
प्रकाशित कृतियाँ :
—————–
# हत्यारे ( 2010 ) , हे राम ( 2013 ) , दलदल ( 2015 ) , ग़ौरतलब कहानियाँ 
( 2017 ) , पिता के नाम ( 2017 ) : पाँच कथा – संग्रह ।
# इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ( 2015 ) ,अयोध्या से गुजरात तक ( 2017 ): दो काव्य-संग्रह ।
# विश्व की चर्चित कहानियाँ ( 2017 ) , विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ( 2017 ) : 
दो अनूदित कथा-संग्रह ।
सम्मान : 
——–
भाषा विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा रचनाएँ      
पुरस्कृत । कमलेश्वर-स्मृति  ( कथाबिंब ) कहानी प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार दो वर्ष  प्रथम पुरस्कार । स्टोरी-मिरर.कॉम कथा प्रतियोगिता , 2016 में कहानी पुरस्कृत । 
अन्य प्राप्तियाँ :
————–
# कई कहानियाँ व कविताएँ अंग्रेज़ी , उर्दू , पंजाबी, उड़िया, मराठी, असमिया , कन्नड़ , तेलुगु व मलयालम आदि भाषाओं में अनूदित व प्रकाशित । कहानियाँ केरल के कलडी वि.वि. ( कोच्चि ) के एम.ए. ( हिंदी ) , तथा मध्यप्रदेश , हरियाणा व महाराष्ट्र के कक्षा सात व नौ के हिंदी पाठ्यक्रम में शामिल । कविताएँ पुणे वि. वि. के बी. ए.( द्वितीय वर्ष ) के पाठ्य-क्रम में शामिल । कहानियों पर आगरा वि. वि. , कुरुक्षेत्र वि. वि. , पटियाला वि. वि. , व गुरु नानक देव वि. वि. , अमृतसर के हिंदी विभागों में शोधार्थियों द्वारा शोध-कार्य । 
# अंग्रेज़ी व पंजाबी में भी लेखन व प्रकाशन । अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह  ‘ इन गाँधीज़ कंट्री ‘ प्रकाशित । अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ‘ द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ‘ प्रकाशनाधीन । 
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
मोबाइल : 8512070086
पता: A-5001, 
       गौड़ ग्रीन सिटी , 
       वैभव खंड , 
       इंदिरापुरम , 
       ग़ाज़ियाबाद – 201014
       ( उ. प्र. ) 

 

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 3

  1. Pooja Singh says:
    8 years ago

    बधाई अनहद को। अच्छी कविताओ को परोस रहे हैं आप । सभी कविताए अच्छी हैं। चयन करना कठिन है कि कौन सर्वश्रेष्ट है, फिर भी बौड़मदास की सीनरी,भूल-सुधार, ध्यान से देखो कविता मे कवि की विविधता मे अतुल्य है …..।

    Reply
  2. विमलेश त्रिपाठी says:
    8 years ago

    आभार पूजा सिंह जी। आपके साथ से अनहद को बल मिलता है।

    Reply
  3. Ajay sisodiya says:
    8 years ago

    अनहद और सुशांत सर को बधाई ऐसे आप जैसे संवेदन शील कवियों के बल पर साहित्य जिंदा है

    Reply

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