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Home कविता

विहाग वैभव की नई कविताएँ

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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विहाग वैभव

पहली बार विहाग वैभव की कविताओं पर नजर फेसबुक पर ही पड़ी। कई कविताएं पढ़ने के बाद लगा कि इस कवि में कुछ अलग है जो खींच रहा है – जाहिर है कि मैंने विहाग की कविताओं पर नजर रखनी शुरू की। इस प्रक्रिया में यह कवि अंदर कहीं पैठता चला गया। इस कवि से कभी मुलाकात नहीं हुई है। बात भी न के बाराबर। जहाँ तक मुझे याद है – पहली बार फेसबुक के संदेश बक्से में मैंने जब संदेश भेजा तो कविताओं के लिए गुजारिश की और कविताएं दो तीन दिनों के अंतराल के बाद मिल भी गईं। कविताओं के साथ कोई परिचय नहीं। और यह सही भी लगा कि एक कवि के लिए उसकी कविताओं से बढ़कर और क्या परिचय हो सकता है। हमें यकीन है कि इस कवि की कविताओं से परिचय कर आपके मन में युवा कविता को लेकर एक मजबूत उम्मीद जगेगी। विहाग की कविताओं से गुजरते हुए आप जान पाएंगे कि यह कवि अपनी जमीन में गहरी जड़ें जमाए हुए है। यहाँ यह कहना चाहिए कि इन दिनों जिस तरह कुछ कवियों की कविता से जमीन गायब हुई है, वह चिंतनीय है। जबकि हमारा खूब यकीन है कि कोई भी बड़ी कविता हवा में कतई नहीं लिखी जा सकती। विहाग जमीनी जुड़ाव के नाते भी और अपनी कविताओं की भाषा और कहन की ताजगी की बदौलत एक नई उम्मीद जगाते हैं। उनकी कविताओं को अनहद पर पहली बार प्रकाशित कर हम उम्मीद भरी नजरों से उनकी ओर देख रहे हैं।
विदित हो कि विहाग वैभव फिलहाल वाराणसी में रहकर परास्नातक कर रहे हैं और कविताएँ लिख रहे हैं। 08858356891 पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।

*****

माँ का सिंगारदान
_____________________
हर जवान लड़के की याद में
बचपन
सर्दियों के मौसम में उठता
गर्म भाप सा नहीं होता
रेत की कार में बैठा हुआ लड़का
गुम गया मड़ई की हवेली में

हमारे प्रिय खेलों में
सबसे अजीब खेल था
माँ के सिंगारदान में
उलट-पलट , इधर-उधर
जिसमें रहती थी
कुछेक पत्ते टिकुलियाँ
सिन्दूर से सनी एक डिबिया
घिस चुकी दो-चार क्लिचें
सस्ता सा कोई पाउडर
एक आईना
और छोटी-बड़ी दो कंघी

हमने माँ को हमेशा ही
खूबसूरत देखना चाहा
हम नाराज भी हुए माँ से
जैसे सजती थी
आस-पड़ोस की और औरतें
माँ नहीं सजी कभी उस तरह
माँ उम्र से बड़ी ही रही

हमने माँ को
थकते हुए देखा है
थककर बीमार पड़ते देखा है
पर माँ को हमने
कभी रोते हुए नहीं देखा
हमने माँ को कभी
जवान भी नहीं देखा
बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं

मैंने सिंगारदान कहा
जाने आप क्या समझे
मगर अभी
लाइब्रेरी के कोने में 
एक लड़का सुबक उठ्ठा है

मेरी दवाइयों के डिब्बे में
सिमटकर रह गया
माँ का सिंगारदान ।

ओझौती जारी है
________________________
तपते तवे पर डिग्रियाँ रखकर
जवान लड़के जोर से चिल्लाये – रोजगार

बिखरे चेहरे वाली अधनंगी लड़की
हवा में खून सना सलवार लहराई बदहवास
और रोकर चीखी – न्याय

मोहर लगे बोरे को लालच से देख
हँसिया जड़े हाथों को जोड़
 
किसान गिड़गिड़ाये – अ.. अ..अन्न
उस सफेद कुर्ते वाले मोटे आदमी ने
 
योजना भर राख दे मारी इनके मुँह पर
और मुस्कुराकर कहा – भभूत  ।

तलवारों का शोकगीत
__________________________
कलिंग की तलवारें
लगकर स्पार्टन तलवारों के गले
खूब रोयीं इक रोज फफक-फफक

हिचकियाँ बाँध तलवारें  रोयीं
कि उन्होंने मृत्यु भेंट दिया
कितने ही शानदार जवान लड़कों के
रेशेदार चिकने गर्दनों पर नंगी दौड़कर
और उनकी प्रेमिकाएँ
किले के मुख्यमार्ग पर खड़ी
बाजुओं पर बाँधें
वादों का काला कपड़ा
पूजती रह गयीं अपना अपना ईश
चूमती रह गयीं बेतहाशा
कटे गर्दन के खून सने होंठ

तलवारों ने याद किये अपने अपने पाप
भीतर तक भर गयीं
मृत्यु- बोध से जन्मी अपराध- पीड़ा से

तलवारों ने याद किया
कैसे उस वीर योद्धा के सीने से खून
धुले हुए सिन्दूर की तरह बह निकला था छलक छलक
और योद्धा की आँखों में दौड़ गयी थी
कोई सात आठ साल की खुश
बाँह फैलाये , दौड़ती पास आती हुई लड़की
दोनों तलवारों ने
विनाश की यन्त्रणा लिए
याद किया सिसकते हुए –

यदि घृणा , बदले और लोभ से सने हाथ
उन्हें मुट्ठियों में कसकर
जबरन न उठाते तो
वे कभी भी
अशुभ और अनिष्ट के लिए
उत्तरदायी न रही होतीं

एक दूसरे की पीठ सहलाती तलवारों ने
सांत्वना के स्वर में
एक दूसरे को ढाँढस बँधायी –

तलवारें लोहे की होती हैं
तलवारें गुलाम होती हैं
तलवारें बोल नहीं सकतीं
तलवारें खुद लड़ नहीं सकतीं ।

आखिरी कुछ भी नहीं
________________________
राजा को उम्मीद है
वह सत्ता में बना रहेगा
जनता को उम्मीद है
वह चुनेगी अबकी अपना सच्चा नेता
हत्यारे को उम्मीद है
वह बच निकलेगा इस बार भी
बुढ़िया को उम्मीद है
आयेगा फ्रांस से फोन
धरती को उम्मीद है
वह सब सह लेगी

चेहरे को उम्मीद है
वह छिपा लेगा गीली हँसी
अँधेरे को उम्मीद है
सुबह फिर होगी

गोपियों को है उम्मीद
लौट आयेंगें कृष्ण
समसारा को उम्मीद है
मरेगा मेरे कवि का पुरुष

मछुआरे की उम्मीद नहीं टूटी है
वह जाल फिर फेंकेगा
आदिवासियों को है उम्मीद
अब नहीं आएगा
बुल्डोजरी दाँतों वाला दानव
चिचोरने जंगल की जाँघ

उम्मीद उनमें से सबसे खूबसूरत है
जो कुछ भी है
या जिसके होने की सम्भावना है

तो आओ हम मिलकर जोड़ें हाथ
और नियति से करें प्रार्थना
धरती की कोख से
सूरज की जड़ तक
सबकी उम्मीद बँधी रहे
बची रहे ये दुनिया
बनी रहे ये सृष्टि ।

इजहार और एक लोना अबाब
____________________________
पैरों में  पगड़ी बांध बाप की
भगी दुपहरी रात अँधेरे में
लोना अबाब
पाने कुसुम कुमार को
मिलने कुसुम कुमार से
जाने बिना अता-पता ही कोई

लोना भागी खेत – खेत
लोना भागी रेत – रेत
वन – वन भागी लोना
मन – मन भागी लोना
भागी पर्वत – पर्वत , घाटी – घाटी

थकी नहीं वह तनिक भी जबकि
तलुओं से छाले फूटे ऐसे
कि नदियों की धारा तेज हो गयी

पत्थर धँसे पाँव में इतने
कि पश्चिम – पहाड़ के सिर पर
वह थका हुआ बूढ़ा सूरज
लगा उगलने खून

हारिल से पूछी लोना कुसुम कुमार का वास
हारिल ने हवा में गिरा दिया पंजे से काठ
पर लोना नहीं हुई उदास

रेती से पूछी लोना कुसुम कुमार का वास
रेत के पीठ पर उग आया बरगद विशाल
पर लोना का साहस कम न हुआ

योगी से पूछी लोना कुसुम कुमार का वास
योगी के मुँह से लगी टपकने देह
फिर भी लोना थम्हीं नहीं उस छद्म देश

पल भर ठहरी लोना
रुकी , सुनी अपने भीतर
पाँच तार से बँधे हृदय का सितार रूदन
फिर सीधे पूरब में भागी
नीली स्याही से रँगा हुआ वह स्याम पुरुष
सरयू के तट पर व्याकुल खड़ा मिला

लोना अबाब को था कहना कुसुम कुमार से ये सब –
जैसे गौरैया फुदक – फुदक कहती माटी से
जैसे बादल है टपक – टपक कहता धरती से
जैसे पराग है निचुड़ – निचुड़ कहता तितली से
हाँ ठीक मुझे भी प्रेम है तुमसे , बिल्कुल वैसे ही
उतना ही
अकूत , अनन्त , अथाह ,अपरिमित

पर ये क्या !
लोना को कुछ कहना था !
क्या कहना था ?
चुप रहना था ?
सब भूल गयी
कुछ याद नहीं

तब लोना ने काट स्वयं की जीभ स्वयं ही
सेमल के दो पत्तों में रख भेंट कर दिया
प्रिय पुरुष कुसुम को
सदियों पीछे
मुक्त हो गयी
मौन हो गयी ।
                                       ****

विहाग वैभव _ संपर्क –  08858356891

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

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Comments 13

  1. Anonymous says:
    5 years ago

    बेहतरीन..परास्नातक में इस तरह की परिपक्व कविता उम्मीद को रौशन करती है.."तलवारों का शोक गीत" और "इजहार और लोना अबाब" कविता की गहरी संवेदना छू गयी…बधाई विहाग वैभव को इसी तरह बेहतरीन करते रहें।"अनहद" अच्छी कविताओं को स्थान दे रहा है यह संम्भावनशील कवियों के लिए और हम जैसे पाठक वर्ग के लिए सार्थक जगह है।

    शिवानी गुप्ता

    Reply
  2. Anonymous says:
    5 years ago

    Behtareen…bahut sundar rachna

    Shalini Mohan

    Reply
  3. विमलेश त्रिपाठी says:
    5 years ago

    बहुत आभार शिवानी गुप्ता और शालिनी जी।

    Reply
  4. Anonymous says:
    5 years ago

    विहाग की इस राग से मडई की हवेली में मीठी नींद आएगी. यकीनन. अनहद खूब गूँजे. आमीन ! अभयानंद कृष्ण

    Reply
  5. विमलेश त्रिपाठी says:
    5 years ago

    शुक्रिया अभयानंद जी। साथ बना रहे।

    Reply
  6. Pooja Singh says:
    5 years ago

    माँ का सिंगारदान,तलवारों का शोकगीत,इजहार और एक लोना अबाब अच्छी कविताएँ हैं……
    कवि के संवेदनशीलता और कल्पना की परम पारदर्शिता दिखाती है। कतई सन्देह नही कि "विहाग वैभव" से बहुत सी उम्मीदे जागती हैं।
    मुझे अच्छी लगी यह लाईने—-
    १. तलवारें लोहे की होती हैं
    तलवारें गुलाम होती हैं
    तलवारें बोल नहीं सकतीं
    तलवारें खुद लड़ नहीं सकतीं….
    २. "लोना ने काट स्वयं की जीभ स्वयं ही
    सेमल के दो पत्तों में रख भेंट कर दिया
    प्रिय पुरुष कुसुम को
    सदियों पीछे
    मुक्त हो गयी
    मौन हो गयी" ……।
    शुभकामनाएँ विहाग वैभव।..

    Reply
  7. Anonymous says:
    5 years ago

    विहाग वैभव एक संभावनाशील युवा कवि हैं।पिछले साल उसे डीएवी कॉलेज ,बनारस में कविता पाठ करते सुना था और प्रभावित हुआ था।अच्छी कविताएँ अनहद पर लगी है।विहाग को बहुत शुभकामनाएँ।
    – आनंद गुप्ता

    Reply
  8. विमलेश त्रिपाठी says:
    5 years ago

    बहुत आभार पूजा जी और आनंद बाबू। साथ बना रहे।

    Reply
  9. Niranjan Shrotriya says:
    5 years ago

    अच्छी कविताएँ। "रेखांकित"में लिया जा सकता है।

    Reply
  10. अनिला राखेचा says:
    10 months ago

    सभी कविताओं का विषय तो है अलग-अलग मगर उतर रही है सभी एक ही जगह… सीधे हृदय में। "मुट्ठी भर राख" जबरदस्त बिंब। विहाग वैभव को जन्मदिन की अनंत मंगलकामनाएं। "अनहद" एक अच्छा ब्लॉग है और यहाँ बेहतरीन रचनाकारों की रचनाएं पढ़ने को मिल रही है इसके लिए विमलेश जी को अनेकानेक साधुवाद।

    Reply
  11. अनिला राखेचा says:
    10 months ago

    This comment has been removed by the author.

    Reply
  12. अनिला राखेचा says:
    10 months ago

    This comment has been removed by the author.

    Reply
  13. अनिल जनविजय says:
    10 months ago

    कविताएँ बेहद अच्छी हैं, लेकिन सम्पादक ने सम्पादक के अपने कर्त्तव्य पूरे नहीं किए हैं। भाषा और वर्तनी की त्रुटियों को दूर नहीं किया है।

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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