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Home कविता

संतोष अलेक्स की नई कविताएँ।

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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शालू शुक्ला की कविताएँ

संतोष अलेक्स

संतोष अलेक्स युवा कवि और अनुवादक हैं। उनके कई संग्रह सहित अनुवाद की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। संतोष सरल-सहज भाषा के साथ गहरी संवेदना के कवि हैं। 
आज उनका जन्मदिन है। संतोष जी को अनहद कोलकाता की ओर से ढेरों बधाईयाँ। आइए पढ़ते हैं उनकी कुछ नई अप्रकाशित कविताएँ।
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार तो रहेगा ही।

                
संतोष अलेक्‍स की कविताएँ

                
                 
                हमारे बीच का मौन
                  प्रेम की तुम्‍हारी अपनी परिभाषा है
                  जो मेरी परिभाषा
                  से काफी भिन्‍न है
                  तुम्‍हारे अपने तर्क हैं
                  मेरे अपने 
                  खैर
                  मैं कुछ कहना नहीं चाहता
                  कहता भी तो तुम
                  शायद ही सुनती
                  मैं पूछना चाह रहा था कि
                  अब कमर दर्द कैसा है
                  तुमसे मिलना
                  एक संयोग था
                  हाथ थामना
                  साथ जीना
                  छूट जाना
                  पुन:  ताल मेल बैठाना
                  यहां तक आकर
                  संतुलन बनाए रखना कठिन है
                  फिसलने का डर रहता है
                  चोट लगने का भी
                  हमारे बीच का मौन
                  बहुत खुबसूरत था
                  तुम्‍हारा चुप होना
                  महज खामोशी नहीं थी
                  यह शायद नकली ठहराव था
                  तुम्‍हें लगा कि मैं चिढ जाऊंगा
                  तुम मेरी सबसे बड़ी सौग़ात हो
                  बिल्‍कुल जीवन की तरह
                  जैसे थोड़ा नमक
                  थोड़ा पानी
मेरा सच अपना है
अचानक लाइन चली गई
मोमबत्‍ती जलाने की कोशिश में
हाथ जल गया
मोमबत्‍ती की रोशनी में
हाथ की छोटी, बड़ी
हल्‍की, गहरी रेखाएं दिखाई दी
जिनमें यादें पिरोई
हुई थी
बीज की
मिट्टी की
गिल्‍ली डंडा खेलने की
नन्‍हें की स्निग्‍ध स्‍पर्श की
पहली बार झूठ बोलने की
विदा करने पर बहन के गर्म
आलिंगन की
टूटे खपरैल की
हथेली की रेखाएं
शायद बढी हों या
धुंधली हो गई हों
मगर घटनाएं सच है
इसे औरों के संदर्भ में
परखना मत
चूंकि मेरा सच अपना है 
गड़ेरिया
भेड़ों को हांकते हुए 
ले जा रहे गडेरिए का दृश्‍य
कैमरे में दिखता था आकर्षक
आकर्षक नहीं था उसकी जिंदगी
सारे भेड़ेां पर देना पड़ता था ध्‍यान
एक ही दिशा में जा रहे थे भेड़
एक ही दशा में जी रहा था वह
जिंदगी भर एक ही काम करते हुए
जैसे कोई झरना गुजरता है
अपने सीमाबद्ध रास्‍तों से
चिटिठयां
दुनिया को
छोटे कागज में समेटती हैं ये.
बेटी का पहला खत पढ़कर
समझ गया माहौल घर का. याद है,  ज्‍योतिषी ने तो दस में
दस नंबर दिए थे. पढा लिखा लडका. अच्‍छे परिवार में जन्‍म.
मां बाप भी नौकरीरत.
आखिर गलती हुई कहां.
मेरी चिटठी उस तक पहुंचे
यही कामना है
भुटटा बेचती औरत
शाम का वक्‍त है
समुंदर किनारे सड़क से सटे
पैरेपट के तले
भुटटा बेचती है वह
उसकी गोदी में लेटा बच्‍चा
दूध पी रहा है
दूसरा जमीन में लोटता हुआ
उसके  पास पहुंचने की कोशिश में है
मोल तोल करता है ग्राहक
भुट्टे के लिए
शाम ढलते ही
मोल तोल भुटटे का नहीं
उसका होता है ।
संतोष अलेक्स
केरल के तिरूवल्‍ला में जन्‍म. हिंदी एवं मलयालम कवि. 23 किताबें प्रकाशित जिनमें कविता, आलोचना एवं अनुवाद शामिल. कविता एवं अनुवाद का प्रकाशन देश के चर्चित हिंदी, मलयालम एवं अंग्रेजी पत्रिकाओं में प्रकाशित. पिछले दो दशकों से पांच भाषाओं में अनुवाद के माध्‍यम से भारतीय साहित्‍य को समृद्ध कर रहे हैं. प्रथम सृजनलोक कविता सम्‍मान, पंडित नारायण देव पुरस्‍कार, दिवागीश पुरस्‍कार, तलशेरी राघवन स्‍मृति कविता पुरस्‍कार एवं साहित्‍य रत्‍न पुरस्‍कार से सम्‍मानित.
संपर्क 8281588229
इ मेल drsantoshalex@gmail.com

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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